Month: September 2020

भारत में भौमजल की दशा और दिशा : एक भूवैज्ञानिक विश्लेषण

भारत में भौमजल की दशा और दिशा : एक भूवैज्ञानिक विश्लेषण

जल-विज्ञान
भारत की जल संस्कृति-20 डॉ. मोहन चंद तिवारी भारत एक विकासशील देश है.प्रत्येक क्षेत्र में because उसकी प्रगति हो रही है और उसकी जनसंख्या में भी वृद्धि हो रही है.अतः वर्ष 2025 तक 1093 बिलियन क्यूबिक मीटर्स जल की आवश्यकता होगी. इसके लिए वर्षाजल को बहकर समुद्र में जाने से रोकने के लिए वर्षाजल संग्रहण (रेन हार्वेस्टिंग) ही शहरों के लिये बड़ा कारगर उपाय है. इसके लिए छतों का पानी एकत्रित कर इससे जलभृतों (एक्वीफर्स) का पुनर्भरण किया जाना बहुत जरूरी है ताकि भौमजल का संवर्धन हो सके. देश की महत्त्वपूर्ण सम्पदाओं में जल संसाधन एक प्रमुख घटक है. देश का धरातलीय जल एवं भौमजल संसाधन कृषि, पेयजल, औद्योगिक गतिविधियाँ,जल विद्युत उत्पादन, पशुधन उत्पादन, वनरोपण, मत्स्य पालन, नौकायन और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों आदि में मुख्य भूमिका निभाता है. वराहमिहिर जल संसाधन का प्राथमिक स्रोत वर्षण (प्रेसिपिटेशन...
नहीं रहे हिमालय पर्यावरणविद् भूवैज्ञानिक प्रो. वल्दिया

नहीं रहे हिमालय पर्यावरणविद् भूवैज्ञानिक प्रो. वल्दिया

स्मृति-शेष
डॉ. मोहन चंद तिवारी अत्यंत दुःखद समाचार है कि हिमालय पर्यावरणविद् अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भूवैज्ञानिक पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित प्रोफेसर खड्ग सिंह वल्दिया का 83 साल की उम्र में कल 29 सितंबर को निधन हो गया.वे इन दिनों बेंगलुरु में थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे.प्रो.वल्दिया उत्तराखंड के पिथौरागढ़ सीमांत जिले आठगांव शिलिंग के देवदार (खैनालगांव) के मूल निवासी थे. वह कुमाऊं विवि के कुलपति भी रहे थे. पिथौरागढ़ सन्त 2015 में भूगर्भ वैज्ञानिक because प्रो.के.एस. वल्दिया को भूगर्भ क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर पद्म भूषण सम्मान मिला था.इससे पहले 2007 में उन्हें भूविज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए पद्मश्री सम्मान मिला था. प्रो.वल्दिया भू वैज्ञानिक होने के साथ साथ कवि और लेखक भी थे. प्रो.वल्दिया ने कुल चौदह पुस्तकें लिखी, जिनमें मुख्य पुस्तकें हैं ...
शिलागत जलान्वेषण के सन्दर्भ में वर्त्तमान ‘एक्वीफर’ अवधारणा

शिलागत जलान्वेषण के सन्दर्भ में वर्त्तमान ‘एक्वीफर’ अवधारणा

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भारत की जल संस्कृति-19 आधुनिक भूवैज्ञानिक विश्लेषण डॉ. मोहन चंद तिवारी वराहमिहिर ने निर्जल प्रदेशों में मिट्टी और भूमिगत शिलाओं के लक्षणों के आधार पर भूमिगत जल खोजने की जो विधियां बताई हैं आधुनिक भूविज्ञान के धरातल पर उसका अध्ययन ‘एक्वीफर्’ (Aquifer) के अंतर्गत किया जाता है. वराहमिहिर की 'बृहत्संहिता' के समान ही आधुनिक भूविज्ञान भी यह मानता है कि भूमि के उदर में ऐसी बड़ी बड़ी शिलाएं या चट्टानें होती हैं जहां सुस्वादु जल के सरोवर बने होते हैं. आधुनिक भूविज्ञान में इसे ‘एक्वीफर' (Aquifer) की संज्ञा दी गई है. लेकिन जब हम वर्त्तमान सन्दर्भ में भूमिगत जल या 'अंडरग्राउंड वाटर' की बात करते हैं तो भूवैज्ञानिक धरातल पर इस आधुनिक 'एक्वीफर '(Aquifer) अथवा जलभृत,या 'अंडरग्राउंड वाटर' की विशेष पारिभाषिक जलवैज्ञानिक स्थिति को समझना भी आवश्यक हो जाता है. वराहमिहिर प्रायः माना जाता है कि कुएं,न...
समृतियों की मंजूषा से…

समृतियों की मंजूषा से…

संस्मरण
सुनीता भट्ट पैन्यूली काले घनीभूत बादल उभर आये थे soआसमान में, सुकून भरी अपने हिस्से की बारिश में भीगने का स्वप्न संजोने लगीं थी कुछ बेदार आंखें…, इन्हीं स्वप्नों को हकीकत में बदलने का ख़्याल सबसे जुदा कुनबों से उन बेख़ौफ़ चुनिंदा दिलों में कुंडली मारकर बैठ गया…घने हो आये तिरते बादलों के रलने-मिलने में. कुंडली दबे-पांव, चुपके-चुपके butपहाडों में आन्दोलन उमगने लगा था. अपने अधिकार, अपने पुर, अपनी संस्कृति, अपनी वैखरी, अपना खान-पान एक ही रंग में पुते हुए सब के शरीर और आत्माओं का स्वप्न के ऊंचे-ऊंचे महलों से उतरकर जमीन पर खुरदुरी रूपरेखा तैयार करना गलत भी न था. कुंडली बारहवीं कक्षा में ही हल्के-फुलके कानों को सुकून देते शब्दों के बुलबुले अनायास ही रंगीन शरारे छोड़ने लगे थे आंखों में… आधुनिक होगा अपना उतराखंड नई ट्रेन, मोटर कार, मल्टीप्लेक्स बिल्डिंग, फ्लाईओवर, becauseमाल, आधुनिक तकनीकी स...
हिंदी की स्थिति, गति और उपस्थिति

हिंदी की स्थिति, गति और उपस्थिति

शिक्षा
भारत भाषाओं की दृष्टि से एक अद्भुत देश है जिसमें सोलह सौ से अधिक भाषाएं हैं… प्रो. गिरीश्वर मिश्र किसी भी देश के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में भाषा बड़ी अहमियत रखती है. भाषा हमारे जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में दखल देती है. because वह स्मृति को सुरक्षित रखते हुए एक ओर अतीत से जोड़े रखती है तो दूसरी ओर कल्पना और सर्जनात्मकता के सहारे अनागत भविष्य के बारे में सोचने और उसे रचने का मार्ग भी प्रशस्त करती है. भारत भाषाओं की दृष्टि से एक अद्भुत देश है जिसमें सोलह सौ से अधिक भाषाएं हैं जिनमें भारतीय आर्य उपभाषा और द्रविड़ भाषा परिवारों की प्रमुखता है. ऐसे में द्विभाषिकता यहाँ की एक स्वाभाविक भाषाई व्यवहार रूप है और बहुभाषिकता भी काफी हद तक पाई जाती है. आर्य भाषा समूह में आने वाली हिंदी मध्य देश में प्रयुक्त भाषा समूह का नाम है. इसके बोलने वाले एक विशाल भू भाग ...
न्याय प्रियता ने राजा गोरिया को भगवान बना दिया   

न्याय प्रियता ने राजा गोरिया को भगवान बना दिया   

धर्मस्थल
डॉ. गिरिजा किशोर पाठक   18वीं सदी के जनेवा के महान becauseराजनीतिक दार्शनिक जॉन जैकब रूसो ने मनुष्य के बारे में कहा था कि ‘मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है किन्तु हर तरफ वह जंजीरों में जकड़ा राहत है.' मनुष्य स्वयं को जंजीरों में जकड़ा जाना इसलिए स्वीकार करता है और अपनी स्वतंत्रता को राज्य जैसी संस्था को इसलिए समर्पित कर देता है की राज्य उसके जीवन, संपत्ति, इज्जत, आबरू और सम्मान की रक्षा करे. कुमायूँ में राजतन्त्र के रूप में so कत्तूरी और चंद राजाओं ने राज किया. लगभग 24 (1790-1815 ) साल गोरखे राज किए. 1815 से 1947 तक अंग्रेजों के कमिश्नर राज किए. इस सम्पूर्ण काल में गोल्ज्यू के सिवा किसी राजा या शासक की जनसुनवाई और न्यायप्रियता का डंका कुमाऊ में नहीं बजा. ऐसा लगता है वह काल रामराज्य का स्वर्णिम युग रहा होगा. गोल्ज्यू गोल्ज्यू जहाँ से शिकायत becauseआती पगड़ी बांध अपने घोड़े पर सवार होकर चल ...
विलुप्ति के कगार पर पारंपरिक व्‍यंजन अरसे की मिठास

विलुप्ति के कगार पर पारंपरिक व्‍यंजन अरसे की मिठास

साहित्‍य-संस्कृति
आशिता डोभाल अरसे/अरसा पहाड़ में समूण या कलेउ becauseके रूप मे दिया जाने वाला एक पकवान है, जो उत्तराखण्ड में सिर्फ गढ़वाल मण्डल में प्रमुखता से बनता है बल्कि हमसे लगे कुमाऊं, जौनसार—बावर, बंगाण, हिमाचल प्रदेश, नेपाल, तिब्बत कहीं भी अरसा नही बनता है. इसके इतिहास की बात करें तो बहुत ही रूचिपूर्ण इतिहास रहा है अरसे का. बताते हैं कि यह दक्षिण भारत से आया हुआ पकवान है. इतिहासकारो के अनुसार आदिगुरू शंकराचार्य ने जब बद्रीनाथ और केदारनाथ में कर्नाटक के पुजारियों को नियुक्त किया था, तो नवीं सदी में वहां से आए हुए ये ब्राहमण अपने साथ अरसा so यहां लेकर आए और साथ ही बनाने की परम्परा भी शुरू कर गये. कालांतर में ये परम्परा गढ़वाल के आमजन में भी शुरू हो गई. अरसा तमिलनाड, केरल, आंध्र प्रदेश, उडीसा, बिहार और बंगाल में भी बनाया जाता है, वहां इसको अलग-अलग जगह अलग-अलग नामों से जाना जाता है. अटल आंध्र प्रदे...
राजनैतिक पाठ में काश और कसक के बीच

राजनैतिक पाठ में काश और कसक के बीच

पुस्तक-समीक्षा
प्रकाश उप्रेती बहुत दिनों से लंबित 'विजय त्रिवेदी' becauseकी किताब 'बीजेपी कल, आज और कल' को आखिर पढ़ लिया. इधर के दो दिन किताब को पचाने में लगे और अब उगल रहा हूँ. बीजेपी दस अध्यायों में विभाजित यह किताब ''1 मार्च 2019. रात के 9 बजकर 20 मिनट. अटारी-वाघा-बॉर्डर भारत-पाकिस्तान की सीमा पर बने इस बॉर्डर पर हजारों लोगों का जोश but और 'भारत माता की जय' के नारे गूँज रहे थे. शाम को हुई बारिश ने भले ही ठंडक बढ़ा दी थी, लेकिन माहौल में गजब की गर्माहट थी. 'विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान' की पाकिस्तान से वापसी की खबर का पूरा देश इंतजार कर रहा था." दृश्य से आरंभ होती है. इसके बाद किताब बीजेपी के भूत, वर्तमान और भविष्य का विश्लेषण करते हुए उसके इर्दगिर्द की राजनीति पर टीका करती हुई आगे बढ़ती है. इस दृश्य में वह सब कुछ जो राजनीति का वर्तमान है. विजय त्रिवेदी ने किताब में अपनी बातों को पुष्ट करने के...
अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है लाहौल-स्पीति 

अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है लाहौल-स्पीति 

हिमाचल-प्रदेश
आदिकाल से देवताओं, गन्धर्वों, किन्नरों और मनुष्यों की मिली जुली जातियों का संगम स्थल रहा है लाहुल सुनीता भट्ट पैन्यूली देवभूमि हिमाचल प्रदेश जहां अपने because नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रचलित है वहीं इसी प्रदेश का एक विश्व-प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लाहौल-स्पीति अपनी अद्भुत प्राकृतिक छटा, बौद्ध सभ्यता और संस्कृति के लिए जाना जाता है. हिमाचल लाहौल और स्पीति  भारत का एक ऐसा क्षेत्र so जिसके अस्तित्व की भारत के मानक-चित्र में उपस्थिति की जानकारी  संभवतः बहुत कम लोगों को है, हिमाचल प्रदेश की दो पृथक हिमालयी घाटियां लाहौल और स्पीति हैं जो भारत तिब्बत सीमा पर स्थित हैं. लाहौल घाटी जहां प्राकृतिक रूप से समृद्ध, चंद्र but और भागा नदियों द्वारा पोषित व फलीभूत है वहीं स्पीति अपने विस्तीर्ण बर्फीले रेगिस्तानों, लुभावने ट्रैक, घाटियों और मठों के लिए प्रसिद्ध है. रोहतांग दर्रे को पार करते ...
रनिया की तीसरी बेटी

रनिया की तीसरी बेटी

किस्से-कहानियां
कहानी मुनमुन ढाली ‘मून’ आंगन में चुकु-मुकु हो कर बैठी, because रनिया सिर पर घूंघट डाले, गोद मे अपनी प्यारी सी बेटी को दूध पिलाती है और बीच-बीच मे घूंघट हटा कर, अपने आस -पास देखती है और उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान छलक जाती है. सप्तेश्वर रनिया की सास गुस्से में तमतमाई चूल्हे से but गरम कोयला, चिमटे में दबाई बड़बड़ाती हुई रनिया की तरफ बढ़ी और गरम कोयला रनिया के पीठ पर झोंक दिया और करकश आवाज़ में बोली “झूठी, कलमुई फिर बेटी जानी तुने”. सप्तेश्वर सास,पास ही सर पकड़ के बैठbecause जाती है, ज़ोर-ज़ोर से बोलती है, हे मारा राम जी! कैसे उलट -फेर हो गया, डाक्टरनी जी ने तो बेटा बोला था. डाक्टरनी कहे झूठ बोलेगी, हमारी बहु ही चुड़ैल है. सप्तेश्वर सास को सर पिटता देख, रनिया सोचने लगी so और उसकी आंखें डब-डब भर गई. यही हिम्मत पहले कर ली होती तो, मेरी दोनो बेटियाँ जिंदा तो होती, पहले कितनी मूरख थ...