गढ़वाली रंगमंच व सिनेमा के बेजोड़ नायक :  बलराज नेगी

जन्मदिन (30 जून)  पर विशेष

  • महाबीर रवांल्टा

गढ़वाली फिल्मों के जाने माने अभिनेता और रंगकर्मी बलराज नेगी का जन्म 30 जून 1960 को चमोली जिले के भगवती (नारायणबगड़) गांव के इन्द्र सिंह नेगी व धर्मा देवी के घर में हुआ था.सात भाई और दो बहिनों के परिवार में वे चौथे स्थान पर थे. आपके पिता गांव में परचून की दूकान चलाते थे. बलराज की आरंभिक शिक्षा नारायणबगड़ में हुई फिर डीएवी कालेज देहरादून से पढ़ने के बाद दिल्ली के करोड़ीमल कालेज से आपने स्तानक किया.

दिल्ली में पढ़ाई के दौरान बलराज का रुझान नाटकों की ओर होने लगा और इन्होंने इसी क्षेत्र में कुछ करने का मन बना लिया. चंद्रा अकादमी ऑफ एक्टिंग मुंबई में प्रवेश लेने से पूर्व आपको किरण कुमार, राकेश पांडे, योगिता बाली जैसे कलाकारों की कसौटी से गुजरना पड़ा था. फिल्म एवं टेलीविजन  संस्थान पुणे के पूर्व प्रिंसिपल गजानन जागीरदार के मार्गदर्शन में आपको फिल्म एवं अभिनय का प्रशिक्षण पाने का अवसर मिला.

गांव में रामलीला व पौराणिक नाटक देखते हुए आपकी रुचि सांस्कृतिक कार्यक्रमों की ओर होने लगी थी और विद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों में आप भाग लेने लगे थे. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान बलराज का रुझान नाटकों की ओर होने लगा और इन्होंने इसी क्षेत्र में कुछ करने का मन बना लिया. चंद्रा अकादमी ऑफ एक्टिंग मुंबई में प्रवेश लेने से पूर्व आपको किरण कुमार, राकेश पांडे, योगिता बाली जैसे कलाकारों की कसौटी से गुजरना पड़ा था. फिल्म एवं टेलीविजन  संस्थान पुणे के पूर्व प्रिंसिपल गजानन जागीरदार के मार्गदर्शन में आपको फिल्म एवं अभिनय का प्रशिक्षण पाने का अवसर मिला. भारतखंडे संगीत विद्यापीठ लखनऊ से आपने लोक नृत्य में  सीनियर डिप्लोमा प्राप्त किया था. 19 नवम्बर, 1992 में आप देहरादून में जन्मी व पली-पढ़ी बचडस्यूं (पौड़ी गढ़वाल) की सरिता बिष्ट के साथ परिणय सूत्र में बंधे. आपके दो पुत्र-सारांश और सार्थक उच्च संस्थानों में अध्ययनरत हैं. छोटे पुत्र सार्थक रंगमंचीय गतिविधियों में हिस्सेदारी करते हुए पिता के पद चिन्हों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं.

गढ़वाली फिल्म ‘ग्वैर छोरा’ की रिकॉर्डिंग आशा भोसले व नायक बलराज नेगी.

सन 1986 से 1990 तक आप बंबई (अब मुंबई) में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति देते रहे. आपने 20 से अधिक पूर्णकालिक नाटकों को अपने अभिनय, नृत्य निर्देशन एवं निर्देशन में प्रस्तुत कर रंगमंच को समृद्ध करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया. इनमें कैमु न बोल्या (1984) कै कैमु बोल्या (1985) सत्यवान सावित्री (गीत नाटिका, 1986) जीतू बगड़वाल (नृत्य नाटिका, 1986) कैमु बोल्या (1987) बसंत फ्यूंली (1988) पुत्रदान (हिंदी नाटक, 1990) में मुख्य भूमिका निभाने के साथ ही इनका इनका निर्देशन भी किया था.जीतू बगड्वाल का अखिल गढ़वाल सभा सहारनपुर के तत्वाधान में सन 1990 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में मंचन किया गया था. बटोही (1990) पापी पराण (1989) पर्यावरण पर केंद्रित कुल्हाड़ी में आपने मुख्य भूमिका निभाई साथ ही ब्वारी हो त यनी (1989) को आपने निर्देशित किया था.

सन 1991 में मुंबई से देहरादून आकर आपने नंदा देवी कला संगम (सांस्कृतिक सामाजिक संस्था) की स्थापना की तथा इसके माध्यम से गढ़वाल की समृद्ध संस्कृति एवं कला के प्रचार प्रसार के लिए अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किए. इस संस्था ने देहरादून के परेड ग्राउंड में तीन दिवसीय पर्वतीय सांस्कृतिक अभियान- कौशिक-96 का आयोजन किया था जिसमें गढ़वाल एवं कुमाऊं के लगभग 500 कलाकारों, साहित्यकारों एवं हस्तशिल्पियों को आमंत्रित किया गया था. इस कार्यक्रम में गढ़वाल कुमाऊं की अद्भुत सांस्कृतिक एकजुटता देखने को मिली थी. उत्तराखंड संगीत नाटक अकादमी के आप संस्थापक सचिव बने. स्वतत्रंता की 50वीं वर्षगांठ पर उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के सौजन्य से देहरादून में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने में आपका योगदान रहा. भारतखंडे हिंदुस्तानी संगीत विद्यालय लखनऊ एवं देहरादून के लिए मुरादाबाद व देहरादून में लोकगीतों की प्रस्तुति आपकी उपलब्धियों में शामिल है. नेपाली लोक गायक आनंद कार्की के कार्यक्रम के संचालन के साथ ही भारतखंडे हिंदुस्तानी संगीत महाविद्यालय, भारतीय जीवन बीमा निगम की कार्यशालाओं में प्रशिक्षक के रूप में भागीदारी के अलावा केंद्रीय विद्यालय, ओएनजीसी के राष्ट्रीय कार्यक्रमों तथा एयरटेल एवं लक्मे द्वारा दून इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित मिस उत्तराखंड प्रतियोगिता में आप निर्णायक की भूमिका का बखूबी निर्वाहन कर चुके हैं.

बहुत कम लोग जानते हैं कि बलराज नेगी का असली नाम बलवीर सिंह नेगी है लेकिन सिनेमा की बड़ी दुनिया में आने के लिए लोगों ने आपको अपना नाम बदलने और छोटा करने की सलाह दी. इस तरह बलबीर सिंह नेगी सिनेमा व रंगमंच की दुनिया के लिए बलराज नेगी हो गए.

गढ़वाली व हिंदी नाटकों में अभिनय और निर्देशन के बाद आपका रूख हिंदी फिल्मों की ओर भी हुआ. बहुत कम लोग जानते हैं कि बलराज नेगी का असली नाम बलवीर सिंह नेगी है लेकिन सिनेमा की बड़ी दुनिया में आने के लिए लोगों ने आपको अपना नाम बदलने और छोटा करने की सलाह दी. इस तरह बलबीर सिंह नेगी सिनेमा व रंगमंच की दुनिया के लिए बलराज नेगी हो गए. हिंदी के सुपरस्टार राजेश खन्ना से बेहद प्रभावित रहे बलराज नेगी के दूसरे पसंदीदा कलाकार जितेंद्र, दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन रहे हैं. मुंबई में रहते हुए उन्होंने बासु चटर्जी की फिल्म लाखों की बात में संजीव कुमार के साथ दर्जी की छोटी सी भूमिका अभिनीत की थी. जिंदगी एक ख्वाब फिल्म में वे नसीरुद्दीन शाह व जयाप्रदा के साथ रोमांटिक लीड रोल में थे लेकिन दुर्भाग्य से यह फिल्म रिलीज नहीं हो सकी. हिंदी के अलावा ज्ञान कुमार की भोजपुरी फिल्म सांची प्रीतिया की डोर में उन्होंने मृणाल विमर्श मीरा माधुरी के साथ सह नायक की भूमिका निभाई थी.

गढ़वाली फिल्म ‘घरजवैं’ के रिलीज के समय देहरादून पधारे उत्तर प्रदेश के मा. मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, नित्यानंद स्वामी एवं विधायक हीरासिंह बिष्ट के साथ फिल्म अभिनेता बलराज नेगी.

हिंदी फिल्मों में अभिनय के साथ ही बलराज नेगी ने दयाल  निहलानी द्वारा निर्देशित मंजू सिंह के दूरदर्शन धारावाहिक एक कहानी-सोना (विद्यासागर नौटियाल) तथा अधिकार में मुख्य भूमिका निभाई थी. दूरदर्शन के लिए ही उन्होंने जीत सिंह नेगी द्वारा लिखित एवं वीर सिंह ठाकुर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक टेलीफिल्म मलेथा की कूल का भी निर्देशन किया था. दूरदर्शन से  प्रसारित डा निशंक के गीतों से सजे उत्तरांचल से कार्यक्रम में आपको गीत, नृत्य व अभिनय का समुचित अवसर मिला था. देश हमारा कितना प्यारा देशभक्ति पर आधारित गैर फ़िल्मी गीतों की एलबम का आपने निर्देशन किया जिसमें प्रख्यात निशानेबाज जसपाल राणा ने भी अभिनय किया है. इसका गणतंत्र दिवस 2005 व 2006 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर दूरदर्शन पर प्रसारण हुआ था.

हिंदी सिनेमा व दूरदर्शन धारावाहिकों में काम करने के साथ ही बलराज नेगी ने गढ़वाली सिनेमा को समृद्ध करने में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया. उन्होंने ग्वैर छोरा,ब्वारी हो त यनी, प्यारी छुमा, घरजवैं, जिया की लाडी व सुबेरौ घाम में नायक की भूमिका निभाई है.

हिंदी सिनेमा व दूरदर्शन धारावाहिकों में काम करने के साथ ही बलराज नेगी ने गढ़वाली सिनेमा को समृद्ध करने में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया. उन्होंने ग्वैर छोरा,ब्वारी हो त यनी, प्यारी छुमा, घरजवैं, जिया की लाडी व सुबेरौ घाम में नायक की भूमिका निभाई है. सतमंगल्या व ब्वारी हो त यनी के सह निर्देशन के साथ ही उन्होंने नृत्य निर्देशन भी किया. सन 1986 में प्रदर्शित बद्री केदार फिल्म्स मुंबई की घरजवैं गढ़वाली की सबसे सफल फिल्मों में से एक मानी जाती है. इस फिल्म ने सफलता के नए मापदंड स्थापित किए तथा बलराज नेगी रातों-रात गढ़वाली फिल्म के सुपरस्टार के रूप में स्थापित हो गए. उनकी तुलना हिन्दी फिल्मों के राजेश खन्ना व अमिताभ बच्चन से की जाने लगी. जिया की लाडी में वे एक पिता की प्रभावशाली भूमिका में नजर आए तो नरेश खन्ना निर्देशित सुबेरौ घाम में अधेड़ उम्र के नायक की भूमिका में बलराज नेगी खूब जमे हैं. घरजवैं ने गढ़वाल, कुमाऊं, दिल्ली, मुंबई में सिल्वर जुबली मनाकर खूब लोकप्रियता अर्जित की थी और गढ़वाली सिनेमा में स्टारडम की एक तरह से शुरुआत कर दी थी.

वरिष्ठ साहित्यकार महाबीर रवाल्टां एवं बलराज नेगी.

तुम्हारी माया मा, ठंडो रे ठंडो, मीनू ए, हे बबली गढ़वाली एलबम में अभिनय के साथ ही बलराज नेगी मीनू ए, हे बबली, मेरु बुढ्या को ब्यौ चा तथा विडरु, पाणी पडयारी (जौनसारी एलबम) का निर्देशन कर चुके हैं. आकाशवाणी नजीबाबाद व पौड़ी से वार्ताएं तथा दिल्ली, मुंबई, लखनऊ दूरदर्शन के लिए आपने युगल लोक नृत्य के अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किए. डीआरडीए टिहरी गढ़वाल के लिए विकास गीतों के ऑडियो एवं कार्यक्रम पेश करने के साथ ही जिला चमोली में स्वजल योजना के प्रचार प्रसार के लिए आपने गांव गांव जाकर नुक्कड़ नाटक करवाए थे.

रंगमंच की रोमांचक घटना के रूप में उन्हें जीतू बगड्वाल (नृत्य नाटिका) का वह दृश्य याद आता है जहां जीतू जंगल में जाकर बांसुरी बजाता है और उसके प्राण हरने वाली आछरियां उसे मोहित करने के लिए उसके इर्द-गिर्द प्रकट होती है. इस अद्भुत दृश्य की कल्पना व प्रस्तुति आज भी उनके मन- मस्तिष्क में दर्ज है.जो उन्हें आज भी रोमांचित करती है.

वर्तमान में उत्तराखंड में रंगमंच की स्थिति के बारे में पूछने पर उन्हें एस पी ममगाई, सुरेंद्र भंडारी, रोशन धस्माना, जागृति, डॉ सुवर्ण रावत, अभिषेक मैंदोला, जहूर आलम सरीखे कुछ नाम याद आते हैं. इनके रंगकर्म ने उन्हें कहीं न कहीं प्रभावित किया है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षण लेकर आने वाले रंग कर्मियों से उन्हें लोक रंगमंच को लेकर काफी अपेक्षाएं हैं. उनका मानना है कि वे लोग अपनी प्रतिभा व अनुभव के बल पर इस क्षेत्र में नए मापदंड स्थापित कर सकते हैं. गीत- संगीत की बात करें तो जीत सिंह नेगी को वे गढ़वाली गीत- संगीत और रंगमंच की बहुत बड़ी धरोहर मानते हैं. ऐसे ही नरेंद्र सिंह नेगी के अप्रतिम योगदान को वह गढ़वाली के लिए किसी वरदान से कम नहीं मानते. रंगमंच की रोमांचक घटना के रूप में उन्हें जीतू बगड्वाल (नृत्य नाटिका) का वह दृश्य याद आता है जहां जीतू जंगल में जाकर बांसुरी बजाता है और उसके प्राण हरने वाली आछरियां उसे मोहित करने के लिए उसके इर्द-गिर्द प्रकट होती है. इस अद्भुत दृश्य की कल्पना व प्रस्तुति आज भी उनके मन- मस्तिष्क में दर्ज है.जो उन्हें आज भी रोमांचित करती है.

बड़ी संख्या में गढ़वाली फिल्में बनने के बावजूद उनके सफल न होने की वजह बलराज नेगी उनमें अपनेपन का अभाव बताते हैं. अपनापन यानी अपनी लोक संस्कृति,रीति रिवाज ,परिधान, परिवेश, गीत-संगीत. वे कहते हैं कि जब हमारी फिल्मों में अपने लोक की गंध नहीं होगी तो फिर दर्शक मुंबईया लटके-झटके देखने के लिए किसी हिंदी फिल्म के ही टिकट खरीदना पसंद करेंगे क्योंकि टिकट तो समान मूल्य का ही होगा. गढ़वाली फिल्मों की असफलता को लेकर वे इस बात को भी जिम्मेदार मानते हैं कि इस क्षेत्र में एक ऐसा दौर चला कि जिसने भी फिल्म निर्माण की ठानी वही उसका नायक भी बन गया. जब तक फिल्म के लिए अच्छी कथा,पटकथा के अनुरूप कलाकार, गीत और संगीत नहीं होगा उसकी सफलता को लेकर संशय की स्थिति बनी रहेगी. सही मायने में किसी भी फिल्म का दर्शक अपने आप को सिनेमा के पर्दे पर देखना चाहता है. वही गायब होगा तो फिल्म कैसे चल पाएगी.अपनी संस्कृति व‌  परंपरा के अनुकूल कार्य करना जरूरी है हमें मुंबईया कांसेप्ट से दूर रहना होगा. जहां तक गढ़वाली फिल्म व एलबम के निर्देशन की बात है उन्हें नरेश खन्ना व  अनिल बिष्ट काफी पसंद है. चक्रचाल, भुली ए भुली, सुबेरौ‌ घाम निर्देशित करने वाले नरेश खन्ना अब इस दुनिया में नहीं है.

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की सक्रियता व अभिनय के कायल बलराज नेगी उन्हीं की तरह अपनी उम्र के अनुरूप बेहतरीन भूमिकाएं करने की इच्छा रखते हैं. उन्हें इंतजार सिर्फ अच्छी पटकथा की पेशकश का है. उनकी एक इच्छा यह भी है कि कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर फिल्म बने तो वह निश्चित रूप से उसमें काम करना चाहेंगे.

घरजवैं फिल्म रिलीज होने के दौरान की एक घटना का जिक्र करना वे नहीं भूलते. पुरानी टिहरी में इस फिल्म को देखने के लिए किसी गांव की तीन महिलाएं पहुंची थी जिन्हें दिन के बजाय रात्रि के शो के टिकट मिल पाए थे. रात्रि को जब वे फिल्म देखकर वे अपने गांव की ओर लौट रही थी उस दौरान उनके साथ न जाने कौन सी अनहोनी घटना घटी थी कि उन्होंने एक साथ बंधकर भिलंगना में छलांग लगाकर अपनी इहलीला समाप्त कर दी थी. घरजवैं से जुड़ी यह घटना आज भी उन्हें विचलित करती है और इसे भूल पाना उन्हें आसान नहीं लगता.

 बलराज नेगी को रंगमंच व गढ़वाली सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है जिनमें नागरिक परिषद देहरादून द्वारा केएन सिंह फिल्म विधा पुरस्कार- 1998  दून रत्न, दून घाटी रंगमंच देहरादून द्वारा दून कीर्ति, उत्तरांचल महोत्सव 2000 नई टिहरी द्वारा फिल्म व रंगमंच के लिए सम्मान, फिल्म एवं टेलीविजन एसोसिएशन की ओर से हीरो आफ उत्तरांचली फिल्म,पर्वतीय बिगुल (मसूरी) द्वारा देवभूमि रत्न अवॉर्ड- 2004, डा शिवानंद नौटियाल फाउंडेशन पौड़ी द्वारा शिवानंद नौटियाल रत्न अवार्ड- 2009, उत्तराखंड उत्तराखंड लोक संस्कृति सम्मान- 2009 (दिल्ली) यूफा अवार्ड- 2012 (देहरादून) श्रीदेव सुमन सम्मान- 2012 (देहरादून) देवभूमि फिल्म एवं सांस्कृतिक सम्मान- 2013, उफतारा सम्मान- 2016 (देहरादून) चेतना गौरव मंच समान -2016 (चकराता) गौरव सम्मान- 2019, गढ़वाली फिल्म  एवं रंगमंच को समृद्ध करने के लिए इंडिया न्यूज़ चैनल द्वारा गौरव सम्मान- 2018, उत्तराखंड पुलिस सम्मान-2018, पर्वतीय सांस्कृतिक संस्था द्वारा उत्तराखंड फिल्म अभिनेता सम्मान, जौनसार-बावर कला एवं सं सांस्कृतिक महा संगठन द्वारा लोक संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मान के साथ ही अखिल गढ़वाल सभा देहरादून द्वारा 10 जनवरी 2020 को उत्तराखंड गौरव सम्मान -2019, आदर्श रामलीला -उत्तरकाशी के 68वें वर्ष में उन्हें दिया गया सम्मान सम्मिलित है.

आज रंगमंच एवं फिल्म के क्षेत्र में आने वाले युवाओं के लिए बलराज नेगी का सुझाव है कि वे विषय को ध्यान से पढ़ लिखकर ही आगे बढ़ें. उसी के अनुरूप चरित्र को आत्मसात करें तभी इस क्षेत्र में उनके लिए सफलता के द्वार खुल सकते हैं.

रंगमंच व सिनेमा के क्षेत्र में वर्षों सक्रिय रहे बलराज नेगी एक रंगकर्मी, फिल्म एवं टीवी कलाकार और लोक नृत्यक के रूप में उत्तराखंड का एक ऐसा नाम है जिसने अपनी पहली  गढ़वाली फिल्म के नायक के रुप में सफलता का चरम व स्टारडम देखा था. आज भी अपने योगदान से वे इस क्षेत्र को समृद्ध करने में लगे  हैं. इन दिनों आप संस्कृति विभाग उत्तराखंड में रंग मंडल संयोजक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. गढ़वाली रंगमंच और सिनेमा में अपने अभिनय के बूते पर आपने जो स्थान हासिल किया वह निश्चित रूप से आपकी अथक लगन व कठिन श्रम का ही प्रतिफल है जो निश्चित रूप से आपको इस क्षेत्र में विशिष्टता प्रदान करता है.

(लेखक कवि एवं वरिष्ठ साहित्यकार हैं)

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