जैनेटिक विज्ञान का नया दावा : क्या जल से पहले पौधों की उत्पत्ति हुई?

जैनेटिक विज्ञान का नया दावा : क्या जल से पहले पौधों की उत्पत्ति हुई?

डॉ. मोहन चंद तिवारी क्या है भारतीय सृष्टि विज्ञान की अवधारणा? दो साल पहले उपर्युक्त शीर्षक से लिखे अपने  फेसबुक लेख को अपडेट करते हुए इस लेख के माध्यम से यह जानकारी देना चाहता हूं कि भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु (1858-1937) because ने उन्नीसवीं शताब्दी में जैनेटिकविज्ञान के क्षेत्र में यह खोज पहले ही […]

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 जसुली शौकयाणी की मन्याओं का इतिहास

जसुली शौकयाणी की मन्याओं का इतिहास

  कुमाऊं में मनिया मंदिर: एक पुनर्विवेचना -4 डॉ. मोहन चंद तिवारी सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘मन्याओं’ का सबसे अधिक निर्माण दारमा जोहार क्षेत्र की महान दान वीरांगना जसुली शौकयाणी के द्वारा किया गया. लला (आमा) के नाम से विख्यात जसुली शौकयाणी ने कुमाऊ, गढ़वाल, नेपाल तक मन्याओं because और […]

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 द्वाराहाट के ‘मन्या’ मंदिर : एक पुनर्विवेचना

द्वाराहाट के ‘मन्या’ मंदिर : एक पुनर्विवेचना

डॉ. मोहन चंद तिवारी बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व जब मैं अपनी पुस्तक ‘द्रोणगिरि:इतिहास और संस्कृति’ के लिए द्वाराहाट के मंदिर समूहों के सम्बंध में जानकारी जुटा रहा था, तो उस समय मेरे लिए ‘मन्या’ या ‘मनिया’because नामक मंदिर समूह के नामकरण का औचित्य ज्यादा स्पष्ट नहीं हो पाया था. द्वाराहाट के इतिहास के बारे में जानकार […]

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 ‘प्रथमं शैलपुत्री च’ : हिमालय पर्यावरण की रक्षिका देवी

‘प्रथमं शैलपुत्री च’ : हिमालय पर्यावरण की रक्षिका देवी

डॉ. मोहन चंद तिवारी शारदीय नवरात्र-1       आज शारदीय नवरात्र का पहला दिन है. आज नवदुर्गाओं में से देवी के पहले स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की समाराधना की जाती है. पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से पर्वतराज हिमालय की प्रधान भूमिका है.because यह पर्वत मौसम नियंता होने के साथ-साथ विश्व पर्यावरण को नियंत्रित करने का भी केन्द्रीय संस्थान […]

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 सर्वहारा संस्कृति के ‘राष्ट्रदेवता’ शिव

सर्वहारा संस्कृति के ‘राष्ट्रदेवता’ शिव

महाशिवरात्रि पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 11 मार्च के दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की तिथि को महा शिवरात्रि का पर्व है. वर्ष में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की because महाशिवरात्रि का विशेष माहात्म्य है. माना जाता है कि इस दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग के उदय से […]

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 जहां न्‍याय के लिए गुहार लगाने पहुंचते हैं लोग…

जहां न्‍याय के लिए गुहार लगाने पहुंचते हैं लोग…

कुमाऊंनी से कुछ अलग है न्याय देवता गोरिल की गढ़वाली जागर कथा न्यायदेवता गोरिल पर एक शोधपूर्ण लेख डॉ. मोहन चंद तिवारी कुमाऊं और गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में ‘ग्वेल देवता’, ‘गोलज्यू’ ,‘गोरिल’ आदि विभिन्न नामों से आराध्य न्याय देवता की लोकगाथा के विविध संस्करण प्रचलित हैं और उनमें इतनी भिन्नता है कि कभी कभी […]

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 उत्तराखंड के ऐतिहासिक नौले : जल संस्कृति की अमूल्य धरोहर

उत्तराखंड के ऐतिहासिक नौले : जल संस्कृति की अमूल्य धरोहर

भारत की जल संस्कृति-34 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-5 उत्तराखंड की जल समस्या because को लेकर मैंने पिछली अपनी पोस्टों में परम्परागत जलप्रबंधन और वाटर हार्वेस्टिंग से जुड़े गुल,नौलों और धारों पर जल विज्ञान की दृष्टिसे प्रकाश डाला है. इस लेख में  परम्परागत ऐतिहासिक नौलों और उनसे उभरती जलसंस्कृति के बारे में कुछ […]

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 ‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

‘उत्तरायणी’ वैदिक आर्यों का रंग-रंगीला ऐतिहासिक लोकपर्व

डॉ. मोहन चंद तिवारी हमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है. उत्तराखण्ड का ‘उत्तरायणी’ पर्व हो या बिहार का ‘छठ पर्व’ केरल का ‘ओणम पर्व’ because हो या फिर कर्नाटक की ‘रथसप्तमी’ सभी […]

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 संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

संकट में है उत्तराखण्ड जलप्रबन्धन के पारम्परिक जलस्रोतों का अस्तित्व

भारत की जल संस्कृति-33 डॉ. मोहन चंद तिवारी उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-4 उत्तराखंड के जल वैज्ञानिक डॉ. ए.एस. रावत तथा रितेश शाह ने ‘इन्डियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नौलिज’ (भाग 8 (2‚ अप्रैल 2009, पृ. 249-254) में प्रकाशित एक लेख‘ ट्रेडिशनल नॉलिज ऑफ वाटर मैनेजमेंट इन कुमाऊँ हिमालय’ में उत्तराखण्ड के परम्परागत जलसंचयन संस्थानों because पर जलवैज्ञानिक […]

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 चक्रपाणि मिश्र के अनुसार जलाशयों के विविध प्रकार

चक्रपाणि मिश्र के अनुसार जलाशयों के विविध प्रकार

भारत की जल संस्कृति-27 डॉ. मोहन चंद तिवारी चक्रपाणि मिश्र ने ‘विश्वल्लभवृक्षायुर्वेद’ नामक अपने ग्रन्थ में कूप,वापी,सरोवर, तालाब‚ कुण्ड‚ महातड़ाग आदि अनेक जलाश्रय निकायों की निर्माण पद्धति तथा उनके विविध प्रकारों का वर्णन किया है,जो वर्त्तमान सन्दर्भ में परंपरागत जलनिकायों के जलवैज्ञानिक स्वरूप को जानने और समझने की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है. यहां […]

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