Tag: महात्मा गाँधी

देश की सामर्थ्य के लिए चाहिए भाषाओं का पोषण  

देश की सामर्थ्य के लिए चाहिए भाषाओं का पोषण  

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भाषा मनुष्य जीवन की अनिवार्यता है और वह न केवल सत्य को प्रस्तुत करती है बल्कि उसे रचती भी है. वह इतनी सघनता के साथ जीवन में घुलमिल गई है कि हमारा देखना-सुनना, समझना  और विभिन्न कार्यों में प्रवृत्त होना यानी जीवन का बरतना उसी की बदौलत होता है. जल और वायु की तरह आधारभूत यह मानवीय रचना सामर्थ्य और संभावना में अद्भुत है. भारत एक भाग्यशाली देश है जहां संस्कृत, तमिल, मराठी, हिंदी, गुजराती, मलयालम, पंजाबी आदि  जैसी अनेक भाषाएँ कई सदियों से भारतीय संस्कृति, परंपरा और जीवन संघर्षों को आत्मसात करते हुये अपनी भाषिक यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रही है. भाषाओं की विविधता देश की अनोखी और अकूत संपदा है जिसकी शक्ति कदाचित तरह तरह के कोलाहल में उपेक्षित ही रहती है. इन सब के बीच व्यापक क्षेत्र में संवाद की भूमिका निभाने वाली हिंदी का जन्म एक लोक-भाषा के रूप में हुआ था. वह असंदिग्ध रूप...
महात्मा गांधी का सामाजिक प्रयोग

महात्मा गांधी का सामाजिक प्रयोग

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  आज कल विभिन्न राजनीतिक दलों के लोक लुभावन पैंतरों और दिखावटी  सामाजिक संवेदनशीलता के बीच स्वार्थ का खेल आम आदमी को किस तरह दुखी कर रहा है यह जग जाहिर है. परन्तु आज से एक सदी पहले पराधीन भारत में लोक संग्रह का विलक्षण प्रयोग हुआ था. में जीवन का अधिकाँश बिताने के बाद उम्र के सातवें दशक में पहुँच रहे अनुभव-परिपक्व गांधी जी ने आगे के समय के लिए वर्धा को अपनी कर्म-भूमि बनाया था. ज्योतिष नागपुर से75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वर्धा अब रेल मार्गों और कई राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ चुका  है. तब महात्मा गांधी ने धूल-मिट्टी-सने और खेती-किसानी के परिवेश वाले इस पिछड़े ग्रामीण इलाके को  चुना और गाँव के साधारण किसान की तरह श्रम-प्रधान जीवन का वरण किया. इसके पीछे उनकी यह सोच और दृढ विश्वास था कि भारत का भविष्य देश के गाँवों के सशक्त होने में निहित है. उनकी दृष्टि में स्वतंत्रत...
राष्ट्रपिता का भारत–बिम्ब और नैतिकता का व्यावहारिक आग्रह

राष्ट्रपिता का भारत–बिम्ब और नैतिकता का व्यावहारिक आग्रह

साहित्‍य-संस्कृति
गांधी जयंती (2 अक्टूबर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  इतिहास पर नजर दौडाएं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह देश अतीत में सदियों तक मजहबी साम्राज्यवाद के चपेट में रहने के बाद अंग्रेजी साम्राज्यवाद, जो मुख्यत: because आर्थिक शोषण में विश्वास करता था, के अधीन रहा. राजनैतिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद एक तरह के औपनिवेशिक चिंतन से ग्रस्त  अब वैश्वीकरण के युग में पहुँच रहा है. इस दौर में सामाजिक-सांस्कृतिक चिंतन के क्षेत्र में महात्मा गांधी का ‘हिन्द स्वराज’ सर्वाधिक सृजनात्मक उपलब्धि के रूप में उपस्थित हुआ. यह स्वयं में एक आश्चर्यकारी घटना है क्योंकि इस बीच पश्चिम से परिचय के बाद उसे अपनाते हुए हमारे मानसिक संस्कार तद्रूप होते गए. वह भाषा, व्यवहार, पहरावा तथा शिक्षा आदि सबमें परिलक्षित होता है. स्मरणीय है अमेरिकी चिंतन ने यूरोप से अलग दृष्टि स्वीकार की और रूस ने भी स्वायत्त चिंतन की दृष्टि वि...
भिलंगना घाटी के मसीहा : हिमालय गौरव इन्द्रमणि बडोनी

भिलंगना घाटी के मसीहा : हिमालय गौरव इन्द्रमणि बडोनी

टिहरी गढ़वाल
सूर्य प्रकाश सेमवाल पश्चिम के मीडिया ने ज़िंदा और चलते फिरते गाँधी की उपमा जिस सामाजिक, सांस्कृतिक,आध्यात्मिक और राजनीतिक विभूति को दी थी, वह कोई और न ही हिमालयी व्यक्तित्व स्वर्गीय इन्द्रमणि बडोनी थे. यही कारण है कि देश के गांधी की तरह बेशक पहाड़ के गांधी के संकल्पों और मुद्दों को हाशिये पर पहुंचा दिया गया हो लेकिन अपने विराट एवं उदात्त व्यक्तित्व तथा सादगी व सहज व्यवहार के लिए सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए ही नहीं वरन् सामान्य जनमानस के लिए भी सदैव प्रेरणाप्रद एवं वदनीय बने रहेंगे. वाटर हारवैस्टिंग अपने अनुकरणीय आचरण, शैक्षणिक जागरूकता,  कुशल नेतृत्व क्षमता एवं निश्च्छल कार्यशैली के बल पर बडोनी जी ने दलगत व क्षेत्रीय भावना से ऊपर होकर समूचे पहाड़ी क्षेत्र because में अपनी एक विशेष पहचान व साख बनाई थी. वे अपनी कर्मभूमि भिलंगना घाटी के गंगी गाँव से लेकर पौड़ी, चपावत, अल्मोड़ा ...
हिन्दू धर्म विश्व का सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रवादी धर्म है

हिन्दू धर्म विश्व का सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रवादी धर्म है

साहित्‍य-संस्कृति
गांधी जी का राष्ट्रवाद-1 डॉ. मोहन चंद तिवारी (दिल्ली विश्वविद्यालय के गांधी भवन में 'इंडिया ऑफ माय ड्रीम्स' पर आयोजित ग्यारह दिन (9जुलाई -19 जुलाई, 2018 ) के समर स्कूल के अंतर्गत गांधी जी के राष्ट्रवाद because और समाजवाद पर दिए गए मेरे व्याख्यान का सारपूर्ण लेख,जो आज भी प्रासंगिक है) गांधी जी के अनुसार दुनिया के जितने भी धर्म हैं उनमें हिन्दूधर्म ही एकमात्र ऐसा राष्ट्रवादी धर्म है,जिसमें कट्टरता का अभाव है और जो सब से अधिक सहिष्णु है. because गांधी जी के अनुसार "हिन्दूधर्म न केवल मनुष्यमात्र की बल्कि प्राणिमात्र की एकता में विश्वास रखता है." - (यंग इंडिया,20-10-1927) ज्योतिष गौरतलब है कि 13 जुलाई, 1947 में because 'हरिजन सेवक' पत्रिका में समाजवादी कौन है? इस विषय पर लिखते हुए गांधी जी ने कहा था- “सारी दुनिया के समाज पर नज़र डालें तो हम देखेंगे कि हर जगह द्वैत ही द्वैत है. ए...
गांधी जी के स्वतंत्र भारत की स्त्री

गांधी जी के स्वतंत्र भारत की स्त्री

समसामयिक
सुनीता भट्ट पैन्यूली गांधी जी का जीवन-दर्शन आश्रय स्थल है उन जीवन मूल्यों और विचारों का जहां श्रम है,सादगी है सदाचार है, आत्मसम्मान है, सत्य है, अहिंसा है, दया है, उन्नयन है अस्तित्व का, प्राचीनता में नवीनता है, स्वप्न हैं, स्वाधीनता है, स्वराज है, रोजगार है. गांधी जी के विचार व दृष्टिकोण आधुनिक व उन्नतशील भारत की क्रांति की वह मुहिम है because जिसका बेहद अहम हिस्सा स्त्री है जो महात्मा गांधी के सुधार और परिवर्तन और विकास जैसे विचारों के सरोकार में महत्त्वपूर्ण केंद्र रही है. सामान्यतः महात्मा गांधी धार्मिक, सांस्कृतिक समाज so और स्वदेशी परंपरा के उदार समर्थक हैं किंतु जहां समाज में स्त्रियों की स्थिती और उसकी उन्नति का प्रश्न है वहां गांधी जी ने बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में स्त्रियों के संदर्भ में जो दृष्टव्य और आधुनिक विचार अपने भीतर विकसित किये वह आज की इस अत्याधुनिक ...
गांधी चिंतन ने ‘भारतराष्ट्र’ को सांस्कृतिक पहचान दी

गांधी चिंतन ने ‘भारतराष्ट्र’ को सांस्कृतिक पहचान दी

समसामयिक
151वीं गांधी जयंती पर विशेष  डॉ. मोहन चंद तिवारी आज 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की 151वीं जयंती becauseपूरे देश में राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान की भावना से मनाई जा रही है. मोहनदास कर्मचंद गांधी 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में पैदा हुए थे. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी अमूल्य योगदान और अहिंसा के प्रति उनकी गहन आस्था के कारण उन्हें कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के अलग-अलग प्रान्तों में अत्यंत श्रद्धा और देशभक्ति की भावना से याद किया जाता है.  विश्व को सत्य और अहिंसा का सबसे ताकतवर हथियार देने वाले महात्मा गांधी का चिंतन और जीवन दर्शन न केवल भारत के लिए अपितु पूरी दुनिया के लिए आज भी प्रासंगिक हैं. गहन बीसवीं शताब्दी की दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं मानी जाती हैं. उनमें से एक घटना है परमाणु बम के प्रयोग द्वारा मानव सभ्यता के विनाश का प्रयास और दूसरी घटना है गांधी ज...
मोहनदास करमचंद गाँधी को बापू और महात्मा गाँधी बनाने वाली ‘बा’ कहाँ

मोहनदास करमचंद गाँधी को बापू और महात्मा गाँधी बनाने वाली ‘बा’ कहाँ

समसामयिक
151वीं गांधी जयंती पर विशेष प्रकाश उप्रेती नैतिक शिक्षा की किताब के पीछे दुबली-पतली, आधी झुकी हुई काया, बदन पर धोती लपेटे,  हाथ में लाठी वाली तस्वीर से जब पहली बार सामना हुआ तो हैड मास्टर साहब ने becauseबताया की ये महात्मा गाँधी अर्थात बापू हैं. यह तस्वीर और स्मृति ही बड़े-होने के साथ बड़ी होती गई.परंतु इनमें कहीं भी ‘बा’ (कस्तूरबा) नहीं थीं. बापू को लेकर बचपन से ही जो समझ बनी उसमें कहीं बा नहीं थीं. जबकि मोहनदास करमचंद गाँधी को बापू और महात्मा गाँधी बनाने में ‘बा’ की बड़ी भूमिका थी. इस बात को स्वयं बापू ने भी बहुत बार स्वीकार किया.संध्या भराड़े अपनी किताब  ‘बा’ में लिखती हैं कि जॉन एस॰ हाइलैंड से बापू ने एक बार कहा, ‘मैंने बा से अहिंसा का पहला सबक सीखा. नैतिक एक ओर तो वह मेरे विवेकहीन आदर्शों का दृढ़ता से विरोध करतीं, दूसरी so ओर मेरे अविचार से जो तकलीफ उन्हें होती उसे चुपचाप सह ल...
स्कूली शिक्षा की वैकल्पिक राहें

स्कूली शिक्षा की वैकल्पिक राहें

शिक्षा
गांधी जी ने शिक्षा के सुन्दर वृक्ष के समूल विनाश के लिए अंग्रेजों को उत्तरदायी ठहराया था... प्रो. गिरीश्वर मिश्र स्कूली शिक्षा सभ्य बनाने के लिए एक अनिवार्य व्यवस्था बन चुकी है. शिक्षा का अधिकार संविधान का अंश बन चुका है. भारत में स्कूलों पर प्रवेश के लिए बड़ा दबाव है और अभी करोड़ों बच्चे because स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और जो स्कूल जा रहे हैं उनमें से काफी बड़ी संख्या में बीच में ही स्कूल की पढाई छोड़ दे रहे हैं. यानी शिक्षा के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है. दूसरी तरफ स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को ले कर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. सभी बच्चों को उनकी रुचि, क्षमता और स्थानीय सांस्कृतिक प्रासंगिकता आदि को दर किनार रख सभी को एक ही ढाँचे में एक ही तरह के सांचे में ढाल कर शिक्षा की व्यवस्था की जाती है. स्कूली शिक्षा गांधी जी ने शिक्षा के सुन्दर वृक्ष के समूल विनाश के लिए ...
उत्तराखंड की सल्ट क्रांति: ‘कुमाऊँ की बारदोली’

उत्तराखंड की सल्ट क्रांति: ‘कुमाऊँ की बारदोली’

इतिहास
शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी देश की आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के सल्ट क्रांतिकारियों की भी अग्रणी भूमिका रही थी. 5 सितंबर 1942 को महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो’ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन की प्रेरणा से जन्मे सल्ट के क्रांतिकारियों ने अपने क्षेत्र में स्वाधीनता आन्दोलन की लड़ाई लड़ते हुए सल्ट क्षेत्र के ‘खुमाड़’ नामक स्थान पर खीमानंद और उनके भाई गंगा राम, बहादुर सिंह मेहरा और चूड़ामणि चार क्रांतिकारी शहीद हो गए थे. किन्तु दुर्भाग्य यह रहा है कि साम्राज्यवादी इतिहासकारों और राजनेताओं को इन क्रांतिवीरों के बलिदान को जितना महत्त्व दिया जाना चाहिए उतना महत्त्व नहीं मिला है. आज राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में सल्ट क्रांति और स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वाले क्रांतिकारियों का कहीं नामोल्लेख तक नहीं मिलता यहां तक कि हमारे उत्तराखंड के लोगों को भी इस आन...