‘प्रथमं शैलपुत्री च’ : हिमालय पर्यावरण की रक्षिका देवी

  • डॉ. मोहन चंद तिवारी

शारदीय नवरात्र-1      

आज शारदीय नवरात्र का पहला दिन है. आज नवदुर्गाओं में से देवी के पहले स्वरूप ‘शैलपुत्री’ की समाराधना की जाती है. पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से पर्वतराज हिमालय की प्रधान भूमिका है.because यह पर्वत मौसम नियंता होने के साथ-साथ विश्व पर्यावरण को नियंत्रित करने का भी केन्द्रीय संस्थान है. हिमालय क्षेत्र के इसी राष्ट्रीय महत्त्व को उजागर करने के लिए देवी के नौ रूपों में हिमालय प्रकृति को ‘शैलपुत्री’ के रूप में सर्वप्रथम स्थान दिया गया है. नवरात्र के पहले दिन अर्थात् प्रतिपदा की तिथि को ‘शैलपुत्री’ की विशेष पूजा-अर्चना इसलिए भी की जाती क्योंकि हिमालय क्षेत्र शैलपुत्री की क्रीड़ाभूमि व तपोभूमि दोनों है. दक्षपुत्री सती ने पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया तो इसी स्थान पर आदिदेव शिव के साथ उनका विवाह हुआ.

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प्रतिमा विज्ञान की दृष्टि से यह देवी because शिव की अर्द्धांगिनी होने के कारण ‘शिवा’ कहलाती है.वृषभवाहना इस देवी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित रहता है. त्रिशूल प्रतीक है पर्यावरण विरोधी आसुरी शक्तियों के विनाश का और कमलपुष्प प्रतीक है पर्यावरण संरक्षण द्वारा ऐश्वर्य समृद्धि की प्राप्ति का. नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री का ध्यान निम्नलिखित मंत्र के द्वारा किया जाता है –

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“वन्दे वांछितलाभाय because चन्द्रार्धकृतशेखराम्.  
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्..”

अर्थात् अर्धचन्द्र का मुकुट धारण करने वाली‚ because ‘वृष-वाहिनी’ शूलधारिणी‚यशस्विनी देवी ‘शैलपुत्री’ को मैं वांछित फल की प्राप्ति के लिए प्रणाम करता हूँ.

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आज समूचे हिमालय में भूकम्प, भूस्खलन, सूखा‚ अतिवृष्टि‚अनावृष्टि आदि प्राकृतिक आपदाओं के पिछले आठ-दस वर्षों के रिकार्ड बताते हैं कि अंधाधुंध विकास के कारण आज हिमालय प्रकृति तनाव के because दौर से गुजर रही है. पर्यटन उद्योग तथा अन्ध विकासवाद के नाम पर जिस प्रकार से हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों का संदोहन और व्यापारिक धरातल पर उनका दुरुपयोग हो रहा है,उससे भी हिमालय प्रकृति आज रुष्ट और तनावग्रस्त है.

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प्रकृति क्या है? प्राकृतिक प्रकोप क्यों उभरते हैं? और उन प्राकृतिक प्रकोपों से मुक्ति का उपाय क्या है? ये कुछ ऐसे शाश्वत प्रश्न हैं,जिनका मानव अस्तित्व से गहरा सम्बन्ध रहा है. because ‘दुर्गासप्तशती’ नामक ग्रन्थ में इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए प्राकृतिक आपदाओं की दुर्गति से बचाने वाली ‘दुगर्तिनाशिनी’ ‘नवदुर्गा’ की मातृभाव से उपासना करने का विधान आया है.

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विडम्बना यह भी है कि राज्य सरकारें हों या केन्द्र सरकार हिमालय प्रकृति के द्वारा दिए जा रहे प्राकृतिक आपदाओं के संकेतों को समझने की उन्हें न तो चिन्ता है और न ही आपदा because प्रबन्धन के ठोस उपाय करने के संसाधन ही उनके पास हैं. उत्तराखण्ड और जम्मू-कश्मीर दोनों ही स्थान राजनैतिक तथा प्राकृतिक दोनों दृष्टियों से हिमालय क्षेत्र के अत्यन्त संवेदनलशील जोन के अन्तर्गत आते हैं. हिमालय क्षेत्र की मौसम वैज्ञानिक संवदेनशीलता न केवल भारत बल्कि हमारे पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान सहित समूचे एशिया महाद्वीप के लिए भी चिंता का विषय है.

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पर्यावरण संरक्षण का पर्व

प्रकृति क्या है? प्राकृतिक प्रकोप क्यों उभरते हैं? और उन प्राकृतिक प्रकोपों से मुक्ति का उपाय क्या है? ये कुछ ऐसे शाश्वत प्रश्न हैं,जिनका मानव अस्तित्व से गहरा सम्बन्ध रहा है. ‘दुर्गासप्तशती’ because नामक ग्रन्थ में इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए प्राकृतिक आपदाओं की दुर्गति से बचाने वाली ‘दुगर्तिनाशिनी’ ‘नवदुर्गा’ की मातृभाव से उपासना करने का विधान आया है. ‘दुर्गासप्तशती’ का पर्यावरण वैज्ञानिक फलितार्थ यही है कि शुम्भ और निशुम्भ नामक खुंखार राक्षसों का महाशक्ति ने वध इसलिए किया क्योंकि ये असुर इन्द्र की प्राकृतिक राज्य व्यवस्था ही अपने कब्जे में लेना चाहते थे.

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पर्यावरण विरोधी इन शक्तियों ने पृथ्वी,अग्नि, जल‚ वायु,आकाश आदि प्राकृतिक तत्त्वों को भी अपने नियंत्रण में ले लिया था. ऐसे संकट काल में जब ब्रह्माण्ड की पूरी प्राकृतिक व्यवस्था आसुरी शक्तियों but के हाथ में आने से असंतुलित होने लगी तो पर्यावरण संरक्षण की चिन्ता करने वाली देवशक्तियों और ऋषि-मुनियों को हिमालय में जाकर विश्व पर्यावरण की रक्षा के लिए जगदम्बा से प्रार्थना करनी पड़ी कि ‘हे लोक कल्याणी प्रकृति देवी! हम सब तुम्हारी शरण में हैं हमारी रक्षा करो.’-

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“नमो देव्यौ महादेव्यै so शिवायै सततं नमः.
नमःप्रकृत्यै भद्रायै नियताः because प्रणता स्म ताम्..”

हिमालय पर्यावरण की रक्षिका ‘शैलपुत्री’ से हम because यही प्रार्थना करते हैं कि वह देवी हमारे राष्ट्र की समस्त प्राकृतिक आपदाओं को शांत करे तथा देश में सुख समृद्धि प्रदान करे. समस्त देशवासियों को प्रथम शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं.

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(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट because प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्रपत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)

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