लोक कहानी: कर भला तो, हो भला

फकीरा सिंह चौहान ‘स्नेही’

बहुत पुरानी बात है पहाड़ के उस पार एक छोटे से गांव में एक जग्गू नाम का जवान लड़का अपने मां के साथ रहता था. वह अपनी मां का अंधेरे घर का उजाला था. वह बड़ी ईमानदारी लगन और मेहनत से जिजीविषा के लिए अपने खेतों में काम करता था, तथा खेतों के पास ही उसका एक सुंदर बगीचा भी था जिसमें वह हर प्रकार  के पेड़ पौधे तथा फल फूल उगाया करता था. “उसके नींबू के बगीचे में बिजोरा के फूल खूब उगा करते थे, जिसे वह हर रोज अपनी धम्मा से पीड़ित बूढ़ी मां को अर्पित करता था. “एक बार उसकी बूढ़ी मां जग्गू को खाना परोसते हुए बोली, “बेटा मुझे अब इन सुरभित फूलों की आवश्यकता नहीं है, अपितु सहायता के लिए घर में बहू के अवलंब की जरूरत है.

“तुम अब जवान हो गए हो”

अपने लिए कोई खूबसूरत सी नेक लड़की देख लो, “मैं तुम्हारा विवाह करा देती हूं.

“मां की बात सुनकर के बेटा मुस्कुराते हुआ बोला,  “मां मुझे आप से खूबसूरत कोई भी इस संसार मे लगती ही नहीं है. जब भी मुझे कोई खूबसूरत गुणों वाली लड़की नजर आएगी “मैं विवाह कर लूंगा.

“मां व्यंगात्मक लहजे में बोली,  बेटा” आस-पास के गांव में कोई सहज सी लड़की देख लो,

जग्गु की बुढ़ी मां

“कौन सी तुझे राजकुमारी बिजोंरा को ब्याह कर लानी है.

“बेटे ने जिज्ञासा वशं पूछा”?

“मां” ये बिजोरा कौन है?

क्या मैं इससे विवाह नहीं कर सकता हूं.

“बेटे की उत्सुकता को देखते हुए मां बोली”

“वह राजा की बेटी है.

“वह बहुत खूबसूरत है”. उसको ब्याह कर लाना सबके बस की बात नहीं है.

“बेटा दृढ़ता से मां का हाथ पकड़ कर बोला”

“मां मैं कल ही पहाड़ के उस पार जा कर राजा की बेटी बिजोरा को ब्याह कर लाऊंगा.

“मां ने बेटे को बहुत समझाने की कोशिश की मगर बेटे के जिद के आगे मां की एक ना चली.

आखिरकार “मां को राजभवन मे बेटे को जाने की अनुमति देनी पड़ी.

जब बेटा राजभवन में जाने के लिए प्रस्थान कर रहा था तो मां ने बेटे के गठरी में खाने-पीने की सामग्री बांध दी तथा यह आशीर्वाद देते हुए विदा किया कि भलाई से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है.

“कर भला, तो हो भला”

तुम जितना भलाई का काम करते हुए जाओगे भगवान तुम्हारे नेक काम का उतना ही फल देगा.

“मां का आशीर्वाद लेते हुए जग्गू ने मां की बातों को भी अपने आंचल में बांध कर, घर से निकल पड़ा. अनेक घने जंगलों और पहाड़ों को पार करता हुआ वह अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगा. अपने मन में बिजोंरा के ख्वाब और सपने सजाते हुए जग्गू को न सूरज के तपन का एहसास हो रहा था ना बरसाती तूफानों से भयभीत था. वह तो निरंतर अपने मंजिल की ओर अग्रसर हो रहा था.

थक हार कर जग्गू एक पेड़ के नीचे रात्रि विश्राम के लिए बैठ गया. “थोड़ी ही देर में वह गहरी नींद में सो गया. अचानक निस्तब्ध काली रात में उसके कानो में कुछ चूं चूं की आवाज सुनाई पड़ी. उसने उनींदी आंखों से उठकर देखा तो एक सांप कुछ चूहो के बच्चों को घेर कर बैठा था. आज सांप के लिए भर पेट भोजन की व्यवस्था हो चुकी थी. अब जग्गू के सामने किसी की जान बचाना तथा किसी की भूख मिटाना दोनों सवाल खड़े थे.

 “जग्गू ने सांप से विनम्र भाव से कहा,  “नागराज ! आप मुझे ढंस कर अपनी भूख मिटा सकते हैं”  परंतु इन नादान बच्चों को छोड़ दीजिए.  “नागराज ने कहा” आपको ढंस कर मेरी भूख नहीं मिट सकती है, “परंतु आपकी विनम्रता को देखकर आज मैं इन चूंहो के बच्चों को छोड़ देता हूं. “सांप सर से अपने रास्ते की ओर रेंगता हुआ चला गया. अपने बच्चों को सुरक्षित पा कर चूहों  का मन बहुत उच्छवसित होने लगा. चूहों ने जग्गू से कहा” आपने हमारे बच्चों की जान बचा कर उन्हे नया जीवनदान दिया है. “अगर आपके ऊपर भी कभी घोर संकट आए तो हमें जरूर स्मरण कर लीजिएगा.

भोर होते ही जग्गू अपनी गठरी कंधे के ऊपर डाल कर अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ने लगा.  कुछ मील दूर चल करके एकदम आसमान में गड़गड़ाहट होने लगी. बिजली चमकने लगी तथा भयंकर वर्षा होने लगी. वर्षा होने के कारण  पूरी धरती जलमग्न हो गई, नाले खाले नदियां उफान पर बहने लगी. बाढ़ आने के कारण नदी अपने साथ कंकड़ पत्थर जीव जंतु बाह कर ले जाने लगी. अचानक जग्गू की नजर पानी में बहती हुई उन छोटी लकड़ियों पर पड़ी जिसमें हजारों चीटियां के झुंड चिपक कर पानी में बह रहे थे. जग्गू चीटियों वाली एक-एक लकड़ी को पानी से उठाकर सुखे स्थान पर रखने लगा. धीरे-धीरे उसने सारी चींटियों को सुरक्षित स्थान पर रख दिया. चीटियों की जान बचाकर उसके मन में बड़ी संतुष्टि हुई. जग्गू के इस नेक कार्य को देखकर चीटियां प्रसन्नतापूर्वक जग्गू से कहने लगी. “राहगीर! यदि आपके जीवन में भी कभी संकट आएं” तो हमें भी अवश्य स्मरण करें .

“आपकी यात्रा सफल हो.”

जग्गू धीरे-धीरे अपनी डगर पर आगे बढ़ने लगा. राजकुमारी बिजोंरा के विषय में उसने लोगों से कई प्रशंसनीय और सुंदरता के कसीदे सुने थे. मगर इस डगर पर चलना इतना आसान भी नहीं था. आसमान पूरी तरह से साफ हो चुका था. दिन के दूसरे पहर पर सूरज की तिक्ष्ण तपीश सीधी उसके सिर पर पड़ रही थी. उसके शरीर से पसीने की धाराएं बह रही थी. सामने उतुंग नंगे सुखे पहाड़ जिसमें दरख़्त की हरितिमा दूर तक नजर नहीं आ रही थी‌. अचानक जग्गू की नजर दो विशालकाय जानवरों पर पड़ी जिनके हुंकार और दाहड़ो से पूरा पहाड़गूंज रहा था.

रीछ और बाघ दोनों इस जंग में लहूलुहान हो चुके थे. शिकार पर अपना अपना हक जताने के लिए ना जाने वह कब से लड़ रहे थे. मगर कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था. जग्गू ने नजदीक जाकर जोर से आवाज लगाई, ठहरो! ठहरो! “कुछ क्षण के लिए रुक जाओ” आप दोनों के शरीर से खून बह रहा है. इन जख्मों पर थोड़ी दवा लगा लो. रीछ और बाघ दोनों ने अपने पंजों को थोड़ा ढीला किया. आप दोनों जिस शिकार के लिए लड़ रहे हो, वह शिकार जंगली कुत्ते खा गए हैं.  तुम दोनों के हिस्से में लड़ाई के सिवा कुछ नहीं है. थोड़ा बुद्धि विवेक और समझदारी से काम करो. मिलजुल कर अगर इस जंगल में रहोगे तो तुम दोनों का भला होगा. जग्गू की बात सुनकर उन दोनों को अपने क्रोध पर पश्चाताप होने लगा. कुछ ही क्षणों में उन दोनों मे एकता हो गई. तथा कभी ना लड़ने का प्रण भी ले लिया‌.

 “रीछ और बाघ बोले” जग्गू” “तुमने हमें इस युद्ध से बचा लिया है”. तुम्हारे राहों में कोई भी अड़चन आए, तो हम दोनों को जरूर याद कर लेना .

सूखी पहाड़ियों को पार करता हुआ जग्गू तराई क्षेत्र में आ गया जहां पर राजा का किला बना हुआ था. वह राज दरबार  के गेट पर पहुंच गया. उसने राज भवन में प्रवेश करने का प्रयास किया, मगर राजा के सिपाहियों ने उसको वहीं पर रोक लिया. तथा उसकी पूछताछ करने लगे.

“तुम्हारा क्या नाम है?”

कहां से आए हो?

“मेरा नाम जग्गू है” मैं पहाड़ के उस पार से यहां पर राजा की बेटी बिजोंरा को ब्याहने आया हूं.

“सिपाहियों ने उसे बंधक बना लिया.” तथा सवेरे राजा के दरबार में पेश किया गया.

“महाराज की जय हो.”

जग्गु ओर बिजोंरा. सभी सांकेतिक फोटो लेखक द्वारा

“महाराज! यह व्यक्ति पहाड़ के उस पार से यहां पर आपसे मिलने आया है.

“राजा अचंभित होकर सिपाहियों से बोला”

तो फिर इसको बंधक क्यों बनाया गया है?

महाराज ! ये आपकी बेटी बीजोंरा से व्याह करना चाहता है.

“सिपाही ने उत्तर दिया.”

“राजा आग बबूला हो गया”

सिपाही की तरफ उंगली उठाते हुए बोला”

खामोश!

“ऐसा सोचने की इस घोंघे बसंत की हिम्मत कैसे हुई.”

“जग्गू हाथ जोड़कर” राजा के सामने खड़ा हो गया.

महाराज!  “मै गुस्ताखी के लिए क्षमा चाहता हूं” मगर यह सत्य है कि “मैं आपकी बेटी को ब्याहने आया हूं‌.

“राजा की आंखें क्रोध से लाल हो गई”

“जग्गू बोला” “मैं आपकी” तथा आपकी बेटी की हर शर्त मानने को तैयार हूं.

“राजा अपने क्रोध के घूंट पीता हुआ बोला”

“तुम कौन से आलौकिक दुनिया से आए हो” और क्या करते हो?

“जग्गू ने अपनी दरिद्रता की सारी व्यथा राजा को सुना डाली‌.

“मंत्री ने राजा से कहा”.

महाराज ! आपको इसकी परीक्षा ले लेनी चाहिए. यह आपके एक शर्त पर भी खरा नहीं उतर पाएगा. निश्चित रूप से अंत में इसको जेल ही जाना होगा.

राजा कुछ विचार करने लगा ‌.

“ठीक है, पहले इसको हमारी शर्तें पूरी करनी होगी.

मेरी पहली शर्त है, यह एक दिन में पांच खेतों में बिना किसी मानव के सहायता के रामदाने के बीज को बो  कर वापस राज दरबार में आएगा.

“मंत्री ने राम दाने के बीज की गठरी जग्गू को पकड़ा दी, तथा जग्गू को खेत के लिए रवाना किया. जग्गू तत्परता से खेत की खुदाई करने लगा. तीसरे पहर तक जग्गू एक खेत की खुदाई पूरी नहीं  कर पाया. सांझ ढलने वाली थी जग्गू लथपथ हो गया था. उसका विश्वास धीरे-धीरे टूट रहा था. उसे कोई जल्दी से उपाय भी नहीं सूझ रहा था. अचानक उसके मन में चूहों के बच्चन का स्मरण आया. देखते ही देखते हजारों चूहें वहां पर पैदा हो गए.

“बोलो जग्गू” हमको किस लिए स्मरण किया है, हम तुम्हारी क्या सहायता कर सकते हैं. “

“मुझे इन पांच खेतों की खुदाई करनी है. चिंता मत करो सांझ ढलने से पहले हम इसको निपटा देंगे. आप केवल रामदाना के बीज को बोते रहीए.  आधे घंटे के अंदर चूहों ने सारे खेतों को खोद डाला. जग्गू ने सांझ ढलने से पहले सारे खेतों में रामदाना का बीज को बो दिया.

शाम को राज दरबार में आकर जग्गू ने राजा को अपने काम समाप्ति की सूचना दी.

 “राजा को बड़ा अचंभा हुआ” उन्होंने सिपाहियों को तुरंत आज्ञा दी, “जाओ खेतों की बुवाई देखकर आओ. सिपाहियों ने पांचों खेतों का निरीक्षण किया तथा वापस आकर राजा को जग्गू के काम का पूरा ब्यौरा दिया.

“राजा इस बात से विस्मित था. रात भर गंभीर सोच में डूबा रहा.”

ऐसे कैसे हो सकता है! एक अकेला आदमी यह कैसे कर सकता है.

दूसरे दिन राजा ने जग्गू के सामने दूसरी शर्त रखी.

“जाओ !  “तुमने जितना रामदाना बोया है” उसका एक-एक दाना खेतों से बीन कर वापस लाओ.

“जग्गू की सांसे अंदर की अंदर रह गई”

“वह सर झुकाता हुआ खेतो की ओर जाने लगा. उसने घर घाट एक कर दिया मगर सांझ ढलने तक एक मुट्ठी भर दाना भी एकत्र नहीं कर पाया. क्योंकि सारे दाने मिट्टी में पैवस्त हो गए थे . “इस संकट से बाहर आने के लिए वह तरकीब सोचने लगा. अचानक उसे उन चींटियों की याद आई जिसको उसने पानी से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर रखा था. वह सच्चे मन से उनको स्मरण करने लगा. एकदम हजारों चीटियां उसके पास एकत्र हो गई.

“बोलो जग्गू” हम आपकी क्या सहायता कर सकती हैं?”

“जग्गू ने राजा की शर्त को उनके सामने यथावत रखी. “चिंता मत करो जग्गू” बस तुम देखते रहो.

आधे घंटे के अंदर चीटियों ने पांचों खेतों में से एक एक दाना उठा कर जग्गू के सामने ढेर लगा दी‌. जग्गू बहुत खुश हुआ. तथा रामदाने को गठरी में बांधकर खुशी खुशी राजा के पास आ गया.

रीछ और बाघ

“महाराज! आपके हुक्म का पालन हो गया है.

“राजा चौंक कर अपने सिंहासन से खड़ा हो गया.”

“राजा ने सिपाहियों को त्वरित हुकुम दिया” “जाओ! खेतो का निरीक्षण करके आओ.

“सिपाहीयों ने राजा के हुकुम की तामील करते हुए खेतों का निरीक्षण किया.

“हां महाराज!  खेतों से रामदाने के बीज को बीन लिया गया है.

“राजा को लग रहा था कि सिपाहियों को कोई मृग मरीचिका हो गया है.

“राजा के मन की बेचैनी बढ़ने लगी”. आंखों से नींद गायब हो गई. राजा रात भर जग्गु के विषय में सोचता रहा. आखिर यह कैसा करिश्मा है.

अब राजा ने” अपनी तीसरी शर्त जग्गू के सामने रखी‌.

जाओ राजभवन में जितने भी घोड़ों  के अस्तबल है‌. उन सब की लीद साफ करके आओ.

“जो आज्ञा हो महाराज! “सिपाहियों ने जग्गू को घोड़ो के अस्तबल के पास छोड़ दिया.

तकरीबन 40 कमरे घोड़ों के लीद से भरे पड़े थे. जग्गू हिम्मत बनाकर अपने काम में जुट गया‌. सूरज पश्चिम की ओर ढलने लगा मगर जग्गू 5 कमरों की लीद भी साफ नहीं कर पाया. शाम ढलने को आ गई, जग्गू बुरी तरह से थक हार गया. वह अपराजित नहीं होना चाह रहा था मगर उसके मन में कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. अचानक उसके मन में रिछ और बाघ का ख्याल आया. जिनको उसने शांति का पाठ पढ़ाया था. वह उनका स्मरण करने लगा. तकरीबन 50 रिछ ओर बाघ वहां पर एकत्र हो गए.

“बोलो जग्गू क्या हुकुम है! हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं?

जग्गू ने राजा के द्वारा दी गई शर्त को उनके सामने ब्यान किया.

“चिंता मत करो जग्गू” यह हमारे बाएं हाथ का खेल है.

बाघ और रीछो ने अपने नुकीले पंजों से सारे अश्वों  के लीद को 1 घंटे के अंदर अच्छी तरह से साफ कर दिया.

जग्गू राजा की शर्त को पूरी करके राज दरबार में पहुंचा.

महाराज ! मैंने आपकी सारी शर्तों को पूरा कर दिया है.

असंभव! अपराजिता मनोवृति की भावना से “राजा के माथे से पसीना निकलने लगा”

“राजा बोला” महामंत्री जी! मेरे साथ चलिए! “मैं स्वयं निरीक्षण करके आता हूं .

“जो हुक्म हो महाराज!

राजा पूरे मंत्रिमंडल के साथ घोड़ों के लीद को चेक करने के लिए अस्तबलो के पास पहुंचा.

वहां पर देख करके राजा विस्मित रह गया. प्रत्येक कमरे को बेहतरीन तरीके से साफ किया गया था.

“अब राजा के पास कहने के लिए कोई शर्त नहीं थी. क्योंकि जग्गू सारी शर्तें जीत चुका था. लेकिन फिर भी एक प्रश्न राजा को बार-बार खाए जा रहा था कि यह सारे कार्य कोई साधारण मानव नहीं कर सकता है. इसके पीछे यत्किंचित ईश्वर का हाथ है.

दूसरे दिन राजा ने जग्गू को अपने खुले दरबार में बुलाया. जहां पर राजा की  बेटी बिंजोरा फूलों का सुललित हार लेकर खड़ी थी.

राजा ने कहा” जग्गु तुम अपनी सारी शर्ते जीत चुके हो.

 “मैं तुम्हारे इस कार्य से अभिभूत हुआ हूं.” तुम्हारा कार्य बहुत ही श्र्लाघ्य है. परंतु मेरे एक प्रश्न का उत्तर देते जाओ. क्या यह सारे कार्य तुमने खुद ही किए हैं.

“जग्गू ने उत्तर दिया”

“नहीं महाराज”

इस कार्य में मेरे सहायक रीछ बाघ चूहे चीटियां आदि का सहयोग भी है. जिनकी कृपा से मेरा मनोरथ कृतार्थ हुआ है. उन्हीं के वजह से मैं आज यह शर्त जीता हूं. मैं जानता हूं कि इसमें किसी इंसान की सहायता लेना वर्जित है‌.

घर से चलते समय मेरी मां ने मुझे कहा था  “कर भला तो हो भला”

अगर तुम अपने जीवन में भलाई का कार्य करते हुए जाओगे तो ईश्वर किसी ना किसी रूप में तुम्हारी सहायता भी अवश्य करेगा. मैंने उसी का पालन किया है. मुझे रास्ते में जो भी प्राणी संकटग्रस्त लगा मैंने उनकी सहायता करने की कोशिश की. जिसके प्रताप से यह जीव जन्तु आज मेरे सहायक बने. जग्गू ने सारी बातें विस्तार पूर्वक सभा में राजा को बताई.

राजा बहुत प्रसन्न हुआ” बिजोरा के मन में खुशी के फूल खिलने लगे. वह जग्गू के ईमानदारी परोपकारी तथा भोलेपन पर बेहद सुमुत्सुक तथा फिदा हो रही थी. जग्गू भी बिजोंरा के सुंदरता को निर्निमेष नैत्रो से देखकर मंत्रमुग्ध था. उसके मन में जो स्पृहा थी आज वह पूर्ण हो रही थी. बिंजोरा ने खुशी-खुशी वर की माला जग्गू के गले में डाल दी. “राजा ने”जग्गू को अपनी बांहों में अंकोर करते हुए ना केवल बिंजोंरा का हाथ जग्गू हाथ में दिया, अपितु अपार धन दौलत हाथी घोड़े देकर अपने बेटी को विदा किया. जग्गू जब बिजोंरा को ले कर अपने घर पहुंचा तो मां के खुशी से प्रेमाश्रु टपकने लगे .

” किसी ने सत्य ही का कहा है”

 तुम केवल अपने नेक कर्म पर ही अंतर्मनस्क करो‌.  फल ईश्वर के हाथ में छोड़ दो. कर्म अच्छा करोगे तो फल भी अच्छा पाओगे. “कर भला तो हो भला”.

(लेखक वर्तमान में आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल स्टोर डिपो लखनऊ मे कार्यरत है. देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मेंआपके लेख कविताएं
समय-समय पर छपते रहते है . आप एक आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के कलाकार भी है.)

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