दीपावली : मन के अंधेरे कमरों की खिड़कियों में आशा और उजाले का एक दीप जलाना

 

  • सुनीता भट्ट पैन्यूली

सभ्यता के विकास में आग का अविष्कार शायद मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त मानव मष्तिष्क और हृदय में क़ाबिज अंधेरों पर रोशनी से काबू पा लेना होगा तभी कालांतर से आज तक सौंधी-सौंधी मिट्टी गूंथी जाती है ,चाक घूमता रहता है अपनी संस्कृति को जीवित रखने और रोशनी को अपने अथक प्रयास से लपकने का संदेश देने के लिए. एक अदना दीया गोल गोल घूमकर आकार लेता है  जब चाक पर सूरज और चांद के साथ कदम से कदम मिलाकर इस जगत में  प्रकाश बिखेरने के लिये तो क्यों न हम सभी एक दीये से दूसरे दीये के साथ जुड़कर दीपमालाएं बन जायें  स्वस्थ समाज के निर्माण में रोशनी बनकर..

जलता दीया मुंडेर पर एक अदना सी ज्योत तमाम उजालों में  देदीप्यमान होकर अपना अलग ही अस्तित्व कायम करती है इंसानी हाथों का एक खूबसूरत सृजन, हमारी सभ्यताओं की अमिट छाप हमारे हाथों पर, अंधेरों से लड़कर उजालों तक ले जाने का हमारा पहला कदम ,यह जलते दीपों की माला ही है जो प्रेरणा है आंधी और तूफान में निरन्तर जलते रहने की ,उम्मीदों और आशाओं की ज्योत दिल की चौखट पर निरन्तर जलाये रखने की.

हम सभी सौंधी सौंधी माटी गूंथें जीवन के चाक पर धैर्य की, सौहार्दता की प्रेम की, मानवता की, संवेदना की, संबलता की, आशाओं की, उम्मीदों की एक बेहतरीन दीये के सृजन हेतु जिसकी झिलमिल करती ज्योत हम सभी को जाज्वल्यमान बनाये रखे ताउम्र.

आइये हम सभी सौंधी सौंधी माटी गूंथें जीवन के चाक पर धैर्य की, सौहार्दता की प्रेम की, मानवता की, संवेदना की, संबलता की, आशाओं की, उम्मीदों की एक बेहतरीन दीये के सृजन हेतु जिसकी झिलमिल करती ज्योत हम सभी को जाज्वल्यमान बनाये रखे ताउम्र.

(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)

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