Tag: Rawain Culture

पुरोला-मोरी: आषाढ़ी सांस्कृतिक  मेलों का आगाज 

पुरोला-मोरी: आषाढ़ी सांस्कृतिक  मेलों का आगाज 

उत्तरकाशी
नीरज उत्तराखंडी, पुरोला मोरी विकास खंड के गोविंद वन्य जीव विहार क्षेत्र में स्थित गांवों में आषाढ़ माह में  आयोजित होने वाले सांस्कृतिक  मेलों का आगाज  हो गया  है.  आषाढ़ माह के मेलों में क्षेत्र के ईष्टदेव सोमेश्वर महादेव प्रत्येक गांव में पहुंचकर रात्रि विश्राम कर रात्रि जागरण करते हैं. ग्रामीण  तांदी,रासौं आदि नृत्य  कर अपनी पौराणिक संस्कृति की छटा बिखेरते  हैं. तथा क्षेत्र की खुशहाली की कामना करते है.  गोविंद वन्य जीव विहार  क्षेत्र के बड़ासू,अडोर,पंचगाई पट्टी में आषाढ़ माह में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक  मेलोंका आगाज हो गया  है. क्षेत्र के इष्टदेव सोमेश्वर महाराज इस अवसर पर अपने पुजारी,माली,बजीर,स्याणे, क्षेत्र के युवा,युवती, बुजुर्गो के साथ पद यात्रा कर प्रत्येक गांव में रात्रि विश्राम कर ग्रमीणों को क्षेत्र की समृद्धि एव॔ खुशहाली का शुभाशीष देते है. बुधवार को मेले का आगाज ...
रवांई में पत्रकारिता को दी नई पहचान!

रवांई में पत्रकारिता को दी नई पहचान!

उत्तरकाशी
रवांई मेल के संपादक राजेन्द्र असवाल की पुण्य तिथि पर विशेष महावीर रवांल्टा रवांई क्षेत्र में पत्रकारिता की बात करें तो आज अनेक लोग इस क्षेत्र में सक्रिय हैं. लेकिन, इस क्षेत्र से किसी भी नियमित समाचार पत्र का प्रकाशन नहीं हो सका. सिर्फ अस्सी के दशक के पूर्वाद्ध में बर्फिया लाल जुवांठा और शोभा राम नौडियाल के संपादन में पुरोला से निकले ‘वीर गढ़वाल’ की जानकारी मिलती है. 1992 में पुरोला से पहली बार "रवांई मेल" (साप्ताहिक) समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ और इसके संस्थापक, प्रकाशक और संपादक थे, राजेन्द्र असवाल. राजेन्द्र असवाल का जन्म नौगांव विकासखंड के बलाड़ी गांव में 1 जनवरी 1964 को हुआ था. आपके पिता का नाम नैपाल सिंह और मां का नाम चंद्रमा देवी था. तीन भाइयों में आप घर के सबसे बड़े बेटे थे. आपकी आरंभिक शिक्षा गांव में ही हुई, फिर राजकीय इंटर कालेज नौगांव से इंटर करने के बाद स्नातक देहरादून ...
‘पूष क त्यार’: एक नहीं अनेक आयाम

‘पूष क त्यार’: एक नहीं अनेक आयाम

लोक पर्व-त्योहार
दिनेश रावत देवभूमि उत्तराखण्ड के सीमांत उत्तरकाशी का पश्चिमोत्तर रवाँई अपनी सामाजिक—सांस्कृतिक विशिष्टता के लिए सदैव ही विख्यात रहा है. इस लोकांचल में होने वाले पर्व—त्योहारों की श्रृंखला जितनी विस्तृत है, सामाजिक—सांस्कृतिक दृष्टि से उतनी ही समृद्ध है. पर्व—त्योहारों के आयोजन में प्रकृति व संस्कृति, ऋतु व फसल चक्र की गहरी छाप दिखती है. फिर चाहे वह आयोजन के तौर—तरीके हों या इन अवसरों पर बनने वाले विशेष भोजन, सभी मौसमानुकूल ही बनते हैं. इस दौरान जो रंग दिखते हैं वह बहुत ही न्यारे और प्यारे हैं. 'पूष क त्यार' यानी 'पौष के त्योहार' इस लोकांचल में होने वाले पर्व—त्योहारों में प्रमुखता से शामिल हैं. माघ माह तक इनकी रंगत बनी रहने पर इन्हें 'माघी मघोज' या 'मरोज' भी कहते हैं. पौष माह में इस अंचल की अधिकांश पर्वत श्रृंखला बर्फ की चादर ओढ़ लेती हैं. कई बार बर्फ की वहीं श्वेद चादर घाटी या तलहटी म...
लोक साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित हुए रवांई के कई साहित्याकार

लोक साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित हुए रवांई के कई साहित्याकार

उत्तरकाशी
दिनेश रावत के रवांल्टी कविता संग्रह 'का न हंदू' का लोकार्पण हिमांतर ब्यूरो, पुरोला लोक भाषा संस्कृति को बचाने  एवं नवांकुर लोक कवियों को मंच प्रदान करने  के उद्देश्य से अखिल भारतीय लोक साहित्यिक मंच द्वारा उत्कृष्ट राइका पुरोला में आयोजित वार्षिक अधिवेशन एवं सम्मान  समारोह में दो दर्जन से अधिक  कवियों ने रवांल्टी, बावरी-जौनसारी लोक भाषा में लोक के विभिन्न  रंगों को कविताओं के माध्यम से रेखाकिंत किया. इस दौरान दिनेश रावत के कविता संग्रह 'का न हंदू' का उपस्थित अतिथियों द्वारा लोकार्पण किया गया. उल्लेखनीय है कि यह दिनेश रावत की छटवीं और रवांल्टी का पहला संग्रह है. लोकार्पण की कड़ी मे लोक गायक श्याम सिंह चौहान कृत  जौनसारी एल्बम "हांऊ माईए" गीत को भी लोकार्पित किया गया. अखिल भारतीय लोक साहित्य मंच के वार्षिक अधिवेशन में पहुंचे रवांई, जौनसार, बावर की साहित्यिक हस्तियों का सम्मान समार...
रवांई क्षेत्र में पत्रकारिता की अविरल लौ जलाते रहे राजेन्द्र असवाल

रवांई क्षेत्र में पत्रकारिता की अविरल लौ जलाते रहे राजेन्द्र असवाल

देहरादून, साहित्‍य-संस्कृति
पुण्य स्मरण: पुण्य तिथि (30 मई) पर विशेष महावीर रवांल्टा रवांई क्षेत्र में पत्रकारिता की बात करें तो आज अनेक लोग इस क्षेत्र में सक्रिय हैं लेकिन इस क्षेत्र से किसी भी  नियमित पत्र का प्रकाशन नहीं हो सका सिर्फ अस्सी के दशक के पूर्वाद्ध में  बर्फिया लाल जुवांठा और शोभा because राम नौडियाल के संपादन में पुरोला से निकले 'वीर गढ़वाल' की जानकारी मिलती है. सन् 1992 ई में पुरोला से पहली बार 'रवांई मेल' (साप्ताहिक) समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ और इसके संस्थापक, प्रकाशक व संपादक थे- राजेन्द्र असवाल. अपनेपन राजेन्द्र असवाल का जन्म नौगांव विकासखंड के because बलाड़ी गांव में 1 जनवरी सन् 1964 ई को हुआ था.आपके पिता का नाम नैपाल सिंह और मां का नाम चंद्रमा देवी था.तीन भाईयों में आप घर के सबसे बड़े बेटे थे. आपकी आरंभिक शिक्षा गांव में ही हुई फिर राजकीय इंटर कालेज नौगांव से करने के बाद स्नातक ...
रवाँई यात्रा – भाग—3  (अंतिम किस्त )

रवाँई यात्रा – भाग—3  (अंतिम किस्त )

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति
भार्गव चन्दोला, देहरादून महोत्सव के अंतिम दिन सुबह आंख खुली तो ठंड का अहसास रजाई से बाहर आकर ही हुआ। नौगांव फारेस्ट गेस्ट हाउस के बाहर आये तो देखा चारों तरफ से बांज देवदार के पेड़ों के बीच सुनसान जगह पर गेस्ट हाउस बना है, आसपास का दृश्य बेहद रूमानी था मगर बांज बुरांश देवदार के बीच चीड़ के पेड़ देखकर अफ़सोस हुआ न जाने कौन व क्यों चीड़ की प्रजाति को उत्तराखंड लेकर आया होगा? चीड़ के पेड़ इतने घातक हैं कि ये बांज, बुरांस, आंवला, देवदार, चारापति, खेती सबकुछ निगलता जा रहा है। गर्मी के दिनों में इसके कारण जंगल के जंगल, पशु—पक्षी आग में स्वाह हो जाते हैं। चीड़ को रोकने के ठोस उपाय किये जाने चाहिए वर्ना हम बांज बुरांश देवदार को पूरी तरह से खो देंगे, खैर आसपास के खूबसूरत नज़ारे को मोबाईल कैमरे में कैद कर हम गेस्ट हाउस से नौगांव बाजार की तरफ निकल पड़े। आशीष जी ने एक जिम्मेदार लोकसेवक की तरह जब जब भ...
रवाँई यात्रा – भाग-2

रवाँई यात्रा – भाग-2

Uncategorized, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
भार्गव चंदोला 28, 29, 30 दिसंबर, 2019 उत्तरकाशी जनपद की रवांई घाटी के नौगांव में तृतीय #रवाँई_लोक_महोत्सव अगली सुबह आंख खुली तो बाहर चिड़ियों की चहकने की आवाज रजाई के अंदर कानों तक गूंजने लगी, सर्दी की ठिठुरन इतनी थी की मूहं से रजाई हटाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कुछ समय बिता तो दरवाजे के बाहर से आवाज आई, चाय—चाय, मनोज भाई ने दरवाजा खोला तो बाहर Nimmi Kukreti Rashtrawadi हाथ में चाय लिए खड़ी थी। प्रायः मैं चाय से दूरी रखता हूँ, मगर रवाँई की उस ठिठुरन में ऐसा करना संभव न था। मैंने निम्मी से आग्रह किया, निम्मी गुनगुना पानी पिला देती तो फिर चाय का स्वाद भी लेने का आनंद बढ़ जायेगा। निम्मी झट से गुनगुना पानी भी ले आई, निम्मी के हाथ से बनी चाय में गांव की गाय के दूध का स्वाद था, निम्मी ने सभी साथियों को बहुत आत्मियता के साथ चाय पिलाकर सुबह खुशनुमा बना दी थी। बिस्तर छोड़कर बाहर आये तो बा...