
- डॉ. मोहन चंद तिवारी
प्रति वर्ष 31 दिसंबर को काल की एक वर्त्तमान पर्याय रात्रि 12 बजे अपने अंत की ओर अग्रसर होती है तो दूसरी पर्याय नए वर्ष के रूप में पदार्पण भी करती है.काल के इसी संक्रमण की वेला को अंग्रेजी केलेंडर के अनुसार नववर्ष का आगमन माना जाता है. इस बार नव वर्ष की संक्रान्ति में आगामी जनवरी के महीने से अप्रैल के महीने तक हरिद्वार कुंभ का भी शुभ संयोग उपस्थित हो रहा है. हालांकि कोरोना संकट के कारण कुम्भ के शाही स्नानों की शुरुआत 11 मार्च से होगी किन्तु कुम्भ स्नान का प्रारम्भ जनवरी महीने के मकर संक्रांति से ही हो जाता है. इसलिए इस नववर्ष 2021 का ‘कुम्भ वर्ष’ के रूप में भी विशेष महत्त्व है.
कुम्भ स्नान
देश में नववर्ष मनाने की विविधता के बावजूद एक समानता यह है कि भारत के लोग सूर्य की संक्रांति और चन्द्रमा के नक्षत्र विज्ञान की शुभ पर्याय को ध्यान में रखते हुए सौरवर्ष और चान्द्रवर्ष की कालगणना के आधार पर नववर्ष मनाते हैं. वह इसलिए क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा के द्वारा गतिमान काल अथवा समय को हम साक्षात् परमेश्वर मानते हैं.
कुम्भ स्नान
हमारे प्राचीन भारत के काल चिंतक ऋषि मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व सम्पूर्ण काल की अवधारणा को ‘पूर्ण कुम्भ’ की संज्ञा प्रदान की है-
कुम्भ स्नान
“पूर्णः कुम्भोऽधि काल आहितस्तं
वै पश्यामो बहुधा नु सन्तः.
स इमा विश्वा भुवनानि प्रत्यङ्
कालं तमाहुः परमे व्योमन्॥”
-अथर्ववेद,19.53.3
कुम्भ स्नान
अथर्ववेद,के इस मंत्र में ‘पूर्ण कुम्भ’ को सर्वव्यापक काल का वाचक माना गया है, जो समूचे ब्रह्मांड में अहोरात्र, मास, ऋतु, संवत्सर चक्र के रूप में सर्वत्र व्याप्त रहता है.
कुम्भ स्नान
भारतीय परम्परा के अनुसार नव वर्ष का जहां तक सम्बन्ध है, वह चैत्र मास के प्रथम वासंतिक नवरात्र से शक्तिपूजा-अर्चना के साथ विक्रम संवत् के प्रारम्भ से होता है तथा उसी दिन से देश के अधिकांश प्रदेशों में नववर्ष का भी शुभागमन माना जाता है. लेकिन देश के कुछ दूसरे भागों में कहीं 13 -14 अप्रेल को वैसाखी के दिन से तो कहीं दीपावली के दिन से नए साल की शुरुआत भी मानी जाती है. दक्षिण भारत में मकर संक्रांति से नववर्ष मनाने की परम्परा है.देश में नववर्ष मनाने की विविधता के बावजूद एक समानता यह है कि भारत के लोग सूर्य की संक्रांति और चन्द्रमा के नक्षत्र विज्ञान की शुभ पर्याय को ध्यान में रखते हुए सौरवर्ष और चान्द्रवर्ष की कालगणना के आधार पर नववर्ष मनाते हैं. वह इसलिए क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा के द्वारा गतिमान काल अथवा समय को हम साक्षात् परमेश्वर मानते हैं. इसीलिए हम देशवासी महादेव शिव की महाकाल तथा उनकी शक्ति स्वरूपा आदिशक्ति की महाकाली के रूप में आराधना करते आए हैं. विष्णुपुराण में काल को परब्रह्म कहा गया है. समस्त भूतों की गणना करने के कारण वह काल कहलाता है-
कुम्भ स्नान
”कलनात् सर्वभूतानां स कालः परिकीर्तितः.”
‘हारीतस्मृति’ में भी काल तत्त्व की विस्तार से चर्चा आई है. काल लोक की गणना करता है, काल जगत् की गणना करता है, इसलिए वह काल कहलाता है-
कुम्भ स्नान
“कालः कलयते लोकं कालः कलयते जगत्.
कालः कलयते विश्वम् तेन कालोऽभिधीयते.”
कुम्भ स्नान
महाभारत के आदिपर्व में काल को विधाता की परम शक्ति माना गया है जिसके कारण सम्पूर्ण संसार की विधि-व्यवस्था चलती है, लोग भाव-अभाव, सुख-दुःख की पर्याय के दौर से विचरण करते हैं. काल सम्पूर्ण भूतों को उत्पन्न करता है, काल ही प्रजा का संहार करता है, काल ही सोता और जागता है. काल दुरतिक्रम है अर्थात् काल के आगे किसी की नहीं चलती.इसलिए काल से घबराना नहीं चाहिए उसकी ईश्वर की पर्याय मानकर समाराधना करना ही श्रेयस्कर है-
कुम्भ स्नान
“विधातृविहितं मार्गं न कश्चिदतिवर्तते.
कालमूलमिदं सर्वं भावाभावौ सुखासुखे॥
कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः.
संहरन्तं प्रजाः कालं कालः शमयते पुनः॥
कालः सुप्तेशु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः.
कालः सर्वेषु भूतेषु चरत्यविधृतः समः॥
अतीतानागता भावा ये च वर्तन्ति साम्प्रतम्.
तान् निर्मितान् बुद्धवा न संज्ञां हातुमर्हसि॥”
-महाभारत,आदिपर्व, 1.247-251
कुम्भ स्नान
हम काल के महानियंता महाकाल शिव से तथा उनकी अर्द्धांगिनि काल की महाशक्ति महाकाली जगदम्बा से यही प्रार्थना करते हैं कि नववर्ष 2021 के काल की प्रत्येक पर्याय हमारे राष्ट्र के लिए मंगलमय हो, शुभकारी हो और कल्याणकारी हो. ऋतुचक्र अनुकूल हो,अन्न-वनस्पतियां सुसमृद्ध हों तथा मानसूनों की वर्षा समय समय पर होती रहे-
कुम्भ स्नान
“ॐ शुभानि वर्धन्ताम्.ॐ शिवा आपः सन्तु.
ॐ शिवा ऋतव: सन्तु. ॐ शिवा वनस्पतयः सन्तु.
ॐ शिवा अतिथयः सन्तु.ॐ शिवा अग्नयः सन्तु.
ॐ शिवा आहूतयः सन्तु.ॐ अहोरात्रे शिवे स्याताम्.
“ॐ निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु
फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम्,
योगक्षेमो नः कल्पताम्..”
कुम्भ स्नान
नववर्ष 2021 राष्ट्र के लिए मंगलमय हो,
प्राणिमात्र के लिए शुभ व कल्याणकारी हो.
इसी शुभ संकल्प के साथ समस्त देशवासियों को नववर्ष 2021 की कुम्भ वर्ष के रूप में हार्दिक शुभकामनाएं !!
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)