Tag: लोक संस्कृति

उत्तराखंड की लोक संस्कृति में वनस्पतियों का उपयोग

उत्तराखंड की लोक संस्कृति में वनस्पतियों का उपयोग

पर्यावरण
डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल विज्ञान शिक्षक रा.इ.का. भंकोली उत्तरकाशी (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी भारत द्वारा उत्कृष्ट विज्ञान शिक्षक सम्मान 2022) हिमालयी राज्य उत्तराखंड समृद्ध जैव विविधता का घर है। यह राज्य अपनी जैव विविधता से जितना समृद्ध है, उतना ही हिमालय की ऊपरी पहुंच में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों के उपयोग से जुड़ी पौराणिक कहानियों का भी भंडार है। ऐसे अनेक उदाहरण लिए जा सकते हैं जहां समुदाय जड़ी-बूटियों, झाड़ियों और पेड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के अलावा धार्मिक समारोहों के लिए भी करता है। हालांकि, कटाई और उनके उपयोग की सामुदायिक प्रथाएं अत्यधिक दोहन को भी रोकती हैं। पिछले कुछ समय में उत्तराखंड ने हर्बल राज्य के रूप में भी पहचान हासिल कर ली है। विभिन्न योजनाएं और सरकार के नेतृत्व वाले कार्यक्रम समुदाय को आजीविका कमाने के लिए औषधीय पौधे उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन सा...
लोक संस्कृति एवं लोकपरम्पराओं को बढावा देते हैं मेले और कौथिग: सीएम पुष्कर सिंह धामी

लोक संस्कृति एवं लोकपरम्पराओं को बढावा देते हैं मेले और कौथिग: सीएम पुष्कर सिंह धामी

अल्‍मोड़ा
मुख्यमंत्री ने की ऐतिहासिक सोमनाथ मेले के लिये 05 लाख रुपये की घोषणा सोमवार को ऐतिहासिक सोमनाथ मेला मासी-2023 में प्रतिभाग करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमनाथ मेले को 05 लाख रूपये प्रदान करने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति एवं सभ्यता महान है इसमें निरंतरता है. सदियों से इस महान संस्कृति की महानता के विषय में आम लोगों को जागरूक करने का काम मेले और कौथिग करते रहे हैं. सोमनाथ का यह ऐतिहासिक मेला भी इसी का उदाहरण है. कत्यूरकाल से देवाधिदेव शिव को प्रत्येक गांव से नई फसल भेंट करने की चली आ रही अनूठी परंपरा इस मेले को विशिष्ट बनाती है. हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में भी ये मेले अहम भूमिका निभाते हैं. मेले हमारे समाज को जोड़ने तथा हमारी प्राचीन संस्कृति और परम्पराओं के बारे में नई पीढ़ी को जागरूक करने में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं. सीएम ने द्वाराहाट विध...
हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

साहित्‍य-संस्कृति
हिमांतर ब्यूरो, हरिद्वार-देहरादून हिमांतर का नया अंक आ गया है. हर बार की तरह यह अंक भी कुछ खास और अलग है. हिमांतर केवल एक पत्रिका नहीं, बल्कि हिमालयी सरोकारों, संस्कृति और लोक जीवन का दर्पण बनती जा रही है. अब तक के जितने भी अंक प्रकाशित हुए हैं. हर अंक ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. इस बार का अंक भी पहले के अंकों से अलग है. लेकिन, हर अंक की तरह ही इसकी आत्मा भी हिमालयी लोक समाज में बसती है. खास बात यह है कि इस बार के अंक नाम भी हिमालयी लोक समाज व संस्कृति रखा गया है. हरिद्वार में आयोजित रवांल्टा सम्मलेन में हिमांतर के नए अंक का विमोचन किया गया. हिमांतर की खास बात यह है कि इसमें हिमालयी सरोकारों और हिमालयी समाज को केवल छूया भर नहीं जाता, बल्कि गंभीरता से हर पहलू को सामने लाया जाता है. इस बार के अंक के अतिथि संपादक रचनात्मकता के लिए पहचाने जाने वाले राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता शिक्षक और...
रवांई के देवालय एवं देवगाथाएं!- रवांई के लोक की अनमोल सांस्कृतिक विरासत से साक्षात्कार…

रवांई के देवालय एवं देवगाथाएं!- रवांई के लोक की अनमोल सांस्कृतिक विरासत से साक्षात्कार…

पुस्तक-समीक्षा
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान! शिक्षक, लेखक, कवि, लोकसंस्कृतिकर्मी और लोक से because जुड़े दिनेश रावत नई-नई पुस्तक रवांई के देवालय एवं देवगाथाएं को पढने का सौभाग्य मिला. पांच अध्याय में लिखी गयी इस पुस्तक में आपको रवाई घाटी की अनमोल सांस्कृतिक विरासत को करीब से जानने का मौका मिलेगा साथ ही यहाँ की अनूठी परम्पराओं की जानकारी भी मिलेगी जिन्हें आपने आज तक नहीं सुना होगा. तु आया देवा, शांख क सबद, तु आया देवा ढोलू की नाद तु आया देवा, अंग मोड़ी-मोड़ी, तु आया देवा बांगुडी बांदुऊ… ज्योतिष लेखक दिनेश रावत ने देवताओं की स्तुति से ही इस because किताब की शुरुआत की है. लोक के प्रति गहरी समझ और लोक संस्कृति के सच्चे साधक की यही एक निशानी होती है. जिसके बाद किताब के अगले पन्नो में साहित्यकार डॉ प्रयाग जोशी और साहित्यकार व रवांई की पहचान महाबीर रवाल्टा जी द्वारा पुस्तक की उपयोगिता और महत्ता के बारे ...
नरेन्द्र सिंह नेगी: लोक संस्कृति के भी मर्मस्पर्शी गीतकार

नरेन्द्र सिंह नेगी: लोक संस्कृति के भी मर्मस्पर्शी गीतकार

साहित्‍य-संस्कृति
नरेन्द्र सिंह नेगी के जन्मदिन पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति को देश विदेश में पहचान देने वाले गढवाल के जाने माने लोकगायक व गीतकार श्री नरेन्द्र सिंह नेगी का आज जन्म दिन है.माना जाता है कि अगर आप उत्तराखण्ड और वहां के जीवन दर्शन, समाज और लोक संस्कृति, राजनीति, रीति रिवाज, विभिन्न ऋतुओं आदि के बारे में जानना चाहते हों तो केवल नरेन्द्र सिंह नेगी जी के सुरीले गीतों को सुन लो. उनमें वह सब कुछ मिल जाएगा. आसपास नेगी जी का जन्म 12 अगस्त 1949 को पौड़ी जिले के पौड़ी गाँव उत्तराखण्ड में हुआ. उन्होंने अपनी गायकी की शुरुआत पौड़ी से की थी और अब तक वे दुनिया भर के कई बडे-बडे देशों में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं. नेगी जी ने अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति का इन्द्रधनुषी रंग बिखेरा है.इस क्षेत्र की वीरगाथाओं को सुरीले स्वर प्रदान किए हैं. जनम...
हरेला : पहाड़ की लोक संस्कृति और हरित क्रांति का पर्व

हरेला : पहाड़ की लोक संस्कृति और हरित क्रांति का पर्व

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी इस बार हरेला संक्रांति का पर्व उत्तराखंड में 16 जुलाई को मनाया जाएगा.अपनी अपनी रीति के अनुसार नौ या दस दिन पहले बोया हुआ हरेला इस श्रावण मास की संक्रान्ति को काटा जाता है.सबसे पहले हरेला घर के मन्दिरों और गृह द्वारों में चढ़ाया जाता है और फिर  माताएं, दादियां और बड़ी बजुर्ग महिलाएं हरेले की पीली पत्तियों को बच्चों,युवाओं, पुत्र, पुत्रियों के शरीर पर स्पर्श कराते हुए आशीर्वाद देती हैं- “जी रये,जागि रये,तिष्टिये,पनपिये, दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये. हिमाल में ह्यूं छन तक, गंग ज्यू में पांणि छन तक, यो दिन और यो मास भेटनैं रये. अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये, स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो.” परम्परा के अनुसार हरेला उगाने के लिए पांच अथवा सात अनाज गेहूं, जौ,मक्का, सरसों, गौहत, कौंड़ी, धान और भट्ट आदि के बीज घर के भीतर छोटी टोकरियों अथवा लकड़ी...
पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (8 जुलाई) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी आज उत्तराखंड की लोक संस्कृति के पुरोधा वंशीधर पाठक जिज्ञासु जी की पुण्यतिथि है. जिज्ञासु जी ने कुमाऊं और गढ़वाल के लोक गायकों, लोक कवियों और साहित्यकारों को आकाशवाणी के मंच से जोड़ कर उन्हें प्रोत्साहित करने का जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले अपने लोकप्रिय कार्यक्रम 'उत्तरायण' के माध्यम से देशभर में पहाड़ की संस्कृति का लंबे समय तक प्रचार-प्रसार किया,उसके लिए उन्हें उत्तराखंड के लोग सदा याद रखेंगे. जिज्ञासु जी को प्रारम्भ से ही कविताएं और कहानियां लिखने का बहुत शौक था. इसलिए इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी. वर्ष 1962 में उनके मित्र जयदेव शर्मा ‘कमल’ ने उन्हें आकाशवाणी में विभागीय कलाकार के रूप में आवेदन करने को कहा. उस समय 1962 में चीनी हमले के बाद भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश के सीमां...