Tag: उत्तराखंड

ढांटू: रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर में सिर ढकने की अनूठी परम्‍परा

ढांटू: रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर में सिर ढकने की अनूठी परम्‍परा

साहित्‍य-संस्कृति
निम्मी कुकरेती उत्तराखंड के रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर because क्षेत्र में सिर ढकने की एक अनूठी परम्‍परा है. यहां की महिलाएं आपको अक्‍सर सिर पर एक विशेष प्रकार का स्‍कार्फ बाधे मिलेंगी, जो बहुत आकर्षक एवं मनमोहक लगता है. स्थानीय भाषा में इसे ढांटू कहते हैं. यह एक विशेष प्रकार के कपड़े पर कढ़ाई किया हुआ या प्रिंटेट होता है, जिसमें तरह—तरह की कारीगरी आपको देखने को मिलेगी. यहां की महिलाएं इसे अक्सर किसी मेले—थौले में या ​की सामूहिक कार्यक्रम में अक्सर पहनती हैं. उत्तराखंड  ढांटू का इतिहास यहां के लोगों का मानना है कि वे because पांडवों के प्रत्यक्ष वंशज हैं. और ढांटू भी अत्यंत प्राचीन पहनावे में से एक है. इनके कपड़े व इन्हें पहनने का तरीका अन्य पहाड़ियों या यूं कहें कि पूरे भारत में एकदम अलग व बहुत सुंदर है. महिलाएं इसे अपनी संस्कृति और सभ्यता की पहचान के रूप में पहनती हैं. आज भी इ...
मिलिए, उत्तराखंड के उस शख्स से जिनका पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में लिया नाम

मिलिए, उत्तराखंड के उस शख्स से जिनका पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में लिया नाम

बागेश्‍वर
ललित फुलारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में उत्तराखंड के बागेश्वर निवासी जगदीश कुन्याल के पर्यावरण संरक्षण और जल संकट से निजात दिलाने वाले because कार्यों की सराहना की. पीएम मोदी ने कहा कि उनका यह कार्य बहुत कुछ सीखाता है. उनका गांव और आसपास का क्षेत्र पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए एक प्राकृतिक जल स्त्रोत पर निर्भर था. जो काफी साल पहले सूख गया था. so जिसकी वजह से पूरे इलाके में पानी का संकट गहरा गया. जगदीश ने इस संकट का हल वृक्षारोपण के जरिए करने की ठानी. उन्होंने गांव के लोगों के साथ मिलकर हजारों की संख्या में पेड़ लगाए और सूख चुका गधेरा फिर से पानी से भर गया. कौन हैं जगदीश कुन्याल दरअसल, जगदीश कुन्याल पर्यावरण प्रेमी हैं और उन्होंने अपनी निजी प्रयास से इलाके में हजारों की संख्या में वृक्षारोपण किया जिसकी वजह से सूख चुके पानी के गधेरे में जल bec...
हिमालयी सरोकारों को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका ‘हिमांतर’ का लोकार्पण

हिमालयी सरोकारों को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका ‘हिमांतर’ का लोकार्पण

साहित्यिक-हलचल
सी एम पपनैं, नई दिल्ली उत्तराखंड सदन चाणक्यपुरी में 14 फरवरी को ‘टीम हिमांतर’ द्वारा अनौपचारिक कार्यक्रम के तहत, हिमालयी सरोकारों को समर्पित त्रिमासिक पत्रिका ‘हिमांतर’ का लोकार्पण because एवं परिचर्चा का आयोजन, उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, रमेश चन्द्र घिन्डियाल की अध्यक्षता व उत्तराखंड के प्रबुद्ध पत्रकारों, साहित्यकारों, समाजसेवियों व विभिन्न व्यवसायों से जुड़े  प्रबुद्धजनो के सानिध्य मे सम्पन्न हुआ. उत्तराखंड लोकार्पण कार्यक्रम शुभारंभ से because पूर्व विगत दिनों व महीनों मे उत्तराखंड तपोवन त्रासदी व कोरोना संक्रमण मे जान गवा चुके उत्तराखंड के जनसरोकारों से निरंतर जुडे़ प्रबुद्धजनो को दो मिनट का मौन रख कर, भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई. उत्तराखंड ‘हिमांतर’ पत्रिका कार्यकारी संपादक because डा. प्रकाश उप्रेती व पत्रिका टीम सदस्य शशि मोहन रवांल्टा द्वारा पत्रिका के प्र...
कंडोलिया थीम पार्क: लाइट एंड लेजर शो ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

कंडोलिया थीम पार्क: लाइट एंड लेजर शो ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

पौड़ी गढ़वाल
सीएम ने जनता को किया समर्पित कंडोलिया थीम पार्क हिमांतर ब्‍यूरो, देहरादून पौड़ी में आज मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत नेbecause कंडोलिया के थीम पार्क को जनता को समर्पित किया. इस मौके पर स्कूली बच्चों की प्रस्तुतियां व पार्क में लाइट एंड लेजर शो का कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र रहे. कंडोलिया पौड़ी पहुंचने पर सबसे because पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कंडोलिया ठाकुर के दर्शन किए और सभी की खुशहाली की कामना की. इसके बाद उन्होंने कंडोलिया थीम पार्क का उद्धघाटन करते हुए सभी को कंडोलिया के थीम पार्क की बधाइयां दी. उन्होंने कहा कि कंडोलिया देश के सर्वोच्च उंचाई वाला थीम पार्क है. पहाड़ की भौगोलिक स्थितियों के अनुरूप बने इस पार्क के माध्यम से हम पर्यटन विकास को so आगे बढ़ा सकते हैं. उन्होंने कहा कि अभी तक हमारे राज्य में धार्मिक पर्यटक ही आते हैं लेकिन अब इसे और विस्तार देने का प्...
अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—61 प्रकाश उप्रेती गाँव में किसी को कानों-कान खबर नहीं थी. शाम को नोह पानी लेने के लिए जमा हुए बच्चों के बीच में जरूर गहमागहमी थी- 'हरि कुक भो टेलीविजन आमो बल' because (हरीश लोगों के घर में कल टेलीविजन आ रहा है). भुवन 'का' (चाचा) की इस जानकारी को पुष्ट करते हुए चंदन ने कहा- 'हम ले यसे सुणेमुं' (हम भी ऐसा ही सुन रहे हैं). इसके बाद तो नोह के चारों ओर बैठे लोगों के बीच से टेलीविजन पर दुनिया भर का ज्ञान उमड़ आया.  so जिसने भी पहले टीवी देखा हुआ था वह अपनी तई भरपूर ज्ञान दे रहा था. उसमें हम जैसे लोग भी थे जिन्होंने टीवी सुना भर ही था लेकिन मुफ्त के ज्ञान देने में हम भी पीछे नहीं थे. टीवी में फ़िल्म आती है . यह ज्ञान सबके पास था. इसके आगे का ज्ञान किसी को नहीं था. इसके आगे तो एंटीना, से लेकर उसके आकार-प्रकार पर बात चल रही थी. टेलीविजन इस ज्ञान के चक्कर...
आस्थाओं का पहाड़ और बुबू

आस्थाओं का पहाड़ और बुबू

संस्मरण
प्रकाश उप्रेती मूलत: उत्तराखंड के कुमाऊँ से हैं. पहाड़ों में इनका बचपन गुजरा है, उसके बाद पढ़ाई पूरी करने व करियर बनाने की दौड़ में शामिल होने दिल्ली जैसे महानगर की ओर रुख़ करते हैं. पहाड़ से निकलते जरूर हैं लेकिन पहाड़ इनमें हमेशा बसा रहता है। शहरों की भाग-दौड़ और कोलाहल के बीच इनमें ठेठ पहाड़ी पन व मन बरकरार है. यायावर प्रवृति के प्रकाश उप्रेती वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। कोरोना महामारी के कारण हुए ‘लॉक डाउन’ ने सभी को ‘वर्क फ्राम होम’ के लिए विवश किया। इस दौरान कई पाँव अपने गांवों की तरफ चल दिए तो कुछ काम की वजह से महानगरों में ही रह गए. ऐसे ही प्रकाश उप्रेती जब गांव नहीं जा पाए तो स्मृतियों के सहारे पहाड़ के तजुर्बों को शब्द चित्र का रूप दे रहे हैं। इनकी स्मृतियों का पहाड़ #मेरे #हिस्से #और #किस्से #का #पहाड़ नाम से पूरी एक सीरीज में दर्ज़ है। श्रृंखला, पहाड़ और वहाँ के जीव...
मुनिया चौरा की ओखलियां मातृपूजा के वैदिक कालीन अवशेष

मुनिया चौरा की ओखलियां मातृपूजा के वैदिक कालीन अवशेष

इतिहास
डॉ. मोहन चंद तिवारी मेरे लिए दिनांक 28 अक्टूबर, 2020 का दिन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इस दिन  रानीखेत-मासी मोटर मार्ग में लगभग 40 कि.मी.की दूरी पर स्थित सुरेग्वेल के निकट मुनिया चौरा में because पुरातात्त्विक महत्त्व की महापाषाण कालीन तीन ओखलियों के पुनरान्वेषण में सफलता प्राप्त हुई. सुरेग्वेल से एक कि.मी.दूर मुनिया चौरा गांव के पास खड़ी चढ़ाई वाले अत्यंत दुर्गम और बीहड़ झाड़ियों के बीच पहाड़ की चोटी पर गुमनामी के रूप में स्थित इन ओखलियों तक पहुंचना बहुत ही कठिन और दुस्साध्य कार्य था.अलग अलग पत्थरों पर खुदी हुई ये महापाषाण काल की तीन ओखलियां चारों ओर झाड़ झंकर से ढकी होने के कारण भी गुमनामी के हालात में पड़ी हुई थीं. दशक मैं पिछले कई वर्षों से नवरात्र में जब भी आश्विन नवरात्र पर अपने पैतृक निवास स्थान जोयूं आता हूं तो इन ओखलियों तक पहुंचने के लिए प्रयासरत रहा हूं. किन्तु एकदम खड़ी, बीहड़ b...
वो पीड़ा… यादें बचपन की

वो पीड़ा… यादें बचपन की

संस्मरण
एम. जोशी हिमानी छुआछूत किसी भी समाज की मानसिक बर्बरता का द्योतक है. हमारे समाज में छुआछूत का कलंक सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है. आज के तथाकथित सभ्य समाज में भी यह बहुत गहरे so तक मौजूद है. उसके खात्मे की बातें मात्र किताबी हैं, समय पड़ने पर छुआछूत का नाग अपने फन उठा लेता है. ताव अपने बाल्यकाल में दूसरों की इस पीड़ा but को महसूस कर पाने के कारण ही शायद मेरे अंदर छुआछूत का भाव बचपन में ही खत्म हो गया था. हालांकि जिस माहौल में मेरी परवरिश हुई थी उसमें मुझे छुआछूत का कट्टर समर्थक बन जाना चाहिए था. शायद कुछ मेरा प्रारब्ध रहा होगा कि मैं वैसी नहीं बन पाई. ताव उच्च कुल में जन्म लेने के बावजूद छुआछूत की पीड़ा को मैंने बहुत नजदीक से देखा है. भले ही मैंने उस दंश को नहीं झेला, लेकिन मैं उसकी गवाह तो रही हूं. किसी संवेदनशील इंसान के because लिए किसी बुराई का गवाह बनना भी उसको भोगने जितना ह...
निर्णय

निर्णय

किस्से-कहानियां
लधु कथा डॉ. कुसुम जोशी रात को खाना खात हुऐ जब बेटी because अपरा के लिये आये रिश्ते का जिक्र भास्कर ने किया तो... अपरा बिफर उठी, तल्ख लहजे में बोली “आप को मेरी शादी के लिये लड़का ढूढ़ने की जरुरत नही.” फोन क्यों...? मम्मी पापा so दोनों साथ ही बोल पड़े... “मैंने अपने लिये लड़का पसंद कर लिया है, because आप लोग भी 'सोहम' को शायद अच्छी तरह से जानते है”. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से because भास्कर बेहद चिन्तित हो उठे, कुमाऊंनी उच्चकुलीन ब्राह्मण परिवार के संस्कार, बाहर के समाजों में दहेज, दिखावे से भास्कर बहुत डरते हैं, उनके समाज में आज भी दान दहेज ज्यादा प्रचलित नही. फोन पति पत्नी हैरान, “इतना बड़ा निर्णय” becauseहम बेखबर हैं! बम ही फट पड़ा हो जैसे, पर बेटा मन्द- मन्द मुस्कुरा रहा था, शायद वो बहन का राजदार हो. फोन बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से भास्कर बेहद because चिन्तित...
पहाड़ की बेटी ने कायम की आत्‍मनिर्भरता की मिसाल!

पहाड़ की बेटी ने कायम की आत्‍मनिर्भरता की मिसाल!

इंटरव्‍यू
तय किया नौकरी से लेकर सीइओ तक का सफर  आशिता डोभाल उत्तराखंड देवभूमि हमेशा से ही वीर यौद्धाओं Because और वीरांगनाओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है. सदियों से यह कर्मयोगियों को तपस्थली रही है, जिसका क्रम आज भी जारी है. आज मैं आपका परिचय एक ऐसी शख्सियत से करवा रही हूं, जिनका अपनी जड़ों व संस्कृति से भावनात्मक जुड़ाव लगाव है, जिनके मुंह से सबसे पहला वाक्य ये था कि 'जड़ें बुलाती हैं' जिसने मुझे अन्दर से झकजोर दिया. उत्तराखंड हम उत्तराखंडी संस्कृति सम्पन्न तो हैं ही पर पहाड़ के परिवेश में एक बात कहना चाहूंगी कि पहाड़ों में हर दस किमी पर बोली-भाषा और पानी का स्वाद एकदम बदला हुआ मिलेगा. Because पहाड़ जहां एक ओर पलायन की मार से जूझ रहा है, यहां का युवावर्ग यहां से पलायन कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी है को महानगरों की जीवनशैली में पले बढ़े और अच्छी खासी नौकरी को दर किनार क...