Tag: पर्यावरण

‘द्वितीयं ब्रह्मचारिणी’ : देवी का सच्चिदानन्दमयी स्वरूप

‘द्वितीयं ब्रह्मचारिणी’ : देवी का सच्चिदानन्दमयी स्वरूप

लोक पर्व-त्योहार
नवरात्र चर्चा - 2   डॉ. मोहन चंद तिवारी कल नवरात्र के प्रथम दिन ‘शैलपुत्री’ देवी के पर्यावरण because वैज्ञानिक स्वरूप पर प्रकाश डाला गया जो प्रकृति परमेश्वरीका प्रधान वात्सल्यमयी रूप होने के कारण पहला रूप है. आज नवरात्र के दूसरे दिन देवी के ‘ब्रह्मचारिणी’ रूप की पूजा-अर्चनाकी जा रही है. ज्योतिष देवी के इस दूसरे ‘ब्रह्मचारिणी’ because स्वरूप को प्रकृति के सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप के रूप में निरूपित किया जा सकता है. ऋग्वेद के ‘देवीसूक्त’ में अम्भृण ऋषि की पुत्री वाग्देवी ब्रह्मस्वरूपा होकर समस्त जगत को ज्ञानमय बनाती है और रुद्रबाण से अज्ञान का विनाश करती है - ज्योतिष  “अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे because शरवे हन्तवा उ. ज्योतिष अहं जनाय because समदं कृष्णोम्यहं द्यावापृथिवी because आ विवेश..” -(ऋ.10.125.6) ‘देव्यथर्वशीर्ष’ में भगवती देवों से अपने because स्व...
गांधी जी ने ‘भारतराष्ट्र’ को सांस्कृतिक पहचान दी

गांधी जी ने ‘भारतराष्ट्र’ को सांस्कृतिक पहचान दी

साहित्‍य-संस्कृति
गांधी जी का राष्ट्रवाद-3 डॉ. मोहन चंद तिवारी (दिल्ली विश्वविद्यालय के गांधी भवन में 'इंडिया ऑफ माय ड्रीम्स' पर आयोजित ग्यारह दिन (9जुलाई -19 जुलाई,2018 ) के समर स्कूल के अंतर्गत गांधी जी के राष्ट्रवाद और समाजवाद पर दिए गए मेरे व्याख्यान का तृतीय भाग, जिसमें वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में गांधी जी के 'राष्ट्रवाद' और उनकी स्वदेशी विचार पद्धति पर विचार किया गया है.) पर्यावरण बीसवीं शताब्दी की दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं मानी जाती हैं. उनमें से एक घटना है परमाणु बम के प्रयोग द्वारा मानव सभ्यता के विनाश का प्रयास और दूसरी घटना है गांधी जी के द्वारा अहिंसा एवं so सत्याग्रह के शस्त्र से मानव कल्याण का विचार.निष्काम कर्मयोग और अनासक्ति भाव की श्रीमद्भगवद्गीता में जो शिक्षा दी गई है महात्मा गांधी ने उसी शिक्षा को अपने जीवन में उतार कर अहिंसा और सत्याग्रह के शस्त्र से एक ओर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का...
धरती हमारी माँ है हम उसके बेटे, इस रिश्ते की समझ ही पर्यावरण को सरंक्षित कर सकती है: प्रो. नेगी

धरती हमारी माँ है हम उसके बेटे, इस रिश्ते की समझ ही पर्यावरण को सरंक्षित कर सकती है: प्रो. नेगी

पर्यावरण
डॉ. राकेश रयाल विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर उत्तराखंड मुक्तविश्वविद्यालय मुख्यालय हल्द्वानी में विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं भू विज्ञान स्कूल की ओर से 'पारस्थितिकी और उसका पुनरुत्थान' विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी आयोजित की गई. संगोष्ठी से पूर्व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओ. पी. एस. नेगी, कुलसचिव प्रो. एच एस नयाल, अन्य प्रोफ़ेसरों व because अधिकारियों द्वारा वृक्षारोपण किया गया, जिसमे लगभग 25 विभिन्न प्रजातियों के पौधे शामिल थे. विश्वविद्यालय प्रत्येक वर्ष इस दिवस पर वृक्षारोपण एवं पर्यावरण सरंक्षण को लेकर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करता है. अंक शास्त्र वृक्षारोपण के पश्चात ऑनलाईन संगोष्ठी (वेबिनार) की शुरूआत की गई, जिसकी अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओ. पी. एस. नेगी ने की. मुख्यातिथि के रूप में because चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति प्रो. डीआर सिंह...
विकास की होड़ में पर्यावरण का विनाश

विकास की होड़ में पर्यावरण का विनाश

पर्यावरण
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष प्रकाश उप्रेती भारत में विकास की होड़ ने पर्यावरण के संकट को जन्म दिया. विकास के मॉडल का परिणाम ही है कि आज हर स्तर पर पर्यावरणीय संकट मौजूद है. विकास के मॉडल को because लेकर आजाद भारत में दो तरह की सोच और नीतियाँ रहीं हैं. एक जिसे नेहरू का विकास मॉडल कहा गया. जिसका ज़ोर मानव श्रम से ज़्यादा मशीनी संचालन में था जिसका आधार औद्योगिक और तकनीकी को बढ़ाव देना था, तो वहीं दूसरा मॉडल गांधी का था जोकि कुटीर और लघु उद्योगों के साथ मानव श्रम पर ज़ोर देता है. लेकिन भारत ने नेहरू के विकास मॉडल को अपनाया और गांधी धीरे-धीरे पीछे छूटते गए. अब यह पूँजी आधारित और संचालित विकास मॉडल धीरे-धीरे प्रकृति को नष्ट करने को आमादा है. इसका परिणाम पर्यावरण को लेकर उभरे अनेक आंदोलन और संघर्ष हैं. राजनैतिक विकास की आँधी में जल, जंगल और ज़मीन के अंधाधुंध दोहन ने पर्यावरण के प्रति ठ...
वैदिक संस्कृति का अनुपालन ही पर्यावरण संरक्षण का सर्वोत्तम विकल्प है

वैदिक संस्कृति का अनुपालन ही पर्यावरण संरक्षण का सर्वोत्तम विकल्प है

पर्यावरण
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष भुवन चंद्र पंत पूरा विश्व आज पर्यावरण की समस्या से जूझ रहा है, इसमें दो राय नहीं कि इस समस्या के पीछे हमारी अतिभोगवादी मनोवृत्ति रही है. अति का इति निश्चित है. ’ईट, ड्रिंक एण्ड बी because मैरी’ का विचार पश्चिम की देन है, हमारी विचारधारा तो वैदिक काल से लेकर महात्मा गान्धी तक अपरिग्रह की पोषक रही है. उन्होंने भोग में सुख तलाशा है, तो सनातन संस्कृति ने त्याग में वास्तविक सुख को प्रमुखता दी है. मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि आज की पर्यावरण की समस्या के लिए पश्चिम की भोगवादी संस्कृति उत्तरदायी है, लेकिन दुर्भाग्य है कि आज हम उसी संस्कृति का अनुकरण कर और तथाकथित आधुनिक बनकर स्वयं को भी मुसीबत की ओर धकेल रहे हैं. नैनीताल हवि में गाय का घी एक प्रमुख घटक है, इसके अतिरिक्त विभिन्न औषधीय वनस्पतियों व आम के लकड़ियों का प्रयोग बताया गया है. ये सभी घट...
धरती के सच्चे पुत्र सुंदरलाल बहुगुणा पंचतत्व में हुए विलीन

धरती के सच्चे पुत्र सुंदरलाल बहुगुणा पंचतत्व में हुए विलीन

स्मृति-शेष
प्रकाश उप्रेती   उत्तराखंड के इतिहास और भूगोल की समझ के साथ जो चेतना विकसित हुई उसमें महत्वपूर्ण भूमिका सुंदरलाल बहुगुणा जी की रही. पहाड़ की चेतना में सुंदरलाल बहुगुणा पर्यावरणविद् से पहले एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी विद्यमान थे. टिहरी में जहाँ उनका जन्म हुआ उस रियासत से लड़ते हुए उन्होंने जनता को संगठित कर उसके because हक़-हकूक के लिए लड़ना और बोलना सिखाया. जिस राजशाही और रियासत के खिलाफ कोई बोल नहीं सकता था उसके दमन और अत्याचार को उजागर करने वाले शख्सियत सुंदरलाल बहुगुणा थे. उन्होंने टिहरी रियासत के शोषण से लेकर अंग्रजों के जोर- जुल्म के खिलाफ भी पहाड़ की आवाज को मुखर किया. सूर्य देव सत्तर के दशक में जब पहाड़ के जंगलों को नीलाम कर बड़ी- बड़ी कंपनियों को दिया जा रहा था तो उन जंगलों की पुकार वह शख्स था जो आज हमारे बीच नहीं रहा. मिट्टी, बयार, because जंगल, जल और जीवन के लिए लड़ते हुए, उस...
खतरे में है मिठास

खतरे में है मिठास

ट्रैवलॉग
मधुमक्खी में 170 प्रकार की रासायनिक गंध को पहचानने की क्षमता होती है. इसकी खासियत यह है कि यह 6 से 15 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती हैं. जिस तरह से वन घट रहे because हैं उसका प्रभाव मधुमक्खियों पर भी पड़ा है. उनकी संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है. मंजू काला मधुमक्खियां न केवल पौष्टिक शहद देती हैं, बल्कि हिमालय की जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन में भी इनकी अहम भूमिका रहती है. लेकिन अब कीटनाशकों के because अंधाधुंध इस्तेमाल और जंगलों की आग ने मधुमक्खियों के जीवन के लिए संकट खड़ा कर डाला है. इसका शहद उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ रहा है. हालात यह है कि एक समय पहाड़ में जहां 10 कुंतल शहद का उत्पादन होता था, वहां आज बड़ी मुश्किल से एक कुंतल शहद ही मिल पा रहा है. पलायन का भी शहद उत्पादन पर बड़ा असर पड़ा है! स्वरोजगार कभी कीटनाशक रसायन, कभी आसमानी ओले तो कभी भोजन की कमी के चलते मधुमक्खि...
‘पृथु वैन्य’ जिनके नाम पर ‘पृथिवी’ का नामकरण और लोकतंत्र की स्थापना हुई

‘पृथु वैन्य’ जिनके नाम पर ‘पृथिवी’ का नामकरण और लोकतंत्र की स्थापना हुई

पर्यावरण
 ‘पृथ्वी दिवस’ पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 22 अप्रैल का दिन अंतरराष्ट्रीय जगत में ‘पृथ्वी दिवस’ (Earth Day) के रूप में मनाया जाता है. पृथिवी के पर्यावरण को बचाने के लिए ‘पृथ्वी दिवस’ की स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के द्वारा 1970 में की गई थी. ‘पृथ्वी दिवस’ की अवधारणा सभी पहाड़, नदियों, वनस्पतियों, महासागर, ग्राम-नगरों because के पर्यावरण संतुलन की चिंता को अपने आप में समाहित किए हुए.भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो पूरे ब्रह्माण्ड में पर्यावरण की शांति 'पृथ्वी दिवस’ का मूल विचार है. अंतरराष्ट्रीय जगत मैंने अपने शोधग्रंथ "अष्टाचक्रा अयोध्या : इतिहास और परंपरा" (उत्तरायण प्रकाशन, दिल्ली, 2006) में 'भारतराष्ट्र' की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए 'पृथु वैन्य' के because इतिहास पर भी विस्तार से चर्चा की है.और यह बताने का प्रयास किया है कि हमारे भारत में पृथिवी की रक्...
उत्तराखंड: आखिर कौन जिम्मेदार है इस आग के लिए…

उत्तराखंड: आखिर कौन जिम्मेदार है इस आग के लिए…

देहरादून
जंगल में उपजी आग अधिकांशतः मानवजनित होती है! सुनीता भट्ट पैन्यूली क्या पहाड़ों पर कभी अब न पकेगा काफल चिड़िया नहीं चखेंगी हिस्सर भूखी रह जायेगी क्या कोयलिया. जंगल जब सुलग रहे हों आओ हम सब जल बन जायें. सड़क जो गांव से शहर को चली आओ उसी सड़क पर चल वापस लौट आयें अपने घर. प्रकृति से हम मांगते हैं हरियाली जल, हवा  हमने स्वयं क्या प्रयास किया सोचिये सोचिये. भारत में वनों के सांस्कृतिक व धार्मिक महत्त्व का आंकलन इसी आधार पर किया जा सकता है कि पेड़ हमारी सभ्यताओं से लेकर आज तक हमारे संस्कारों में पूजे जाते हैं इन्हीं जंगलों के आश्रय स्थल में हमारी सभ्यताओं ने सामाजिक उन्नयन की ओर कूच किया.अथार्त वनों के सानिध्य और मार्गदर्शन में भारतीय सभ्यता और संस्कृति का उद्भव और विकास हुआ है. कहना ग़लत न होगा कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जंगलों का विस्तार और उपस्थिति अपरिहार्य है ताकि हमें स्व...
मिलिए, उत्तराखंड के उस शख्स से जिनका पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में लिया नाम

मिलिए, उत्तराखंड के उस शख्स से जिनका पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में लिया नाम

बागेश्‍वर
ललित फुलारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में उत्तराखंड के बागेश्वर निवासी जगदीश कुन्याल के पर्यावरण संरक्षण और जल संकट से निजात दिलाने वाले because कार्यों की सराहना की. पीएम मोदी ने कहा कि उनका यह कार्य बहुत कुछ सीखाता है. उनका गांव और आसपास का क्षेत्र पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए एक प्राकृतिक जल स्त्रोत पर निर्भर था. जो काफी साल पहले सूख गया था. so जिसकी वजह से पूरे इलाके में पानी का संकट गहरा गया. जगदीश ने इस संकट का हल वृक्षारोपण के जरिए करने की ठानी. उन्होंने गांव के लोगों के साथ मिलकर हजारों की संख्या में पेड़ लगाए और सूख चुका गधेरा फिर से पानी से भर गया. कौन हैं जगदीश कुन्याल दरअसल, जगदीश कुन्याल पर्यावरण प्रेमी हैं और उन्होंने अपनी निजी प्रयास से इलाके में हजारों की संख्या में वृक्षारोपण किया जिसकी वजह से सूख चुके पानी के गधेरे में जल bec...