Tag: कृषि

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने की उत्तराखंड में हुई मध्य क्षेत्रीय परिषद की 24वीं बैठक की अध्यक्षता

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने की उत्तराखंड में हुई मध्य क्षेत्रीय परिषद की 24वीं बैठक की अध्यक्षता

उत्तराखंड हलचल
मध्‍य क्षेत्रीय परिषद में शामिल राज्‍य देश में कृषि, पशुपालन, अनाज उत्पादन, खनन, जल आपूर्ति और पर्यटन का प्रमुख केन्‍द्र हैं, इन राज्यों के बिना जलापूर्ति की कल्पना ही नहीं की जा सकती टिहरी: केन्द्रीय गृह मंत्री एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज उत्तराखंड के नरेन्द्र नगर में मध्‍य क्षेत्रीय परिषद की 24वीं बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ शामिल हुए। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हिस्सा लिया। बैठक में छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और केन्द्रीय गृह सचिव, अंतर राज्य परिषद सचिवालय की सचिव, सदस्य राज्यों के मुख्य सचिव और राज्य सरकारों तथा केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के...
 भारत की कृषि कहावतें: कहे घाघ के सुन भडूरी!

 भारत की कृषि कहावतें: कहे घाघ के सुन भडूरी!

ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-32 मंजू काला कुछ पखवाड़े पहले की बात है, सुबह की चाय सुड़कते हुए एक समाचार ने मेरा ध्यान आकर्षित किया था कि  कृषि विभाग किसानों को मौसम अनुमान करने के लिए  कहावतें पढा रहा है, पढकर मुझ जैसी आधुनिका का आश्चर्य चकित होना लाजमी था,   उत्सुकता वश मैंने पड़ताल की तो  पाया कि सदियों पहले हमारे देश में  कृषि के संबंध में कुछ मुहावरे  कहे गये हैं!   मैंने जब गहराई से इन कहावतों की बाबत जानकारी इकट्ठा की तो समझ गयी की  ये  मुहावरे,  कहावतें, लोकोक्तियाँ  हमारे देश की कृषक संस्कृति  को बयां करती है,  इनमें ज्ञान भरा होता है। वैसे अरबी भाषा में एक कहावत है-, "अल-मिस्लफ़िल कलाम कल-मिल्ह फ़िततआम"  यानी बातों में-कहावतों या मुहावरों और उक्तियों की उतनी ही ज़रूरत है जितनी की खाने में नमक की।"    ग्रामीण लोक अपनी बात में वजन पैदा करने के लिए अक्सर  इन  मुहावरों का इस्तेमाल करते है...
जलवायु परिवर्तन मानवजनित ही है: 99.9% अध्ययन

जलवायु परिवर्तन मानवजनित ही है: 99.9% अध्ययन

पर्यावरण
निशांत लगभग शत-प्रतिशत शोध यह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन किसी प्राक्रतिक नियति का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी आपकी गतिविधियों का ही नतीजा है. because इस बात को सामने लायी है एक रिपोर्ट जिसने 88,125 जलवायु-संबंधी अध्ययनों के एक सर्वेक्षण में पाया कि 99.9% से अधिक अध्ययन यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव जनित ही है. ज्योतिष ध्यान रहे कि साल 2013 में, 1991 और 2012 के बीच प्रकाशित अध्ययनों पर हुए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि 97% अध्ययनों ने इस विचार का समर्थन किया कि मानव because गतिविधियां पृथ्वी की जलवायु को बदल रही हैं. वर्तमान सर्वेक्षण 2012 से नवंबर 2020 तक प्रकाशित साहित्य की जांच से यह बताता है कि आंकड़ा 97% से बढ़ कर 99.9% हो गया है. ज्योतिष कॉर्नेल विश्वविद्यालय के एलायंस फॉर because साइंस के एक विजिटिंग फेलो एवं इस पत्र के प्रमुख लेखक मार्क लिनास ने कहा की, "ह...
अक्षय तृतीया : कृषि सभ्यता और मानसूनों के पूर्वानुमान का पर्व

अक्षय तृतीया : कृषि सभ्यता और मानसूनों के पूर्वानुमान का पर्व

पर्यावरण
अक्षय तृतीया पर विशेष डॉ . मोहन चंद तिवारी आज शुक्रवार,14 मई,2021 के दिन वैशाख शुक्ल तृतीया की तिथि को मनाया जाने वाला ‘अक्षय तृतीया’ का शुभ पर्व है. ‘अक्षय तृतीया’ जिसे स्थानीय भाषा में 'अखा तीज' भी कहा जाता है,भारत की कृषि सभ्यता because और मानसूनों के पूर्वानुमान का भी महत्त्वपूर्ण पर्व है. ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है जिसका कभी नाश नहीं होता.हेमाद्रि के कथनानुसार अक्षय तृतीया के दिन किए गए स्नान, दान,जप, होम,स्वाध्याय और पितृतर्पण का फल अक्षय हो जाता है. हेमाद्रि अक्षय तृतीया के साथ भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनेक माहात्म्य जुड़े हैं. सतयुग और त्रेतायुग की काल गणना इसी तिथि से होने के कारण इसे युगादि तिथि के रूप में भी जाना जाता है.विष्णु के अंशावतार माने जाने वाले परशुराम की जन्म जयंती इसी तिथि को मनाई जाती है तो बद्री नारायण धाम के कपाट खुलने because और वृन्दावन में बांके बिहार...
उत्तराखंड में उद्यानीकरण की हकीकत

उत्तराखंड में उद्यानीकरण की हकीकत

उत्तराखंड हलचल
पलायन ‘व्यक्तिजनित’ नहीं ‘नीतिजनित’ है भाग-3 चारु तिवारी  सरकार बार-बार कह रही है कि उद्यानीकरण को रोजगार का आधार बनायेगी. मुख्यमंत्री अपने हर संबोधन में बता रहे हैं कि वे फलोत्पादन और नकदी फसलों से लोगों की आमदनी बढ़ायेंगे, ताकि वे महानगरों की ओर न भागें. सरकार अगर इस तरह सोच रही है तो निश्चित रूप से उसने उद्यानीकरण पर अपना रोडमैप जरूर तैयार किया होगा. मुख्यमंत्री और सरकार की ओर से वही पुरानी बातें कही गई हैं, जो योजनाओं और कागजों तक सीमित रहती हैं. इनके धरातल में न उतरने की वजह से ही लोगों का फलोत्पादन से मोहभंग हुआ. परंपरागत रूप से फलोत्पादन हमारी अर्थव्यवस्था का आधार रही है. फल, सब्जियों, कृषि उपजों आदि से ही ग्रामीण अपना भरण-पोषण करते रहे हैं. पहाड़ में मनीआर्डर की अर्थव्यवस्था एक साजिश है. बहुत तरीके से लाई गई है. यह साबित कराने के लिये कि पहाड़ों में कुछ नहीं हो सकता. बाहर ...
बंजर होते खेतों के बीच ईजा का दुःख

बंजर होते खेतों के बीच ईजा का दुःख

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—9 प्रकाश उप्रेती हमारे खेतों के भी अलग-अलग नाम होते हैं. 'खेतों' को हम 'पटौ' और 'हल चलाने' को 'हौ बहाना' कहते हैं. हमारे लिए पटौपन हौ बहाना ही कृषि या खेती करना था. कृषि भी क्या बस खेत बंजर न हो इसी में लगे रहते थे. हर खेत के साथ पूरी मेहनत होती लेकिन अनाज वही पसेरी भर.हमारे हर पटौ की अपनी कहानी और पहचान थी. हमारे कुल मिलाकर 40 से 45 पटौ थे. हर एक का अलग नाम था. हर किसी में क्या बोया जाना है, वह पहले से तय होता था। कई खेतों में तो मिट्टी से ज्यादा पत्थर होते थे. हर पत्थर और खेत अपनी पहचान रखता था. उनके नाम थे, जैसे - तेसंगड़ी पाटौ, बटौपाटौ, घरज्ञानणय पाटौ, ठुल पाटौ, रूचिखाअ पाटौ, बघोली पाटौ, किवांड़ीं पाटौ, कनहुंड़ीं पाटौ, मलस्यारी पाटौ, रतवाडो पाटौ, गौंपारअ पाटौ, बगड़अ पाटौ, इस तरह और भी नाम थे. पेड़, पत्थर या भौगोलिक स्थिति के अनुसार उनका नामकरण हुआ...
पिठाड़ी—पिदें की बाकर्या अर बाकर्यों कु त्यार

पिठाड़ी—पिदें की बाकर्या अर बाकर्यों कु त्यार

साहित्‍य-संस्कृति
लोक पर्व दिनेश रावत वर्ष का एक दिन! जब लोक आटे की बकरियाँ बनाते हैं. उन्हें चारा—पत्ती चुंगाते हैं. पूजा करते हैं. धूप—दीप दिखाते हैं. गंध—अक्षत, पत्र—पुष्ठ चढ़ाते हैं. रोली बाँधते हैं. टीका लगाते हैं. अंत में इनकी पूजा—बलि देकर आराध्य देवी—देवताओं को प्रसन्न करते हैं. त्यौहार मनाते हैं, जिसे 'बाकर्या त्यार' तथा संक्रांति जिस दिन त्यौहार मनाया जाता है 'बाकर्या संक्रांत' के रूप में लोक प्रसिद्ध है. बाकर्या त्यार की यह परम्परा उत्तराखण्ड के सीमान्त उत्तरकाशी के पश्चितोत्तर रवाँई में वर्षों से प्रचलित है. जिसके लिए लोग चावल का आटा यानी 'पिठाड़ी' और उसकी अनुपलब्धता पर 'पिदें' यानी गेहूँ के आटे को गूंथ कर उससे घरों में एक—दो नहीं बल्कि कई—कई बकरियाँ बनाते हैं, जिनमें 'बाकरी', 'बाकरू' अर्थात नर, मादा बकरियों के अतिरिक्त 'चेल्क्यिा' यानी ' मेमने' भी बनाए जाते हैं. बाकर्या त्यार की...