साहित्‍य-संस्कृति

… जब दो लोगों की दुश्मनी दो गांवों में बदल गई!

… जब दो लोगों की दुश्मनी दो गांवों में बदल गई!

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सीतलू नाणसेऊ- खाटा 'खशिया'फकीरा सिहं चौहान स्नेहीरुक जाओ! हक्कु, इन बेजुबान जानवरों को  इतनी क्रूरता से मत मारो. सीतलू हांफ्ता-हांफ्ता हक्कु के नजदीक पहुंचा. मगर हक्कु के आंखो पर तो  दुष्टता सवार थी. हक्कु भेड़ों तथा उनके नादान बच्चों पर  ताबड़तोड़ काथ के छिठे (डंडे) बरसा रहा था. सीतलू ने हक्कु का पंजा पकड़ कर उसे पीछे की तरफ धकेल दिया. इससे पहले की हक्कु खुद को संभालता सीतलू अपनी भेड़ों को चौलाई के खेतों से बाहर निकाल कर मुईला टोप की तरफ बढ़ने  लगा.  हक्कू  की आंखें गुस्से से  लाल थी. जमीन पर गिरे हुए अपने ऊन के टोपे को सर पर रखते हुए, अपनी चोड़ी को आनन-फानन में लपेट कर वह सीतलू पर क्रोधित होकर बोला,  सीतलू तेरे भेड़ों ने  मेरे चौलाई के खेतों पर जो नुकसान किया है.  उसका हर्जाना तुझे  अवश्य देना पड़ेगा.  मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं.  सीतलू ने विनयपूर्वक उत्तर दिया.  हक्कू, मुझे तेरा द...
आधुनिक ‘बुफे पद्धति’ और ‘कुक-शेफ़ों’ के बीच गायब होते ‘सरोला’

आधुनिक ‘बुफे पद्धति’ और ‘कुक-शेफ़ों’ के बीच गायब होते ‘सरोला’

साहित्‍य-संस्कृति
घरवात् (सहभोज)विजय कुमार डोभालआज की युवा पीढ़ी होटल, पार्टी या पिकनिक पर जा कर सहभोज का आनन्द ले रही है क्योंकि यह पीढ़ी शहर में ही जन्मी, पली-बढ़ी, शिक्षित-दीक्षित हुई तथा शहरीकरण में ही रच-बस गई है. यह पीढ़ी अपने पहाड़ी जनमानस के सामाजिक कार्यों, उत्सवों और विवाहादि अवसरों पर दी जाने वाली दावतों (घरवात्) के विषय में अनभिज्ञ है. इस पीढ़ी के युवाओं को घरवात् की जानकारी दिए जाने का प्रयास किया गया है. पहाड़ी समाज के जटिल जाति-भेद, ऊंच-नीच के कारण वर्ण-व्यवस्था का कठोरता से पालन किया जाता था. कच्ची रसोई (दाल-चावल) पकाने और परोसने के लिए कुछ उच्च कुलीन ब्राह्मणों को नियत किया गया जिन्हें “सरोला” कहा जाता है.घरवातों (सहभोज) के पकाने, परोसने और खाने के कठोर नियम होते हैं. “रुसड़ा” (पाकशाला जो प्रायः अस्थाई छप्पर होता है) में सरोलाओं के अतिरिक्त कोई अन्य प्रवेश नहीं कर सकता है. इस समय (...
हुकम दास के हुक्म पर अंग्रेज घाम में खड़ा रहा

हुकम दास के हुक्म पर अंग्रेज घाम में खड़ा रहा

साहित्‍य-संस्कृति
गंधर्व गाथा -1पुष्कर सिंह रावतउत्तरकाशी में भागीरथी तट पर एक आश्रम है शंकर मठ. ये छोटा सा आश्रम हमारे जेपी दा (जयप्रकाश राणा) का रियाज करने का ठिकाना हुआ करता था. बता दूं कि जेपी दा खुद भी तबले में प्रभाकर हैं और लोक कलाकारों की पहचान करने में उन्हें महारथ है. करीब दस साल पहले की बात है, उस दिन जेपी दा एक युवक को गाने का रियाज करवा रहे थे. इसी बीच मैं और रवीश काला भी वहां पहुंचे. गाते हुए युवा गलती करता तो जेपी दा आंखें तरेर देते, उसका सुर गड़बड़ा जाता. तभी उनकी नजर आश्रम के नीचे से गुजर रहे एक उम्रदराज लेकिन शारीरिक रूप से सुडौल शख्स पर पड़ी. उन्होंने उसे बुलाया और पास बिठा लिया. बड़े वीनीत भाव से उसने जेपी दा की बात सुनी और जीतू बगड्वाल का पंवाड़ा गाना शुरू कर दिया. हमारे रोंगटे खड़े हो गए. नए दौर का युवा गायक अवाक था. जिस गायन में उसे मशक्क त करनी पड़ रही है, उसे वो बूढ़ा बड़े...
भड्डू और उसमें बनने वाली दाल के स्वाद से अपरिचित है युवा पीढ़ी

भड्डू और उसमें बनने वाली दाल के स्वाद से अपरिचित है युवा पीढ़ी

साहित्‍य-संस्कृति
आशिता डोभालपहाड़ की संस्कृति और रीति—रिवाज अपने आप में सम्पन्न, अनूठी और अद्भुत है. यह अपने में कई चीजों का समाए हुए है, पहाड़ की संस्कृति और रीति—रिवाज हमेशा एक कौतूहल और शोध का विषय रहा है. हमारी संस्कृति पर कुछेक शोध जरूर हुए हैं लेकिन वह ना के बराबर. हमारी प्राचीन संस्कृति पर अभी भी गहन अध्ययन, चिंतन और शोध की जरूरत है. क्योंकि आज हम जिस समाज और भाग दौड़ की दुनिया में एक दिखावे की सी जिंदगी जी रहे हैं, उसमे हमारी आने वाली पीढ़ी पहाड़ों की कई ऐसी चीजों से अनभिज्ञ रहने वाली है. इसका कारण कोई और नहीं हम ही हैं. क्योंकि आज हम अपनी संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं. आज मैं बात कर रही हूं एक ऐसे बर्तन की, जो हमारे रीति—रिवाज और संस्कृति का कभी अभिन्न अंग हुआ करता था. मैं जिस बर्तन की बात कर रही हूं उसका नाम भड्डू है. भड्डू को बनाने में बहुत चिंतन—मनन करना पड़ा होगा. ऐसी धातुओं का मि...
पर्यावरण को समर्पित उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला

पर्यावरण को समर्पित उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला

साहित्‍य-संस्कृति
अशोक जोशीदेवभूमि, तपोभूमि, हिमवंत, जैसे कई  पौराणिक नामों से विख्यात हमारा उत्तराखंड जहां अपनी खूबसूरती, लोक संस्कृति, लोक परंपराओं धार्मिक तीर्थ स्थलों के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है,  तो वहीं यहां के लोक पर्व भी पीछे नहीं, जो इसे ऐतिहासिक दर्जा प्रदान करने में अपनी एक अहम भूमिका रखते हैं. हिमालयी, धार्मिक व सांस्कृतिक राज्य होने के साथ-साथ देवभूमि उत्तराखंड को सर्वाधिक लोकपर्वों वाले राज्य के रूप में भी देखा जाता है. विश्व भर में कोई त्यौहार जहां वर्ष में सिर्फ एक बार आते हैं तो वही हरेला जैसे कुछ लोक पर्व देवभूमि में वर्ष में तीन बार मनाए जाते हैं. हरेला लोक पर्व उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक हिंदू पर्व है, जो विशेषकर राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में अधिक प्रचलित है. कुछ लोगों के द्वारा चैत्र मास के प्रथम दिन  इसे बोया जाता है, तथा नवमी के दिन काटा जाता है. तो कुछ जनों के द्वारा...
हरेला : पहाड़ की लोक संस्कृति और हरित क्रांति का पर्व

हरेला : पहाड़ की लोक संस्कृति और हरित क्रांति का पर्व

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारीइस बार हरेला संक्रांति का पर्व उत्तराखंड में 16 जुलाई को मनाया जाएगा.अपनी अपनी रीति के अनुसार नौ या दस दिन पहले बोया हुआ हरेला इस श्रावण मास की संक्रान्ति को काटा जाता है.सबसे पहले हरेला घर के मन्दिरों और गृह द्वारों में चढ़ाया जाता है और फिर  माताएं, दादियां और बड़ी बजुर्ग महिलाएं हरेले की पीली पत्तियों को बच्चों,युवाओं, पुत्र, पुत्रियों के शरीर पर स्पर्श कराते हुए आशीर्वाद देती हैं- “जी रये,जागि रये,तिष्टिये,पनपिये, दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये. हिमाल में ह्यूं छन तक, गंग ज्यू में पांणि छन तक, यो दिन और यो मास भेटनैं रये. अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये, स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो.”परम्परा के अनुसार हरेला उगाने के लिए पांच अथवा सात अनाज गेहूं, जौ,मक्का, सरसों, गौहत, कौंड़ी, धान और भट्ट आदि के बीज घर के भीतर छोटी टोकरियों अथवा लकड़ी...
वेदों के ‘इंद्र-वृत्र युद्ध’ मिथक का जल वैज्ञानिक तात्पर्य    

वेदों के ‘इंद्र-वृत्र युद्ध’ मिथक का जल वैज्ञानिक तात्पर्य    

साहित्‍य-संस्कृति
भारत की जल संस्कृति-7डॉ. मोहन चन्द तिवारीभारतवर्ष प्राचीनकाल से ही एक कृषि प्रधान देश रहा है. कृषि की आवश्यकताओं को देखते हुए ही यहां समानांतर रूप से वृष्टिविज्ञान, मेघविज्ञान और मौसम विज्ञान की मान्यताओं का भी उत्तरोत्तर विकास हुआ. वैदिक काल में इन्हीं मानसूनी वर्षा के सन्दर्भ में अनेक देवताओं को सम्बोधित करते हुए मंत्रों की रचना की गईं. वैदिक देवतंत्र में इंद्र को सर्वाधिक पराक्रमी देव इसलिए माना गया है क्योंकि वह आर्य किसानों की कृषि व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए मेघों से जल बरसाता है और इस जल को रोकने वाले वृत्र नामक दैत्य का वज्र से संहार भी करता है- "इन्द्रस्य नु वीर्याणि प्र वोचं यानि चकार प्रथमानि वज्री. अहन्नहिमन्वपस्ततर्द प्र वक्षणा अभिनत्पर्वतानाम्॥"                 -ऋग्वेद,1.32.1 ऋग्वेद में बार-बार इन्द्र द्वारा वृत्र का संहार करके जल को मुक्त कराने का ...
उत्तराखंड के पहाड़ों से शुरू होता है वैदिक जल प्रबंधन व कृषि प्रबन्धन का स्वर्णिम इतिहास

उत्तराखंड के पहाड़ों से शुरू होता है वैदिक जल प्रबंधन व कृषि प्रबन्धन का स्वर्णिम इतिहास

साहित्‍य-संस्कृति
भारत की जल संस्कृति-6डॉ. मोहन चन्द तिवारीमैंने अपने पिछले लेख में वैदिक जलविज्ञान के प्राचीन इतिहास के बारे में बताया है कि वेदों के मंत्रद्रष्टा ऋषियों में ‘सिन्धुद्वीप’ सबसे पहले जलविज्ञान के आविष्कारक ऋषि हुए हैं, जिन्होंने जल के प्रकृति वैज्ञानिक‚ औषधि वैज्ञानिक, मानसून वैज्ञानिक और कृषिवैज्ञानिक महत्त्व को वैदिक संहिताओं के काल में ही उजागर कर दिया था. इस लेख में उत्तराखंड के पहाड़ों से शुरू हुए वैदिक कालीन कृषिमूलक जलप्रबंधन और ‘वाटर हारवेस्टिंग’ प्रणाली के बारे में जानकारी दी गई है. पहाड़ के बारे में वर्त्तमान में एक मिथ्या भ्रांति फैली हुई है कि “पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आनी.” इसी जुमले से नेता लोग चुनाव भी लड़ते हैं और पहाड़ के घर घर में नल पहुंचाने और यहां के नौजवानों को रोजगार देने का वायदा भी करते हैं. पर उत्तराखंड के पहाड़ों का सच यह है कि जलसंकट दि...
जलविज्ञान के आविष्कर्ता ऋषि ‘सिन्धुद्वीप’ और उनके जलचिकित्सा मंत्र

जलविज्ञान के आविष्कर्ता ऋषि ‘सिन्धुद्वीप’ और उनके जलचिकित्सा मंत्र

साहित्‍य-संस्कृति
भारत की जल संस्कृति-5डॉ. मोहन चन्द तिवारीविश्व की प्राचीनतम सभ्यता वैदिक सभ्यता का उद्भव व विकास सिन्धु-सरस्वती और गंगा-यमुना की नदी-घाटियों में हुआ. इसी लिए इस संस्कृति को 'नदीमातृक संस्कृति' के रूप में जाना जाता है.ऋग्वेद के मंत्रों में यह प्रार्थना की गई है कि ये मातृतुल्य नदियां लोगों को मधु और घृत के समान पुष्टिवर्धक जल प्रदान करें- “सरस्वती सरयुः सिन्धुरुर्मिभिर्महो महीरवसाना यन्तु वक्षणीः. देवीरापो मातरः सूदमित्न्वो घृत्वत्पयो मधुमन्नो अर्चत..”             - ऋ.,10.64.9 वैदिक कालीन भारतजनों ने ही सरस्वती नदी के तटों पर यज्ञ करते हुए इस ब्रह्म देश को सर्वप्रथम 'भारत' नाम प्रदान किया था जैसा कि ऋग्वेद के इस मन्त्र से स्पष्ट है- "विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनम्."                           -ऋग्वेद,3.53.12 सरस्वती नदी के तटों पर रची बसी भारत जनों की इस सभ्यता...
रिश्ते बचाने का सफल सूत्र

रिश्ते बचाने का सफल सूत्र

साहित्‍य-संस्कृति
भूपेंद्र शुक्लेश योगी"किसी के साथ आप जबरदस्ती करके, ताने या उलाहने मार कर अथवा उसे किसी अन्य प्रकार से कष्ट देकर उसका शरीर तो पा सकते हैं, उसके शरीर को गुलाम बना सकते हैं लेकिन आप उसको कभी नहीं पा सकते हैं, उसके मन को कभी नहीं जीत सकते हैं." यदि आप चाहते हैं कि कोई आपको सुने, आपसे मित्रता करे अथवा आप पर ध्यान दे तो आप उसे पकड़ने की कोशिश कभी मत करें बल्कि स्वयं को अच्छा, सक्षम एवं प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त करें. अपने गुणों को इतना बढ़ा लें, स्वयं की ऊर्जा को वाइव्स को इतना सकारात्मक कर लें कि कोई भी आपके ओरा में आते ही शांति का, प्रेम का, मैत्री और करुणा का अनुभव करे.ऐसा करके आप पाएंगे कि जो व्यक्ति आप पर ध्यान नहीं देता था अथवा आप से मैत्री नहीं रखना चाहता था वह आपकी ओर आने लगा है, वह स्वयं प्रयास करके आपसे मैत्री करने कि कोशिश करने लेगा है. परन्तु लोग ऐसा नहीं करते हैं, लोग...