खड्ग सिंह वल्दिया : मन ही मन श्रृद्धांजली
प्रकाश चन्द्र पुनेठा, सिलपाटा, पिथौरागढ़
बचपन में जब मैं कक्षा छः में पढाई कर रहा था, तब उस समय मेरा पढ़ाई में मन नही लगता था. दिन भर गाँव में अपने हमउम्र साथियों की संगत में रहना या कहीं भी अकारण घूमते रहना. कभी गुल्ली-दंडा खेलना तो कभी गाड़-गधेरों में प्राकृतिक रुप से बने छोटे-छोटे तालाबों में डुबकी लगाना, तैरना व छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ना, बस दिन ढलने के पश्चात् शांयकाल घर पहुँचना. फिर घरवालों से डांट पड़ने के साथ-साथ पिटाई भी हो जाती थी. लेकिन मुझको कुछ असर नही पड़ता था. मैं एक पकार से ढीठ हो गया था. तब एक दिन मेरे बुबू ने मुझे अपने पास बहुत प्यार से बुलाया और कहा,
“देख नाती, अब तू बच्चा नही है, भगवान की दया से आँख, कान, नाक व दिमाक सब ठीक-ठाक है तेरे पास. घंटाकरण में रहने वाले देव सिंह वल्दिया जी का लड़का खड्ग सिंह कान से बहरा होने पर भी वैज्ञानिक बन गया है. पूरे इलाके में उसने अपने परिव...