लोक पर्व-त्योहार

हरेला : कोरोना काल में एक दूसरे की मदद को प्रेरित करता त्योहार

हरेला : कोरोना काल में एक दूसरे की मदद को प्रेरित करता त्योहार

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सुख समृद्धि की कामना का पर्व हरेला ऋतु खंडूरी विधायक, यमकेश्वर हरेला. यानी हर्याव. सुख समृद्धि की कामना का पर्व. दूसरों को आशीवर्चन देने का पर्व. खिलखिलाने का पर्व. दूसरों को खुश देखकर खुद खुश होने का पर्व. ऐसे ही तो कई संदेश छिपे हैं because उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला में. इसे स्थानीय बोली में हर्याव भी कहते हैं. मूलत: कुमाऊं क्षेत्र में मनाये जाने वाला यह पर्व आज विश्वव्यापी है. यूं तो साल में तीन बार हरेला पर्व मनाया जाता है, लेकिन सावन मास की शुरुआत में मनाये जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व है. नेता जी सावन यानी हरियाली की शुरुआत. हरियाली यानी सुख-समृद्धि. इस शुरुआत पर हरेला का त्योहार मनाकर हम जहां अपने because परिवेश में खुशहाली की कामना करते हैं, वहीं दूर देश में जा बसे अपने अपनों की भी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं. बहनें चहकती हैं कि भाई को आशीर्वचन स्वरूप हरेला लगाए...
बेटा! हरेला बोना कभी नहीं छोड़ना!

बेटा! हरेला बोना कभी नहीं छोड़ना!

लोक पर्व-त्योहार
आज हरेला है, ईजा की बहुत याद आती है… डॉ. मोहन चंद तिवारी आज श्रावण संक्रांति के दिन हरेले का  त्योहार है. सुबह से ही ईजा (मां) की और कॉलेज की बहुत याद आ रही है.आज मुझे हरेला लगाने के लिए न तो मेरी मां जीवित है because और न ही कॉलेज जाने की कोई जल्दी!कॉलेज से सेवानिवृत्त हुए लगभग आठ साल हो गए हैं.ईजा के बिना हरेले का त्योहार कुछ सूना सूना सा लग रहा है.त्योहार की खुशी बहुत है किंतु आत्मतुष्टि बिल्कुल भी नहीं.पर मुझे संतोष है कि मातृत्वभाव का आशीर्वाद दिलाने वाला यह हरेला का त्यौहार आज भी मेरे और मेरे परिवारजनों के पास धरोहर के रूप में संरक्षित है. नेता जी मुझे याद है कि गर्मियों की छुट्टी के बाद हर साल 16 जुलाई को दिल्ली विश्वविद्यालय में कालेज खुलते थे तो संयोग से उसी दिन हरेले का त्यौहार भी होता था.मेरी मां मुझे because रात से ही सचेत करते हुए कहती- "च्यला यौ त्यौर कौलीज लै कौस छू ...
हरेला उत्तराखंड की हरितक्रान्ति की याद दिलाता कृषि पर्व

हरेला उत्तराखंड की हरितक्रान्ति की याद दिलाता कृषि पर्व

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डॉ. मोहन चंद तिवारी इस साल उत्तराखंड में because कहीं 7 जुलाई से तो कहीं 8 जुलाई से हरेला बोया जा चुका है और 16 जुलाई को संक्रांति के दिन इसे काटा जाएगा. हरेला वैदिक कालीन कृषि सभ्यता  का परंपरागत लोकपर्व है. उत्तम खेती, हरियाली, धनधान्य, सुख-संपन्नता और आर्थिक खुशहाली का इस त्यौहार से घनिष्ठ सम्बंध रहा है. माना जाता है कि जिस घर में हरेले के पौधे जितने बड़े होते हैं,उसके खेतों में उस वर्ष उतनी ही अच्छी फसल होती है. बुग्याल कैसे बोया जाता है हरेला? हरेले में बोए जाने वाले बीजों को 'सतनाजा'  कहते हैं अर्थात सात प्रकार के अनाजों का बीज, जिसमें जौ, मक्का, गेहूं, धान, मूँग, गहत, रैंस, पीली सरसों, सोयाबीन because आदि फसलों से कोई भी उपलब्ध सात बीज बोए जा सकते हैं. कुमाऊं के अधिकतर क्षेत्रों में काला बीज नहीं बोया जाता है परन्तु  कई जगह मास या उड़द आदि काला बीज भी बोया जाता है. कहीं कहीं पा...
राम और उनका राम राज्य

राम और उनका राम राज्य

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राम नवमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र आज सामाजिक जीवन की बढ़ती जटिलता और चुनौती को देखते हुए श्रीराम बड़े याद आ रहे हैं जो प्रजा वत्सल तो थे ही अपने निष्कपट आचरण द्वारा पग-पग पर नैतिकता के मानदंड स्थापित करते चलते थे और सत्य की स्थापना के लिए बड़ी से बड़ी परीक्षा के लिए तैयार रहते थे. लोक का आराधन तथा because  प्रजा का सुख उनके लिए सर्वोपरि था परन्तु आज राजा और प्रजा दोनों संकट के दौर से गुजर रहे हैं. आज के समाज में रिश्तों में दरार, कर्तव्य से स्खलन, मिथ्यावाद, अन्याय और भेद-भाव के साथ नैतिक मानदंडों से विमुखता के मामले जिस तरह बढ़ रहे हैं वह चिंताजनक स्तर पर पहुँच रहा है. विशेष रूप से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उच्च पदस्थ और संभ्रांत कहे जाने वाले लोगों का आचरण जिस तरह संदेह  और  विवाद के घेरे में आ रहा है वह भारतीय समाज के लिए घातक साबित हो रहा है. किताबी तिलिस्म यह स्थिति इस...
कब पूरा होगा रामराज्य का अधूरा सपना?

कब पूरा होगा रामराज्य का अधूरा सपना?

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राम नवमी पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी रामनवमी का पर्व प्रतिवर्ष भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है. धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म हुआ था. राम के जन्म से देव, ऋषि, किन्नर, चारण सभी आनंदित हो उठे थे. तब से लेकर हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल because नवमी को हर्षोल्लास के साथ श्रीराम जन्मोत्सव के रूप में मनाते आ रहे हैं. रामनवमी के दिन ही संतश्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की भी रचना आरंभ की. आज तो आनन्द भयो राम घर आवना भगवान श्रीराम के जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था ताकि आम जनता शांति और निर्भयता के साथ जीवन यापन कर सके, उसके साथ किसी but प्रकार से अन्याय, अत्याचार और भेदभाव न हो. पौराणिक मान्यता के अनुसार राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता ...
स्याल्दे बिखौती मेला : उत्तराखण्ड की लोक सांस्कृतिक धरोहर

स्याल्दे बिखौती मेला : उत्तराखण्ड की लोक सांस्कृतिक धरोहर

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चन्द तिवारी द्वाराहाट की परंपरागत लोक संस्कृति से जुड़ा उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती का मेला पाली पछाऊँ क्षेत्र का सर्वाधिक लोकप्रिय रंग रंगीला  त्योहार है. चैत्र मास की अन्तिम रात्रि ‘विषुवत्’ संक्रान्ति 13 या 14 अप्रैल को प्रतिवर्ष द्वाराहाट से 8 कि.मी.की दूरी पर स्थित विमांडेश्वर महादेव में बिखौती का मेला लगता है. बिखौती की because रात के अगले दिन वैशाख मास की पहली और दूसरी तिथि को द्वाराहाट बाजार में स्याल्दे बिखौती का मेला लगता है. मेले की तैयारियां आसपास के गांवों में एक महीने पहले से ही शुरु हो जाती हैं. मेले मगर इस साल  यह स्याल्दे बिखौती का  मेला 13 अप्रैल से 15 अप्रैल, तक रश्म अदायगी के तौर पर ही मनाया जाएगा. समाचार सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि नगर प्रशासन because और मेला समिति की बैठक में यह निर्णय हुआ है कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण 13 अप्रैल को विभां...
‘फूल संगराँद’ से शुरु होकर ‘अर्द्ध’ से होते हुए ‘साकुल्या संगराँद’ तक चलता रहता है उत्सव

‘फूल संगराँद’ से शुरु होकर ‘अर्द्ध’ से होते हुए ‘साकुल्या संगराँद’ तक चलता रहता है उत्सव

लोक पर्व-त्योहार
सदंर्भ : फूलदेई दिनेश रावत वसुंधरा के गर्भ से प्रस्फुटित एक—एक नवांकुर चैत मास आते—आते पुष्प—कली बन प्रकृति के श्रृंगार को मानो आतुर हो उठते हैं. खेतों में लहलहाती गेहूँ—सरसों की because फसलों के साथ ही गाँव—घरों के आस—पास पयां, आड़ू, चूल्लू, सिरौल, पुलम, खुमानी के श्वेत—नीले—बैंगनी, खेत—खलिहानों के मुंडैरों से मुस्कान बिखेरती प्यारी—सी फ्योंली के पीले फूल और बांज, बुराँश, खर्सू, मोरू, अंयार की हरियाली के बीच से अद्वितीय लालिमा का संचार करते बुराँश के सुर्ख लाल फूलों की उन्मुक्त मुस्कान और अनुपम सौंदर्य देखते ही बनती है. उत्तराखंड प्रकृति के इसी मनोरम दृश्य को देखकर उसी के निकटव नैकट्य में जीवन यापन करने वाला सीधा—सच्चा—सरल because लोक मानस इस प्रकार आनंदित—उत्साहित—उल्लासित हो उठता है कि उसके मन में भी जीवन को ऐसे ही अद्भुत व अनुपम बनाने की उत्कंठा जाग उठती है. फलतः प्रकृति प्...
होली रे होली, चित्रों से बोली!

होली रे होली, चित्रों से बोली!

लोक पर्व-त्योहार
आब-ए-पाशी   मंजू दिल से… भाग-13 मंजू काला बसंत ऋतु के प्रसिद्ध एवम भारतीय संस्कृति के प्रतीक होली पर्व का अभिप्राय है-आनंद, उल्सास, अथवा हास-परिहास! इस पर्व का आगमन ही ऐसे मौसम में होता है, so जब प्रकृति की आभा पूर्ण यौवन पर रहती है! because मंद-मंद पवन से वातावरण आमोदित-प्रमोदित होता रहता है! सम्पूर्ण सृष्टि उत्साह उमंग से झूम उठती है! टेसु और सेमल के फूल ऐसे लगते हैं, जैसे नव-वधू श्रंगार कर अपने अरसिक प्रिय को रिझाने के लिए बैठी हो! बसंत ऋतु यह पर्व पूरे भारत तथा नेपाल में खूब धूमधाम और उमंग के साथ मनाया जाने वाला पर्व हैं.पर्व का प्रारम्भ होलिकादहन से होता है. अगले दिन जनमानस अबीर, गुलाल so और गीले रंगों के साथ तथा पर्यावरण प्रेमी , फूलों व हर्बल गुलाल के साथ होली के पर्व का आनंद मनाते हैं. कहीं – कहीं यह पर्व आज भी अपनी प्राचीन परम्परा के अनुरूप ही  सप्ताह भर तक मनाया जाता ह...
होरी खेरे तो अइयो मेरे गांव!

होरी खेरे तो अइयो मेरे गांव!

लोक पर्व-त्योहार
फाल्गुनी में धमार का सौरव मंजू दिल से… भाग-12 मंजू काला होली पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है! राग, अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगी छटा के साथ अपनी पूर्णता को प्राप्त हो जाती है! फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं. होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है. उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है. इस दिन से फाग और धमार का गायन प्रारंभ हो जाता है. खेतों में सरसों खिल उठती है. बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है. पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं. खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं. देश के बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं! चारों तरफ़ रंगों की ...
कुमाऊंनी होली संग, झूमता बसंत

कुमाऊंनी होली संग, झूमता बसंत

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. पुष्पलता भट्ट 'पुष्प' हिमालय  के प्रांगण में स्थित, देवताओ की अवतार स्थली ,ऋषि मुनियों की तपोभूमि  उत्तराखंड अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विश्व भर में जाना जाता है. अभाव,कठोर परिश्रम,संघर्ष  में भी वहां के  लोग अपने लिए खुशियों के पल जुटा ही लेते हैं. जीवन यापन का प्रमुख साधन खेती होने के कारण  वहां तीज- त्योहार,  मेले- उत्सव सभी  कृषि से जुड़े होते हैं. होली ऐसा ही एक परम्परागत त्योहार है,  जो वहां के संघर्ष भरे जीवन में नव उमंग व नव उत्साह लेकर आता है. उत्तराखंड में बसंत पंचमी (इसे माघ शुक्ल पंचमी भी कहते हैं ) से शीत ऋतु की समाप्ति  मानी जाती है. पूरी धरती प्योली, बुराँस, दुदभाति, दाड़िम,सरसों के पुष्पों का पिछौड़ा (चूनर) ओढ़ दुल्हन सी इठलाती है. नई फसल कटकर खलिहानों से घर आती है. और अगली फसल के लिए खेतों में बुआई का काम शुरू हो जाता है. प्रकृति नाचती है, तो मन भी नाचता है. ...