Tag: गढ़वाल

हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

साहित्‍य-संस्कृति
हिमांतर ब्यूरो, हरिद्वार-देहरादूनहिमांतर का नया अंक आ गया है. हर बार की तरह यह अंक भी कुछ खास और अलग है. हिमांतर केवल एक पत्रिका नहीं, बल्कि हिमालयी सरोकारों, संस्कृति और लोक जीवन का दर्पण बनती जा रही है. अब तक के जितने भी अंक प्रकाशित हुए हैं. हर अंक ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. इस बार का अंक भी पहले के अंकों से अलग है. लेकिन, हर अंक की तरह ही इसकी आत्मा भी हिमालयी लोक समाज में बसती है. खास बात यह है कि इस बार के अंक नाम भी हिमालयी लोक समाज व संस्कृति रखा गया है. हरिद्वार में आयोजित रवांल्टा सम्मलेन में हिमांतर के नए अंक का विमोचन किया गया. हिमांतर की खास बात यह है कि इसमें हिमालयी सरोकारों और हिमालयी समाज को केवल छूया भर नहीं जाता, बल्कि गंभीरता से हर पहलू को सामने लाया जाता है. इस बार के अंक के अतिथि संपादक रचनात्मकता के लिए पहचाने जाने वाले राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता शिक्षक और...
सौगात : देहरादून और रुद्रपुर में जल्द खुलेंगे सैनिक स्कूल!

सौगात : देहरादून और रुद्रपुर में जल्द खुलेंगे सैनिक स्कूल!

देहरादून
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में प्रस्ताव पर लगी मोहरहिमांतर ब्यूरो, देहरादूनसैनिक बाहुल्य उत्तराखंड को जल्द दो और सैनिक स्कूलों की सौगात मिलने जा रही है. धामी सरकार ने इसको लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी है. राज्य के कुमाऊं और गढ़वाल में खुलेगा एक-एक सैनिक स्कूल खुलेगा. because कुमाऊं मंडल में रूद्रपुर और गढ़वाल मंडल देहरादून में सैनिक स्कूल खुलेंगे. इन प्रस्तावों पर मुख्य सचिव डॉ एसएस संधू की अध्यक्षता में हुई बैठक में मोहर लगी है. अभी उत्तराखंड में केवल एक ही सैनिक स्कूल है. जो कि कुमाऊं मंडल के घोड़ाखाल में है.ज्योतिष शिक्षा महानिदेशक उत्तराखंड बंशीधर तिवारी ने जानकारी देते हुए कहा राजीव गांधी नवोदय विद्यालय और रुद्रपुर में एएन झां इंटर कॉलेज को सैनिक स्कूल के रूप में चलाने का प्रस्ताव रखा है. जिसको केंद्र के पास मंजूरी के because लिए भेजा जा रहा है. शिक्षा महानिदेशक बंश...
विलुप्ति के कगार पर पारंपरिक व्‍यंजन अरसे की मिठास

विलुप्ति के कगार पर पारंपरिक व्‍यंजन अरसे की मिठास

साहित्‍य-संस्कृति
आशिता डोभालअरसे/अरसा पहाड़ में समूण या कलेउ becauseके रूप मे दिया जाने वाला एक पकवान है, जो उत्तराखण्ड में सिर्फ गढ़वाल मण्डल में प्रमुखता से बनता है बल्कि हमसे लगे कुमाऊं, जौनसार—बावर, बंगाण, हिमाचल प्रदेश, नेपाल, तिब्बत कहीं भी अरसा नही बनता है. इसके इतिहास की बात करें तो बहुत ही रूचिपूर्ण इतिहास रहा है अरसे का. बताते हैं कि यह दक्षिण भारत से आया हुआ पकवान है. इतिहासकारो के अनुसार आदिगुरू शंकराचार्य ने जब बद्रीनाथ और केदारनाथ में कर्नाटक के पुजारियों को नियुक्त किया था, तो नवीं सदी में वहां से आए हुए ये ब्राहमण अपने साथ अरसा so यहां लेकर आए और साथ ही बनाने की परम्परा भी शुरू कर गये. कालांतर में ये परम्परा गढ़वाल के आमजन में भी शुरू हो गई. अरसा तमिलनाड, केरल, आंध्र प्रदेश, उडीसा, बिहार और बंगाल में भी बनाया जाता है, वहां इसको अलग-अलग जगह अलग-अलग नामों से जाना जाता है.अटल आंध्र प...
गढ़वाल उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई तीलू रौतेली

गढ़वाल उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई तीलू रौतेली

इतिहास
वीरांगना तीलू रौतेली की जन्मजयंती पर विशेषडॉ. मोहन चंद तिवारीआज 8 अगस्त को गढ़वाल उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई के नाम से प्रसिद्ध तीलू रौतेली की जन्मजयंती है. इतिहास के पन्नों में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई दिल्ली की रजिया सुल्ताना, बीजापुर की चांदबीबी,मराठा महारानी ताराबाई,चंदेल की रानी दुर्गावती आदि वीरांगनाओं के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है किंतु गढ़वाल उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली के बारे में बहुत कम लोगों को ही यह जानकारी है कि केवल 15 वर्ष की अल्पायु में ही वह वीरबाला रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक उसने अपनी बहादुरी से लड़ते हुए अपने दुश्मनों को छठी का दूध याद दिला दिया था.तीलू रौतेली का जन्म कब हुआ? निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है. किन्तु गढ़वाल में आठ अगस्त को ही उनकी जन्म जयंती मनायी जाती है और यह माना जाता है कि उनका जन्म आठ अगस्त, 1661 को हुआ था. उस समय ग...
सबको स्तब्ध कर गया दिनेश कंडवाल का यों अचानक जाना

सबको स्तब्ध कर गया दिनेश कंडवाल का यों अचानक जाना

संस्मरण
भूवैज्ञानिक, लेखक, पत्रकार, प्रसिद्ध फोटोग्राफर, घुमक्कड़, विचारक एवं देहरादून डिस्कवर पत्रिका के संस्थापक संपादक दिनेश कण्डवाल का अचानक हमारे बीच से परलोक जाना सबको स्तब्ध कर गया. सोशल मीडिया में उनके देहावसान की खबर आते ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से लेकर हर पत्रकार एवं आम लोगों द्वारा उन्हें अपने—अपने स्तर और ढंग से श्रद्धांजलि दी गई. हिमांतर.कॉम दिनेश कंडवाल को श्रद्धासुमन अर्पित करता है. कंडवाल जी का जाना हम सभी के लिए बेहद पीड़ादाय है. उनको विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि…मनोज इष्टवालपहली मुलाक़ात 1995....... स्थान चकराता जौनसार भावर की ठाणा डांडा थात. गले में कैमरा व एक खूबसूरत पहाड़ी महिला के साथ “बिस्सू मेले” में फोटो खींचता दिखाई दिया यह व्यक्ति. गले में लटका कैमरा Nikon F-5 . मैं अचम्भित था कि चकराता में यह जापानी, चीनी या फिर कोरियन व्यक्ति कैसे आया व इनके सम्पर्...
गढ़वाल की सैन्य परंपरा का प्रारम्भिक महानायक

गढ़वाल की सैन्य परंपरा का प्रारम्भिक महानायक

इतिहास
लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी (सन् 1829 - 1896)डॉ. अरुण कुकसाल‘जिस अंचल में बलभद्र सिंह जैसे वीरों का जन्म होता है, उसकी अपनी अलग रेजीमेंट होनी ही चाहिए.’ कमान्डर इन चीफ, पी. रोबर्टस ने सन् 1884 में तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड डफरिन को गढ़वालियों की एक स्वतंत्र बटालियन के गठन के प्रस्ताव की भूमिका में ये महत्वपूर्ण तथ्य लिखा था. तत्कालीन बिट्रिश सरकार ने सन् 1887 में अल्मोड़ा में तैनात गोरखा राईफल में भर्ती गढ़वाली एवं अन्य सैनिकों को मिलाकर ‘गढ़वाल राईफल’ का गठन करके उसका मुख्यालय ‘कळों का डांडा’ (लैंसडौन) में स्थापित किया था. इससे पूर्व गढ़वाल के युवा गोरखा राईफल में ही भर्ती हो पाते थे.सैनिक सेवाओं के दौरान उन्हें दो बार ‘ऑडर ऑफ मेरिट’ का अवार्ड दिया गया. सन् 1887 में सेना से अवकाश ग्रहण करने के बाद बिट्रिश सरकार ने उनकी सराहनीय सैनिक सेवाओं का सम्मान करते हुए घोसीखाता (कोटद्व...