सुख समृद्धि की कामना का पर्व हरेला
ऋतु खंडूरी
विधायक, यमकेश्वर
हरेला. यानी हर्याव. सुख समृद्धि की कामना का पर्व. दूसरों को आशीवर्चन देने का पर्व. खिलखिलाने का पर्व. दूसरों को खुश देखकर खुद खुश होने का पर्व. ऐसे ही तो कई संदेश छिपे हैं लोकपर्व हरेला में. इसे स्थानीय बोली में हर्याव भी कहते हैं. मूलत: कुमाऊं क्षेत्र में मनाये जाने वाला यह पर्व आज विश्वव्यापी है. यूं तो साल में तीन बार हरेला पर्व मनाया जाता है, लेकिन सावन मास की शुरुआत में मनाये जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व है.
उत्तराखंड केनेता जी
सावन यानी हरियाली की शुरुआत. हरियाली यानी सुख-समृद्धि. इस शुरुआत पर हरेला का त्योहार मनाकर हम जहां अपने
परिवेश में खुशहाली की कामना करते हैं, वहीं दूर देश में जा बसे अपने अपनों की भी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं. बहनें चहकती हैं कि भाई को आशीर्वचन स्वरूप हरेला लगाएंगे यानी उनके सिर पर उन पौधों को रखेंगे जो उन्होंने कुछ दिन पहले बोये थे और आज (सावन माह की पहली तिथि) को काटकर उनकी पूजा-अर्चना कर अब सिर में रखने के लिए बड़े जतन से पूजा की थाल में रखे हैं. माएं अपने बच्चों के सिर पर भी इस हरेला को रखती हैं और ढेरों आशीर्वाद देती हैं. हरेला लगाते वक्त यानी हरेले को सिर पर आशीर्वाद स्वरूप रखते हुए कहा जाता है-नेता जी
‘जी रया जागि रया, यो दिन यो मास भेंटने रया दुब जस पनपी जाया,
आकाश जस उच्च, धरती जस चकाव है जाया, सिंह ज तराण, स्याव जस बुद्धि हो,
हिमाव में ह्ंयू रुण तलक गंग–जमुन में पाणि रुण तलक जी रया जागि रया.
नेता जी
यानी लंबी उम्र की कामना.
दूब की तरह पनपते रहने का आशीर्वाद. शरीर सौष्ठव, लंबी उम्र का आशीर्वाद.नेता जी
कोरोना के इस कालखंड में हम सब लोगों को एक-दूसरे की मदद तो करनी ही है, एक दूसरे के लिए ऐसी ही कामनाएं भी करनी हैं तभी हम इस महामारी से पार पा पाएंगे.
असल में हरेला का त्योहार हमें साथ-साथ बने रहने की सीख देता है. साथ-साथ मन से. दूर देश में भी कोई व्यक्ति है तो उसके लिए भी मन से कामना. कई घरों में जो बच्चे बाहर रहते हैं, उनके नाम से भी पूजा की जाती है.नेता जी
हरेला पर्व की पूर्व सन्ध्या पर
इन तृणों की लकड़ी की पतली टहनी से गुड़ाई करने के बाद इनका विधिवत पूजन किया जाता है. जन मान्यतानुसार हिमालय के कैलाश पर्वत में शिव व पार्वती का वास माना जाता है. इस धारणा के कारण हरेले से एक दिन पहले कुछ इलाकों में शिव परिवार की मूर्तियां भी बनाने की परम्परा दिखती हैं.
नेता जी
उत्तराखण्ड के कई पर्व हैं जिनमें खेती-बाड़ी व पशुपालन का भाव होता है. लोक में व्याप्त इस महत्वपूर्ण अवधारणा को धरातल में साकार रूप प्रदान करने की दृष्टि से ही सम्भवतः हरेला
पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. हरेला जैसा पर्व ही अनेक जगह नवरात्र के समय भी मनाया जाता है. यूं भी इन दिनों भी एक नवरात्र चल रही हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है. उमंग और उत्साह के साथ मनाये जाने वाले इस ऋतु पर्व का विशेष महत्व है.नेता जी
कब होती है शुरुआत
कुमाऊं अंचल में हरेला पर्व सावन
मास के प्रथम दिन मनाया जाता है. बता दें कि उत्तराखंड में सौरपक्षीय पंचांग का चलन होने से ही यहां संक्रांति से नए माह की शुरुआत मानी जाती है. जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है, लेकिन विशेष महत्व सावन वाले हरेला का ही है. परम्परा के अनुसार हरेला पर्व से नौ अथवा दस दिन पूर्व पत्तों से बने दोने या रिंगाल की टोकरियों में हरेला बोया जाता है.नेता जी
इनमें पांच, सात अथवा नौ प्रकार के धान्य जैसे कि-धान, मक्का, तिल, उरद, गहत, भट्ट, जौं व सरसों के बीजों को बोया जाता है. घर के मंदिर में रखकर इन टोकरियां को रोज सबेरे पूजा
करते समय जल के छींटां से सींचा जाता है. दो-तीन दिनों में ये बीज अंकुरित होकर हरेले तक सात-आठ इंच लम्बे तृण का आकार पा लेते हैं. हरेला पर्व की पूर्व सन्ध्या पर इन तृणों की लकड़ी की पतली टहनी से गुड़ाई करने के बाद इनका विधिवत पूजन किया जाता है. जन मान्यतानुसार हिमालय के कैलाश पर्वत में शिव व पार्वती का वास माना जाता है. इस धारणा के कारण हरेले से एक दिन पहले कुछ इलाकों में शिव परिवार की मूर्तियां भी बनाने की परम्परा दिखती हैं. इन मूर्तियां को यहां डिकारे कहा जाता है.नेता जी
आज के दौर में अपनी मान्यताओं
और परंपराओं के गूढ़ रहस्य को और भी समझना आवश्यक है. पहले सावन मास से ही चातुर्मास शुरू हो जाता है, इसमें यात्राओं पर तो प्रतिबंध होता ही था, तामसिक चीजों के सेवन पर भी रोक थी. आज इन बातों का वैज्ञानिक आधार भी है. इसलिए परंपराओं के वैज्ञानिक आधार को समझिए. त्योहार के मर्म को समझते हुए आइये इस पवित्र त्योहार पर हम सभी मिलकर सबकी खुशहाली की कामना करें और दुआ करें कि महामारी का प्रकोप जल्दी खत्म हो.