जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने वाले उत्तराखण्ड के जलपुरुष व जलनारियां

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भारत की जल संस्कृति-35

  • डॉ. मोहन चंद तिवारी

उत्तराखण्ड में जल-प्रबन्धन-6

प्रस्तुत लेख 1 जुलाई, 2017 को ‘प्रज्ञान फाउंडेसन’ द्वारा नई दिल्ली स्थित अल्मोड़ा भवन में ‘उत्तराखंड में पानी की समस्या तथा समाधान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी because में दिए गए मेरे वक्तव्य का संशोधित तथा परिवर्धित सार है, जो वर्त्तमान सन्दर्भ में भी अत्यंत प्रासंगिक, उपयोगी और गम्भीरता से विचारणीय है.

वाटर हारवैस्टिंग

इस लेख के द्वारा दूधातोली के जलपुरुष सच्चिदानन्द भारती और अल्मोडा जिले की जलनारी बसंती बहन भुवाली के जगदीश नेगी और नैनीताल के चंदन सिंह नयाल द्वारा अत्यंत विषम परिस्थियों में भी जल संरक्षण और पर्यावरण के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए विशेष योगदान से जन सामान्य को अवगत कराया गया है और यह भी because बताया गया है कि अनेक प्रकार की चुनौतियों और संघर्षों से जूझते हुए इन उत्तराखंड के जल पुरुषों और जल नारियों ने जीवन के मूल धारक तत्त्व ‘जल’ और उसके संवाहक नदियों को अपने सद्प्रयासों से पुनर्जीवित किया और उनके संरक्षण हेतु भगीरथ प्रयास भी किया. निस्संदेह इस राष्ट्रीय जल संकट के कठिन दौर में ये सभी पर्यावरण प्रेमी हमारे लिए वंदनीय और अनुकरणीय हैं.

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हमारे उत्तराखंड का इतिहास गवाह है कि पौड़ी तथा चमोली जिलों में ‘चिपको आन्दोलन’ तथा ‘वन बचाओ’ अभियानों के कारण ही उत्तराखण्ड के वन पर्यावरण because और जल पारिस्थिकी की रक्षा हो सकी.इन जिलों में महिला संगठनों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी वनों की रक्षा को एक शक्तिशाली आन्दोलन के साथ जोड़ा जिसके परिणाम स्वरूप उत्तराखण्ड के वनों की रक्षा हो सकी तथा प्राकृतिक जल की उपलब्धता को पर्यावरण वैज्ञानिक अनुकूल धरातल भी प्राप्त हुआ. निस्संदेह पहाड़ की पर्यावरण पारिस्थितिकी की जानकारी रखने वाले और उसे प्रायोगिक धरातल पर चरितार्थ करने वाले ऐसे जल,जंगल,जमीन से जुड़े लोग ही असली ‘जलपुरुष’ और ‘जलनारियां’ हैं.

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जलपुरुष सच्चिदानन्द भारती

वर्त्तमान सन्दर्भ में हम सर्वप्रथम उत्तराखण्ड के दूधातोली क्षेत्र में सच्चिदानन्द भारती के ‘वाटर हारवेस्टिंग’ प्रयोगों की सर्वप्रथम जानकारी देना चाहेंगे, जिन्होंने इस क्षेत्र की because बंजर पड़ी हुई 35 गांवों की जमीन में सात हजार ‘चालों’ का निर्माण करके जल संकट की समस्या के समाधान का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत किया है. उत्तराखण्ड में जब 1999 में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था तब दूधा तोली ही एक ऐसा क्षेत्र था जहाँ मई तथा जून के महीनों में भी वहाँ के ‘चाल’ पानी से लबालब भरे हुए थे.सच्चिदानन्द भारती जी ने पौड़ी जिले की थलीसेंण और बीरोंखाल, because विकास खण्डों के एक नहीं बल्कि 133 गांवों में जलसंरक्षण एवं संबर्द्धन की योजनाओं को सफल बनाया तथा पूरी तरह सूख चुके 3 धारों और 5 नौलों को पुनर्जीवित किया. करोडों रुपयों की सरकरी योजनाएं जो काम नहीं कर पाती वह काम सच्चिदानन्द भारती ने जन सहभागिता के आधार पर कर दिखाया.

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जल नारी बसंती बहन

जलसंरक्षण के अभियान को नेतृत्व प्रदान करने वाली अल्मोडा जिले की बसंती बहन का नाम भी विशेष रूप because से उल्लेखनीय है जिन्होंने उत्तराखण्डवासियों के लिए जीवन दायिनी मानी जाने वाली कोसी नदी और पार्श्ववर्ती क्षेत्र के वनों का युद्धस्तर पर संकट मोचन का अभियान चलाया जिसके फल स्वरूप आज कोसी नदी सूखने से बच गई. गौरतलब है कि अल्मोड़ा शहर को पानी की आपूर्ति कोसी नदी से ही होती है. कोसी वर्षा पर निर्भर नदी है और गर्मियों में इस नदी का प्रवाह कम हो जाता है.

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बसंती बहन पहाड़ के पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रमों से जुड़ी एक जागरूक जल वैज्ञानिक की दृष्टि से यह देख रही थी कि यदि कोसी के निकटस्थ वनों की कटाई को नहीं because रोका गया और वनों में लगने वाली आग पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले कुछ वर्षों में कोसी का अस्तित्व समाप्त हो सकता है.बसंती बहन ने इस समस्या को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया तथा महिला संगठनों की भागीदारी से वनों की रक्षा करते हुए कोसी नदी को सूखने से बचा लिया.

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शिप्रा नदी के संरक्षक जगदीश नेगी

भवाली निवासी श्री जगदीश नेगी भी पिछले कई वर्षों से जीवनदायनी शिप्रा नदी के जीर्णोद्धार के प्रति अत्यंत because ही समर्पण भाव से नदी संरक्षण का महान कार्य कर रहे हैं. अत्यधिक प्रदूषण और अंधाधुंध पेड़ों के कटने के कारण देवभूमि की नदियां,लघु स्तर के गाड़-गधेरे,जो विलुप्ति के कगार पर हैं, उस अमूल्य जल धरोहर की रक्षा के लिए जगदीश नेगी सदा तत्पर रहते हैं.

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गौला नदी में पॉलिथीन फेंकने वालों से लड़ना हो या जलस्रोतों की गंदगी को साफ करने की बात हो अथवा शिप्रानदी के सरंक्षण व जीर्णोद्धार के सामूहिक सरोकार हों, जगदीश because नेगी जी स्वयं जूझते हैं और लोगों को भी प्रेरित करते नजर आते हैं. इसके अलावा अपनी लेखनी के माध्यम से अपने क्षेत्र विशेष की जल समस्या को राज्य प्रशासन तक पहुंचाने का कार्य भी जगदीश नेगी जी पिछले कई वर्षों से करते आए हैं.ये जगदीश नेगी जी के सद्प्रयासों का ही परिणाम है,शिप्रा नदी के उद्धार के लिए अब सरकार भी प्रयासरत हो गई है और उसके विकास और आस-पास पौधरोपण आदि योजनाएं बना रही है.

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‘शिप्रा कल्याण समिति’, भवाली के अध्यक्ष के रूप में सेवारत जगदीश नेगी पहाड़ के पढे लिखे और विदेशों में अच्छे पदों पर आसीन युवाओं का एक ग्रुप बनाना चाहते हैं,जोbecause पहाड़ के जल,और जंगल को बचाने के सरोकारों से जुड़ सकें.नेगी जी कहते हैं कि आज पहाड़ में नदियों के जल-स्रोतों की हालत निरन्तर खराब होती जा रही है,नदियों में कूड़ा-कचरा,और सीवर डालकर नदियों को दूषित कर दिया जा रहा है,यदि हम युवा प्रयास करे तो,खुद ही नदियों को प्रदूषण से मुक्त किया जा सकता है.”

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जलपुरुष चंदन सिंह नयाल

हाल ही में सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक because में ग्राम नाई के निवासी चंदन सिंह नयाल छह साल से जल संरक्षण के काम में जुटे हैं.लॉकडाउन का सदुपयोग करते हुए उन्होंने इन वर्षों में भी ग्रामीणजनों के सहयोग से अपने गांव में 15 चाल-खाल बनाए हैं. गांव-गांव में पानी के पारम्परिक स्रोतों को रिचार्ज करने के प्रयोजन से वह अब तक 100 से ज्यादा चाल-खाल बना चुके हैं.

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नयाल का यह प्रयास हर साल बरसात से पहले जलसंचय  के लिए किया जाता है,ताकि पानी की कमी न होने पाए और उस क्षेत्र के लुप्त जलस्रोतों को प्राकृतिक उपचार करतेbecause हुए पुनर्जीवित किया जा सके.चंदन सिंह नयाल के अनुसार गांव के आस पास पांच हजार से दस हजार लीटर तक पानी की क्षमता वाले चाल-खाल बनाए जाने चाहिए,यदि चार से पांच ग्रामीण लगातार सात घंटे काम करें तो दस हजार लीटर क्षमता वाला एक चाल खाल आसानी से बनाया जा सकता है.

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कोसी नदी जिस पर समस्त अल्मोड़ावासियों का जीवन निर्भर करता है.

पहाड़ों में जलसंरक्षण के कार्य में लगे हुए उपर्युक्त कुछ जाने माने व्यक्तियों के अलावा भी कुमाऊं और गढ़वाल के जिलों में ऐसे अनेक पर्यावरण प्रेमी लोग हैं जो जमीनी स्तर because पर जलसंरक्षण के कार्य में संलग्न हैं जिन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से आगे लाने की जरूरत है ताकि जल संकट के इस दौर में मातृभूमि की निःस्वार्थभाव से सेवा करने वाले इन धरतीपुत्रों से लोग प्रेरणा ले सकें.

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अंत में कहना चाहुंगा कि चौड़ी पत्ती के जंगलों की कमी के कारण उत्तराखंड में पानी का भूमिगत जल भण्डार प्रभावित हुआ है, क्योंकि जंगल और पानी का आपस में ऐसा रिश्ता है, जो जमीन को टिकाकर रखते है, जमीन भी जंगलों और पानी की संरचनाओं को धारण करके रखती है. जमीन के अन्दर नमी भी जंगल और पानी के because कारण है. इसलिए जरूरी है कि ऊपरी ढालदार क्षेत्रों में जलग्रहण संरचनायें (चाल-खाल) मौजूद रहनी चाहिए वहां जंगल भी होने चाहिए, जिसके कारण नीचे बसे गांवों के जलस्रोतों की जलराशि में वृद्धि हो सके. इस जल संरक्षण के अभियान को युद्धस्तर पर जारी रखने के लिए इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि क्षेत्र के जलवैज्ञानिकों की देखरेख में मनरेगा में भी चाल खाल निर्माण को मुख्य रूप से वरीयता दी जानी चाहिए ताकि श्रमिक कल्याण के साथ साथ जल संकट का भी समाधान हो सके.

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सभी चित्र गूगल से साभार

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, because 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

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