Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
गांवों में बदलाव की मुहिम छेड़ रहा है गढ़वाल कुमाऊं वार्रियर्स!

गांवों में बदलाव की मुहिम छेड़ रहा है गढ़वाल कुमाऊं वार्रियर्स!

समसामयिक
हिमांतर ब्‍यूरो, नई दिल्लीप्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए बीके सामंत ने कहा कि गढ़वाल कुमाऊं वार्रियर्स के तहत हम हर जिले से हमारे इस संगठन में एक लाख लोगों को जोड़ेंगे, उसके उपरांत हमारी कोशिश रहेगी की अपने संगठन के माध्यम से जिलों के हर उन गांवों तक पहुंचें जो सामाजिक व विकास की दृष्टि से पिछड़े हों, इन गांवों को गोद लेने के बाद हम गांवों में शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, पानी, सड़क, रास्ते, खेती, because संस्कृति व खेलों को लेकर व्यापक पैमाने पर काम करेंगे.संगठन उन्होंने आगे कहा कि हम युवाओं में बढ़ रहे नशे के खिलाफ भी निर्णायक मुहिम छेड़ेंगे, गांवों को गोद लेने की हमारे संगठन की एक अपनी प्रक्रिया होगी, जैसे कि गांव की आबादी व गांव से पलायन चुके लोगों की आबादी, अपने गांव से पलायन कर चुके लोगों को हम कैसे उन्हें उनके गांव से जोड़ें इसको लेकर भी हमारे...
किस्सा-ए-खिचड़ी : किस राज्‍य में कैसी खिचड़ी पक रही है!

किस्सा-ए-खिचड़ी : किस राज्‍य में कैसी खिचड़ी पक रही है!

ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-10मंजू काला“खिचड़ी के है यार चार घी, दही, पापड़ आचार” - मुल्ला नसीरुद्दीन दाल-चावल की रूहों के एकाकार होने पर रचे गए जादूई व्यंजन का नाम है खिचड़ी और आज हम खिचड़ी कैसे बनाएं पर बात न करके कुछ because और बात करते हैं. सीधी-सादी, भोली-भाली खिचड़ी जिसकी पहचान न तो पूरब से है न पश्चिम से, न उत्तर से है न दक्षिण से. इसका स्वाद हर हिंदुस्तानी के दिल पर राज करता है. खिचड़ी का इतिहास because भी बहुत पुराना है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एक सर्वे में प्रमाण मिले हैं कि 1200 ईस्वी से पहले से ही भारतीय लोग दाल-चावल को मिला कर खाया करते थे. भारतीयखिचड़ी शब्द मूल रूप से संस्कृत के शब्द ‘खिच्चा’ से लिया गया है है, जिसका अर्थ है चावल और दालों को मिलाकर बनाया गया व्यंजन. because मूंग, उड़द, मसूर, अरहर दाल और चावल के अलावा साबूदाना, बाजरा और दलिया मिलाकर भी खिचड़ी ...
नोएडा में जोरों पर है श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान, घर-घर संपर्क कर रहे हैं स्वयं सेवक

नोएडा में जोरों पर है श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान, घर-घर संपर्क कर रहे हैं स्वयं सेवक

साहित्‍य-संस्कृति
हिमांतर ब्यूरो, नोएडा  अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के लिए शुक्रवार से ही देशभर में श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान की शुरुआत हो चुकी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और उससे जुड़े संगठनों के कार्यकर्ता घर-घर संपर्क अभियान के जरिए राम मंदिर के निर्माण के लिए सहयोग राशि जुटा रहे हैं। नोएडा में भी इस अभियान के तहत हर सोसायटी, सेक्टर और मोहल्लों में जाकर कार्यकर्ता राम मंदिर निर्माण के लिए धन संचय और संपर्क अभियान कर रहे हैं। प्रभात फेरियों के जरिए हर हिंदू को अयोध्या में बनने वाले भव्य राम मंदिर और उसके निर्माण के लिए चलाई जा रही श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान के बारे में जानकारी दी जा रही है और भजन-कीर्तन के जरिए राम काज के लिए लोगों के भीतर समर्पण का भाव भरा जा रहा है। संघ के कार्यकर्ता और आम हिंदू नागरिक जोश, जुनून और समर्पण भाव से घर-घर जाकर संपर्क अभियान कर रहे ...
लंबे अंतराल तक जेहन में प्रभाव छोड़ती डॉ कुसुम जोशी के लघुकथा संग्रह की कहानियां

लंबे अंतराल तक जेहन में प्रभाव छोड़ती डॉ कुसुम जोशी के लघुकथा संग्रह की कहानियां

पुस्तक-समीक्षा
डॉक्टर कुसुम जोशी का पहला लघुकथा संग्रह है 'उसके हिस्से का चांद'। इस संग्रह की लघुकथाएं बेहद सधी हुई हैं, जो कि लेखन की परिपक्वता, गहन अध्ययन और अनुभव की बारीकी से उपजी हैं। हर लघुकथा खत्म होने के लंबे अंतराल तक ज़ेहन में अपना प्रभाव छोड़ती हैं और हर कहानी का शीर्षक बेहद प्रभावशाली तरीके से उसका प्रतिनिधित्व करता है। इन लघु कथाओं को पढ़ते वक्त ऐसा महसूस होता है कि इनके पाठ और पुर्नपाठ की न सिर्फ आवश्यकता है बल्कि, इनको लेकर गहन विमर्श और शोध की भी जरूरत है। ये लघुकथाएं विषय विविधता, सोच की गहराई और अपने शिल्प व संवाद से न सिर्फ पाठकों को संतुष्ट करती हैं, बल्कि प्रभावित करते हुए समाधान भी दे जाती हैं।संवेदनात्मक स्तर पर ये लघु कथाएं जितने भीतर तक उद्वेलित करती हैं, उतना ही वैचारिक सवाल भी खड़ा करती हैं। नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं, तो विचारधारा का ढकोसलनापन भी उजागर करती हैं। इन लघु कथाओ...
किसान आंदोलन में फ्री में दाड़ी बनाने और बाल काटने वाले उत्तराखंड के एक शख्स की कहानी

किसान आंदोलन में फ्री में दाड़ी बनाने और बाल काटने वाले उत्तराखंड के एक शख्स की कहानी

सोशल-मीडिया
जो कंटेंट अच्छा होता है और जिसमें मानवीय भावनाएं, संवेदनाएं और सौहार्द के संदेश की सीख होती है, उसे वायरल होने में वक्त नहीं लगता। पिछले दिनों ऐसे ही एक वीडियो पर नज़र गई, जिसकी ऑर्गेनिक रीच 1 मिलियन से ज्यादा हो चुकी है और 5 हजार से ज्यादा टिप्पणियां और 15 हजार से ज्यादा लाइक आ चुके हैं। यह वीडियो है उत्तराखंड के एक ऐसे शख्स की कहानी का जो कि किसान आंदोलन में आंदोलनरत किसानों के फ्री में बाल काट रहा है और दाड़ी बना रहा है। इस श़ख्स की कहानी से पहले इस वीडियो को बनाने वाले पत्रकार आशुतोष पांडे की जुंबानी ' 'शौक़-ए-दीदार अगर है, तो नज़र पैदा कर'।मैं जब किसान आंदोलन में गया, तो वहां मंच माला और माइक के माध्यम से किसान नेता अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे। कहीं कुश्ती चल रही थी, तो कहीं मोदी विरोधी नारे लग रहे थे। इन सबके बीच मुझे एक शख्स दिखा, जिसका नाम शहनवाज था। जो एक कुर्सी रखकर आंदोलनकारी...
युवाओं की पहल पर डीडीहाट में सार्वजनिक पुस्तकालय की शुरुआत

युवाओं की पहल पर डीडीहाट में सार्वजनिक पुस्तकालय की शुरुआत

शिक्षा
कार्यक्रम का संचालन शिक्षक कमलेश उप्रेती ने एवं आभार व्यक्त कोषाध्यक्ष जयदीप कन्याल के द्वारा गया कियाहिमांतर ब्‍यूरो, पिथौरागढ़डीडीहाट नगर के अंबेडकर वार्ड में एक लक्ष्य पुस्तकालय की शुरुआत जन सहयोग से की गई. इसका उद्देश्य नगर में शिक्षा के महत्व को जन-जन because तक पहुंचाना है तथा बच्चों में पढ़ने की संस्कृति को विकसित करना है. साथ ही डीडीहाट शहर में उच्च गुणवत्ता वाली पठन-पाठन सामग्री उपलब्ध करवाना है. इस मुहिम की शुरुआत सोशल मीडिया के माध्यम से जन संपर्क करके धनराशि और किताबें जुटाकर की गई. पुस्तकालय की स्थापना के लिए अनेक व्यक्तियों ने so आर्थिक मदद की और लगभग 1000 किताबें उपलब्ध कराई गई. डीडीहाट नगर because और आस पास के गांवों में किताबों से प्रेम और पढ़ने की संस्कृति को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से स्थापित पुस्तकालय में समय समय पर विभिन्न विषयों पर कार्यशालाएं, विज्ञ...
‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारीहमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है. उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' पर्व हो या बिहार का 'छठ पर्व' केरल का 'ओणम पर्व' because हो या फिर कर्नाटक की 'रथसप्तमी' सभी त्योहार इस तथ्य को सूचित करते हैं कि भारत मूलतः सूर्य संस्कृति के उपासकों का देश है तथा बारह महीनों के तीज त्योहार यहां सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते हैं. ‘पर्व’ का अर्थ है गांठ या जोड़. भारत का प्रत्येक पर्व एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर का गठजोड़ है because जिसके साथ पौराणिक परम्पराओं के रूप में प्राचीन कालखण्डों के इतिहास की दीर्घकालीन कड़ियां भी जुड़ी हुई हैं. पौराणिकऐतिहासिक दृष्टि से सूर्योपासना से जुड़ा मकर संक्रान्ति या उत्तराखण्ड का 'उत्तरायणी' का पर्व भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत र...
कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

बागेश्‍वर
डॉ. मोहन चंद तिवारीइस साल कुमाऊं मंडल के बागेश्वर के शताब्दी वर्ष  का ऐतिहासिक उत्तरायणी मेला भी आखिर कोरोना की भेंट चढ़ गया. जिला प्रशासन की so ओर से मेले में धार्मिक अनुष्ठान के साथ केवल स्नान और जनेऊ संस्कार की अनुमति दी गई है और मेले की शोभा बढाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों और व्यापारिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है.कोरोना14,जनवरी,1921 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले से ही उत्तराखंड के दोनों प्रान्तों कुमाऊं और गढ़वाल में कुली-बेगार कुप्रथा को समाप्त करने के लिए बद्रीदत्त पाण्डे और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में but अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जो जनआंदोलन चला,वह समूचे भारत में अपनी तरह का पहला और अभूतपूर्व राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुभारंभ भी था.कोरोना शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस वर्ष 14 जनवरी, 2021 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले के दिन उत्तराखंड के स्...
संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-33डॉ. मोहन चंद तिवारीउत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-4 उत्तराखंड के जल वैज्ञानिक डॉ. ए.एस. रावत तथा रितेश शाह ने ‘इन्डियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नौलिज’ (भाग 8 (2‚ अप्रैल 2009, पृ. 249-254) में प्रकाशित एक लेख‘ ट्रेडिशनल नॉलिज ऑफ वाटर मैनेजमेंट इन कुमाऊँ हिमालय’ में उत्तराखण्ड के परम्परागत जलसंचयन संस्थानों because पर जलवैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डालते हुए, इन जलनिकायों को उत्तराखण्ड के परम्परागत ‘वाटर हारवेस्टिंग’ प्रणालियों की संज्ञा दी है. स्थानीय भाषा में इन जल प्रणालियों के because परंपरागत नाम हैं- गूल‚ नौला‚धारा‚ कुण्ड, खाल‚ सिमार‚ गजार इत्यादि.उत्तराखण्ड के जल प्रबन्धन के सांस्कृतिक स्वरूप को जानने के लिए ‘पीपल्स साइन्स इन्स्टिट्यूट’‚ देहारादून से प्रकाशित डॉ.रवि चोपड़ा की लघु पुस्तिका ‘जल संस्कृति ए वाटर हारवेस्टिंग कल्चर’ भी उल्लेखनीय है.वाटर हारवैस्टिंग ...
क्या है जन्म-जन्मान्तर और सात जन्मों के रिश्ते की सच्चाई?

क्या है जन्म-जन्मान्तर और सात जन्मों के रिश्ते की सच्चाई?

साहित्‍य-संस्कृति
भुवन चन्द्र पन्तजब स्त्री व पुरूष वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं तो सनातन संस्कृति में इसे जन्म-जन्मान्तर का बन्धन अथवा सात जन्मों का बन्धन कहा जाता है. अगर कोई ये कहे कि हां, यह बात शत-प्रतिशत सही है तो संभव है कि उसे दकियानूसी ठहरा दिया जाय. because वर्तमान दौर वैज्ञानिक सोच का है, जब तक हम कारण व परिणाम पर तसल्ली नहीं कर लेते, उसे यों ही स्वीकार नहीं करते. वस्तुतः होना भी यहीं चाहिये, किसी भी विचार अथवा परम्परा को बिना तथ्यों व तर्कों के स्वीकार कर लेना कोई बुद्धिमानी भी नहीं है. लेकिन ये भी सच है कि सनातन संस्कृति की सभी अवधारणाऐं शोधपूर्ण एवं विज्ञानपरक एवं तार्किक हैं. ये बात अलग है कि हमने उनकी गहराइयों में न जाकर और मर्म को जाने बिना अपनी परम्परा का हिस्सा बना लिया.so यही कारण है कि आज के युवा आनुवंशिकी के जनक ग्रेकर जॉन मेंडल के सिद्धान्तों पर तो विश्वास करते हैं, जिन्होंने उन्नी...