रवाँई यात्रा – भाग—3  (अंतिम किस्त )

  • भार्गव चन्दोला, देहरादून

महोत्सव के अंतिम दिन सुबह आंख खुली तो ठंड का अहसास रजाई से बाहर आकर ही हुआ। नौगांव फारेस्ट गेस्ट हाउस के बाहर आये तो देखा चारों तरफ से बांज देवदार के पेड़ों के बीच सुनसान जगह पर गेस्ट हाउस बना है, आसपास का दृश्य बेहद रूमानी था मगर बांज बुरांश देवदार के बीच चीड़ के पेड़ देखकर अफ़सोस हुआ न जाने कौन व क्यों चीड़ की प्रजाति को उत्तराखंड लेकर आया होगा? चीड़ के पेड़ इतने घातक हैं कि ये बांज, बुरांस, आंवला, देवदार, चारापति, खेती सबकुछ निगलता जा रहा है। गर्मी के दिनों में इसके कारण जंगल के जंगल, पशु—पक्षी आग में स्वाह हो जाते हैं। चीड़ को रोकने के ठोस उपाय किये जाने चाहिए वर्ना हम बांज बुरांश देवदार को पूरी तरह से खो देंगे, खैर आसपास के खूबसूरत नज़ारे को मोबाईल कैमरे में कैद कर हम गेस्ट हाउस से नौगांव बाजार की तरफ निकल पड़े।

आशीष जी ने एक जिम्मेदार लोकसेवक की तरह जब जब भी मैंने उन्हें गंगनाणी के 100 बेडेड रमसा छात्रावास की समस्याओं के निराकरण के लिए लिखा तो उन्होंने हर बार जवाब दिया, उनके अधीनस्थ कर्मचारियों की लापरवाही के चलते समाधान होने में वक्त जरूर लगा मगर अंततः समाधान हो गया

आज हमें महोत्सव से पहले उन बच्चों के बीच पहुंचना था जिनके साथ पिछले वर्ष हमने खाश समय व्यतीत किया था, अब तक आप समझ चुके होंगे मैं किन बच्चों की बात कर रहा हूं?

नहीं समझे?

अच्छा चलो मैं ही बता देता हूँ, पिछले वर्ष जब हम यानी वरिष्ठ पत्रकार Dinesh Kandwal, Manoj Istwal, Subhash Taraan, Ved Vilash, इंद्र सिंह नेगी व मैं जब रवांई महोत्सव में आये तो हम एक खाश जगह गए थे उस जगह का नाम है गंगनाणी, जहां सर्व शिक्षा अभियान(SSA) के तहत संचालित “कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय छात्रावास” जिसकी वार्डन मीनाक्षी रावत बत्रा जी हैं जिनके संरक्षण में 6th से 8th तक की 50 बेटियां व राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) के तहत चलने वाले “100 बेडेड आवासीय बालिका विद्यालय छात्रावास” जिसकी वार्डन सरोजनी रावत हैं जिनके संरक्षण में 9th से 12th तक की 100 बेटियां दो अलग अलग छात्रावासों में रहती हैं, तब हमें उन बेटियों से मिलकर उनकी प्रतिभा देखने को तो मिली ही बल्कि उन्हीं की जुबानी 100 बेडेड रमसा छात्रावास की कमियां भी जानने को मिली, जिसका हमने वीडियो बनाकर सोशियल मीडिया के माध्यम से उत्तरकाशी के जिलाधिकारी आशीष चौहान जी को संज्ञान दिलवाने का प्रयास किया था। आज छात्रावास में क्या बदलाव आया है यही सब जानने के लिए हम नौगांव से आगे गंगनाणी स्थित छात्रावास की तरफ चल दिए। आज मैं, मनोज भाई, इंदु नेगी, कुसुम कंडवाल व निम्मी कुकरेती छात्रावास में पहुंचे तो छात्रावास की वार्डन सरोजनी रावत जी ने गर्मजोशी के साथ सबका स्वागत किया। छात्रावास में रह रही बेटियों से मिलकर पता चला कि पिछली बार जो चांद तारे दिखने वाली रजाई, पानी के कनेक्शन, सड़क, सोलर गीजर आदि की समस्याएं थीं उन समस्याओं का अब निराकरण हो गया है, देखकर ख़ुशी हुई कि चलिए हमारा छोटा सा प्रयास सफल हुआ। आज मन था कि उत्तरकाशी के जिलाधिकारी आशीष चौहान को जाकर धन्यवाद करूं, फिर सूचना मिली कि आज वो रवांई महोत्सव में पहुंच रहे हैं तो सोचा चलो वहीँ धन्यवाद करूंगा। पिछले एक साल में आशीष जी ने एक जिम्मेदार लोकसेवक की तरह जब जब भी मैंने उन्हें गंगनाणी के 100 बेडेड रमसा छात्रावास की समस्याओं के निराकरण के लिए लिखा तो उन्होंने हर बार जवाब दिया, उनके अधीनस्थ कर्मचारियों की लापरवाही के चलते समाधान होने में वक्त जरूर लगा मगर अंततः समाधान हो गया जिसके लिए आशीष जी का धन्यवाद, जो नईं समस्यायें 100 बेडेड रमसा छात्रावास में दिखाई दीं उसके लिए जिलाधिकारी आशीष चौहान जी से निवेदन करूंगा कि वो यहां तैनात महिला चौकीदार को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें हथियार मुहैया करवाएं व एक और चौकीदार की तैनाती छात्रावास में करवाएं साथ ही चौकीदार का मिलने वाला 5 हज़ार रुपये का अपर्याप्त वेतन को बढ़वाएं। छात्रावास में तैनात 3 भोजन मातायें जो रात 10 बजे तक फ़िरी हो पाती हैं उनको मिलने वाला 3 हज़ार रुपये का वेतन उनका शोषण का प्रतीक है उसमें सम्मानित बढ़ोतरी के साथ उन्हें आवास की व्यवस्था छात्रावास में करवाएं। 100 छात्राओं में 300 लीटर सोलर गीजर अपर्याप्त हो रहा है जिसकी शिकायत स्वयं छात्राओं द्वारा की गई है और वार्डन को चूल्हे में छात्राओं के नहाने हेत पानी गर्म करना पड़ता है अतः कम से कम 3 हज़ार लीटर का सोलर गीजर लगवाने के आदेश दें।

सुरक्षा के लिए छात्रावास की चारदीवारी को ऊंचा व सुरक्षित करवाने व छात्राओं के शैक्षिणक व शारीरिक विकास के लिए छात्रावास में सब्जैक्ट टीचर, खेल मैदान व खेल सामग्री उपलब्ध करवाने का आदेश दें, आशा है आशीष चौहान जी छात्राओं की समस्याओं को देखते हुए उचित संज्ञान लेंगे व पूर्व की भांति नई समस्याओं का समाधान करवाएंगे! 100 बेडेड रमसा छात्रावास वार्डन सरोजनी रावत जी ने सभी साथियों का खुद के व छात्राओं की तरफ से आभार प्रकट करते हुए छात्रावास से विदा किया, छात्रावास की बेटियों संग बिताए ये पल बहुत खाश व यादगार हो चले थे (वीडियो/फोटो के लिए साथी निम्मी कुकरेती का आभार जो साथ में संलग्न है) आते समय वहीँ बगल में एसएसए छात्रावास की वार्डन मिनाक्षी रावत बत्रा जी से चलते चलते सूक्ष्म मुलाकात करते हुए हम वापस रवांई महोत्सव के लिए आगे बढ़ चले।

रास्ते भर में वादियों को निहारते, हंसी—मजाक करते हुए हम सभी आज रवांई महोत्सव के अंतिम दिन के कार्यक्रम देखने लगभग 2 बजे महोत्सव स्थल पर पहुंचे, आज कुछ और खाश कार्यक्रम होने थे जिनमें जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण की प्रस्तुति, कवि सम्मलेन व रवांई सम्मान जो उन महापुरुषों के नाम से दिए जाने थे जिन्होंने रवांई को आसमान—सी ऊंचाई दिलवाने में अपना अहम योगदान प्रदान किया था।

रवांई के लोगों ने वो स्थल जहां महोत्सव होता है वो भूमि सार्वजनिक प्रयोजनार्थ दान की है। Shashi Mohan Rawanlta व उनकी टीम ने रवांई महोत्सव का आयोजन कर क्षेत्र के लोगों को जड़ों से जुड़े रहने का साहसिक कदम उठाया मगर जनप्रतिनिधियों का क्या? उनका क्या योगदान? पिछले दो दिन से देख रहा हूं 10 से 15 हज़ार दर्शक महोत्सव में आ रहे हैं, तमाम जनप्रतिनिधि प्रधान, क्षेत्र पंचायत, ज़िला पंचायत, विधायक सबकी उपस्थिति वहां हो रही है, उनके संबोधन भी वहां हुए हैं मगर किसी भी जनप्रतिनिधि के मुहं से मैंने ये नहीं सुना कि वहां आई मां बहनों को महोत्सव स्थल तक आने में परेशानी हुई होगी, यहां शौचालय न होने से शौच जाने की परेशानी हो रही होगी? वो उनकी पीड़ा को महसूस कर रहे हैं और समस्या के समाधान के लिए जल्द से जल्द उस स्थल पर पुरुष व महिला कम से कम 5-5 शौचालय बनवाएंगे, महोत्सव स्थल तक पहुंचने के रास्ते को पक्का व सुरक्षित बनवाएंगे, समारोह स्थल के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनवाएंगे, सौन्दरियकरण, स्थाई स्टेज व दो गेस्ट रूम एक हॉल बनवाकर देंगे ताकि आगे से इस स्थल पर होने वाले कार्यक्रमों को और बेहतर रूप से संचालित किया जा सके, अगर ऐसा कोई जनप्रतिनिधि बोल देता तो ख़ुशी होती लगता आज के दौर के जनप्रतिनिधि संवेदनशील हैं, सोचियेगा व समझ आ जाए तो उचित कदम उठाइयेगा या उठाने को आवाज उठायेगा।

आज प्रीतम के जागर पर किसी पर देवता नहीं नाचा मगर मैं जल्दी ही समझ गया जागर की भाषा रवांई नहीं, गढ़वाली है, दरअसल वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो नाचता तो इंसान ही है देवता तो आड़ है। खैर प्रीतम जागर को खींचते गए और अंततः खींचते—खींचते खुद ही थम गए। प्रीतम बेहद उम्दा लोकगायक हैं

दो दिन से महोत्सव का संचालन Prem Pancholi व Dinesh Rawat जी बहुत खूबसूरती व तालमेल के साथ करके दर्शकों को बखूबी बांधे रखे हुए थे। आज कार्यक्रम की शुरुआत लोकगायक प्रीतम भरतवाण ने अपने प्रसिद्ध गीत “सरूली मेरु जिया लगी गे, तेरी रौंतेली मुखड़ी माँ” को गाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उसके बाद उन्होंने जागर प्रस्तुत किया मेरी नज़र बार—बार दर्शकों की तरफ जा रही थी कि क्या कारण है आज प्रीतम के जागर पर किसी पर देवता नहीं नाचा मगर मैं जल्दी ही समझ गया जागर की भाषा रवांई नहीं, गढ़वाली है, दरअसल वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो नाचता तो इंसान ही है देवता तो आड़ है। खैर प्रीतम जागर को खींचते गए और अंततः खींचते—खींचते खुद ही थम गए। प्रीतम बेहद उम्दा लोकगायक हैं, उन्हें समाज से अन्धविश्वास हटाने में योगदान करना चाहिए न कि अन्धविश्वाश को बढ़ावा देना चाहिए। पढ़े—लिखे लोगों को अवश्य संज्ञान लेकर वैज्ञानिक नजरिया अपनाना चाहिए तभी समाज सही दिशा में सोच विकसित कर सकता है।

प्रीतम की प्रस्तुति के बाद मौका आया कवि सम्मलेन का जिसके संचालन का भार रवांई की शान लेखक व कवि Mahaveer Prasad Rawanlta जी के कंधों पर था, माइक हाथ में थामते ही उन्होंने जिस अंदाज में अतिथियों का स्वागत किया वो कोई राष्ट्रीय स्तर का कवि/लेखक ही कर सकता है। कवि प्रदीप रावत, प्रेम पंचोली, संदीप रावत आदि कवियों के साथ तीन महिला कवियों को भी कविता पाठ करने को मंच सज चुका था, एक के बाद एक कवियों ने अपनी कविताओं की शानदार प्रस्तुतियां देकर दर्शकों के हाथों तालियाँ बटोरी व वाहवाही लूटी (वीडियो संलग्न)।

भेड़ों का खूबसूरत झुण्ड जा रहा है उन्हें मोबाईल में कैद किया तो देखा सड़क के नीचे बाजार का सारा कूड़ा यमुना की तरफ फेंका गया था जो स्वच्छ भारत अभियान व नमामि गंगे को आइना दिखा रहा था

धीरे धीरे महोत्सव अपने अंतिम पड़ाव पर आ रहा था, रवांई के लोक नायकों के नाम से जोतसिंह रवांल्टा सम्मान, दौलत राम रवांल्टा सम्मान, राजेंद्र सिंह रावत सम्मान, पतिदास सम्मान, बर्फिया लाल जुवांठा सम्मान और रवांई गौरव सम्मान दिये गए, अतिथियों के साथ ही टीम रवांई लोक महोत्सव को हर साल संजोने में सहयोग करने वाली टीम रवांई को भी सम्मानित करते हुए रवाँई लोक महोत्सव के संयोजक शशि मोहन रवांल्टा ने सभी का आभार प्रकट किया व अगले उत्सव में फिर एकत्र होने का वादा कर रवांई लोकगीत की प्रस्तुति पर दर्शकों ने झूमते हुए तृतीय रवाँई लोक महोत्सव का आनंद लिया।

उत्सव के समापन तक शाम 6 बज चुके थे, साथियों ने वापस देहरादून चलने का आग्रह किया मगर दिन भर की थकान व रात को सिंगल रोड़ पर ड्राइविंग के रिस्क के चलते मैंने कल सुबह जाने की बात रखी। सभी साथियों ने सहर्ष स्वीकार लिया, टीम रवांई विशेषकर शशिमोहन, आशी, प्रेम, नरेश, दिनेश, प्रदीप, सीमा व उनके दोनों भाईयों से विदा लेते हुए रात्रि विश्राम के लिए हम 9 किलोमीटर दूर देहरादून मार्ग पर बर्निगाड़ गेस्ट हाउस की तरफ चल दिए, अभी कुछ दूर ही चले थे कि पीछे से निम्मी की आवाज आई मुंगफली का कूड़ा गाड़ी में नीचे मत गिराना, तब तक कुसुम जी ने कह दिया क्यों? इतने में मैं बोल पड़ा गाड़ी गन्दी मत करना, बस फिर क्या था कुसुम जी का तो पारा ही चढ़ गया चन्दोला जी आपको हम इतने बेवकूफ लगते हैं? मैं कुछ बोलता वो बोलती चली गईं, 20 साल से गाड़ी है हमारे पास ऐसा वैसा मत समझना, मैं अभी गाड़ी से उतर जाऊंगी, अब तक गाड़ी के अंदर मौसम बदल चुका था, मैंने गाड़ी ड्राइव करते हुए कुसुम जी से कहा जी आप गाड़ी से उतारना चाहते हैं तो उसके लिए आप स्वतंत्र है, ये आपका अपना फैसला है, मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं है, गाड़ी में सन्नाटा पसरा गया था, 5 लोगों में किसी की भी आवाज न आ रही थी, मैं ड्राइव करता रहा, कुछ देर के सन्नाटे के बाद मैंने ही सन्नाटा तोड़ा और मनोज भाई से गेस्ट हाउस की लोकेशन पूछने लगा, दो घंटे पहले जिस ग्रुप के साथी बात बात पर एक दूसरे संग चुहलबाजी कर रहे थे वे मानों शोक में चले गए हों, बर्निगाड़ के गेस्ट हाउस में जाने के बाद मैं व मनोज भाई एक रूम में तो निम्मी, कुसुम व इंदु जी एक रूम में चेक इन कर गए, चौकीदार से खाने का पूछा तो उसने पास ही राणा होटल सुझा दिया, रात में माछ-भात-रोटी का स्वाद लिए हम वापस सोने गेस्ट हाउस में चले आये, बीच बीच में कुसुम जी ताना मारती रहीं ये चन्दोला बहुत अड़ियल है, मेरे कानों तक आवाज पहुंचती तो मैं उसका भी आनंद ले लेता।

अगली सुबह राणा जी के यहांं गर्म—गर्म परांठों का स्वाद नास्ते में लेकर यादें संग्रह करते हुए मैंने देखा सड़क में भेड़ों का खूबसूरत झुण्ड जा रहा है उन्हें मोबाईल में कैद किया तो देखा सड़क के नीचे बाजार का सारा कूड़ा यमुना की तरफ फेंका गया था जो स्वच्छ भारत अभियान व नमामि गंगे को आइना दिखा रहा था (वीडियो संलग्न), पांच लोगों के पांच बैग गाड़ी की डिक्की में जैसे तैसे ठूंसते हुए मैंने डिक्की बंद की व अपना सफर आगे शुरू किया। देश दुनिया की राजनीतिक चर्चा चलती रही, बातों बातों में मैंने कुसुम जी से कह दिया कुसुम जी मैं समानता में विश्विवास रखता हूं, न उत्पीड़न करना, न उत्पीड़न सहना, ये मैं अपने घर व बाहर दोनों जगह लागू करता हूं, फिर चाहे महिला हो या पुरुष, अब तक सब नार्मल हो चुके थे, दोपहर के भोजन के चूहे पेट में कूदने लगे, प्राकृतिक नज़ारे आगे ही आगे बढ़ाते चले गए, विकासनगर पहुंचे तो मनोज भाई ने अपनी एक महिला साथी को फ़ोन किया जो विकासनगर के बेलवाला में स्वरांजलि नाम से संगीत विद्यालय चलाती हैं।

हैलो, नमस्कार! चाय पीने आ रहे हैं, पांच लोग हैं। मैंने पीछे से बोला खिचड़ी ही बनवा दो, चाय से कौन—सा पेट भर जायेगा। मनोज भाई मुझे घूरने लगे, भटकते—भटकते हमने उनका घर ढूंढ ही लिया। घर के बाहर क्यारी में लगी शब्जी देखकर मन का लालच और बढ़ गया अब दाल भात हरी शब्जी की फरमाईश दिल में उबरने लगी, साथी निम्मी मुझसे भी ज्यादा लालायित होने लगी, अंदर गए तो एक गंभीर महिला से सामना हुआ, उनका सामना होने पर भोजन बनवाने के सारे अरमान उड़न छू हो गए, सूक्ष्म शब्दों में उनसे परिचय हुवा, इतने में उनकी छोटी बहन हँसते मुस्कुराते हुए चाय, नमकीन, बिस्किट लेकर आ गईं, अभिवादन के बाद चाय नमकीन के साथ ही वार्ता में उन्होंने शिकायत दर्ज की कि महोत्सव की सूचना/निमंत्रण तक भी प्रेम पंचोली ने नहीं भेजा। उनकी शिकायत बहुत जायज थी, इसी वृतांत के माध्यम से शशि, प्रेम व टीम महोत्सव से आग्रह करूंगा भविष्य में उनका संज्ञान जरूर लें। चाय नाश्ते के बाद उन्होंने अपना घर व वो कमरा दिखाया जहां उनके सारे संगीत वाद्य यंत्र करीने से लगे हुए थे, अब तक वो हमारे साथ पूरी तरह से घुल मिल चुकी थीं, बेहद सरल शब्दों में उन्होंने बताया संगीत विद्यालय को स्थापित करने का पूरा श्रेय मनोज इष्टवाल जी का है, इन्हीं के सहयोग से वो इस विद्यालय को खड़ा कर पाईं, मनोज भाई कितनों के लिए मददगार रहे जब जब सूचना मिलती है तो उनपर गर्व होता है। बस उनकी संघी मानसिकता उनका सबसे बड़ा अवगुण है (भाई मनोज इष्टवाल जी द्वारा खींची फोटो संलग्न), उनसे विदा लेते हुए हम देहरादून अपने गंतव्य की तरफ बढ़े तो कुसुम जी ने अपने घर से आगे बढ़ने न दिया, कुछ ही मिनट में उनके हाथों से बनी गर्म गर्म रोटी, अचार व चाय हमारे सामने थी। कुसुम जी के यहां से कोई बिन खाये नहीं जा सकता है ये उनके व्यक्तित्व का खूबसूरत पक्ष है। उनसे विदा लेते हुए कुछ ही दूर बल्लुपुर में ही हमने इंदु को ड्राप किया व रिस्पना पर निम्मी को छोड़ते हुए मनोज भाई के कमरे में पहुंचे। कमरा क्या कबूतर खाना बोलिये, दर्जनों जैकेट, दर्जनों चश्मे, दर्जनों घड़ियां, पेन, कंप्यूटर, रिकॉर्डर, परफ्यूम, दो—दो वाशिंग मशीन, ऐसी कौन—सी बेशकीमती व एंटीक चीज होगी जो उनके दो रुमसेट में नहीं होगी। मनोज भाई अपने दो कमरों के सेट में पूरा एक म्यूज़ियम समेटे हुए हैं, कुछ देर बैठने के बाद उनसे विदा लेते हुए मैं रात 10 बजे घर पहुंचा, तो पत्नी पूजा गुस्से से भौं चढ़ा चुकी थी, 5 बजे शहर में पहुंचने के बाद 10 बजे घर पहुंचना उसका गुस्सा होना जायज था। मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका था, मौके की नजाकत देखते हुए मैंने चुपके से रजाई तान ली। साथियों इन्हीं पलों संग रवांई लोक महोत्सव की हमारी यादगार व रोमाँचक यात्रा संपन्न हुई।
नमस्कार…
दोस्तों अपनी प्रतिक्रिया देना न भूलियेगा मिलते हैं अगले किसी और यात्रा वृतांत के साथ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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