कहानी: शीशफूल

कहानी: शीशफूल

सुनीता भट्ट पैन्यूली कहानियों का नदी की तरह कोई मुहाना नहीं होता ना ही सितारों की तरह उनका कोई आसमान. एक सजग दृष्टि और कानों की एकाग्रता किसी भी विषयवस्तु को कहानियों का चोला पहना देती हैं. पलायन, बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घर छोड़कर कुछ अरसे के लिए बाहर ज़रुर चले जाते […]

Read More
 युवा लेखक ललित फुलारा की कहानी ‘घिनौड़’ और ‘पहाड़ पर टैंकर’ पर एक विमर्श…

युवा लेखक ललित फुलारा की कहानी ‘घिनौड़’ और ‘पहाड़ पर टैंकर’ पर एक विमर्श…

अरविंद मालगुड़ी पिछले दिनों ललित फुलारा की कहानी ‘घिनौड़’ और ‘पहाड़ पर टैंकर’ पढ़ी. इन दोनों ही कहानियों को मैंने छपने से पहले और छपने के बाद एक नहीं, दो-दो बार पढ़ा है. ‘घिनौड़’ (गौरेया) जहां एक वैज्ञानिक सोच वाली मनोवैज्ञानिक कहानी है, वहीं ‘पहाड़ पर टैंकर’ जड़ों से कट चुके उत्तराखंड के नौजवानों को […]

Read More
 अरे! ये तो कॉन्ट्रास्ट का ज़माना है…

अरे! ये तो कॉन्ट्रास्ट का ज़माना है…

कहानी- कॉन्ट्रास्ट पार्वती जोशी पूनम ने अपनी साड़ियों की अल्मारी खोली और थोड़ी देर तक सोचती रही कि कौन-सी साड़ी निकालूँ. आज उसकी भाँजी रितु की शादी है. सोचा ससुराल पक्ष के सब लोग वहाँ उपस्थित होंगे. so उसे भी खूब सज धज कर वहाँ जाना होगा. उनमें से कोई भी साड़ी उसे पसंद नहीं […]

Read More
 रनिया की तीसरी बेटी

रनिया की तीसरी बेटी

कहानी मुनमुन ढाली ‘मून’ आंगन में चुकु-मुकु हो कर बैठी, because रनिया सिर पर घूंघट डाले, गोद मे अपनी प्यारी सी बेटी को दूध पिलाती है और बीच-बीच मे घूंघट हटा कर, अपने आस -पास देखती है और उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान छलक जाती है. सप्तेश्वर रनिया की सास गुस्से में तमतमाई […]

Read More
 शुभदा

शुभदा

कहानी डॉ. अमिता प्रकाश यही नाम था उसका शुभदा! शुभदा-शुभता प्रदान करने वाली. शुभ सौभाग्य प्रदायनी. हँसी आती है आज उसे अपने इस नाम पर और साथ ही दया के भाव भी उमड़ पड़ते हैं उसके अन्तस्थल में, जब वह इस नाम को रखने वाले अपने पिता को याद करती है…. कितने लाड़ और गर्व […]

Read More
 बेमौसम बुराँश

बेमौसम बुराँश

कहानी प्रतिभा अधिकारी ट्रेन दिल्ली से काठगोदाम को रवाना हो गयी, मनिका ने तकिया लगा चादर ओढ़ ली,  नींद कहाँ आने वाली है उसे अभी; अपने ननिहाल जा रही है वह ‘मुक्तेश्वर’. उसे मुक्तेश्वर की संकरी सड़कें और हरे-धानी लहराते खेत और बांज के वृक्ष दिखने लगे हैं अभी से, इस बार खूब मस्ती करेगी वह… […]

Read More
 राबर्ट तुम कहां हो

राबर्ट तुम कहां हो

कहानी एम. जोशी हिमानी मैकलॉडगंज के साधना केन्द्र में बाहर घना अंधेरा छाया है. सौर ऊर्जा से जलने वाला बल्ब धीमी रोशनी से अंधेरे को दूर करने की असफल कोशिश कर रहा है. लीला नेगी साधना केन्द्र के बाहरी हिस्से में स्थित प्राकृतिक सिला पर इस हाड़ कंपाती सर्दी में बैठी है. वह दूर धौलागिरि […]

Read More
 मालपा की ओर

मालपा की ओर

कहानी एम. जोशी हिमानी मालपा मेरा गरीब मालपा रातों-रात पूरे देश में, शायद विदेशों में भी प्रसिद्व हो गया है. मैं बूढ़ा, बीमार बेबस हूँ. बाईपास सर्जरी कराकर लौटा हूँ. बिस्तर पर पड़े-पड़े सिवाय आहत होने और क्रंदन करने के मैं मालपा के लिए कर भी क्या सकता हूँ? अन्दर कमरे से पत्नी गंगा और […]

Read More
 सुन रहे हो प्रेमचंद! मैं विशेषज्ञ बोल रहा हूँ

सुन रहे हो प्रेमचंद! मैं विशेषज्ञ बोल रहा हूँ

प्रकाश उप्रेती पिछले कई दिनों से आभासी दुनिया की दीवारें प्रेमचंद के विशेषज्ञों से पटी पड़ी हैं. इधर तीन दिनों से तो तिल भर रखने की जगह भी नहीं बची है. एक से बढ़कर एक विशेषज्ञ हैं. नवजात से लेकर वयोवृद्ध विशेषज्ञों की खेप आ गई है. गौर से देखने पर मालूम हुआ कि इनमें […]

Read More
 मां, बचपन और सोनला गांव 

मां, बचपन और सोनला गांव 

डॉ. अरुण कुकसाल (भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे श्री गोविन्द प्रसाद मैठाणी, देहरादून में रहते हैं. ‘कहीं भूल न जाये-साबी की कहानी’ किताब श्री गोविन्द प्रसाद मैठाणीजी की आत्मकथा है. अपने बचपन के ‘साबी’ नाम को जीवंत करते हुये बेहतरीन किस्सागोई लेखकीय अंदाज़ में यह किताब हिमालिका मीडिया फाउण्डेशन, देहरादून द्वारा वर्ष-2015 में […]

Read More