Tag: रामलीला

कालसी गेट की रामलीला और मैं…

कालसी गेट की रामलीला और मैं…

संस्मरण
स्मृतियों के उस पार सुनीता भट्ट पैन्यूली अक्टूबर यानी पत्तियां रंग बदल रही हैं,  पौधे ज़मीन पर बदरंग होकर  स्वत:स्फूर्त बीज फेंक रहे हैं ज़मीन पर, जानवर सर्दियों से बचाव की तैयारी में चिंतन में आकंठ डूबे हुए हैं. यानी पूरी प्रकृति एक बदलाव की प्रक्रिया की ओर अग्रसर है. अक्तूबर आ गया है  सुबह सर्द मौसम की सरसराहट पूरे शरीर की धमनियों में दौड़ने लगी है और इसी सरसराहट के साथ नवरात्रि की धूम में  सुबह हवाओं में बहुमिश्रित अगरबत्तियों की खुशबू है.कहीं मंदिरों में घंटियों की टुनटुनाहट है. देर रात्रि में दूर शहर में कहीं  माइक पर धीमी होती आवाज़ में  रामलीला के डायलोग जैसे ही मेरे कर्णों को भेदते हैं, मेरी स्मृतियों के कपाट इस चिरपरिचित आवाज़ को सुनकर हर साल की तरह इस बार भी खुल गये हैं जिसके घुप्प अंधेरे को भेदकर बहुत पीछे जाने पर मेरे भीतर बचपन की रंग-बिरंगी अकूत झांकियां सजी हुई  हैं. ...
यतो धर्मस्ततो  जय: 

यतो धर्मस्ततो  जय: 

लोक पर्व-त्योहार
विजया दशमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारतीय लोक-जीवन में गहरे पैठे हुए हैं और उनकी कथा आश्चर्यजनक रूप से हजारों वर्षों से विभिन्न रूपों में आम जनों के सामने न केवल आदर्श प्रस्तुत करती so रही है बल्कि उसे जीवन के संघर्षों के बीच खड़े रहने के लिए सम्बल भी देती आ रही है. विजयादशमी की तिथि श्री राम की कथा का एक चरम बिंदु है जब वे आततायी रावण से धरती को मुक्त करते हैं और ऐसे राम राज्य की स्थापना करते हैं so जिसमें जन जीवन संतुष्ट और प्रसन्न है. उसे दैहिक, दैविक या भौतिक किसी तरह  का ताप  नहीं है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वराज के रूप में राम राज्य की कल्पना की थी . पर इस कल्पना को साकार करने के मार्ग में हम अभी भी बहुत दूर खड़े हैं. राम श्रीराम की कथा आज भी अत्यंत so लोकप्रिय है. अब दशहरा के पूर्व धूम धाम से दुर्गा पूजा का उत्सव भी जुड़ गया है. द...
गढ़वाली रंगमंच व सिनेमा के बेजोड़ नायक :  बलराज नेगी

गढ़वाली रंगमंच व सिनेमा के बेजोड़ नायक :  बलराज नेगी

साहित्यिक-हलचल
जन्मदिन (30 जून)  पर विशेष महाबीर रवांल्टा गढ़वाली फिल्मों के जाने माने अभिनेता और रंगकर्मी बलराज नेगी का जन्म 30 जून 1960 को चमोली जिले के भगवती (नारायणबगड़) गांव के इन्द्र सिंह नेगी व धर्मा देवी के घर में हुआ था.सात भाई और दो बहिनों के परिवार में वे चौथे स्थान पर थे. आपके पिता गांव में परचून की दूकान चलाते थे. बलराज की आरंभिक शिक्षा नारायणबगड़ में हुई फिर डीएवी कालेज देहरादून से पढ़ने के बाद दिल्ली के करोड़ीमल कालेज से आपने स्तानक किया. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान बलराज का रुझान नाटकों की ओर होने लगा और इन्होंने इसी क्षेत्र में कुछ करने का मन बना लिया. चंद्रा अकादमी ऑफ एक्टिंग मुंबई में प्रवेश लेने से पूर्व आपको किरण कुमार, राकेश पांडे, योगिता बाली जैसे कलाकारों की कसौटी से गुजरना पड़ा था. फिल्म एवं टेलीविजन  संस्थान पुणे के पूर्व प्रिंसिपल गजानन जागीरदार के मार्गदर्शन में आप...
रामलीला पहाड़ की

रामलीला पहाड़ की

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—6 रेखा उप्रेती रंगमंच की दुनिया से पहला परिचय रामलीला के माध्यम से हुआ. हमारे गाँव ‘माला’ की रामलीला बहुत प्रसिद्ध थी उस इलाके में. अश्विन माह में जब धान कट जाते, पराव के गट्ठर महिलाओं के सिर पर लद कर ‘लुटौं’ में चढ़ बैठते तो खाली खेतों पर रंगमंच खड़ा हो जाता. उससे कुछ दिन पहले ही रामलीला की तालीम शुरू हो चुकी होती. देविथान में एक छोटी-सी रंगशाला जमती. सोमेश्वर से उस्ताद जी हारमोनियम लेकर आते और गीतों का रियाज़ चलता. सभी भूमिकाएँ पुरुष ही निभाते… डील-डौल के साथ-साथ अच्छा गाने की प्रतिभा तय करती कि कौन किसका ‘पार्ट खेलेगा’. छोटी छोटी लडकियाँ सिर्फ सखियों की भूमिका निभातीं. मेरी दीदियाँ अपने-अपने समय में कभी राधा, कभी कृष्ण, कभी गोपी बनकर रामलीला के पूर्वरंग का सक्रिय हिस्सा बन चुकी थीं. मैं सिर्फ दर्शक की भूमिका में रही. पूर्वरंग के अलावा दो अन्य स्थलों पर स...
गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

संस्मरण
रंग यात्रा भाग—2 महावीर रवांल्टा अपने दोनों गांवों में नाटक एवं रामलीला की प्रस्तुति,लेखन, अभिनय, उद्घोषणा के साथ ही पार्श्व में अनेक जिम्मेदारियों के निर्वाहन के बाद पढ़ाई के लिए उत्तरकाशी में होने के कारण मैंने वहां रंगकर्म के क्षेत्र में उतरने का मन बना लिया और पूरे आत्मविश्वास के साथ शुरुआत भी की. जिससे मैंने कुछ नाटकों में अभिनय व निर्देशन के माध्यम से उत्तरकाशी के रंग इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी. उत्तरकाशी में मैंने मुनारबन्दी (1985, महावीर रवांल्टा) बालपर्व (1985,डा अरविंद गौड़) समानांतर रेखाएं (1987, सत्येन्द्र शरत) दो कलाकार (1987, डा भगवती चरण वर्मा) नाटकों में अभिनय के साथ ही उनका निर्देशन भी किया तथा माघ मेला 1987 में वीरेंद्र गुप्ता के निर्देशन में मंचित संजोग(सतीश डे) में मुख्य भूमिका निभाने का अवसर भी मिला. इसके बाद काला मुंह (डा. गोविन्द चातक) हेमलेट(...
गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति
रंग यात्रा भाग—1 महावीर रवांल्टा जीवन में पहली बार कब मुझे रामलीला या पौराणिक नाटक देखने का अवसर मिला होगा, कैसे मुझे उनमें रुचि होने लगी, इस समय यह बता पाना मुश्किल है लेकिन मेरी स्मृति में इतना जरूर दर्ज है कि महरगांव में अपने घर के बरांडे के नीचे ओबरों से बाहर की जगह पर हमने रामलीला की शुरुआत की थी. इसमें हमारे पड़ोस में रहने वाले भट्ट परिवार के बच्चे भी शामिल हुए थे. निश्चित तौर पर यह रामलीला हमारे अपनी समझ से उपजे संवाद एवं अभिनय के सहारे आगे बढ़ी होगी मुझे ऐसा लगता है. इस रामलीला की इतनी चर्चा हो पड़ी थी कि हमारे व आसपास के गांव के किशोर भी इसमें शामिल हुए. हमारे घर के बाहर के आंगन मे इसे खेला गया था. घर में उपलब्ध माता जी की धोतियों का पर्दे के रूप में इस्तेमाल हुआ था. घर में उपलब्ध सामग्री व वेशभूषा के साथ ही गत्ते से बनाए गए मुकुट, लकड़ी के धनुष बाण और तलवार सभी ने अपनी स...