Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
दमखम से भरी, सुलगती कविताओं का झुंड है “कविता पर मुकदमा”

दमखम से भरी, सुलगती कविताओं का झुंड है “कविता पर मुकदमा”

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूलीएक बेहद ख़ूबसूरत, मासूम-सी कविता जहां मुन्नी गुप्ता के कविता संग्रह “कविता पर मुकदमा” का संपूर्ण सार छुपा हुआ है आप सभी  पाठक भी पढिय़े न..! अपने फैसले के साथ जीना चांद होना है गर तुम जी सको चांद बनकर तो सारा आकाश तुम्हारा है… आकाश “कविता पर मुकदमा” संग्रह  सामान्य दैनिक जीवन की ऊहापोह और संघर्ष की अनूभूतियों का संग्रह ही नहीं हैं अपितु धुंआ निकालती, दमखम से भरी हुई, सुलगती कविताओं का झुंड है’,so जिनकी आंच की ज़द में आकर शायद समाज में कहीं बदलाव की किरण महसूस की जा सके या नये जाग्रत समाज का उन्नयन हो. उपरोक्त वर्णित कविता संदेश दे रही है कि अपने फैसलों और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना ही ओजस्वी और  सफल होना है अथार्त किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए निर्भीक चरित्र और  जीवन मुल्य के सिद्धांतो पर अडिगता अपरिहार्य है. यदि आप डटे रहते हैं अपने जीवन के सिद्धांत...
मौलिकता की पहचान

मौलिकता की पहचान

कला-रंगमंच
लोकजीवन का चेहरा भी प्रस्तुत कर रहे हैं जगमोहन बंगाणीअतुल शर्माजगमोहन बंगाणी ने अपनी पहचान बनाई है. जब हम यह कहते हैं तो उसके पीछे पूरा एक संघर्षशील समय सामने आ जाता है. कहां से कला और कलाकार की यात्रा आरम्भ हुई इसके बारे मे जान because लेना ज़रुरी है. पहाड़ की ज़मीन से जुड़कर दुनियां को महसूस करने की यात्रा है प्रसिद्ध चित्रकार जगमोहन बंगाणी की. रंगो और शिल्प के साथ सार्वभौमिक मानव मूल्यों के प्रति सचेत है बंगाणी की विलक्षण कला. तो इसे शुरु से ही शुरु करते हैं.पहाड़ पहाड़ के मनोभावों से मिलते जुलते रंग संयोजन के प्रतिबिंब बंगाणी की चित्रकला मे नजर आते हैं. बने बनाये चौखटों को तोड़ा है और अन्तरंग रचनात्मक यात्रा के प्रतिबद्ध रहे हैं. नये रास्तो की अन्वेषणात्मक खोज और मनो भावों और संघर्ष की अनुभूति देते चेहरे पहाड़ से बहुत करीबी  रिश्ता बनाते हैं. बहुत ही शुरुआती चित्रों में ...
रिसाले- मसालों के…

रिसाले- मसालों के…

ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-2मंजू कालाजब भी मैं पहाडों पर भ्रमण करती हूँ, तो अक्सर महिलाओं को सिल बट्टे पर मसाले रगड़ते हुए गीत गाते देखकर एक कथानक की अविस्मरणीय पात्र को याद करती हूँ, जो because “मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेज” की नायिका है और वह मसालों की जादुई शक्तियों को जानती है. वह अपनी दुकान पर  बैठकर कुछ  अजीबो-गरीब  धुन  फुस-फुसाते हुए आने वाले ग्राहकों की समस्याओं को दूर करने हेतु सही मसाला चुनकर अपनी प्रार्थना के बल पर उसमें छिपी शक्तियों को बाहर लाती है.फंतासी कथा… फंतासी के माध्यम से अपनी बात कहता है, मगर मसालों में छिपी शक्तियां कोई फंतासी नहीं. आज हम मसालों को भोजन का अनिवार्य अंग भर मानते हैं. आयुर्वेद के जानकार because इनमें मौजूद औषधीय गुणों के बारे में बताएंगे. मगर एक जमाना था जब इन्हीं मसालों ने इतिहास की धारा बदली थी, साम्राज्य बनाए और तोड़े थे, भूगोल को नया आकार दिया था. ...
लकड़ी जो लकड़ी को “फोड़ने” में सहारा देती

लकड़ी जो लकड़ी को “फोड़ने” में सहारा देती

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—57प्रकाश उप्रेतीपहाड़ की संरचना में लकड़ी कई रूपों में उपस्थित है. वहाँ लकड़ी सिर्फ लकड़ी नहीं रहती. उसके कई रूप, नाम और प्रयोग हो जाते हैं. इसलिए जंगलों पर निर्भरता पर्यावरण के कारण नहीं बल्कि जीवन के कारण होती है. because जंगल, जमीन, जल, सबका संबंध जीवन से है. जीवन, जीव और जंगलातों के बीच अन्योश्रित संबंध होता है. इन्हें अलग-अलग करके पहाड़ को नहीं समझा जा सकता. इन सबसे ही पहाड़ और वहाँ का जीवन बनता है.पहाड़ आज बात उस लकड़ी की जो लकड़ी को ही 'फोड़ने' (फाड़ने) में सहारा देती थी. इसके बिना घर पर आप लकड़ी फोड़ ही नहीं सकते थे. इसका मसला वैसे ही था जैसा कबीर कहते हैं न- “अंदर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट”. ईजा तो इसे कभी 'गोठ' (घर के नीचे वाला हिस्सा) तो कभी “छन” (जहां गाय-भैंस बाँधी जाती) के अंदर संभाल कर because रखती थीं. इसका काम सिर्फ लकड़ी को सहारा देने ...
थानो के जंगल को बचाने के लिए एकजुट हुए दूनघाटी के लोग

थानो के जंगल को बचाने के लिए एकजुट हुए दूनघाटी के लोग

समसामयिक
पर्यावरण बचाओ संदेशों के साथ घर—घर से युवा स्वयं अपनी तख्तियां बनाकर आए थेहिमांतर ब्यूरो, देहरादूनदेहरादून जौलीग्रांट के हवाई अड्डे के because विस्तार प्रक्रिया के दौरान थानो के रिजर्व वन क्षेत्र से लगभग 10 हजार पेड़ काटे जाएंगे. उत्तराखंड सरकार की मंशा यहां अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की है. जबकि राज्य में पूर्व से ही गौचर, पिथौरागढ़, पंतनगर के अलावा चिन्यालीसौड़ में हवाई प​ट्टियां हैं, इनमें से पिथौरागढ़ की हवाई पट्टी को मध्यम आकार के विमानों के लिए सही नहीं माना गया है. क्योंकि इसमें कुछ तकनीकी खामियां बताई गई थी.देहरादूनइनसे इतर, उत्तराखंड की सरकार थानो वन because क्षेत्र की तरफ हवाई अड्डे का विस्तार करना चाहती है. इसके लिए सरकार ने पहले ही अनापत्ति दे दी है. लगभग 217 एकड़ की वन भूमि जिस पर 10 हजारे से अधिक हरे वृक्ष हैं, उस भूमि का अधिग्रहण किया जाना प्रस्तावित है...
आखिर रंग लायी आयुष चिकित्सकों की मुहिम

आखिर रंग लायी आयुष चिकित्सकों की मुहिम

समसामयिक
उत्तराखंड सरकार द्वारा एक दिन की वेतन कटौती समाप्त होने से आयुष चिकित्सकों एवं कर्मचारियों में खुशी का माहौलहिमांतर ब्‍यूरोराजकीय आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा सेवा because संघ उत्तराखंड (पंजीकृत) के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ० डी० सी० पसबोला ने उत्तराखंड सरकार द्वारा एक दिन की वेतन कटौती​ वापिस लिए जाने पर राज्य सरकार का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया है.रसोई डॉ० पसबोला ने बताया कि पहले सरकार केवल एलोपैथिक चिकित्सकों एवं कर्मचारियों की वेतन कटौती वापिस लेने because पर विचार कर रही थी, जिससे कि आयुष चिकित्सक एवं कर्मचारी सरकार की इस भेदभावपूर्ण नीति के कारण आक्रोशित हो गए थे एवं सभी जगह इस पक्षपातपूर्ण​ निर्णय का विरोध होने लगा. आयुष चिकित्सकों because द्वारा विभिन्न प्रिंन्ट, डिजिटल एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से इस प्रकरण को जोर शोर उठाया गया और सरकार पर चौतरफा दबाव ...
पहाड़-सा है पहाड़ी ग्रामीण महिलाओं का जीवन!

पहाड़-सा है पहाड़ी ग्रामीण महिलाओं का जीवन!

संस्मरण
बेहद कठिन था ह्यूपानी के जंगल से लकड़ी लानाप्रकाश चन्द्र पुनेठाहमारे पहाड़ में मंगसीर के महीने तक यानी कि दिसम्बर माह के अन्त तक पहाड़ की महिलाओं द्वारा धुरा-मांडा में घास कटाई तथा साथ ही खेतों में गेहूँ, जौ, सरसों व चने बोने का काम because पूरा जाता है. हम अपने बचपन में सोचते थे कि अब सब काम पूर्ण हो गए है अब हमारी महिलाओं को थोड़ा आराम मिलेगा! लेकिन एक काम और हमारे पहाड़ की महिलाओं की प्रतिक्षा कर रहा होता था, वह काम होता था साल भर के लिए अपने चूल्हे के लिए जलावन लकड़ियों  की व्यवस्था करना.रसोई आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व हमारे पहाड़ों की रसोई में भोजन बनाने का कार्य अधिकांश चूल्हों में लकड़ी जलाकर किया जाता था. उस समय कुछ संपन्न परिवारों में मिट्टी के तेल से चलने वाले प्रेशर वाले स्टोप भी होते थे, जिनमें भोजन बनाया जाता था. इस प्रकार के प्रेशर से जलने वाले स्टोप में, अधिक प्रेशर...
राष्ट्ररक्षा और पर्यावरण संचेतना का पर्व शारदीय नवरात्र

राष्ट्ररक्षा और पर्यावरण संचेतना का पर्व शारदीय नवरात्र

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी17 अकटूबर, 2020 से शारदीय नवरात्र का शुभारम्भ हो रहा है. हर वर्ष शारदीय नवरात्र के अवसर पर पूरे देश में दुर्गापूजा का महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. श्रद्धालुजन शक्तिपीठों because और देवी के मन्दिरों में जाकर आदिशक्ति भगवती से प्रार्थना करते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक प्रकोप शान्त हों‚ तरह तरह की व्याधियों और रोगों से छुटकारा मिले‚ प्राणियों में आपसी वैरभाव समाप्त हो और पूरे विश्व का कल्याण हो. नवरात्र नवशक्तियों के सायुज्य का पर्व है जिसकी एक-एक तिथि में एक-एक शक्ति प्रतिष्ठित रहती है- "नवशक्तिभिः संयुक्तं नवरात्रं तदुच्यते."जलविज्ञान शास्त्रकारों के अनुसार ‘शयन’ और ‘बोधन’ दो प्रकार के नवरात्र होते हैं. ‘शयन’ चैत्र मास में होता है जिसे वासन्तीय नवरात्र कहते हैं और ‘बोधन’ आश्विन मास में होता है जिसे शारदीय नवरात्र कहते हैं. शरद ऋतु देवताओं की रा...
वराहमिहिर के जलविज्ञान की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता

वराहमिहिर के जलविज्ञान की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-25डॉ. मोहन चंद तिवारीपिछले लेख में बताया गया है कि वराहमिहिर के भूगर्भीय जलान्वेषण के सिद्धांत आधुनिक विज्ञान और टैक्नौलौजी के इस युग में भी अत्यंत प्रासंगिक और उपयोगी हैं, जिनकी सहायता से because आज भी पूरे देश की जलसंकट की समस्या का हल निकाला जा सकता है तथा अकालपीड़ित और सूखाग्रस्त इलाकों में भी हरित क्रांति लाई जा सकती है. इस लेख में वराहमिहिर के जलवैज्ञानिक सिद्धांतों की प्रासंगिकता और वर्त्तमान सन्दर्भ में उनकी उपयोगिता के निम्नलिखित विचार बिंदु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-जलविज्ञान 1. सर्वप्रथम, वराहमिहिर so का जलविज्ञान के क्षेत्र में मौलिक योगदान यह है कि उन्होंने विश्व के जलवैज्ञानिकों को इस सत्य से अवगत कराया कि भूमि के अन्दर भी सैकड़ों ऐसी जल की शिराएं सक्रिय रहती हैं जिनके कारण कृत्रिम प्रकार के बनाए गए जलाशयों में पूरे वर्ष भूमिगत जल का भंडारण ह...
सुरेग्वेल नौले में वराह और नृसिंह अवतार की दुर्लभ मूर्तियां

सुरेग्वेल नौले में वराह और नृसिंह अवतार की दुर्लभ मूर्तियां

अल्‍मोड़ा
सुरेग्वेल क्षेत्र के पुरातात्त्विक सर्वेक्षण की नवीनतम खोजडॉ. मोहन चंद तिवारी15, अक्टूबर 2019 को सुरेग्वेल से ऊपर लगभग एक कि.मी. की दूरी पर स्थित ग्राम सूरे के एक अति प्राचीन नौले के पुरातत्त्वीय सर्वेक्षण के दौरान मुझे वहां नवनिर्मित मन्दिर में ऐसी दो प्राचीन मूर्तियां मिली हैं, जो भगवान विष्णु के दो अवतारों- वराह अवतार और नृसिंह अवतार से सम्बंधित पुरातात्त्विक महत्त्व की अत्यंत दुर्लभ मूर्तियां हैं. becauseइनमें से एक विष्णु की खड़ी प्रतिमा है जिसके दाईं ओर सिंह तथा बाईं ओर वराह की मुखाकृति उकेरी गई है. मूर्तिकार ने विष्णुमूर्ति के दाईं ओर नरसिंह, बाईं ओर वराहावतार की मुद्रा को दर्शाने का प्रयास किया है. इस विष्णुमूर्ति का शिल्प और अलंकरण वैष्णव परम्परा की मूर्तिकला जैसा ही है. मन्दिर के दूसरे कोने में प्राचीन प्रस्तर खंड में एक साथ बैठी हुई मुद्रा में तीन देव प्रतिमाएं भी उकेरी...