Tag: आजाद हिन्द फौज

खड्ग सिंह वल्दिया : मन ही मन श्रृद्धांजली

खड्ग सिंह वल्दिया : मन ही मन श्रृद्धांजली

स्मृति-शेष
प्रकाश चन्द्र पुनेठा, सिलपाटा, पिथौरागढ़ बचपन में जब मैं कक्षा छः में पढाई कर रहा था, तब उस समय मेरा पढ़ाई में मन नही लगता था. दिन भर गाँव में अपने हमउम्र साथियों की संगत में रहना या कहीं भी अकारण घूमते रहना. कभी गुल्ली-दंडा खेलना तो कभी गाड़-गधेरों में प्राकृतिक रुप से बने छोटे-छोटे तालाबों में डुबकी लगाना, तैरना व छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ना, बस दिन ढलने के पश्चात् शांयकाल घर पहुँचना. फिर घरवालों से डांट पड़ने के साथ-साथ पिटाई भी हो जाती थी. लेकिन मुझको कुछ असर नही पड़ता था. मैं एक पकार से ढीठ हो गया था. तब एक दिन मेरे बुबू ने मुझे अपने पास बहुत प्यार से बुलाया और कहा, “देख नाती, अब तू बच्चा नही है, भगवान की दया से आँख, कान, नाक व दिमाक सब ठीक-ठाक है तेरे पास. घंटाकरण में रहने वाले देव सिंह वल्दिया जी का लड़का खड्ग सिंह कान से बहरा होने पर भी वैज्ञानिक बन गया है. पूरे इलाके में उसने अपने पर...
शारदा, मैं अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता  के लिए त्याग कर रहा हूँ!

शारदा, मैं अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता  के लिए त्याग कर रहा हूँ!

स्मृति-शेष
जेपी मैठाणी देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूलने वाले महान क्रांतिकारी शहीद मेजर दुर्गामल्ल को शत शत नमन. शहीद मेजर दुर्गा मल्ल मूल रूप से देहरादून जिले के डोईवाला के रहने वाले थे. महान क्रांतिकारी दुर्गामल्ल का जन्म एक जुलाई  1913  को गोरखा राइफल के नायब सूबेदार गंगाराम मल्ल के घर हुआ था. माताजी का नाम श्रीमती पार्वती देवी था. बचपन से ही दुर्गा मल्ल अपने साथ के बालकों में सबसे अधिक प्रतिभावान और बहादुर थे. गोरखा मिलिट्री मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, जिसे अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है. देहरादून के विख्यात गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर चन्दन सिंह, बीर खड़क बहादुर सिंह बिष्ट, पंडित ईश्वरानंद गोरखा  और अमर सिंह थापा से प्रेरित होकर दुर्गा मल्ल ने् स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. कवि और समाज सुधारक  मेजर  बहादुर सिंह बराल  और स...
जौनसार के गौरव वीर केसरी चंद की शहादत की याद

जौनसार के गौरव वीर केसरी चंद की शहादत की याद

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
चारु तिवारी वीर केसरी चंद के शहादत दिवस (3 मई) पर विशेष जौनसार. उत्तराखंड के ऐतिहासिक थाती का महत्वपूर्ण क्षेत्र. विशिष्ट सांस्कृतिक वैभव की भूमि. जीवंत और उन्मुक्त जीवन शैली से परिपूर्ण समाज. यहां की लोक-कथाओं और लोक-गाथाओं में बसी है यहां की सौंधी खुशबू. लोक-गीत, नृत्यों और मेले-ठेलों में देख सकते हैं लोक का बिंब. यहीं चकरौता के पास है, रामताल गार्डन (चौलीथात). यहां प्रतिवर्ष 3 मई को एक मेला लगता है- 'वीर केसरी चंद मेला.' अपने एक अमर सपूत को याद करने के लिये. जौनसारी लोकगीत-नृत्य 'हारूल' के माध्यम से इस अमर सेनानी की शहादत का जिक्र होता है. बहुत सम्मान के साथ. गरिमा के साथ- सूपा लाहती पीठी है ताउंखे आई गोई केसरीचंदा जापान की चीठी हे जापान की चीठी आई आपूं बांच केसरी है. जिस अमर शहीद के सम्मान में यह लोकगीत गाया जाता है, उनका नाम है- अमर शहीद केसरी चंद. जौनसार बावर का वह सपूत...
राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

राष्ट्र-गान की धुन के रचयिता कैप्टन राम सिंह

Uncategorized, इतिहास, हिमाचल-प्रदेश, हिमालयी राज्य
चारु तिवारी कुछ गीत हमारी चेतना में बचपन से रहे हैं। बाल-सभाओं से लेकर प्रभात फेरियों में हम उन गीतों को गाते रहे हैं। एक तरह से इन तरानों ने ही हमें देश-दुनिया देखने का नजरिया दिया। जब हम छोटे थे तो एक गीत अपनी प्रार्थना-सभा में गाते थे। बहुत मधुर संगीत और जोश दिलाने वाले इस गीत को हम कदम-ताल मिलाकर गाते थे। गीत था- 'कदम-कदम बढाये जा, खुशी के गीत गाये जा/ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पै मिटाये जा।' उन दिनों अन्तरविद्यालयी प्रतियोगिताएं होती थी, जो क्षेत्रीय से लेकर प्रदेश स्तर तक अलग-अलग चरणों में होती थी। उसमें विशेष रूप से एक प्रतियोगिता थी- 'राष्ट्र-गान गायन प्रतियोगिता।' इसे एक विशेष धुन और नियत समय 52 सेकेंड में पूरा करना होता था। इसमें झंडारोहण, सलामी, राष्ट्र गान की सावधान वाली मुद्रा के सभी मानकों पर भी अंक मिलते थे। इस प्रतियोगिता में हमारी टीम मंडल स्तर तक प्रथम आती थी। तब ...