गढ़वाल की प्रमुख बोलियाँ एवं उपबोलियाँ

  • संकलनकर्ता : नवीन नौटियाल

उत्तराखंड तैं मुख्य रूप सै गढ़वाळ और कुमौ द्वी मंडलूं मा बंट्यु च, जौनसार क्षेत्र गढ़वाळ का अधीन होणा बावजूद अपणी अलग पैचाण बणाण मा सफल रै। इले ही यु अबि बि विवादौकु बिसै च कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा च कि गढ़वळी की एक उपबोली च।

[उत्तराखंड को मुख्य रूप से गढ़वाल और कुमाऊँ दो मंडलों में विभाजित किया गया है, जौनसार क्षेत्र गढ़वाल के अधीन होने के बावज़ूद अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में सफल हुआ है। इसीलिए यह अभी भी विवाद का विषय है कि जौनसारी एक स्वतंत्र भाषा है या गढ़वाली की ही एक उपबोली है।]

गढ़वळी का अंतर्गत आंण वळी मुख्य बोली और उपबोली ई छन –

[गढ़वाली के अंतर्गत आने वाली प्रमुख बोलियाँ और उपबोलियाँ इस प्रकार हैं –]

#जौनसारी – गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले के पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र जौनसार-बावर में

#जौनपुरी – टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में

#रवाँल्टी उत्तरकाशी जिले की यमुना घाटी के नौगाँव, पुरोला और मोरी तीन विकास-खण्डों में

#टकनौरी – उत्तरकाशी जिले की टकनौर पट्टी की उपला टकनौर घाटी में

#बंगाणी – उत्तरकाशी जिले की मोरी तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले बंगाण क्षेत्र में

#दशौल्या – गढ़वाल के दसोली और पैनखंडा परगने में

#बधाणी – गढ़वाल के बधाण परगने में

#नागपुर्या – गढ़वाल के नागपुर परगना और पैनखंडा परगने के सीमांत क्षेत्र में

#श्रीनगर्या – चाँदपुर परगने के दक्षिणी भाग में, देवलगढ़ परगने में और श्रीनगर के आसपास वाले क्षेत्र में

#सलाणी – गढ़वाल का सलाण क्षेत्र गंगा सलाण, मल्ला सलाण और तल्ला सलाण के अलावा पाली पट्टी में

# चौंदकोटी – गढ़वाल के चौंदकोट परगना, कुमाऊँ के अल्मोड़ा जिले की मल्ली पट्टी के कुछ गाँवों में

#लोब्या – गढ़वाल के राठ क्षेत्र, चाँदपुर पट्टी, चाँदपुर परगना, कुमाऊँ के अल्मोड़ा जिले के कुछ गाँवों में

#टिरियाली – टिहरी गढ़वाल में

#राठी – पौड़ी गढ़वाल के राठ क्षेत्र में

#माझ-कुमय्या – गढ़वाल और कुमाऊँ के सीमावर्ती क्षेत्र अथवा ‘दुसांध’ क्षेत्र में

#मार्छा-तोल्छा – गढ़वाल के चमोली जिले के उत्तरी सीमांत क्षेत्र की नीति और माणा घाटियों में

यूँ बोल्यूं/उपबोल्यूं मां लिख्यूं साहित्य और मुखजुबन्यु साहित्य (लोकसाहित्य) लगातार कम होणु च। यूं में से कुछ बोल्यूं तैं यूनेस्कोन भि खतरा मां बथयुं च। गढ़वळी लिख्वार मित्रूं सै अनुरोध च युंका संरक्षण का वास्ता अपणु साहित्यिक योगदान जरूर कर्यां।

[इन बोलियों/उपबोलियों में लिखित साहित्य और मौखिक साहित्य (लोकसाहित्य) लगातार कम हो रहा है। इनमें से कई बोलियों को यूनेस्को ने खतरे में बताया है। गढ़वाल के लेखक मित्रों से हार्दिक अनुरोध है यदि आप लोग इनके संरक्षण हेतु साहित्यिक योगदान कर सकें तो अवश्य करें।]

(नवीन नौटियाल उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल, पट्टी- सितोन स्यूँ, कोट— ब्लॉक, गाँव-रखूण के निवासी हैं तथा वर्तमान में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि, नई दिल्ली में शोधार्थी हैं)

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