नरेन्द्र सिंह नेगी के जन्मदिन पर विशेष
- डॉ. मोहन चंद तिवारी
उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति को देश विदेश में पहचान देने वाले गढवाल के जाने माने लोकगायक व गीतकार श्री नरेन्द्र सिंह नेगी का आज जन्म दिन है.माना जाता है कि अगर आप उत्तराखण्ड और वहां के जीवन दर्शन, समाज और लोक संस्कृति, राजनीति, रीति रिवाज, विभिन्न ऋतुओं आदि के बारे में जानना चाहते हों तो केवल नरेन्द्र सिंह नेगी जी के सुरीले गीतों को सुन लो. उनमें वह सब कुछ मिल जाएगा.
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नेगी जी का जन्म 12 अगस्त 1949 को पौड़ी जिले के पौड़ी गाँव उत्तराखण्ड में हुआ. उन्होंने अपनी गायकी की शुरुआत पौड़ी से की थी और अब तक वे दुनिया भर के कई बडे-बडे देशों में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं. नेगी जी ने अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति का इन्द्रधनुषी रंग बिखेरा है.इस क्षेत्र की वीरगाथाओं को सुरीले स्वर प्रदान किए हैं. जनमानस के दुख-दर्द, हर्ष विषाद जैसे जीवन के सभी पहलूओं को उन्होंने अपने गीतों के द्वारा उकेरा है.
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आज जब समूचा देश स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय
पर्व मनाने की तैयारी में है तो ऐसे देशभक्ति पूर्ण अवसर पर यह बताना भी आवश्यक है कि नरेंद्र नेगी ने अनेक देशभक्ति पूर्ण गीतों को भी अपने मधुर कंठ द्वारा वीर रस से सराबोर किया है. सन् 2009 में पाकिस्तान को धूल चटाने में उत्तराखंड के 75 जवानों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी थी. उसी संदर्भ में लोककवि नरेन्द्र सिंह नेगी जी के आडियो कैसेट “कारगिले लड़ै में छौऊं” का जिक्र करना भी आज बहुत प्रासंगिक है.आसपास
नेगी जी के ‘नौछमी नारायण’
ने एन डी तिवारी सरकार पर ऐसे व्यंग्य बाण छोड़े कि वह मुश्किल में पड़ गई थी. भाजपा ने इस गाने को चुनाव प्रचार में खूब बजाया. इसके बाद नेगी जी ने रमेश पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री रहते ‘अब कतग खैलो रे’ गाना गाकर भ्रष्टाचार पर खूब तंज कसे थे.
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इस आडियो कैसेट में उन्होंने कारगिल के युद्ध में उत्तराखंड के वीर जवानों की देशभक्ति का बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी चित्रण किया है साथ ही यह संदेश भी दिया है कि सीमा के
रक्षक हमारे उत्तराखंड के बहादुर जवान तिरंगे की शान मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने में भी अपनी कितनी शान समझते हैं. जिस समय कारगिल में युद्ध चल रहा था उसी समय नरेन्द्र सिंह नेगी जी का यह वीररस से ओतप्रोत “कारगिले लड़ै में छौऊं” आडियो कैसेट रिलीज हुआ था.आसपास
इस कैसेट के एक गीत के माध्यम से कारगिल के युद्ध में लड़ रहे गढ़वाल रेजीमेंट के एक सैनिक का अपनी मां
को भेजा गया सन्देश आज भी उत्तराखंड की उस वीरगाथा परंपरा की याद से आंखों को नम कर देता है कि उत्तराखंड के जांबाज कितनी देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने में गर्व का अनुभव करते हैं. युद्धक्षेत्र के हालात बताते हुए उत्तराखंड का यह सैनिक जवान अपनी मां को चिट्ठी लिखते हुए कहता है- इन रूखे-सूखे, पहाड़ों पर चारों तरफ बर्फ गिरी हुई है. अंधाधुंध तोपें चल रही हैं, ऐसा लगता है जैसे आसमान से बम और गोले बरस रहे हैं. नेगी जी की कविता के बोल यहां भावुक होकर कहने लगते हैं–आसपास
“मां मैं यह नहीं कह सकता कि तुम्हारे पास पहले मेरी यह चिट्ठी पहुँचेगी या मेरी प्राणाहुति का समाचार देने वाला टेलीग्राम. लेकिन मै यह जरूर कह सकता हूं कि देशरक्षा की जो सौगंध मैंने खायी है उसे कभी तोड़ नहीं सकता. अब तो मेरी अन्तिम मनोकामना यही है कि मुझे युद्धक्षेत्र में वीरगति मिले और मैं तिरंगे के कफन से लिपटा हुआ ही अपनी मातृभूमि में वापस लौटूं”-
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“पैल्लि य चिट्ठि मिललि कि तार,
मांजि बोलि नि सकदु मी
देश रक्षा कि कसम खाईंन,
कसम तोड़ि नि सकदु मी
तिरंगा कु कफन मिलु
ये आखिरि ख्वैश छ,
तू उदास न ह्वै मां.”
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अपने पुरातन और गौरवशाली
इतिहास को खोजना उस प्रवासी की सांस्कृतिक प्रवृत्ति सी बन गई है. इसी प्रवास पीड़ा के दर्द से जुड़ी जन भावना को नेगी जी ने अपनी ‘बावन गढ़ों को देश मेरो गढवाल’ नामक रचना में बड़े ही मनोयोग से उभारा है.
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सुर सम्राट नरेंद्र सिंह नेगी जी ने अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की सियासी उठापटक पर भी अनेक व्यंग्यपूर्ण रचनाएं दी हैं. नेगी जी के ‘नौछमी नारायण’ ने एन डी तिवारी सरकार
पर ऐसे व्यंग्य बाण छोड़े कि वह मुश्किल में पड़ गई थी. भाजपा ने इस गाने को चुनाव प्रचार में खूब बजाया. इसके बाद नेगी जी ने रमेश पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री रहते ‘अब कतग खैलो रे’ गाना गाकर भ्रष्टाचार पर खूब तंज कसे थे. ‘उत्तराखंड मा मच्यूं भारी ड्रामा, बिकण विधायक,थामे रे थामा’ जैसी रचनाओं के द्वारा नेगी जी ने उत्तराखंड के वर्तमान भ्रष्टाचारपरक राजनीतिक हालातों के साथ भी जीवंत संवाद किया है.आसपास
देशभक्ति का सबसे बड़ा लक्षण है कि कवि या साहित्यकार का अपने समाज की पीड़ाओं से संवाद करना और उसके साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार को अपने गीतों के माध्यम से
उजागर भी करना. लोक कवि हो या लोक गायक मूलतः वह लोक की पीड़ाओं और उसके साथ होने वाले अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाता है. देशभक्ति और लोकपीड़ा से द्रवित होने का यह गुण नरेंद्र सिंह की कविताओं में स्वाभाविक रूप से रचा बसा है.आसपास
नेगी जी के लोकप्रिय होने का एक वास्तविक कारण यह भी है कि उन्होंने सदा जनभावनाओं को समझा और उसी के अनुकूल गीत लिखे. इसी लहजे में नरेंद्र सिंह नेगी का
गीत “मुझको पहाड़ी मत बोलो मै देहरादूण वाला हूँ.” गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ.नेगी जी समय,समाज और जनता की नब्ज टटोल कर सम सामयिक गीत लिखने और उसे जन सरोकारों से पिरोने की काव्य कला में सिद्धहस्त रहे हैं.
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आज पहाड़ों से पलायन की पीड़ा एक मुख्य सामाजिक स्वर बन गया है.अपनी जन्मभूमि से दूर होने के बाद भी पहाड़ी प्रवासी के रूप में अपनी जड़ों को खोजने के लिए आतुर है.
अपने पुरातन और गौरवशाली इतिहास को खोजना उस प्रवासी की सांस्कृतिक प्रवृत्ति सी बन गई है. इसी प्रवास पीड़ा के दर्द से जुड़ी जन भावना को नेगी जी ने अपनी ‘बावन गढ़ों को देश मेरो गढवाल’ नामक रचना में बड़े ही मनोयोग से उभारा है.आसपास
दरअसल, नेगी जी के लोकप्रिय होने का एक वास्तविक कारण यह भी है कि उन्होंने सदा जनभावनाओं को समझा और उसी के अनुकूल गीत लिखे. इसी लहजे में नरेंद्र सिंह नेगी का
गीत “मुझको पहाड़ी मत बोलो मै देहरादूण वाला हूँ.” गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ.नेगी जी समय,समाज और जनता की नब्ज टटोल कर सम सामयिक गीत लिखने और उसे जन सरोकारों से पिरोने की काव्य कला में सिद्धहस्त रहे हैं.आसपास
बहु आयामी प्रतिभा के धनी नेगी जी ने अब तक सबसे ज्यादा गढवाली सुपरहिट एल्बम रिलीज की हैं. उन्होंने कई गढवाली फिल्मों में भी अपनी आवाज दी है जैसे कि “चक्रचाल”, “घरजवाई”, “मेरी गंगा होलि त मैमा आलि” आदि. अब तक नेगी जी एक हजार से भी
अधिक गाने गा चुके हैं. दुनिया भर में उन्हें कई बार अलग अलग अवसरों पर पुरस्कार से नवाजा गया है. आकाशवाणी, लखनऊ ने नेगी जी को 10 अन्य कलाकारों के साथ ‘अत्यधिक लोकप्रिय लोक गीतकार’ की मान्यता दी है और पुरस्कार से सम्मानित किया है. नेगी जी की गढवाली गीतमाला के 10 खंड उत्तराखण्ड के लोक साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं.आसपास
हाल ही में जब पूरा देश कोरोना और ऑक्सीजन की कमी से भयंकर कष्ट के दौर से गुजर रहा था, उत्तराखंड दूरदर्शन से नरेंद्र नेगी की एक हृदय स्पर्शी कविता सुनने का अवसर
मिला जिसमें उन्होंने आज मनुष्य की स्वार्थी और अवसरवादी चरित्र को लक्ष्य करते हुए कहा कि वृक्ष कितने परोपकारी होते हैं? धरती का श्रृंगार बन कर सृष्टि के पालनहार होते हैं. जीव जंतुओं और मानव को प्राणवायु प्रदान करते हैं. दूसरों की मजबूरी का लाभ उठाने वाले मनुष्य होने से तो बेहतर होता कि यदि मैं कोई वृक्ष होता –आसपास
“जीब-जन्तु की प्राणवायु
आस-सास सारू हूँदु,
धरती को श्रृंगार,
सृष्टि को रखवालू हूँदु,
मनखी हुण से त् अछु छौ
मि क्वी डालो हूँदु.”
लोकगायक व गीतकार गढ़
रत्न श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी को जन्मदिवस की बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाएं और शत शत नमन! हम उनकी दीर्घायु व स्वस्थ जीवन की मंगल कामनाएं करते हैं.आसपास
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)