
रोचक इतिहास
भारत चौहान
यह घटना यह घटना संभवत 1930 के आसपास की रही होगी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की अनेक रानियां थी उन्हें जो भी पसंद आती थी उनसे शादी कर लेते थे। जौनसार बावर के खत कोरु के चिचराड से खीमाण परिवार की बुर्की देवी (बूर्गी रानी) का विवाह भी पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह के साथ हुआ था, वह तीसरी कक्षा तक पढ़ी लिखी थी देखने में अत्यंत सुंदर बुर्गीं देवी अपनी बड़ी बहन बर्मी देवी जिसका विवाह विकासनगर के राजावाला में एक संभ्रांत परिवार में हुआ था जिनका पंजाब में भी फ्रूट और बागवानी का व्यवसाय था बुर्गी देवी भी अपने दीदी के साथ पंजाब गई थी वहीं एक समारोह में महाराजा पटियाला ने उन्हें देखा और उससे विवाह कर लिया।
दूसरा विवाह जौनसार बावर बड़गांव खत के कोटवा गांव देवी सिंह ढोगराण परिवार की सबसे बड़ी सुपुत्री जो अत्यंत खूबसूरत थी मालती देवी का महाराजा पटियाला के साथ हुआ था। (देवी सिंह कोटवा भी ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे।)
सन 1938 में पटियाला महाराजा भूपेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके सुपुत्र यादवविंदर सिंह ने विधिवत घोषणा की कि जो रानीयां वापस अपने घर जाना चाहती है उन्हें ससम्मान, धन, संपदा एवं स्वर्ण आभूषणों देकर विदा किया जाएगा और इसमें अधिकांश रानियां जो युवा अवस्था मे थी वह अपने मायके वापस आ गई।
इसके पश्चात चिचराड़ निवासी बुर्गी रानी अपने मूल गांव चिचराड आकर रहने लगी। जिसका विवाह कुछ वर्षों के बाद खत बहलाड के लाच्छा गांव निवासी प्रताप सिंह से हुआ। प्रताप सिंह के पिता धुडू सिंह (बाजियाण गांव में उनके परिवार का नाम) ब्रिटिश सरकार में रेंजर पद पर कार्यरत थे। यह अत्यंत संपन्न थे, प्रताप सिंह अय्याश किस्म के युवा थे जो उस समय मुंबई जैसे शहर में बार गर्ल्स के डांस देखने जाते थे और हमेशा कोर्ट पेंट और टाइप पहन कर रखते थे।
प्रताप सिंह के पिता ने लाच्छा गांव में एक सुंदर बंगला भी बनवाया था। अव्यवस्थित जीवनचर्या के कारण प्रताप सिंह का अंत कठिनाई में बीता उन्होंने बाद में सन्यास लिया और विकासनगर के आसपास किसी मंदिर में उनकी मृत्यु हो गई। बुर्गी रानी के कोई संतान नहीं थी और वह भी लाचछा से अपने मूल गांव चिचराड़ वापस आई और कुछ वर्षों बाद उसकी भी मृत्यु हो गई। गांव में बुर्गी रानी को दिल्ली वाली नानी कह कर भी पुकारते थे, क्योंकि वह कुछ समय के लिए पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की दिल्ली स्थिति हवेली में भी रहीं।
अब कोटवा निवास मालती देवी भी महाराजा के निधन के बाद वापस अपने मायके आ चुकी थी कुछ वर्षों के बाद मालती रानी का विवाह खत कोरू के गांगरो निवासी मोहर सिंह के साथ हुआ मोहर सिंह संपन्न व्यक्ति थे शिकार करने के अत्यंत शौकीन थे। जिन्होंने बाद में चकराता में अपना बहुत बड़ा व्यवसाय प्रारंभ किया।
पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह ने विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत किया। अनेक जगह उल्लेख मिलता है कि उनकी 365 रानियां थी कहीं 10 रानियों का उल्लेख मिलता है तथा 80 से अधिक संतान पैदा करने का भी जानकारी प्राप्त हुई है।
1938 के पश्चात पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह के पुत्र यादवविंदर सिंह बाद में राज गद्दी पर बैठे 1947 में देश में जब सभी रियासतों का विलय भारत संघ के साथ हुआ तब पंजाब स्टेट का विलय भी भारत के साथ हुआ। इसके पश्चात् यह अनेक उच्च पदों पर आसीन रहे क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी रहे तथा विदेशों में भारत के राजदूत भी रहे।
संकलन के स्रोत
- मदन सिंह चौहान, ग्राम चिचराड
- हाकम सिंह चौहान, गागरो
- टीकाराम साह, चकराता
- फोटो : मनोज ईषटवाल, वरिष्ठ पत्रकार