कहानी- कॉन्ट्रास्ट
पार्वती जोशी
पूनम ने अपनी साड़ियों की अल्मारी खोली और थोड़ी देर तक सोचती रही कि कौन-सी साड़ी निकालूँ. आज उसकी भाँजी रितु की शादी है. सोचा ससुराल पक्ष के सब लोग वहाँ उपस्थित होंगे.
उसे भी खूब सज धज कर वहाँ जाना होगा. उनमें से कोई भी साड़ी उसे पसंद नहीं आई. फिर भारी साड़ियों का बॉक्स खोला, हाल ही में उसने उन साड़ियों की तह खोलकर, उलट-पलट कर उन्हें बाहर हवा में रखा था.ग़रीब भाई
वे उसके पास आकर बोले “बैनी! तेरा ये ग़रीब भाई तुझे क्या दे सकता है, ये तेरे सुहाग की चूड़ियाँ हैं, अल्ला ताला से दुआ माँगता हूँ कि तेरा सुहाग सदा बना रहे.” डबडबाई
आँखों से पूनम ने उनका हाथ पकड़ा. रुँधे गले से वह केवल इतना ही कह पाई,” नज़र भइया! ये मेरी शादी का सबसे खूबसूरत और क़ीमती तोहफ़ा है, इसे मैं हमेशा सँभाल कर अपने पास रखूँगी.”
साड़ियों
साल में एक बार वह उन साड़ियों को बाहर हवा में रखकर उनकी तह बदल देती और साथ में नीम की सूखी पत्तियों के पाउच बनाकर साड़ियों के साथ रख देती, जिससे उनमें कीथ न
लगने पाए. उन्हीं साड़ियों में से धानी रंग की एक साउथ सिल्क की साड़ी उसे पसंद आ गई. याद आया कि पिछले साल जब वे तिरुपति बालाजी के दर्शनों के लिए दक्षिण भारत की यात्रा पर गये थे, तब चेन्नई की मशहूर साड़ियों की दुकानें नल्ली, पोथी और कुमरन में साड़ियाँ देखने के बाद ‘कुमरन’ से उसने ये साड़ी पसंद की थी .उसने निर्णय ले लिया कि आज वह यही साड़ी पहनेगी. फिर उसके साथ के गहने भी निकाल लिए. केवल चूड़ियाँ निकालनी रह गई.ग़रीब भाई
पूनम ने अपनी ड्रेसिंग टेबल के सबसे नीचे का खाना खोला, तो देखा सब चूड़ियों के डब्बे उसने कितने क़रीने से लगाए हैं. तभी उसकी नज़र हरे रंग के सुनहरे गोटे से सजे हुए चूड़ियों के
डब्बे पर पड़ी. उसने बड़ी सावधानी से उसे बाहर निकाला. चूड़ियों के उस डब्बे को देखकर उसे नज़र भइया की याद आ गई. उसे पकड़कर वह वहीं पलंग पर बैठ गई. उसकी धूल साफ़ की, फिर खोला. हरे काँच की सुंदर कामदार चूड़ियों पर हाथ फेरते हुए, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई. उसे अपनी शादी का वह दिन याद आ गया, जब सब लोग दहेज़ के कमरे में जाकर अपना नाम दर्ज़ करवा रहे थे लेकिन नज़र भइया सीधे उसके पास चले आए. उस समय वह अपनी सहेलियों से घिरी हुई थी.ग़रीब भाई
उसने देखा कि नज़र भइया के
बड़े भाई अमीर भइया हाथ में एक डन्डा लेकर वहाँ आ गए और कड़क आवाज़ में उन लड़कों को डपटते हुए बोले,’ ख़बरदार जो मेरी बैनी के साथ छेड़खानी की, अब आज से यहाँ बैठे नज़र आए, तो तुम लोगों की हड्डी पसली तोड़ दूँगा, भागो यहाँ से.
ग़रीब भाई
वे उसके पास आकर बोले “बैनी! (बहन) तेरा ये ग़रीब भाई तुझे क्या दे सकता है, ये तेरे सुहाग की चूड़ियाँ हैं, अल्ला ताला से दुआ माँगता हूँ कि तेरा सुहाग सदा बना रहे.” डबडबाई
आँखों से पूनम ने उनका हाथ पकड़ा. रुँधे गले से वह केवल इतना ही कह पाई,” नज़र भइया! ये मेरी शादी का सबसे खूबसूरत और क़ीमती तोहफ़ा है, इसे मैं हमेशा सँभाल कर अपने पास रखूँगी.”ग़रीब भाई
इसी लिए इस वर्ष दीपावली की सफ़ाई करते हुए जब उसकी बड़ी बेटी गायत्री ने उसे सुझाव दिया कि सभी चूड़ियों को चूड़ी स्टैंड में लगाकर इन पुराने डब्बों को फेंक देते हैं,क्योंकि ये बेकार में
जगह घेर रहे हैं .उसने कहा और सभी डब्बे फेंक भी दो किन्तु वह हरा वाला डब्बा मत फेंकना, क्योंकि उसके साथ उसकी बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं. फिर गायत्री ने पता नहीं क्या सोच कर कोई भी डब्बा नहीं फेंका.ग़रीब भाई
आज उसे विवाह से पूर्व की बहुत सी बातें याद आने लगी. उसे याद आया कि उनका घर नये बाज़ार का आख़िरी घर था. बीच में टूटी फूटी सड़क, उसकी दूसरी ओर पुरानी बाज़ार शुरू हो
जाती. पुरानी बाज़ार का पहला घर ही तो नज़र भइया लोगों का घर था. वे चारों भाई और उनके बूढ़े माता-पिता उस छोटे से खण्डहर नुमा -जर्जर घर में रहते थे. पूनम के स्कूल का रास्ता वहीं से होकर जाता था. उसे हमेशा ये डर लगा रहता था कि कहीं वह मकान भरभरा कर गिर न पड़े. फिर एक दिन उनकी तरन्नुम आपा के शौहर का जब इंतकाल हो गया, तो वे भी अपने पाँचों बच्चों को लेकर वहीं रहने आ गईं, फिर तो उस घर में बहुत ही रौनक़ बढ़ गई.ग़रीब भाई
पूनम अपने ही विचारों की रौ में
बहते हुए बोली, ‘अरे ये तो कॉन्ट्रास्ट का ज़माना है. सोने की चूड़ियों के बीच में ये हरे काँच की चूड़ियाँ देखिए, कितना सुंदर कॉन्ट्रास्ट है. उसके पति कुछ भी न समझते हुए उसका मुँह ताकते रह गये.
ग़रीब भाई
नज़र भय्या की चूड़ियों की दुकान गाँधी चॉक में थी,जहाँ से वह हर रोज़ स्कूल जाया करती थी. उस समय नज़र भइया स्त्रियों की गोरी व नाज़ुक कलाइयों में चूड़ियाँ पहनाते हुए उसकी ओर देख कर पूछते, “बैनी (बहन) स्कूल जा री? “वह उत्तर देती,” हाँ भइया! जा रही हूँ.” स्कूल से लौटते समय भी वे उससे पूछते, “बैनी! स्कूल से आ गई?”
और वह जवाब देती, “हाँ भइया आ गई”. ये हर रोज़ का नियम था. इस आरी-जारी के सिलसिले में कब इतना समय बीता और उसकी शादी का दिन भी आ गया, पता ही नहीं चला. उस दिन तरन्नुम आपा की बेटी जेब्बुन्निसा,’ आने से उसके आए बहार, जाने से उसके जाए बहार ‘गाने में ऐसा नाची कि महिला संगीत में आई हुई महिलाएँ और उसकी सहेलियाँ सभी मन्त्र मुग्ध हो गए.ग़रीब भाई
पूनम को तरन्नुम आपा की वह बात याद आ गई, जब वे उसे मोहर्रम के ताज़िये की परिक्रमा करा कर, ताज़िये के नीचे से दूसरी ओर ले जाती, और कहतीं,’ बैनी! ताज़िये से छिरक कर दूसरी
ओर निकलना बहुत ही शुभ माना जाता है. तुझे अब साल भर तक कोई रोग- शोक नहीं होगा. उन दिनों नज़र भइया लोगों के घर के सामने की सड़क पर मोहर्रम का ताज़िया रुकता. फिर दो दलों में तलवार बाज़ी होती थी. हिन्दू मुस्लिम सभी मिलकर उसमें भाग लेते थे. पूनम को याद आया, उसकी आमा भी उसमें चादर चढ़ाती थीं. उसके बाद सारी बाज़ार में घूम कर ताज़िया करबला के मैदान की ओर जाता था. अपने बचपन में उसे कभी नहीं लगा कि धर्म भी अलग होते हैं.ग़रीब भाई
एक दिन शाम के धुँधलके में वह अपनी बड़ी दी के घर जा रही थी, कि शिशु मंदिर के सामने मंडप स्कूल के बरामदे में बैठे हुए छोकरे उस पर छींटाकशी करने लगे, उन दिनों लड़कियों पर छींटाकशी करना एक आम बात होती थी. दूसरे मोहल्ले के छोकरे वहाँ एकत्रित होकर आती जाती लड़कियों पर कमेंट करते थे. तभी उसने देखा कि नज़र भइया के बड़े भाई अमीर भइया हाथ में एक डन्डा लेकर वहाँ आ गए
और कड़क आवाज़ में उन लड़कों को डपटते हुए बोले,’ ख़बरदार जो मेरी बैनी के साथ छेड़खानी की, अब आज से यहाँ बैठे नज़र आए, तो तुम लोगों की हड्डी पसली तोड़ दूँगा, भागो यहाँ से. सभी छोकरे आश्चर्य से उनका मुँह ताकने लगे कि ये तो मुसलमान हैं और पूनम हिन्दू, फिर वह इनकी बहन कैसे हो सकती है?ग़रीब भाई
डर के मारे सर पर पैर रख कर वे सब वहाँ से भाग लिये. सामने ही शिशु मंदिर के एक आचार्य जी, जो आज एक राजनैतिक दल के बहुत बड़े नेता हैं, अमीर भइया को डपटते हुए बोले,
‘क्यों रे! उन लड़कों को क्यों डाँट रहा है? इस लड़की को समझा कि रात के अंधेरे में घर से बाहर निकलने का यही अंजाम होता है. यह सुनकर वह तो रोने लगी किन्तु अमीर भइया ने आचार्य जी को ऐसा पाठ पढ़ाया, कि वह सोचने लगी, अब वे स्त्रियों की आज़ादी के सम्बन्ध में अपने विचार अवश्य बदल लेंगे, किन्तु कहते हैं, कुत्ते की पूँछ बारह वर्ष तक भी यदि नली में रहे, तो भी वह सीधी नहीं होती. आज भी उनके विचारों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. उसे याद है कि उन्होंने अमीर भइया से कितनी गंदी ज़ुबान में बात की थी .ग़रीब भाई
दरअसल उन जैसे लोगों ने ही हमारे देश
और हमारे समाज का विघटन किया है. उन्हीं के समान लोग तो आज राजनैतिक दलों के शीर्ष नेता हैं, जिन्होंने अपना वोट बैंक भरने के लिए लोगों के दिलों में नफ़रत की दीवार खड़ी कर दी है, वरना उन लोगों का बचपन तो एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक ही बीता था.ग़रीब भाई
ये नेता धर्म के नाम पर लोगों को भड़का कर उस आग में अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं. पढ़ी-लिखी जनता तो इनकी मंशा जानती है, इसलिए इनके बहकावे में नहीं आती किन्तु गरीब, लाचार
और अनपढ़ जनता को ये ख़रीद कर उन्हें गुमराह कर देते हैं. पूनम इन्हीं विचारों में डूबी हुई थी कि उसके पति की आवाज़ आई,’ तैयार हो गई क्या?, टैक्सी आ चुकी है.’ वह जल्दी-जल्दी तैयार होकर बाहर निकली, तो उसके पति की नज़र उसकी साड़ी से होते हुए, उसके हाथों में गई और उन्होंने चौंकते हुए उससे पूछा कि उसने धानी रंग की साड़ी के साथ हरे रंग की चूड़ियाँ क्यों पहनी हैं?ग़रीब भाई
पूनम अपने ही विचारों की रौ में बहते हुए बोली, ‘अरे ये तो कॉन्ट्रास्ट का ज़माना है. सोने की चूड़ियों के बीच में ये हरे काँच की चूड़ियाँ देखिए, कितना सुंदर कॉन्ट्रास्ट है. उसके पति कुछ भी न
समझते हुए उसका मुँह ताकते रह गये.ग़रीब भाई
(पार्वती जोशी मूल रूप से उत्तराखंड के सीमांत ज़िले पिथौरागढ़ में पली बढ़ी हैं .वहाँ के राजकीय इंटर कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करने के बाद आपने कुमाऊँ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की .इसके पश्चात् नैनीताल के प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालय सेण्ट मेरीज कॉन्वेंट में हिन्दी शिक्षिका के रूप में अध्यापन कार्य किया . इनकी कई कहानियाँ और यात्रा वृतान्त राष्ट्रीय पत्र—पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. अवकाश प्राप्ति के उपरांत आप नैनीताल में निवास करते हुए लेखन कार्य सक्रिय हैं.)