साहित्‍य-संस्कृति

नोएडा में जोरों पर है श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान, घर-घर संपर्क कर रहे हैं स्वयं सेवक

नोएडा में जोरों पर है श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान, घर-घर संपर्क कर रहे हैं स्वयं सेवक

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हिमांतर ब्यूरो, नोएडा  अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के लिए शुक्रवार से ही देशभर में श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान की शुरुआत हो चुकी है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और उससे जुड़े संगठनों के कार्यकर्ता घर-घर संपर्क अभियान के जरिए राम मंदिर के निर्माण के लिए सहयोग राशि जुटा रहे हैं। नोएडा में भी इस अभियान के तहत हर सोसायटी, सेक्टर और मोहल्लों में जाकर कार्यकर्ता राम मंदिर निर्माण के लिए धन संचय और संपर्क अभियान कर रहे हैं। प्रभात फेरियों के जरिए हर हिंदू को अयोध्या में बनने वाले भव्य राम मंदिर और उसके निर्माण के लिए चलाई जा रही श्रीराम मंदिर समर्पण निधि अभियान के बारे में जानकारी दी जा रही है और भजन-कीर्तन के जरिए राम काज के लिए लोगों के भीतर समर्पण का भाव भरा जा रहा है। संघ के कार्यकर्ता और आम हिंदू नागरिक जोश, जुनून और समर्पण भाव से घर-घर जाकर संपर्क अभियान कर रहे ...
क्या है जन्म-जन्मान्तर और सात जन्मों के रिश्ते की सच्चाई?

क्या है जन्म-जन्मान्तर और सात जन्मों के रिश्ते की सच्चाई?

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भुवन चन्द्र पन्त जब स्त्री व पुरूष वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं तो सनातन संस्कृति में इसे जन्म-जन्मान्तर का बन्धन अथवा सात जन्मों का बन्धन कहा जाता है. अगर कोई ये कहे कि हां, यह बात शत-प्रतिशत सही है तो संभव है कि उसे दकियानूसी ठहरा दिया जाय. because वर्तमान दौर वैज्ञानिक सोच का है, जब तक हम कारण व परिणाम पर तसल्ली नहीं कर लेते, उसे यों ही स्वीकार नहीं करते. वस्तुतः होना भी यहीं चाहिये, किसी भी विचार अथवा परम्परा को बिना तथ्यों व तर्कों के स्वीकार कर लेना कोई बुद्धिमानी भी नहीं है. लेकिन ये भी सच है कि सनातन संस्कृति की सभी अवधारणाऐं शोधपूर्ण एवं विज्ञानपरक एवं तार्किक हैं. ये बात अलग है कि हमने उनकी गहराइयों में न जाकर और मर्म को जाने बिना अपनी परम्परा का हिस्सा बना लिया.so यही कारण है कि आज के युवा आनुवंशिकी के जनक ग्रेकर जॉन मेंडल के सिद्धान्तों पर तो विश्वास करते हैं, जिन्होंने उन्नी...
नव वर्ष 2021 हरिद्वार कुम्भ का भी लोकमंगलकारी वर्ष है

नव वर्ष 2021 हरिद्वार कुम्भ का भी लोकमंगलकारी वर्ष है

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डॉ. मोहन चंद तिवारी प्रति वर्ष 31 दिसंबर को काल की एक वर्त्तमान पर्याय रात्रि 12 बजे अपने अंत की ओर अग्रसर होती है तो दूसरी पर्याय नए वर्ष के रूप में पदार्पण भी करती है.काल के इसी संक्रमण की वेला को अंग्रेजी केलेंडर के अनुसार नववर्ष का आगमन माना जाता है. इस बार नव वर्ष की संक्रान्ति में आगामी जनवरी के महीने से अप्रैल के महीने तक हरिद्वार कुंभ का भी शुभ संयोग उपस्थित हो रहा है. हालांकि कोरोना संकट के कारण कुम्भ के शाही स्नानों की शुरुआत 11 मार्च से होगी किन्तु कुम्भ स्नान का प्रारम्भ जनवरी महीने के मकर संक्रांति से ही हो जाता है. इसलिए इस नववर्ष 2021 का 'कुम्भ वर्ष' के रूप में भी विशेष महत्त्व है. कुम्भ स्नान देश में नववर्ष  मनाने की विविधता के बावजूद एक समानता यह है कि भारत के लोग सूर्य की संक्रांति और चन्द्रमा के नक्षत्र विज्ञान की शुभ पर्याय को ध्यान में रखते हुए सौरवर्ष और चान्...
नदी कभी वापस नहीं लौटती…

नदी कभी वापस नहीं लौटती…

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पुरातन वर्ष एक दस्तावेज़ भी है हमारे अनुभव हमारी स्मृतियों का जिसमें अनगिनत अनगढा, अनसुलझा, so कुछ तुर्श, कुछ सड़ा-गला, कुछ थोड़ा बहुत उपयोगी भी है यह हमें तय करना है कि नवीनता की ड्योढी पर हमें क्या-क्या साथ लेकर पांव रखना है. सुनीता भट्ट पैन्यूली समय धारा प्रवाह बहती because अविरल नदी है जिसकी नियति बहना है, जो किसी के लिए नहीं ठहरती, हां विभिन्न कालखंडों में विभाजित विविध घाटों के पड़ावों से टकराकर अपने होने का आभास कराती हुई जा पहुंचती है उस भवसागर में  जिसका प्रारब्ध उस अदृश्य शक्ति ने या विधि के विधान ने सुनिश्चित किया है. जहां न अंत है, न आरंभ है, न अफसोस की गुंजाइश है, न हर्ष का पारावार, न किंतु-परंतु, न सवाल-जवाब, न उल्लसिता की कोई परिभाषा. because सब कुछ छुटता चला जाता है. साथ बहकर चली आती हैं उस नदी के साथ तो वह हैं स्मृति खंड जिसके दांये-बांये से होकर समय रूपी नदी त...
नागरिकों को नैतिक होने के लिए सूचित करने की आवश्यकता…

नागरिकों को नैतिक होने के लिए सूचित करने की आवश्यकता…

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सलिल सरोज महात्मा गांधी ने महसूस किया कि शिक्षा से न केवल ज्ञान में वृद्धि होनी चाहिए बल्कि हृदय और साथ में संस्कृति का भी विकास होना चाहिए. गांधी हमेशा से और हित चरित्र because निर्माण के पक्ष में थे. चरित्र निर्माण के बिना शिक्षा उसके अनुसार शिक्षा नहीं थी. उन्होंने एक मजबूत चरित्र को एक अच्छे नागरिक का मूल गुण माना. आज के बच्चे और युवा राष्ट्र के भविष्य हैं. उन्हें गांधी के सामाजिक न्याय के सिद्धांतों, पर्यावरण के बारे में उनकी चिंताओं और उनके सिद्धांत के बारे में बताने की आवश्यकता है कि प्रकृति के पास हर किसी की जरूरतों के लिए पर्याप्त है लेकिन because उनके लालच के लिए नहीं और यही मूल मन्त्र है एक स्थायी और समावेशी अर्थव्यवस्था और समाज को बढ़ावा देने के लिए. गांधी ने राजनीतिक और आर्थिक विकेंद्रीकरण का प्रचार किया. राजनीतिक युवा मानस और आम because जनता में इन मूल्यों का अनुकरण कर...
आज भी प्रासंगिक हैं ‘गांधी-गीता’ के प्रजातांत्रिक मूल्य

आज भी प्रासंगिक हैं ‘गांधी-गीता’ के प्रजातांत्रिक मूल्य

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी प्रोफेसर इन्द्र की 'गांधी-गीता' दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के स्नातक स्तर के 'भारतीय राष्ट्रवाद' के पाठ्यक्रम में निर्धारित एक महत्त्वपूर्ण रचना है. यह पुस्तक सन् 1950 में प्रकाशित हुई थी जो अब दुर्लभप्राय है.मैं अपने फेसबुक पर गांधी जयंती, गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय महोत्सवों के अवसर पर because लिखे लेखों में प्रोफेसर इन्द्र द्वारा रचित इस 'गांधी-गीता' के बारे में प्रायः चर्चा करता रहता हूं. राजनैतिक जगत में भारतीय राष्ट्रवाद और प्रजातांत्रिक मूल्यों का देश में आज जिस प्रकार से क्षरण हो रहा है,उसे देखते हुए भी देश में प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए गांधीवादी चिंतन आज भी जनोपयोगी और प्रासंगिक भी है.गांधी चिंतन के इसी सन्दर्भ में यह लेख भी लिखा गया है. प्रवासी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के पिछले सौ वर्षों के इतिहास की ओर नजर दौड़ाएं ...
जब एक रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए धर लिया था शिला रूप!

जब एक रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए धर लिया था शिला रूप!

साहित्‍य-संस्कृति
देश ही नहीं विदेशों में भी धमाल मचा रही है रंगीली पिछौड़ी... आशिता डोभाल उत्तराखंड में दोनों मंडल गढ़वाल so और कुमाऊं अपनी—अपनी संस्कृति के लिए जाने जाते हैं. हम जब बात करते हैं अपने पारंपरिक परिधानों की तो हर जिले और हर विकासखंड का या यूं कहें कि हर एक क्षेत्र में थोड़ा भिन्नता मिलेगी पर कहीं न कहीं कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जो एक समान होती हैं. जैसे— कुमाऊं की 'रंगीली पिछौड़ी' है, जो पूरे कुमाऊं मंडल का एक विशेष तरह का परिधान है, अंगवस्त्र है, इज्जत है और इसे पवित्र परिधान की संज्ञा Because भी दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. इस परिधान का इतिहास बेहद रूचिपूर्ण है. राजे—रजवाड़े और सम्पन्न घरानों से पैदा हुआ ये परिधान स्वयं घरों में तैयार किया जाता था, बल्कि मंजू जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुमाऊं की रानी 'जियारानी' से इसका इतिहास जुड़ा हुआ बताती हैं. परिधान एक दिन जैसे...
पर्वतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं उरख्यालि और गंज्यालि

पर्वतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं उरख्यालि और गंज्यालि

साहित्‍य-संस्कृति
विजय कुमार डोभाल हमारे पहाड़ी दैनिक-जीवन में भरण-पोषण की पूर्त्ति के लिये हथचक्की (जंदिरि) और ओखली मूस (उरख्यलि-गंज्यालि) से कूटने-पीसने की प्रक्रिया सनातनकाल से चली आ रही है. because यह भी कहा जा सकता है कि ये हमारे पर्वतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं, जिनके बिना जीवन कठिन है.ओखल-मूसल और हथचक्की प्राचीन प्रोद्यौगिकी के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं. पत्थर पहले जब गांव के निकट कोई चक्की नहीं होती थी, तब से ही इनका उपयोग अनाज कूटने-पीसने, तिलहनों से तेल निकालने because तथा छाल-छिलकों से चूर्ण बनाने के लिए किया जाता रहा है. पहाड़ी क्षेत्र में प्रायः सड़क-निर्माण करते समय चट्टानों पर ओखली खुदी हुई मिलती हैं, जो पुरातात्विक सामग्री होने के साथ-साथ सभ्यता के विकास और प्रसार का द्योतक भी हैं. इनसे ऐसा प्रतीत होता है कि कभी यहाँ मानव बस्तियां रही होंगी. पत्थर ओखली (उरख्यालि) का निर्माण butएक म...
अपने बच्‍चों को पढ़ाएं नैतिक शिक्षा का पाठ

अपने बच्‍चों को पढ़ाएं नैतिक शिक्षा का पाठ

साहित्‍य-संस्कृति
कैसे बनता है कोई समाज, कौन हैं ये लोग? डॉ. दीपा चौहान राणा बिना किसी व्यक्ति विशेष के किसी समाज का निर्माण नहीं हो सकता है. हम मानव ही सभी समाज की नींव हैं. लेकिन इसी समाज में हमें सामाजिक बुराई देखने को मिलती है, एक से एक घिनौनी कुरीतियां तब से becauseचली आ रही हैं जब से इंसान इस धरती पर पैदा हुआ. कुरीति उसी कुरीति में से एक है बलात्कार! क्या है बलात्कार? so जब किसी के साथ पूरे बल से उसकी मर्जी के बिना उसकी आत्मा, उसके शरीर तथा उसके अंगों को छुआ या नोचा जाए, वो होता है बलात्कार. कुरीति ऐसी भी क्या है कि कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ इतने बल का प्रयोग करता है? उसके साथ इतना दानव जैसा व्यवहार करता है. ये एक संवेदनशील विषय है, जिस पर सिर्फ तभी बातbecause होती है, जब कोई बेटी या महिला इस घटना की शिकार होती है तभी बस बात होती है, उससे पहले कोई बात नहीं?  इसके क्या कारण हो सकते हैं क...
बड़ी खूबसूरती से निरूपित किया है जैव विविधता के सन्तुलन को सनातनी परम्परा में

बड़ी खूबसूरती से निरूपित किया है जैव विविधता के सन्तुलन को सनातनी परम्परा में

साहित्‍य-संस्कृति
भुवन चन्द्र पन्त प्रारम्भिक स्तर की कक्षाओं के पाठ्यक्रम में बेसिक हिन्दी रीडर में एक पाठ हुआ करता था, जिसका शीर्षक अक्षरक्षः तो स्मरण नहीं हो पा रहा है, कुछ यों था कि वनस्पति एवं जीव-जन्तु परस्पर एक दूसरे पर निर्भर हैं. तब जैव विविधता जैसे शब्द नहीं खोजे गये थे, लेकिन जिस खूबसूरती से बालमन को वनस्पति एवं जीवजन्तुओं की परस्पर उपयोगिता समझाई गयी थी, उसे जैव विविधता जैसे वजनदार शब्द से समझने से अधिक रोचक था. जैविक विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वन्य जीव वैज्ञानिक रेमंड एफ डेशमैन द्वारा 1968 में ’ए डिफरेंट काइंड ऑफ कन्ट्री’ नामक पुस्तक में किया है. पहले बायोलॉजिकल डायवर्सिटी के नाम से because और फिर सन् 1986 के बाद संक्षिप्तिीकरण कर बायोडायवर्सिटी यानी जैव विविधत शब्द चलन में आया. बात जब पर्यावरण व पारिस्थितिकीय की आती है, तो आज हर एक की जुबान पर जैव विविधता शब्द अपनी जगह बना चुका है. ...