संस्मरण

गिरगिट की तरह रंग बदलने पर मज़बूर हो रही थी मैं!

गिरगिट की तरह रंग बदलने पर मज़बूर हो रही थी मैं!

संस्मरण
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा – अंतिम किस्‍त सुनीता भट्ट पैन्यूली वक़्त की हवा ही कुछ इस तरह से बह रही है because कि किसी अपरिचित पर हम तब तक विश्वास नहीं करते जब तक कि हम आश्वस्त नहीं हो जायें कि फलां व्यक्ति को हमसे बदले में कुछ नहीं चाहिए वह नि:स्वार्थ हमारी मदद कर रहा है. सत्य अमूमन ऐसा होता नहीं है कि किसी प्रोफेसर because के घर जाने की नौबत आये, कालेज के सभी कार्य और प्रयोजन कालेज में ही संपन्न कराये जाते हैं. छात्र और छात्राओं को प्रोफेसर के घर से क्या लेना-देना? ख़ैर अत्यंत असमंजस में थी मैं असाइनमेंट जमा करवाने को लेकर. यदि दीदी साथ न होती तो मेरी इतनी हिम्मत because नहीं थी कि सब कुछ ताक पर रखकर अकेले ही चली जाती प्रोफेसर के पास असाइनमेंट जमा करवाने. सत्य किंतु यहां पर इस परिदृश्य में मेरी because स्थिती अलहदा है स्वयं को मैंने जज़्ब किया है कि मुझे फाईनल परीक्षा ...
स्मृतियों के उस पार…

स्मृतियों के उस पार…

संस्मरण
सुनीता भट्ट पैन्यूली कोई अदृश्य शक्ति किसी because हादसे के उपरांत स्वयं को संबल देने या मज़बूत बनाने की प्रक्रिया के अंतर्गत भावनाओं का उत्स है, यह किसी अदृश्य, दैवीय शक्ति को नकारने वालों का मत हो सकता है किंतु अपने संदर्भ में कहूं तो मेरा हृदय सहर्ष स्वीकार करता है कि मैंने जिंदगी में किसी अदृश्य शक्ति को  अपने जीवन में बार-बार महसूस किया है. ब्रह्मांड ईश्वर और अदृश्य शक्ति एक हैं नहीं जानती ह़ूं but किंतु ब्रह्मांड तक किसी दुखी दिल की आवाज़ पहुंचती है यह बहुत अच्छे से जानती हूं मैं बशर्ते आवाज़ किसी दूसरे दिल की अतल  से नि:स्वार्थ  निकल रही हो. बात उन दिनों की है जब पिता को गये साल भर हो चला था वक़्त अपनी रफ़्तार से बढ़ रहा था,मेरी ज़िन्दगी की गाड़ी भी कभी पीछे मुड़ती कभी आगे देखती अपनी दिशा में गतिमान हो रही थी.so हुआ यूं कि पहले वायरल  और फिर डेंगू के चपेट में आ जाने से घर ही घ...
“मैं तुम्हें इतना प्यार करती हूं और तुम लोगों ने मुझे वोट नहीं दिया”

“मैं तुम्हें इतना प्यार करती हूं और तुम लोगों ने मुझे वोट नहीं दिया”

संस्मरण
स्व. कला बिष्ट की एथेंस (यूनान) यात्रा का रोचक वृत्तांत, अंतिम भाग स्व. कला बिष्ट  11 अक्टूबर,1992 आज क्रूज का दिन है. because क्रूज अर्थात समुद्र यात्रा. हमारे दल में श्रीमती कमला चन्द नासिक से आई हैं. कुछ वर्ष पूर्व में समाजसेवा भ्रमण में सीढ़ियां से गिर पड़ी थी. रीढ़ की हड्डी में चोट आई, जिसके कारण वह पैरों से लंगड़ाती चलती हैं. पैंरों में केवल मोजे पहनती हैं. श्रीमती डॉ. आशा वालेलकर के भरोसे आई हैं. आशा बहुत अच्छी हैं. पूरी-पूरी मदद कमला जी की कर रही हैं.8 बजे जहाज भूमध्य सागर की यात्रा पर रवाना होता है. but तीन द्वीपों की यात्रा हमने करनी है. समुद्री यात्रा बहुत रोमांचक लगी. जहाज श्वेत-रजत मार्ग बनाता जा रहा है. समुद्र में मन्द-मन्द लहरें चल रही हैं पानी नीला, फिर काई फिर गहरा स्लेटी सा लगता है. जहाज के अन्दर बहुत आरामदायक सोफे लगे हैं. भोजन-नाश्ते की बहुत सुन्दर व्यवस्था है. जह...
…यूरोपियन महिलाएं एशियन को वोट देना नहीं चाहती!

…यूरोपियन महिलाएं एशियन को वोट देना नहीं चाहती!

संस्मरण
स्व. कला बिष्ट की एथेंस (यूनान) यात्रा का रोचक वृत्तांत, भाग—2 स्व. कला बिष्ट  07 अक्टूबर, 1992 महिलाओं की समस्या परbecause वर्कशॉप चल रही है, जिसमें ग्रुप डिस्कसन हो रहा है. मुख्य विषय निम्न हैं:- गर्ल चाइल्ड व because महिलाओं के सामाजिक, राजनैतिक अधिकार. महिलाओं को because पुरूषों के समान शिक्षा. बढ़ती because जनसंख्या पर रोक. उत्तराखंड इस दिन 1.30 बजे म्यूनिसिपल हॉल में पहुंचते हैं, जहां मेयर की ओर से दोपहर के भोजन में हमें आमंत्रित किया गया है. यह हॉल भी कलात्मक ढंग से सजाया गया है. because अब तक जितने मेयर हो चुके हैं, उनकी मूर्तियां काले-सफेद रंग की मिट्टी से बनी हैं. इतनी साकार लगती हैं कि जैसे अभी बोल पड़ेंगी. यहां भी छत की सीलिंग को कलात्मक ढंग से सजाया गया है. बताते हैं कि मेयर के कार्यालय में 41 सदस्य हैं, जिनमें से 19 महिलाऐं हैं. सदस्यों का चुनाव 4 व...
… मेरे नहीं कहने पर बिन्दी की ओर ईशारा कर कहता है- “ओ हिन्दी”

… मेरे नहीं कहने पर बिन्दी की ओर ईशारा कर कहता है- “ओ हिन्दी”

संस्मरण
भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय नैनीताल की संस्थापक प्रधानाचार्य स्व. कला बिष्ट ने वर्ष 1992 में ऑल इण्डिया वीमेन्स कान्फ्रेंस की सचिव की हैसियत से देश की 8 महिलाओं के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती शोभना रानाडे के नेतृत्व में एथेन्स (यूनान) में प्रतिभाग किया. so अवसर था ’इन्टरनेशनल एलाइन्स ऑफ वीमेन्स’ की 29वीं कांग्रेस का अधिवेशन. स्व. कला बिष्ट को ही नैनीताल में सर्वप्रथम ऑल इण्डिया वीमेन्स कान्फ्रेंस की शुरुआत का श्रेय जाता है. 04 अक्टूबर से 13 अक्टूबर 1992 तक की यूनान यात्रा का स्व. कला बिष्ट का रोचक यात्रा-वृतान्त कान्फ्रेंस की पत्रिका ’’साक्षी’’ के 1994 के अंक में प्रकाशित हो चुका है. एथेन्स की धरती पर उनके क्या खट्टे-मीठे अनुभव रहे, उनके उस यात्रा वृतान्त को शब्दशः हिमांतर में प्रकाशित किया जा रहा है, प्रस्तु​त है उनकी पहली किस्त स्व. कला बिष्ट की एथेंस (यूनान) यात्रा का रोचक वृत...
सहारनपुर जाने वाली बसों की हड़ताल सुनकर…

सहारनपुर जाने वाली बसों की हड़ताल सुनकर…

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जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा - भाग-5 सुनीता भट्ट पैन्यूली मेरे माथा ठनकने को पतिदेव ने तनिक भी विश्राम न करने दिया कार में बैठे और आईएसबीटी से कार सहारनपुर रोड की ओर घुमा दी मेरे यह पूछने पर कि यह because आप क्या कर रहे हो? कहने लगे तुम्हें कालेज पहुंचाने जा रहा हूं और यह कहकर कार की गति और बढ़ा दी. मैंने कहा अरे आप ऐसे कैसे? नाईट सूट में ही मुझे सहारनपुर परीक्षा दिलवाने ले जायेंगे? उनके यह कहने पर कि यह समय तर्क-वितर्क का नहीं है but बस तुम चुपचाप बैठी रहो क्योंकि सीमित समय में मुझे सहारनपुर पहुंचाने का तनाव पतिदेव के माथे पर साफ़ नज़र आ रहा था. परिस्तिथि ऐसी बन पड़ी थी कि so मेरे पास तर्क करने की कोई वजह भी नहीं थी. समय कम था अत: कालेज समय से पहुंचने के दबाव में बिना एक-दूसरे से बात किये हम सहारनपुर की ओर चले जा रहे थे रास्ता आज और दिन की अपेक्षा बहुत लंबा महसूस हो रहा था. सत्...
अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

अमावस्या की रात गध्यर में ‘छाव’, मसाण

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—61 प्रकाश उप्रेती गाँव में किसी को कानों-कान खबर नहीं थी. शाम को नोह पानी लेने के लिए जमा हुए बच्चों के बीच में जरूर गहमागहमी थी- 'हरि कुक भो टेलीविजन आमो बल' because (हरीश लोगों के घर में कल टेलीविजन आ रहा है). भुवन 'का' (चाचा) की इस जानकारी को पुष्ट करते हुए चंदन ने कहा- 'हम ले यसे सुणेमुं' (हम भी ऐसा ही सुन रहे हैं). इसके बाद तो नोह के चारों ओर बैठे लोगों के बीच से टेलीविजन पर दुनिया भर का ज्ञान उमड़ आया.  so जिसने भी पहले टीवी देखा हुआ था वह अपनी तई भरपूर ज्ञान दे रहा था. उसमें हम जैसे लोग भी थे जिन्होंने टीवी सुना भर ही था लेकिन मुफ्त के ज्ञान देने में हम भी पीछे नहीं थे. टीवी में फ़िल्म आती है . यह ज्ञान सबके पास था. इसके आगे का ज्ञान किसी को नहीं था. इसके आगे तो एंटीना, से लेकर उसके आकार-प्रकार पर बात चल रही थी. टेलीविजन इस ज्ञान के चक्कर...
हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में लाने के लिए कभी-कभी मरना पड़ता है

हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में लाने के लिए कभी-कभी मरना पड़ता है

संस्मरण
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा - भाग-4 सुनीता भट्ट पैन्यूली हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में becauseलाने के लिए कभी-कभी लेखक को मरना भी होता है ताकि पाठकों द्वारा विसंगतियों का वह सिरा पकड़ा जा सके जिसकी स्वीकारोक्ति सामाजिक पायदान पर हरगिज़ नहीं होनी चाहिए. सत्य ऐसी घटनाओं और अनुभव लिखने के because लिए कलम की रोशनाई यदि कम पड़ेगी  तो उन स्मृतियों की स्याह छाप प्रगाढ होकर पाठकों को झकझोरेगी कैसे? मेरे अपने बीते हुए अनुभवों पर प्रकाश डालने से शायद कुछ छुपा हुआ, ढका हुआ बाहर निकल कर आ जाये कालेजों की मौज़ूदा हालत के रूप में. सत्य ऐसा ही उपरोक्त अनुभव जो कि कुछ because अप्रत्याशित, अशोभनीय और हिकारत भरा था मेरे लिए,मज़बूर हो गयी थी मैं सोचने के लिए कि कोई इतना असभ्य कैसे हो सकता है? पढ़ें — वो बचपन वाली ‘साइकिल गाड़ी’ चलाई सत्य हां..! आनन्द प्रकाश सर के कहे because अनुसार उ...
वो बचपन वाली ‘साइकिल गाड़ी’ चलाई

वो बचपन वाली ‘साइकिल गाड़ी’ चलाई

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—60 प्रकाश उप्रेती पहाड़ की अपनी एक अलग दुनिया है. because उस दुनिया में बचपन, बसंत की तरह आता है और पतझड़ की तरह चला जाता है लेकिन जब-जब बसंत आता है तो मानो बचपन लौट आता है. बचपन से लेकर जवानी की पहली स्टेज तक हम एक 'साइकिल गाड़ी' चलाते थे. वह हमारी और हम उसकी सवारी होते थे. कभी-कभी तो एक-दो दोस्तों को भी टांग लेते थे. पहाड़ इस "साइकिल गाड़ी" की भी because अपनी कथा है. इसके बिना न स्कूल, न खेत और न आरे-पारे बाखे जाते थे . जहाँ जाओ साइकिल गाड़ी को साथ ले जाते थे. आगे-आगे ये, पीछे-पीछे दौड़ते हुए हम जाते थे. इस कारण कई बार ईजा से डाँट भी खाते थे. कई बार तो ईजा ने "च्वां" (सीधे) साइकिल "फनखेतक पटोम" (घर के नीचे वाला खेत) फेंक भी दी थी. पहाड़ हम बस्ता पीठ में टांगते. because घर के सामने वाले अमरूद के पेड़ में लटक रही साइकिल को निकालते और घुर्र-घुर्र चला ...
काला अक्षर भैंस बराबर था मेरे लिए…

काला अक्षर भैंस बराबर था मेरे लिए…

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जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा भाग-3 सुनीता भट्ट पैन्यूली मेरी हथेली पर ऊंचाई से because टक से दस का सिक्का फेंकने के पीछे मकसद क्या था उस कंडक्टर का? क्या उसकी मनोवृत्ति थी आज तक नहीं समझ पायी मैं किंतु कॉलेज के सफ़र की अविस्मरणीय  स्मृतियों में कंटीली झाड़ में बिच्छु घास सी उग आयी घटना है यह मेरे जीवन में. हथेली कई हादसों की होने कीआवाज़ नहीं because होती है किंतु जिनसे होकर वह गुज़रते हैं यक़ीनन गोलियों के भेदने के उपरांत छिद्र से कर जाती हैं उनके जे़हन में जिन्होंने भोगा  है इस यथार्थ को. हथेली हादसा छोटा सा था या मैं ही because उसे विस्तार दे रही हूं इसका निर्णय आप पाठकों पर छोड़ती हूं. कॉलेज से शाम को घर पहुंच चुकी because थी मैं आज के अनुभव ने अनजाने ही सही पैठ बना ली थी मेरे मष्तिष्क में. कॉलेज में अपनी किताबों को गर्व से निहारा और पन्ने दर पन्ने पलटते ही न जा...