… मेरे नहीं कहने पर बिन्दी की ओर ईशारा कर कहता है- “ओ हिन्दी”

भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय नैनीताल की संस्थापक प्रधानाचार्य स्व. कला बिष्ट ने वर्ष 1992 में ऑल इण्डिया वीमेन्स कान्फ्रेंस की सचिव की हैसियत से देश की 8 महिलाओं के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती शोभना रानाडे के नेतृत्व में एथेन्स (यूनान) में प्रतिभाग किया. so अवसर था ’इन्टरनेशनल एलाइन्स ऑफ वीमेन्स’ की 29वीं कांग्रेस का अधिवेशन. स्व. कला बिष्ट को ही नैनीताल में सर्वप्रथम ऑल इण्डिया वीमेन्स कान्फ्रेंस की शुरुआत का श्रेय जाता है. 04 अक्टूबर से 13 अक्टूबर 1992 तक की यूनान यात्रा का स्व. कला बिष्ट का रोचक यात्रा-वृतान्त कान्फ्रेंस की पत्रिका ’’साक्षी’’ के 1994 के अंक में प्रकाशित हो चुका है. एथेन्स की धरती पर उनके क्या खट्टे-मीठे अनुभव रहे, उनके उस यात्रा वृतान्त को शब्दशः हिमांतर में प्रकाशित किया जा रहा है, प्रस्तु​त है उनकी पहली किस्त


स्व. कला बिष्ट की एथेंस (यूनान) यात्रा का रोचक वृत्तांत, भाग—1

  • स्व. कला बिष्ट 

ऑल इण्डिया वीमेन्स कान्फ्रेन्स कई वर्षों से इन्टरनेशनल एलाइन्स की सदस्य है. इसलिए श्रीमती शोभना रानाडे के नेतृत्व में आठ महिलाओं के प्रतिनिधिमण्डल ने 04 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 1992 because तक ’’इन्टरनेशनल एलाइन्स ऑफ वीमेन्स’’ की 29वीं कांग्रेस में भाग लिया. मुझे इस अधिवेशन की सूचना बहुत विलम्ब से सितम्बर माह के अन्तिम सप्ताह मिली. एक आन्तरिक प्रेरणा से मैंने इसमें भाग लेने का निर्णय लिया, किन्तु जब यात्रा की प्रक्रिया आरम्भ की तब अनुभव हुआ कि इतनी जल्दी कार्य नहीं हो सकता है  क्योंकि वीसा बनने में तीन माह का समय लगता है. मेरे अन्दर का संकल्प मुझे प्रेरित कर रहा था कि इसके लिए प्रयास करके देख लेना चाहिये. क्षेत्रीय पासपोर्ट आफिस बरेली में जाकर बहुत संघर्ष करना पड़ा.

पासपोर्ट

पासपोर्ट अधिकारी को बहुत आश्चर्य हो रहा था कि मैं उनसे पासपोर्ट के लिए किस आधार पर प्रार्थना कर रही हूं. because तो भी मुझे जाना था, इसलिए अत्यन्त विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी मेरी चचेरी बहिन श्रीमती डॉ. स्वस्तिका रावत व मेरे परिचित श्री गिरिराज साह, डीआईजी (पुलिस) के सहयोग से पासपोर्ट बन ही गया. मुझे इसके लिए नैनीताल से हल्द्वानी, हल्द्वानी से बरेली, बरेली से दिल्ली और दिल्ली से पुनः बरेली भागना पड़ा.

वीसा

वीसा लेने के लिए बताया गया था कि because तीन दिन का समय व 560 रुपये होता है. पर मेरे आत्मविश्वास ने वहां भी साथ दिया. केवल 60 रुपये शुल्क पर हाथोंहाथ वीसा बन गया. 30 सितम्बर की शाम 3 बजे मुझे बताया गया कि मुझे इटली का भी वीसा लेना होगा. दूसरे दिन गान्धी जयन्ती की छुट्टी थी, 3 तारीख की सुबह 6 बजे मेरे विमान की उड़ान प्रारम्भ हो जानी थी तथा 1 तारीख की प्रातः ही बैंक से डॉलर लेने थे. मैं बहुत दुश्चिन्ता में पड़ गयी कि 1 तारीख को  वीसा व डॉलर एक ही समय में एक ही साथ कैसे प्राप्त किये जा सकेंगे? यहां पर मेरे यात्रा कार्यक्रम पर प्रश्नचिन्ह लग गया और ऐसा लगा कि अब यह यात्रा नहीं हो सकेगी. टिकट खरीदा जा चुका था मैं फिर आत्मविश्वास का छोर पकड़ते हुए 5 बजे because संध्या इटली दूतावास में पहुंचती हूं जहां द्वाररक्षक रोककर बताता है कि एम्बेसी बन्द हो चुकी है और इस समय किसी प्रकार का सम्पर्क संभव नहीं. मैं बहुत अनुनय-विनय कर उससे गेट पर रखे टेलीफोन से सम्पर्क  करने की सहमति पा लेती हूं. फोन पर श्री धरन साहब से, जो तसल्ली देते हुए समाधान देते हैं कि आप पहले बैंक से डॉलर ले लें और 2 बजे तक दूतावास पहुंच जायें. पता नहीं क्यों वह मुझ पर विशेष कृपा करते हैं और हाथोंहाथ वीसा बनाकर दे देते हैं.

दाहिनी ओर

दाहिनी ओर बैठा because जर्मन मुझे एक लम्बी-सी सिगरेट ऑफर करता है और मेरे नहीं कहने पर बिन्दी की ओर ईशारा कर कहता है- “ओ हिन्दी” अंग्रेजी नहीं बोल पाता है. 6.30 पर विमान उड़ना प्रारम्भ हो जाता है. बाहर कोहरा है, कुछ दिखाई नहीं देता. एक बजकर पन्द्रह मिनट में घोषणा होती है कि हम टर्की के ऊपर हैं और थोड़ी देर में बांई ओर अंकारा शहर भी. 1.45 पर भोजन मिलता है, बहुत सुन्दर ढंग से परोसा गया

प्रथम बार विमान में बैठने का यह अनुभव

हम 3 अक्टूबर को 4 बजे इण्डियन एयर लाइन्स के हवाई अड्डे पर पहुंच जाते हैं. सामान ढोने वाली ट्राली मिलती है, जिसे अभ्यास न होने के कारण मैं मुश्किल से चला पाती हूं. because सामान बुकिंग, कस्टम तथा सुरक्षा काउन्टरों से गुजरते हुए जब मैं विमान तक पहुंचती हूं तथा 6 बजने में केवल 3 मिनट शेष बचते हैं, प्रथम बार विमान में बैठने का यह अनुभव अत्यन्त रोमांचकारी व इतना सुखद है कि आत्मविभोर कर देता है. पूछने पर परिचारिका बताती हैं कि 286 यात्रियों का जहाज है , जो भरा है. बगल की सीट में सफेद बालों वाली सफेद रंग की शर्ट, नेवी ब्ल्सू स्कर्ट पहनी महिला बैठी हैं जो बार-बार मुझे मधुर मुस्कान देती रहती हैं. मैं एक मैगजीन पर सिर झुका लेती हूं. समय देखने के लिए घड़ी की ओर देखती हूं 6.20 का समय, शोभना जी खड़ी हंस रही है ’’मैं तेरे को सब जगह ढूंढ आईं, कोई परेशानी तो नहीं हुई. मैं बम्बई से इस जहाज में आई हूं.’’ because शोभना जी के मिल जाने से मन की रही सही चिन्ता भी दूर हो जाती है. दाहिनी ओर बैठा जर्मन मुझे एक लम्बी-सी सिगरेट ऑफर करता है और मेरे नहीं कहने पर बिन्दी की ओर ईशारा कर कहता है- “ओ हिन्दी” अंग्रेजी नहीं बोल पाता है. 6.30 पर विमान उड़ना प्रारम्भ हो जाता है. बाहर कोहरा है, कुछ दिखाई नहीं देता. एक बजकर पन्द्रह मिनट में घोषणा होती है कि हम टर्की के ऊपर हैं और थोड़ी देर में बांई ओर अंकारा शहर भी. 1.45 पर भोजन मिलता है, बहुत सुन्दर ढंग से परोसा गया- बीन, गाजर, ताल मक्खन की सब्जी, पालक की सब्जी बैंगन का भुर्ता, जिसमें ढेर सारे मेवे पड़े हैं. पनीर, मक्खन, दही, अचार और एक पन्नी में लपेटकर रोटी जो बहुत गरम हैं, साथ में भुना चावल भी परोसा गया जो बहुत स्वादिष्ट था.

भूमध्य सागर

खिड़की से नीचे झांका. so नीचे भूमध्य सागर है, सागर पर कोहरा छाया है. कोहरे के बादल ऊपर से बहुत सुन्दर व आकर्षक लगते हैं. सामने की कुर्सी के पीछे फोल्डिंग मेज है, जिसमें आवश्यक सामग्री जैसे मैंगजीन, यात्रा के निर्देश, वोमीटिंग बैग तथा हैड सैट का यंत्र है. कुर्सी में इसका कनैक्शन है, जोड़ लेने पर मधुर संगीत सुनाई देता है. सामने टीवी में फिल्म चल रही- ’’एक लड़का एक लड़की’’. टिकट के अनुसार 12 बजे रोम से जहाज बदलना है और इस समय 2.15 हो रहे हैं और हम अभी सागर के ऊपर ही उड़ रहे हैं. अब उद्घोषणा होती है कि रोम के समय के अनुसार 3.15 हो रहे हैं और अब हम रोम पहुंच रहे हैं. हम जान जाते हैं कि अब हमें विमान नहीं मिलेगा. बहुत बड़ा एयरपोर्ट है, but यहां से हमने एयर इटालिया का जहाज लेना है, जिसका काउन्टर ढूंढने में हमें बहुत भागना पड़ता है. बहुत परिश्रम करने पर हमें एक 23 नंबर का काउन्टर मिलता है, जिसमें एक बहुत खूबसूरत लड़की बैठी है, जो काउन्टर खट-खटाने पर बताती है कि आपकी फ्लाइट जा चुकी है, अब 6 बजे का विमान मिलेगा. हम एक ओर विश्राम करने बैठ जाते हैं. बहुत ही साफ-सुथरा व चमकदार है यह क्षेत्र because और एक बहुत बड़े क्षेत्र में लगभग 7 एकड़ में कालीन बिछी है. गमलों में फूलों के पौधे हमारे यहां की तरह हैं. सामने की ओर कतार की कतार ड्यूटी फ्री शॉ हैं. एक टाई का मूल्य पूछते हैं- 18 पौण्ड लगभग 918 रुपये, पैन 21 पौण्ड. दाम जानकर हम खरीदने की ईच्छा नहीं रखते. बाजार की छटा निराली ही है, इनका डिसप्ले बहुत सुन्दर है. जेवर को काले चमकदार मखमल पर फैलाया गया है. कुछ दुकानें केवल नकली फूलों की हैं, जिन्हें असली गमलों में लगाया गया है और पानी से सींचा जा रहा है. पानी में सुगन्ध भी है.

बहुत दौड़-भाग

शोभना जी बहुत दौड़-भाग because करती हैं. दो लड़कियां खड़ी हैं, जो थोड़ा-थोड़ा अंग्रेजी समझ लेती हैं. एक पत्रकार हैं और दूसरी टीवी आर्टिस्ट. लड़कियां हमें सहायता करती हैं. 1.30 का समय हो गया है, इतनी रात को किसी टैक्सी वाले को खोजना अथवा अनजान टैक्सी वाले की टैक्सी में बैठ जाना पसन्द नहीं आता है. लड़कियां सहायता करती हैं और पत्रकार लड़की अपनी कार में हमें क्रिस्टियाना होटल पहुंचा देती हैं.

विमान

11.35 पर जब विमान में सवार होते हैं, so वर्षा भी हो रही है. शाकाहारी भोजन नहीं लिखाया गया है, बताते हैं. किसी तरह से एक प्लेट की व्यवस्था करते हैं, जो जमीन पर गिर जाती है. एथेन्स पहुंचकर बहुत रात हो जाती है. हवाई अड्डे पर केवल हमारे विमान के सहयात्री हैं, जो जल्दी जल्दी अपने घरों को भाग रहे हैं. यहां से कहां जाना है, अन्दाज नहीं आ रहा है, कहीं पर टेलीफोन भी नहीं दिखता है. शोभना जी बहुत दौड़-भाग but करती हैं. दो लड़कियां खड़ी हैं, जो थोड़ा-थोड़ा अंग्रेजी समझ लेती हैं. एक पत्रकार हैं और दूसरी टीवी आर्टिस्ट. लड़कियां हमें सहायता करती हैं. 1.30 का समय हो गया है, इतनी रात को किसी टैक्सी वाले को खोजना अथवा अनजान टैक्सी वाले की टैक्सी में बैठ जाना पसन्द नहीं आता है. लड़कियां सहायता करती हैं और पत्रकार लड़की अपनी कार में हमें क्रिस्टियाना होटल पहुंचा देती हैं.

रजिस्ट्रेशन

दिनांक 4 अक्टूबर को 9 बजे कांग्रेस की कार्यवाही आरम्भ होती है. आज रजिस्ट्रेशन का दिन है. रजिस्ट्रेशन के बाद because एक्रोपोलीस घुमाने ले जाते हैं. यह पुरानी यूनान का संगमरमर का बना किला है. केवल खण्डहर शेष रह गये हैं. सामने संगमरमर का एक पहाड़ भी है. यहां से चारों ओर दूर तक फैला नगर एकदम श्वेत, चमकदार, चारों ओर थोड़ी-सी पहाड़ियों और चढ़ाई चढ़कर इस स्थान पर जाना पड़ता है. अन्त में दूर सागर दिखाई देता है.

आवास

आज मैं अपना आवास वाईडब्लूसीए because में ले लेती हूं. क्योंकि वहां किराया थोड़ी कम है. वाईडब्लूसीए के काउन्टर पर एक अत्यन्त तगड़ा व्यक्ति है, जो अंग्रेजी नहीं जानता, ईशारों से भी नहीं समझ रहा है. बहुत देर तक उसकी व मेरी ईशारों से बात होती हैं. वह बीच-बीच में बहुत ऊंचे स्वर में बोलने लगता है. वह मुझे बताता है कि तीन शैय्या वाले कमरे में स्थान मिलेगा. जब मैं यह जानना चाहती हूं कि अन्य दो कौन हैं? वह मेरी बात नहीं समझता. फिर मैं उसके हाथ से पैन लेकर एक मूंछों वाला आदमी व महिला के चित्र बनाकर पूछती हूं, वहां मेरा साथी कौन है? because तब वह बहुत खुश हो जाता है, हंसता है और ताली बजाकर कहता है, ’’ऑनली डब्लू डब्लू’’ और समझाता है कि यह वाईडब्लूसीए है और कहता है कि इसमें कोई पुरुष नहीं होता है . शाम को एलाइन्स की प्रेसीडेन्ट श्रीमती एलिश दावत देती हैं. वैजेटेरियन फूड के लिए पहले ही निवेदन कर दिया था. चावल बनाया है, जिसे केक की तरह मेवों से ड्रेसिंग कर रखा है. यहां नाचने-गाने और आनन्द मनाने का स्थल है. हम भारतीयों को छोड़कर सभी लोग ड्रिंक ले रहे हैं. भोजन में दही और आईसक्रीम बहुत अच्छा है .

सेमिनार

05 अक्टूबर,1992

9 बजे कार्य आरम्भ हो जाता है, सेमिनार चल रहा है. कार्यवाही ग्रीक भाषा में हो रही है, जिसे अंग्रेजी भाषा में ट्रांसलेट किया जा रहा है. बहस चल रही है कि सन् 1955 के अधिवेशन में मोरक्को को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वह प्रजातांत्रिक देश नहीं है. एक ओर बहस चल रही है कि आगामी कांग्रेस का निमंत्रण चीन से because आया है. इस अधिवेशन में भाग लिया जाय या नहीं? मुद्दा यह है कि चीन में because महिलाएं इस कांग्रेंस में भाग लेंगी उनको सताया जायेगा. साथ ही यह भी कि चीन को इस महिला जागृति की बहुत आवश्यकता है. अन्त में निर्णय होता है कि चीन में भाग लिया जाय. लंच ब्रेक के बाद साथ की बंगाली महिलाएं गायब हो जाती हैं . प्रणौती रॉय की चप्प्ल टूट गयी थी और लौटकर नहीं आती हैं. because अब मेरे लिए समस्या हो जाती है कि वाईडब्लूसीए कैसे पहुंचूं . शोभना जी अपने होटल में ले जाती हैं. परांठा व लहसुन की चटनी का लंच कराती हैं. 6 बजे बस आती है जो हमें यूनिवर्सिटी के शानदार हॉल में ले जाती है. छतों व दीवारों में सुन्दर रंगीन चित्रकला के नमूने हैं. यूनिवर्सिटी के रैक्टर (कुलपति) का भाषण ग्रीक भाषा में हो रहा है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद साथ-साथ चल रहा है.

भोजन कक्ष यद्यपि बड़ा है because पर सुव्यवस्था नहीं है. एक ही टेबिल पर फल, अण्डे, सैण्डविच, चीज, कटलेट. पेट भर गया है पर दाल, भात, रोटी के लिए मन तरसता है. 10 बजे कमरे में लौटने पर ब्रह्मचारिणी योगमाया से भेंट होती है, जिसकी मां फ्रांसिसी व पिता यूनानी हैं. 10 साल भारत में रह चुकी हैं, हिन्दी बोलती हैं. अध्यात्म की बातें करती हैं और बार-बार दुहराती हैं. ’’गॉड हैज सेंड यू फॉर मी ओनली’’. जाते समय वह मुझे एक पर्चा और प्रसाद देती हैं .

मुख्य अतिथि के आने पर जय जयकार नहीं होता, न फूल, न ताली, न प्रशंसा. मंत्री अपनी सीट पर जाकर बिना किसी भूमिका के अपना भाषण आरम्भ कर देती हैं जो बहुत लम्बा भाषण है. साथ में अंग्रेजी अनुवाद. महिलाओं की विविध समस्याओं पर वे अपना वक्तव्य देती हैं, फिर प्रश्न पूछने को कहती हैं.

सागर

06 अक्टूबर, 1992

सेमिनार के बाद भ्रमण के लिए सागर की ओर जाते हैं. सागर के बीच एक द्वीप दूर-दूर तक फैला है. सागर भव्य व शान्त है. द्वीप में आशा के साथ मैं बहुत नीचे उतर जाती हूं, because ऊपर लौटने मे बहुत थकान हो जाती है. कैन्टीन है, जिसमें बहुत भीड़ है. चाय पीते हैं, एक प्याला चाय का दाम 3 डॉलर अर्थात् 90 रुपये देने पड़े. लगा, चाय न पीना ही अच्छा होता. अपने देश में हम 90 रुपये में 90 बार चाय पी लेते हैं. सूर्यास्त यहां से देखा जो इतना मनभावन लगा कि यहां से जाने का मन ही नहीं करता है. यहां एक पुराना मन्दिर है, because केवल संगमरमर के खम्भे व छत शेष है जो कभी गिर सकते हैं. इसलिए मन्दिर के अन्दर प्रवेश निषिद्ध है. बताते हैं कि लॉर्ड बायरन इस जगह पर आकर रहे हैं. खम्भे पर उनके हस्ताक्षर हैं. यहां से लौटकर चैम्बर ऑफ कॉमर्स भवन में गये. वहां कल्चरल मिनिस्टर का भाषण है, जो महिला है. औपचारिकता बिल्कुल नहीं है यहां. because मुख्य अतिथि के आने पर जय जयकार नहीं होता, न फूल, न ताली, न प्रशंसा. मंत्री अपनी सीट पर जाकर बिना किसी भूमिका के अपना भाषण आरम्भ कर देती हैं जो बहुत लम्बा भाषण है. साथ में अंग्रेजी अनुवाद. महिलाओं की विविध समस्याओं पर वे अपना वक्तव्य देती हैं, फिर प्रश्न पूछने को कहती हैं. आशा जी जो कि टैक्नीकल इन्जीनियर और नासिक की टैक्नोलौजी स्कूल की डिप्टी डाइरेक्टर भी हैं, प्रश्न पूछती हैं कि हमारे देश में विश्वविद्यालय आदि में 50 प्रतिशत से अधिक लड़कियां हैं, ऐसी परिस्थिति में क्या हमें रिजर्वेशन मिलना चाहिये? प्रश्न को आशा जी इतने स्पष्ट शब्दों में पूछती हैं कि आगे बैठे सभी व्यक्ति पीछे मुड़कर आशा को देखने लगते हैं. पर हमें आश्चर्य होता है कि इस प्रश्न का उत्तर न तो अध्यक्ष देती हैं और न मंत्री. बाद में भी उनसे पूछा, टाल गई.

भोजन की व्यवस्था एक शानदार होटल की छत पर है, जहां पर एक स्वीमिंग पूल के चारों ओर खाने की मेज लगी है.

क्रमश:

संकलन: भुवन चन्द्र पंत

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