Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर!

बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर!

लोक पर्व-त्योहार
दीपावली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र कहते हैं ‘भारत ’ यह नाम भरत नामक अग्नि के उपासकों के because समुदाय से जुड़ा है. वेदों के व्याख्याकार यास्क ने ‘भारत’ का अर्थ ‘आदित्य’ किया है. ब्राह्मण ग्रंथों में ‘अग्निर्वै भारत:’ ऐसा उल्लेख मिलता है. ‘भारती’ इस शब्द की व्याख्या करते हुए यास्क ‘भारत आदित्य तस्य भा: ‘ भारती वाक् और उससे जुड़े जन भी भारत हुए. ऋग्वेद में स्पष्ट उल्लेख आता है : ‘विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनं’. इन सबको देखते हुए प्रकाश के प्रति आकर्षण भारतीय परम्परा में आरम्भ से ही एक प्रमुख आधार प्रतीत होता है. प्रकाश के प्रमुख स्रोत  अग्नि देवता है. गौरतलब है कि अग्नि सबको पवित्र करने वाला ‘पावक’ है और शरीर के भीतर so (जठराग्नि!) और बाहर की दुनिया में बहुत सारे कार्य उसी की बदौलत चलते हैं. यहाँ तक की जल में भी वाड़वाग्नि होती है. आजकल के सुनामी इसे स्पष्टत: प्रदर्शित...
आओ! ऐसे दीये जलायें 

आओ! ऐसे दीये जलायें 

कविताएं
भुवन चन्द्र पन्त आओ ! ऐसे दीये जलायें गहन तिमिर की घुप्प निशा में तन-मन की माटी से निर्मित गढ़ कर दीया मात्र परहित में परदुख कातरता से चिन्तित स्नेह दया का तेल मिलायें आओ! ऐसा दीया जलायें दीवाली के दीये से केवल होता है बाहर ही जगमग गर अन्तर के दीप जला लो ज्योर्तिमय होगा अन्तरजग खुशी सौ गुनी करनी हो तो खुद जलकर बाती बन जायें आओ ! ऐसा दीये जलायें बन असक्त की शक्ति कभी हम उसके अन्तर्मन को झांकें सीने पर भी हाथ लगाकर निजमन की खुशियों को आंकें अगर जरूरत पड़े अपर को अन्धे की लाठी बन जायें आओ ! ऐसा दीये जलायें दीपालोकित अपना घर हो बाजू घर ना चूल्हा जलता श्रम तुमसे दुगना करता वह क्या तुमको ये सब नहीं खलता? क्यों न पड़ोसी के घर को भी मानवता का हाथ बढा़यें आओ ! ऐसे दीये जलायें एक ही माटी के सब पुतले वो धुंधले हैं और तुम क्यों उजले? तकदीरों का खेल तमाशा निराधार ...
दीपावली : मन के अंधेरे कमरों की खिड़कियों में आशा और उजाले का एक दीप जलाना

दीपावली : मन के अंधेरे कमरों की खिड़कियों में आशा और उजाले का एक दीप जलाना

लोक पर्व-त्योहार
  सुनीता भट्ट पैन्यूली सभ्यता के विकास में आग का अविष्कार शायद मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त मानव मष्तिष्क और हृदय में क़ाबिज अंधेरों पर रोशनी से काबू पा लेना होगा तभी कालांतर से आज तक सौंधी-सौंधी मिट्टी गूंथी जाती है ,चाक घूमता रहता है अपनी संस्कृति को जीवित रखने और रोशनी को अपने अथक प्रयास से लपकने का संदेश देने के लिए. एक अदना दीया गोल गोल घूमकर आकार लेता है  जब चाक पर सूरज और चांद के साथ कदम से कदम मिलाकर इस जगत में  प्रकाश बिखेरने के लिये तो क्यों न हम सभी एक दीये से दूसरे दीये के साथ जुड़कर दीपमालाएं बन जायें  स्वस्थ समाज के निर्माण में रोशनी बनकर.. जलता दीया मुंडेर पर एक अदना सी ज्योत तमाम उजालों में  देदीप्यमान होकर अपना अलग ही अस्तित्व कायम करती है इंसानी हाथों का एक खूबसूरत सृजन, हमारी सभ्यताओं की अमिट छाप हमारे हाथों पर, अंधेरों से लड़कर उजालो...
दीपावली सामाजिक समरसता व राष्ट्र की खुशहाली का पर्व

दीपावली सामाजिक समरसता व राष्ट्र की खुशहाली का पर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ.  मोहन चंद तिवारी दीपावली का because पर्व पूरे देश में लगातार पांच दिनों तक हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला राष्ट्रीय लोकपर्व है.शारदीय नवरात्र में प्रकृति देवी के नौ रूपों से शक्ति और ऊर्जा ग्रहण करने के बाद भारत का कृषक समाज धन और धान्य की देवी लक्ष्मी के भव्य स्वागत में जुट जाता है. घर‚ खेत‚ खलिहान के चारों ओर सफाई का अभियान चलाया जाता है तथा नई फसल से बनवाए गए पकवानों से धान्य-लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. दीपावली दीपावली का पर्व धनतेरस because से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्त होता है.लेकिन दीपावली की तैयारी बहुत पहले से शुरू हो जाती है. लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई करते हैं. दीपावली से पहले घर, मोहल्ले, बाजार आदि सब साफ सुथरे और सजे हुए दिखाई देते हैं. दीपावली कृष्णपक्ष अन्धकार का प्रतीक है because और शुक्लपक्ष प्रकाश का. इन दो पक्षों की संक्रान्तियों में गतिशील...
अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—61 प्रकाश उप्रेती गाँव में किसी को कानों-कान खबर नहीं थी. शाम को नोह पानी लेने के लिए जमा हुए बच्चों के बीच में जरूर गहमागहमी थी- 'हरि कुक भो टेलीविजन आमो बल' because (हरीश लोगों के घर में कल टेलीविजन आ रहा है). भुवन 'का' (चाचा) की इस जानकारी को पुष्ट करते हुए चंदन ने कहा- 'हम ले यसे सुणेमुं' (हम भी ऐसा ही सुन रहे हैं). इसके बाद तो नोह के चारों ओर बैठे लोगों के बीच से टेलीविजन पर दुनिया भर का ज्ञान उमड़ आया.  so जिसने भी पहले टीवी देखा हुआ था वह अपनी तई भरपूर ज्ञान दे रहा था. उसमें हम जैसे लोग भी थे जिन्होंने टीवी सुना भर ही था लेकिन मुफ्त के ज्ञान देने में हम भी पीछे नहीं थे. टीवी में फ़िल्म आती है . यह ज्ञान सबके पास था. इसके आगे का ज्ञान किसी को नहीं था. इसके आगे तो एंटीना, से लेकर उसके आकार-प्रकार पर बात चल रही थी. टेलीविजन इस ज्ञान के चक्कर...
आजाद का शैक्षिक स्वप्न और आज का सत्य

आजाद का शैक्षिक स्वप्न और आज का सत्य

शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (11 नवम्बर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र मौलाना अबुल कलाम आजाद ने देश के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में संस्कृति और सभ्यता के व्यापक सन्दर्भ में  समग्र भारत के लिए शिक्षा का स्वप्न  देखा था. उनकी जन्म तिथि को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के because रूप में स्मरण करते हुए हमारी दृष्टि आधुनिक भारत में शिक्षा के आरंभिक ढाँचे पर जाती है. मूलत: इस्लामी पृष्ठभूमि में शिक्षा-दीक्षा होने के बावजूद मौलाना भारत और आधुनिक पश्चिमी ज्ञान परम्परा से भलीभांति परिचित थे. स्वातंत्र्य आन्दोलन में उन्होंने अविभाजित भारत because की तरफदारी की थी और यहाँ की सांस्कृतिक विरासत और भारतीयता के गौरव बोध को भी उन्होंने अनेक अवसरों पर व्यक्त किया था. विभाजन की पीड़ा उन्हें सालती थी. इसे वह राजनैतिक हार मानते थे पर वे सांस्कृतिक हार के लिए तैयार न थे. प्रवासी एक कवि, विद्वान, पत्रकार so और...
आज भी प्रासंगिक हैं ‘गांधी-गीता’ के प्रजातांत्रिक मूल्य

आज भी प्रासंगिक हैं ‘गांधी-गीता’ के प्रजातांत्रिक मूल्य

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी प्रोफेसर इन्द्र की 'गांधी-गीता' दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के स्नातक स्तर के 'भारतीय राष्ट्रवाद' के पाठ्यक्रम में निर्धारित एक महत्त्वपूर्ण रचना है. यह पुस्तक सन् 1950 में प्रकाशित हुई थी जो अब दुर्लभप्राय है.मैं अपने फेसबुक पर गांधी जयंती, गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय महोत्सवों के अवसर पर because लिखे लेखों में प्रोफेसर इन्द्र द्वारा रचित इस 'गांधी-गीता' के बारे में प्रायः चर्चा करता रहता हूं. राजनैतिक जगत में भारतीय राष्ट्रवाद और प्रजातांत्रिक मूल्यों का देश में आज जिस प्रकार से क्षरण हो रहा है,उसे देखते हुए भी देश में प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए गांधीवादी चिंतन आज भी जनोपयोगी और प्रासंगिक भी है.गांधी चिंतन के इसी सन्दर्भ में यह लेख भी लिखा गया है. प्रवासी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के पिछले सौ वर्षों के इतिहास की ओर नजर दौड़ाएं ...
उत्तराखंड राज्य के लिए भुलाया नहीं जा सकता दिल्लीवासियों का संघर्ष

उत्तराखंड राज्य के लिए भुलाया नहीं जा सकता दिल्लीवासियों का संघर्ष

देहरादून
उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस (9 नवम्बर) पर विशेष याद आ रहे हैं डॉ. नारायण दत्त पालीवाल डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 9 नवम्बर को उत्तराखंड because राज्य का 21वां स्थापना दिवस है। हम सभी उत्तराखंडवासियों के लिए चाहे वह उत्तराखंड राज्य में रह रहे नागरिक हों, जो एक स्वतंत्र राज्य के अहसास से जीवन यापन कर रहे हैं, या फिर राज्य की बदहाली के कारण दूर दराज के मैदानी इलाकों में मजबूरी से गुजर बसर कर रहे प्रवासी जन हों,सबके लिए अत्यन्त ही हर्ष और गर्व का मौका है कि आज के दिन लंबे संघर्ष और अनेक लोगों के बलिदान के बाद नए राज्य का हमें हमारा संविधान सम्मत अधिकार मिला। प्रवासी यह गर्व करने का दिन इसलिए भी है क्योंकि so आज हमें एक स्वतंत्र राज्य के अलावा अपनी एक नई पहचान भी मिली थी। वरना तो उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े राज्य के किसी कोने में हम भी अपनी पहचान और लोक संस्कृति के लिए संघर्ष कर रहे होते ...
आमरऽ उत्तराखंड क हाल

आमरऽ उत्तराखंड क हाल

कविताएं
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 (रवांल्टी कविता ) अनुरूपा “अनुश्री” उत्तराखण्ड बणी के कति साल हइगे, बेरोजगार यो पहाड़ी मुलुकई रइगो. कति पायो कति खोयो यूं सालु पोडो, त पु किचा न पड्यो आमार पला ओडो. इक्कीस साल बिचिगे यां आस मा, कि किचा रोजगार आलो कतरांई त आमर हातु मा. जियूं नेताऊं क बाना यो राज्य बणि्यो, तियं भाई-भतीजावाद की राजनीति आणी. जति पु नेता आये  ततियें राजनीति करी, ओर घर  सबुओं आपड़ई भरे. चंद लोगु को भलऽ कतरांई हई पु रल, त का बड़ो काम दयो यें करी. आपु वोटु को सोउदा करिके, गरीब शरीफ दये बदनाम करी. सोचो देई  मेर भाई - बइणियों, कोइच छुटिगे तियूंक स बड़-बड़ वादा. जागी जाओ अब त आमर पहाड़ क नवजवानो, आपड़ उत्तराखंड क विकास करनऽ क बाना.. नानई, मोरी, उत्तरकाशी (उत्तराखंड)...
प्यारा उत्तराखंड

प्यारा उत्तराखंड

कविताएं
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 आदेश सिंह राणा  केदारखण्ड और मानसखण्ड, देवभुमि है मेरी उत्तराखंड. पहाड़ों और फूलों की घाटी, वीर धरा है मेरी राज्य की माटी. प्रदेश में मेरे मिलता है ऐसा सुकून, लगता है माँ का आँचल. देवभूमि के नाम से विख्यात है, यह है अपना प्यारा उत्तरांचल. गढ़वाल और कुमाऊँ दो खंड है, तेरह जिले है पहचान इसके. हिम शिखरों से सुसज्जित है, निवास यहाँ है सब देवों की. ऋषियाँ की है तप स्थली, मुनियाँ की यह जप स्थली है. पंच बदरी पंच केदार, पंच मठ है यहाँ पंच प्रयाग. वीरों की यह भूमि है, सैन्य धाम है उत्तराखंड. बलदानियों ने यहाँ जन्म लिया है, पूरी दुनिया हमने नाम किया है. चारों दिशाओं में चार धाम हैं, माँ गंगा जी उदगम है यहाँ. यमुना जी भी निकल है यहाँ से, स्वर्ग जाने का मिलता है पथ यहाँ. सैकड़ों नदियाँ बहती है यहाँ से, जो देतें है पूरे भा...