खड्ग सिंह वल्दिया : मन ही मन श्रृद्धांजली

प्रकाश चन्द्र पुनेठासिलपाटा, पिथौरागढ़

बचपन में जब मैं कक्षा छः में पढाई कर रहा था, तब उस समय मेरा पढ़ाई में मन नही लगता था. दिन भर गाँव में अपने हमउम्र साथियों की संगत में रहना या कहीं भी अकारण घूमते रहना. कभी गुल्ली-दंडा खेलना तो कभी गाड़-गधेरों में प्राकृतिक रुप से बने छोटे-छोटे तालाबों में डुबकी लगाना, तैरना व छोटी-छोटी मछलियों को पकड़ना, बस दिन ढलने के पश्चात् शांयकाल घर पहुँचना. फिर घरवालों से डांट पड़ने के साथ-साथ पिटाई भी हो जाती थी. लेकिन मुझको कुछ असर नही पड़ता था. मैं एक पकार से ढीठ हो गया था. तब एक दिन मेरे बुबू ने मुझे अपने पास बहुत प्यार से बुलाया और कहा,

“देख नाती, अब तू बच्चा नही है, भगवान की दया से आँख, कान, नाक व दिमाक सब ठीक-ठाक है तेरे पास. घंटाकरण में रहने वाले देव सिंह वल्दिया जी का लड़का खड्ग सिंह कान से बहरा होने पर भी वैज्ञानिक बन गया है. पूरे इलाके में उसने अपने परिवार का व अपना नाम ऊँचा का दिया है. उनके घर बधाई देने वालों की लाइन लगी हुई है. वह इसलिए कि उसने पढ़ाई बहुत अधिक मेहनत, ईमानदारी व लगन से की थी. तेरे पास तो आँख, कान सब ठीक-ठाक है. मन लगाकर अच्छी तरह पढ़ाई कर. एक दिन तू भी बड़ा आदमी बनेगा तो तेरे अच्छे काम से हमारे परिवार की ईज्जत बड़ेगी. हम तेरी भलाई के बारे में सोचते रहते है.”

मैंने बुबू की बात को अधिक गंभीरता से नही लिया. हाँ मन के अन्दर खड्ग सिंह वल्दिया नाम के व्यक्ति के बारे में जानने के लिए उत्सुकता बनी. उस समय मैं मात्र बुबू की बात को चुपचाप सुनते रहा. तब लड़कपन की उम्र थी. मेरे अन्दर अंश मात्र गंभीरता नही थी. किसी की अच्छी सलाह को हवा में उड़ा देता था. समयान्तराल मेरी उम्र बड़ते रही. किसी प्रकार बेमन से ऐन-केन-प्रकारेण स्कूली पढ़ाई करते रहा. तब तक डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी नाम व कद बहुत ऊँचा हो गया था. हमारे इलाके में वह नायक की तरह उभर चुके थे. हर कोई उनका नाम बहुत सम्मान के साथ लेता था. हमारे स्कूल में हमारे शिक्षक हमें डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी का उदाहरण देते थे कि, कान कम सुनने के पश्चात् भी पढ़ाई में हमेशा प्रथम रहते थे. अपनी पढ़ाई में प्रथम रहने के कारण ही उन्होंने पी.एच.डी. की डिग्री ली और देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों में उनका नाम शुमार हो गया था.

मैं 12 कक्षा पास कर सेना में भर्ती हो गया था. सेना में रहते हुए मैं जब अवकाश में घर आता था. तो घंटाकरण होते हुए बाजार को जाता था. घंटाकरण पहुँचते ही मुझे डा. डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया याद आते थे. इसलिए कि डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी का पैतृक मकान घंटाकरण में था. मेरे मन में डॉक्टर खड़क सिंह वल्दिया जी के बारे में विस्तार से जानने की ईछ्या जाग्रत हुई. तब मैंने अपने पिताजी से व अन्य वरिष्ठ जनों से डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी के बारे में जानकारी ली. जो जानकारी मिली वह इस प्रकार हैं.

डॉक्टर खड्क सिंह वल्दिया जी का जन्म बर्मा (वर्तमान मयंम्यार) देश के कलौ नामक कस्बे में 20 मार्च सन 1937 को हुआ था. खड्ग सिंह वल्दिया जी के पिता का नाम देव सिंह वल्दिया, माँ का नाम नंदा देवी तथा बुबू का नाम लक्ष्यमण सिंह वल्दिया था. लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी का परिवार सोर (पिथौरागढ़) से बर्मा देश के कलौ कस्बे में जाकर अपना जीवन खुशहाली से कर रहा था. उनका पविार वहाँ जाकर का धन संपन्न परिवार हो गया था. लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी जीवन-यापन के लिए सन् 1911 में अपने परिवार को सोर में छोड़कर बर्मा चले गए थे.

आरंभ में लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी ने अपना छोटा सा व्यवसाय आरंभ किया. व्यवसाय को आगे बड़ाने के लिए ईमानदारी के साथ-साथ रात-दिन परिश्रम किया, परिणाम के फलस्वरुप कलौ में वह एक अच्छे व्यवसायी स्थापित हो गए थे. लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी का धन संपन्न होने के पश्चात् एक दिन अपने परिवार को सोर (पिथौरागढ़) से बर्मा के कलौ कस्बे में ले गए थे. लगभग 36 वर्ष तक लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी बर्मा के कलौ कस्बे में अपने परिवार के साथ रहे.

इन 36 वषों में लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी के दो पोतों खड्ग और गुडी का जन्म भी कलौ में हुआ. वह कलौ में अच्छी धन-संपदा के स्वामी थे, उनका परिवार अच्छी तरह फल-फूल रहा था. जब जापान ने बर्मा में आक्रमण किया तो उनकी धन-संपदा खाक हो गई थी. लेकिन उन्होंने हार नही मानी, वह संघर्षरत रहे. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज के बनते ही वह फिर से धनवान हो गए. जब अंग्रजों ने बर्मा में आक्रमण किया तो उन्होंने जो भी संम्पत्ति एकत्र की हुई थी वह सब खाक हो गई थी. लेकिन वह एक जीवट व्यक्ति थे. हार कर जीतना वह जानते थे. उन्होंने अपनी योग्यता के बलबूते फिर से धन-संपत्ति प्राप्त कर ली थी.

लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी घन-दौलत से अधिक शिक्षा को महत्व देते थे. उनका परिवार बर्मा में अच्छी तरह गुजर-बसर कर रहा था. लेकिन वे अपने देश से दूर रहते हुए भी, अपने देश के रीति-रिवाजों, अपनी संस्कृति तथा शिक्षा को अपने दिल में संजोए हुए थे. लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी अपनी भावी पिढ़ी को अपने देश में शिक्षित कराना चाहते थे. अतः एक दिन लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी अपने धन वैभव को बर्मा के कलौ कस्बे में त्याग के, अपने परिवार सहित सोर (पिथौरागढ़) आ गए.

डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी की शिक्षण यात्रा सोर घाटी के प्रथमिक विद्यालय से आरंभ होकर लखनऊँ विश्वविद्यालय में पी.एच.डी. पूर्ण करने तक चलते रही. वहीं लखनऊँ में वह शिक्षक के रुप में नियुक्त हुए. वहाँ से कुछ समय पश्चात् वाडिया संस्थान में रहे, तत्पश्चात् वहाँ से कुमाउ विश्व विद्यालय में, फिर वहाँ से जवाहर लाल नेहरु सेंटर बंगलौर तक, उनके में उच्च कोटी स्तर का अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक बनने तक का, उनकी जीवन यात्रा चलती रही.

डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को भूविज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में विशेष कार्य करने के लिए हमारे देश के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. यह हमारे लिए एक बहुत गर्व करने वाला पल था. डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी भूगर्भ विज्ञानी व पर्यावरणविद् होने के साथ-साथ एक कवि व गद्यकार भी थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग चैदह पुस्तकों की रचना की.

सेना में 28 वर्ष पूर्ण सेवा करने के पश्चात् मैं सन् 2006 में घर पैंशन आ गया था. सेना से सकुशल पैंशन आने के पश्चात् मैं अपने परिवार के साथ स्थानीय मंदिरों में पूजा-पाठ व दर्शन करने के लिए गया. एक दिन जब मैं बांज, बुराश, देवदार व चीड़ आदी सदाबहार वृक्षों से भरे हुए थलकेदार के मंदिर में दर्शन हेतु जब पहुँचा, तो मेरा हृदय वहाँ की सुन्दरता तथा मंदिर की अद्भुत छटा देख मैं ह्दय से प्रफुल्लित हो गया. मंदिर देख कर लगा कि मंदिर में नवनिर्माण कार्य बहुत सुदर व सलीके से किया हुआ है. यह स्पष्ट था कि थलकेदार पहाड़ की चोटी में मंदिर के नवनिर्माण कार्य के लिए निर्माण सामाग्री का पहुँचाना अति दुरूह व बहुत खर्चिला रहा होगा. मंदिर का नवनिर्माण कार्य कराना किसी परिश्रमी तथा जीवटता से भरे व्यक्ति द्वारा ही संभव था. मुझे बाद में पता चला कि थलकेदार के नवनिर्माण का कार्य डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी निर्देशन में कराया गया था. ज्ञात हुआ कि, डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी समाजिक सरोकारों से भी जुड़े हुए थे.

सन् 2007 में हमारे पिथौरागढ़ का नाम डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी पूरे देश में प्रकाशमान कर दिया. डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को भूविज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में विशेष कार्य करने के लिए हमारे देश के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार दिया गया. यह हमारे लिए एक बहुत गर्व करने वाला पल था. डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी भूगर्भ विज्ञानी व पर्यावरणविद् होने के साथ-साथ एक कवि व गद्यकार भी थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग चैदह पुस्तकों की रचना की. उनमें प्रमुख है, जियोलाजी ऑफ कुमाउ, लैसर हिमालय, डायनामिक हिमालय, नैनिताल एण्ड ईष्ट एनवायरमेंटल जियोलॉजी, जियोलॉजी, एनवायरमेंट एंण्ड सोसाइटी, एक थी सरस्वती नदी और पथरीली पगदंडियों पर आदी.

डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी ने भूगर्भ विज्ञान व पर्यावरण के क्षेत्र में प्रमाण के साथ, अनेक महत्वपूर्ण व ज्ञानवर्धक जानकारियाँ प्राप्त की थी. जिससे संपूर्ण विश्व के विज्ञानिकों को लाभ हुआ. किसी पत्थर को देखते ही डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी उसके भूत, वर्तमान व भविष्य के बारे सटीक जानकारी देते थे. इन सब उपलब्धियों को देखते हुए एक और गर्व करने वाला पल आया जब डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को सरकार ने सन् 2015 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया.

पद्मभूषण पुरस्कार मिलने के पश्चात् डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी जब अपने गृह जनपद पिथौरागढ़ प्रथम बार आए तो जनता ने बहुत अधिक गर्मजोशी तथा प्रफुल्लित हृदय से उनका अभूत पूर्व स्वागत किया. कभी स्वयंसेवी संस्थाओं ने, तो कभी नगर के प्रबुद्ध वर्ग ने, तो कभी ग्राम पंचायतों ने अपने क्षेत्र में आमंत्रित करके तथा कभी नगर के स्कूल-कालेजों ने उनका भरपूर स्वागत किया. वह जहाँ भी जाते फूल मालाओं से लाद दिए जाते थे. एक दिन उनका नगर के जिला पंचायत घर में नागरिक अभिनंदन समारोह था. उस अवसर पर मैं भी उनको देखने व सुनने के लिए वहाँ गया.

उस दिन जिला पंचायत सभागार में हर वर्ग के लोग, आम से खास तक उपस्थित थे. प्रत्येक व्यक्ति उनको देखना चाहता था, उनको सुनना चाहता था. जिला पंचायत सभागार पूर्ण रुप से भरा हुआ था. मैं अपने साथ अपनी प्रथम कृति, कुमाउनी काव्य संग्रह “बाखली” डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को भेंट करने के लिए ले गया हुआ था. सभागार में नगर के गणमान्य जन क्रमवार डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को सम्मानित करने के साथ उनकी प्रशंशा में अपने उद्गार व्यक्त कर रहे थे. मैं समझ नही पा रहा था कि इतनी भीड़ के मध्य में किस प्रकार अपनी कृति “बाखली” को कैसे भेंट करु?. लगभग दो घंटे से अधिक समय तक डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी का अभिनंदन समारोह चलता रहा.

डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी का पिथौरागढ़ के साथ बहुत अधिक आत्मीय लगाव था. वह समय-समय पर देश-विदेश में भूविज्ञान व पर्यावरण संबंधित सम्मेलनों में जाते रहते थे. परन्तु अपने पिथौरागढ़ को वह भूलते नही थे. प्रत्येक वर्ष वह पिथौरागढ़ आते रहते थे.

अभिनंदन समारोह समाप्त होने के पश्चात् जैसे ही सब लोग बाहर जाने के लिए खड़े हुए, मैं तुरंत सभागार के मुख्य गेट के समीप पहुँच गया. जैसे ही डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी गेट के पास पहुँचे मैंने उनको अपनी कृति “बाखली” उनके समक्ष भेंट करने के लिए प्रस्तुत की. डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी के साथ उनकी धर्मपत्नी भी साथ थी, दोनो ने मेरी ओर प्रसन्नता से देखा फिर मेरी कृति “बाखली” को देखा, फिर मुस्कराते हुए “बाखली” स्वीकार की, मेरे पीठ में हल्की थपकी देते हुए ‘शाबास’ कहा. डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी से शाबासी पाकर मैं अपने आप को धन्य समझने लगा. यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा पुरस्कार था.

डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी का पिथौरागढ़ के साथ बहुत अधिक आत्मीय लगाव था. वह समय-समय पर देश-विदेश में भूविज्ञान व पर्यावरण संबंधित सम्मेलनों में जाते रहते थे. परन्तु अपने पिथौरागढ़ को वह भूलते नही थे. प्रत्येक वर्ष वह पिथौरागढ़ आते रहते थे. वह अक्सर गर्मियों के मौसम में आते थे और जो भी उनसे मिलने की चाह रखता था. वह बहुत प्रेम के साथ उससे मिलते थे. वह अक्सर घंटाकरण वाली रोड में बहुत सादगी के साथ, एक आम नागरिक की भांति, अपनी पत्नी के साथ टहलते हुए दिख जाते थे.

इस मध्य मुझे डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी की स्वयं की जीवनी पर आधारित पुस्तक “पथरीली पगडंडियों पर” पढ़ने का अवसर मिला. एक जगह उन्होंने अपने बचपन के बारे में लिखा है, जब वह बर्मा के कलौ कस्बे में, अपने परिवार के साथ अपने बचपन का जीवन आनंद के साथ व्यतीत कर रहे थे. तभी अचानक उनके बुबू लक्ष्यमण सिंह वल्दिया जी ने कहा कि अब उनके परिवार को अपने मुलुक (सोर) लौट जाना चाहिए. पूरा परिवार आश्चर्य में पड़ गया कि अचानक बुबू ऐसा क्यो कह रहे है. तब उनके बुबू ने कहा,

“सालों पहले जब मैं यहां आया था, मेरी जेब में एक पैसा भी नही था. कुछ ही वर्षों में धनवान हो गया. जापानी हमला हुआ, तो सब कुछ चला गया था. नेताजी की आजाद हिन्द सरकार बनी, फिर समृद्ध हो गए हम लोग. अंग्रजों का आक्रमण हुआ, जो कुछ जोड़ा था, सब स्वाहा हो गया. इस समय फिर धनी हो गया हूँ. लेकिन कौन जाने कब सिफर बन जाऊँ मैं. धन आता है, चला जाता है, कभी टिकता नहीं. टिकता है केवल ज्ञान. मैं ज्ञान नही कमा सका. न अपने बेटे को दिलवा पाया. इसलिए चाहता हू कि मेरे पोते ज्ञान हासिल करें. ज्ञान के लिए उनकी पढ़ाई होनी चाहिए; अच्छी पढ़ाई होनी चाहिए. यहाँ अच्छी तरह पढ़ाई नही हो सकती. इसलिए उन्हें स्वदेश जाकर पढ़ाना है मुझे. इन्हैं ज्ञान प्राप्त कराना ही है. ज्ञान पा लेगें तो बुद्धिमान बनगें.”

कहा जा सकता है कि डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को महान वैज्ञानिक बनाने की आधारशीला का पत्थर रखने म, उनके बुबू का विशेष योगदान था. उनके बुबू ने बर्मा के कलौ में अपनी धन-दौलत त्याग कर, अपने नातियों की शिक्षा पर अधिक महत्व दिया. परिणाम यह रहा कि बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी, भूगर्भ विज्ञान तथा पर्यावरण के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक बने.

सन् 2020 की बात है, उस समय कोविड महामारी का प्रकोप पूरे विश्व में भंयंकर रुप से फैला हुआ था. हमारे देश में भी कोविड महामारी के कारण हाहाकार मचा हुआ था. मेरे तीनों पुत्र घर से दूर नौकरी में नौयडा, पूना व बंगलौर में अपने-अपने परिवारों के साथ थे. हम दो पति-पत्नी घर में रहते थे. बच्चों के दूर रहने के कारण हम दोनों पति-पत्नी हर समय चिन्ताग्रस्त रहते थे. हम बच्चों को कोविड बिमारी से बचने का कोई न कोई उपाय बताते रहते थे.

कोविड महामारी के कारण हम स्वयं कही बाहर नहीं जा पा रहे थे. दो कमरों के किराए के घर में एक प्रकार से कैद जैसे थे. मैं हताश था, बेबस था, कुछ कर नही पा रहा था. बंगलौर जैसे महानगर मैं किससे कहूँ कि ‘मैं डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी के अंतिम संस्कार में जाना चाहता हूँ’. अपने कमरे में आँखें बंद कर मैंने महान भूगर्भविज्ञानी तथा पर्यावरणविद् पद्मश्री, पद्मभूषण, डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को मन ही मन श्रृद्धांजली अर्पित की.

कोविड महामारी के समय मेरा सबसे छोटा पुत्र दिपेन्द्र मोहन पुनेठा अपनी पत्नी के साथ बंगलौर में था. एक दिन दिपेन्द्र का बंगलौर से फोन आया, “पापा मम्मी आप दोनों को बंगलौर आना है.” पहले मैं घबराया कि क्या हुआ लेकिन शीघ्र ही उसने खुश करने वाला समाचार दियां उसने कहा, “पापा, आप और मम्मी दादा-दादी बनने वाले हो, अतः आप शीघ्र ही यहाँ आ जाओ.” हम खुश होकर बंगलौर जाने के तैयारी करने लगे, ताकी बहू और दिपेन्द्र को कुछ सहारा मिल सके. कोविड महामारी के कारण थल व वायु यातायात व्यवस्था सुचारु रुप से नही चल पा रही थी. आपातकाल की यातायात सेवाओं के माध्यम से ,बड़ी कठीनाई के साथ, तमाम औपचारिकताओं को पूर्ण कर, हम दानों बंगलौर पहुँच पाए. बंगलौर के ह्वाईट फिल्ड में हमारा पुत्र दिपेन्द्र का परिवार किराए के मकान में रह रहा था. बंगलौर पहुँचकर भी मैं इंटरनेट में अपने शहर पिथौरागढ़ के समाचार पढ़ते रहता था. 30 सितंबर 2020 के दिन एक समाचार से मुझे बहुत सदमा पहुँचा! उस समाचार को सुनकर में हतप्रद रह गया और बैचैन हो गया था. वह समाचार था- “पद्श्री, पद्मभूषण डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया का बंगलौर में निधन.”

अपने प्रिय विद्वान, उच्चकोटी के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक व पर्यावरणविद् का इस प्रकार उनके देहांत का समाचार सुनकर में दुःख से भर गया. यह बड़ी अचरज वाली बात थी कि मैं अपने घर पिथौरागढ़ से इतनी दूर बंगलौर आया हुआ हूँ और यहाँ बंगलौर में अपने प्रिय नायक की मृत्यु का समाचार सुन रहा हूँ! मैंने अपने परिचितों से पिथौरागढ़ में संपर्क किया कि मुझे डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी के पिथौरागढ़ में रहने वाले परिजनों में से किसी का भी फोन नंबर लेकर मेरी बात करा दिजिए. मेरा मन तड़प रहा था कि मैं खुद बंगलौर में हूँ और इस बंगलौर में ही डॉक्टर खड्गा सिंह वल्दिया जी थे और अब उनके स्वर्गवाश होने का समाचार मुझे यहाँ बंगलौर में मिल रहा है! कैसे मैं उनके अंतिम दर्शन कर पाऊँगा?.

पिथौरागढ़ में लगातार संपर्क करते हुए मुझे अपने एक परिचित द्वारा डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया के कनिष्ठ भाई जितेन्द्र वल्दिया जी का नंबर उपलब्ध करा दिया. जितेन्द्र वल्दिया जी से मैंने तुरंत संपर्क किया, जितेन्द्र वल्दिया जी से संपर्क होने के पश्चात् मुझे ज्ञात हुआ कि डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी बंगलौर के जवाहर लाल नेहरु सैन्टर के आवासीय परिसर में निवास करते थे. जितेन्द्र वल्दिया जी स्वयं कोविड महामारी के कारण अपने बड़े भाई के अंतिम संस्कार में बंगलौर नही जा पाए. कोविड महामारी के कारण सरकार के निर्देशानुसार डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी के अंतिम संस्कार में मात्र 50 की संख्या से अधिक व्यक्तियों का जाना मना था.

कोविड महामारी के कारण हम स्वयं कही बाहर नहीं जा पा रहे थे. दो कमरों के किराए के घर में एक प्रकार से कैद जैसे थे. मैं हताश था, बेबस था, कुछ कर नही पा रहा था. बंगलौर जैसे महानगर मैं किससे कहूँ कि ‘मैं डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी के अंतिम संस्कार में जाना चाहता हूँ’. अपने कमरे में आँखें बंद कर मैंने महान भूगर्भविज्ञानी तथा पर्यावरणविद् पद्मश्री, पद्मभूषण, डॉक्टर खड्ग सिंह वल्दिया जी को मन ही मन श्रृद्धांजली अर्पित की.

(लेखक सेना के सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हैं. एक कुमाउनी काव्य संग्रह बाखली व हिंदी कहानी संग्रह गलोबंध, सैनिक जीवन पर आधारित
‘सिलपाटा से सियाचिन तक’ प्रकाशित. कई राष्ट्रीय पत्र—पत्रिकाओं में कहानियां एवं लेख प्रकाशित.)

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