‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

व्योमेश जुगरान ‘तेरी सौं’ का वह युवा जो तब मैदान में पढ़ाई छोड़ एक जज्बाती हालात में उत्तराखंड आंदोलन में कूदा था, आज अधेड़ होकर ठीक वैसी ही भावना के वशीभूत पहाड़ की समस्याओं से जूझने को अभिशप्त है। पलायन की त्रासदी पर बनी गंगोत्री फिल्मस् की ‘मेरु गौं’ को कसौटी पर इसलिए भी कसा […]

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 जहां ढोल की थाप पर अवतिरत होते हैं देवता

जहां ढोल की थाप पर अवतिरत होते हैं देवता

हमारी संस्कृति हमारी विरासत उत्तराखंड का रवांई क्षेत्र अपने सांस्कृतिक वैशिष्टय के लिए सदैव विख्यात रहा है. लोकपर्व, त्योहार, उत्सव, मेले—थोले यहां की संस्कृति सम्पदा के अभिन्‍न अंग रहे हैं. कठिन दैनिकचर्या के बावजूद ये लोग इन्हीं अवसरों पर अपने आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, मेल-मिलाप हेतु वक्त चुराकर न केवल शारीरिक, मानसिक थकान मिटाकर तन-मन में नयी […]

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 सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

आस्था का अनोख़ा अंदाज  – दिनेश रावत देवलोक वासिनी दैदीप्यमान शक्तियों के दैवत्व से दीप्तिमान देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक, वैदिक एवं लौकिक विशष्टताओं के चलते सुविख्यात रही है। पर्व, त्यौहार, उत्सव, अनुष्ठान, मेले, थौलों की समृद्ध परम्पराओं को संजोय इस हिमालयी क्षेत्र में होने वाले धार्मिक, अनुष्ठान एवं लौकिक आयोजनों में वैदिक […]

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 नए कलेवर के साथ हिमांतर देखें वीडियो

नए कलेवर के साथ हिमांतर देखें वीडियो

आपका अपना हिमांतर अब नए कलेवर में आपके सामने मौजूद है। हम वीडियो के जरिए भी आपके साथ बात करेंगे। हिमालय के ज्वलंत मुद्दों को उठाएंगे। आप हमें यूट्यूब पर भी देख सकते हैं।

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 आदमी को भूख जिंदा रखती है

आदमी को भूख जिंदा रखती है

–  नीलम पांडेय “नील” ना जाने क्यों लगता है कि इस दुनिया के तमाम भूखे लोग लिखते हैं,  कविताएं या कविताओं की ही भाषा बोलते हैं। जो जितना भूखा, उसकी भूख में उतनी ही जिज्ञासाएं और उतने ही प्रश्न छिपे होते हैं। अक्सर कविताएं भी छुपी होती हैं। ताज्जुब यह भी है कि उस भूखे […]

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 ‘एक प्रेमकथा का अंत’ का लोकार्पण

‘एक प्रेमकथा का अंत’ का लोकार्पण

रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा गजू मलारी पर आधारित नाटक ‘एक प्रेम कथा का अंत’ — महाबीर रवांल्टा सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति (सेवा) व टीम रवांई लोक महोत्सव के संयुक्त तत्वावधान में यमुना वैली पब्लिक स्कूल नौगांव में आयोजित कार्यक्रम में रवांई क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोकगाथा गजू मलारी पर आधारित नाटक एक प्रेमकथा का अंत […]

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 सांस्कृति परंपरा और मत्स्य आखेट का अनोखा त्यौहार

सांस्कृति परंपरा और मत्स्य आखेट का अनोखा त्यौहार

अमेन्द्र बिष्ट मौण मेले के बहाने जीवित एक परंपरा जौनपुर, जौनसार और रंवाई इलाकों का जिक्र आते ही मानस पटल पर एक सांस्कृतिक छवि उभर आती है. यूं तो इन इलाकों के लोगों में भी अब परंपराओं को निभाने के लिए पहले जैसी गम्भीरता नहीं है लेकिन समूचे उत्तराखण्ड पर नजर डालें तो अन्य जनपदों […]

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 वाचिक परम्परा में संरक्षित महाभारतकालीन प्रसंग 

वाचिक परम्परा में संरक्षित महाभारतकालीन प्रसंग 

— दिनेश रावत वसुंधरा के गर्भ से सर्वप्रथम जिस पादप का नवांकुर प्रस्फुटित हो जीवजगत के उद्भव का आधार बना है, लोकवासियों द्वारा उसे आज भी पूजा-अर्चना में शामिल किया जाता है. इसे लोकवासी ‘छामरा’ के रूप में जानते हैं। लोककाव्य के गुमनाम रचनाकार ऐसी काव्यमयी रचनाएं लोक को समर्पित कर गए, जो कालजयी होकर […]

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 शहीदों को समर्पित फोटोग्राफी व पेंटिंग प्रदर्शनी

शहीदों को समर्पित फोटोग्राफी व पेंटिंग प्रदर्शनी

— वाई एस बिष्ट इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट गैलरी, नई दिल्ली में 16 से 18 फरवरी को फोटोग्राफी और पेंटिंग प्रदर्शनी ‘अनुभूति’ का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम इनक्रेडिबल आर्ट एंड कल्चर फाउंडेशन द्वारा किया गया, इसमें कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रकार की फोटोग्राफी लगाई गई थी, जो प्रकृति, नाइट स्काई इत्यादि थी. इसी […]

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 सन् 1848 : सिक्किम की अज्ञात घाटी में

सन् 1848 : सिक्किम की अज्ञात घाटी में

– जोसेफ डाल्‍टन हूकर कम्‍बचैन या नांगो के विपरीत दिशा को जाने वाली घाटी की ओर उसी नाम से पर्वत के दक्षिणी द्वार के ऊपर एक हिमोढ़ (Moraine) से कुछ मील नीचे एक चीड़ के जंगल में हमने रात बिताई. यह रिज यांगमा नदी को कम्‍बचैन से अलग करती है. यांगमा आगे लिलिप स्‍थान के […]

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