नीलम पांडेय‘नील’ ब्रह्म ने पृथ्वी के कान में एक बीज मंत्र दे दिया है उसी क्रिया की प्रतिक्रिया में जब बादल बरसते हैं, तो स्नेह की वर्षा होने लगती है और पृथ्वी निश्चल भीग उठती है. आज भी बादलों के गरजने और धरती पर फ्यूंली के फूलने से, यूं लग रहा है कि पृथ्वी मंत्र […]
लधु कथा डॉ. कुसुम जोशी रात को खाना खात हुऐ जब बेटी because अपरा के लिये आये रिश्ते का जिक्र भास्कर ने किया तो… अपरा बिफर उठी, तल्ख लहजे में बोली “आप को मेरी शादी के लिये लड़का ढूढ़ने की जरुरत नही.” फोन क्यों…? मम्मी पापा so दोनों साथ ही बोल पड़े… “मैंने अपने लिये […]
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—57 प्रकाश उप्रेती पहाड़ की संरचना में लकड़ी कई रूपों में उपस्थित है. वहाँ लकड़ी सिर्फ लकड़ी नहीं रहती. उसके कई रूप, नाम और प्रयोग हो जाते हैं. इसलिए जंगलों पर निर्भरता पर्यावरण के कारण नहीं बल्कि जीवन के कारण होती है. because जंगल, जमीन, जल, सबका संबंध जीवन […]
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—45 प्रकाश उप्रेती आज बात “कौतिक” की. साल भर जिसका इंतजार बच्चे, बूढ़े, बड़े सबको रहता था, वह कौतिक था. कौतिक मतलब “मेला” हुआ. कौतिक की तब इतनी हाम थी कि परदेश गए लोग भी because कौतिक पर घर पहुंच जाते थे. मासाब कौतिक के दिन हाज़िरि लगाकर छोड़ […]
आमा के हिस्से का पुरुषार्थ डॉ गिरिजा किशोर पाठक कुमाऊँनी में एक मुहावरा बड़ा ही प्रचलित है “बुढ मर, भाग सर” (old dies after a certain age at the same times he transmits rituals, and traditions) यानी कि जो बुज़ुर्ग होते हैं वे सभ्यता, सांस्कृतिक परंपराओं के स्थंभ होते हैं. इन्हीं से अगली पीढ़ी को […]
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—24 प्रकाश उप्रेती आज बात- बरसात, रात, सूखा, ‘गोल्देराणी’ पूजना और पहाड़ की. पहाड़ में बरसात के दिन किसी आफ़त से और रातें आपदा से कम नहीं होती थीं. चौमास में ‘झड़’ (कई दिनों तक लगातार बारिश का होना) पड़ जाते थे तो वहीं बे-मौसम बारिश सबकुछ बहा ले […]
ललित फुलारा भास्कर भौर्याल बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. उम्र सिर्फ 22 साल है. पर दृष्टिकोण और विचार इतना परिपक्व कि आप उनकी चित्रकारी में समाहित लोक संस्कृति और आंचलिक परिवेश को भावविभोर होकर निहारते रह जाएंगे. उनके चटक रंग बरबस ही अपनी दुनिया में खोई हुई आपकी एकाग्रता, को अपनी तरफ खींच लेंगे. वो […]
डॉ. अरुण कुकसाल लस्का कमर बांधा, हिम्मत का साथा, फिर भोला उज्याला होली, कां रोली राता 12 नवम्बर, 2019 की रात वैकुंठ चतुर्दशी मेला, श्रीनगर (गढ़वाल) में गढ़-कुमाऊंनी कवि सम्मेलन के मंच पर नरेन्द्र सिंह नेगीजी एवं अन्य कवियों के मध्य जनकवि हीरा सिंह राणाजी भी शोभायमान थे. प्रिय मित्र चारू तिवारीजी एवं विभोर बहुगुणाजी […]
लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी (सन् 1829 – 1896) डॉ. अरुण कुकसाल ‘जिस अंचल में बलभद्र सिंह जैसे वीरों का जन्म होता है, उसकी अपनी अलग रेजीमेंट होनी ही चाहिए.’ कमान्डर इन चीफ, पी. रोबर्टस ने सन् 1884 में तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड डफरिन को गढ़वालियों की एक स्वतंत्र बटालियन के गठन के प्रस्ताव की […]
अशोक जोशी पिछले कुछ सालों से मैं उत्तराखंड के बारे में अध्ययन कर रहा हूं और जब भी अपने पहाड़ों के तीज-त्योहारों, मेलों, मंदिरों, जनजातियों, घाटियों, बुग्यालो, वेशभूषाओं, मातृभाषाओं, लोकगीतों, लोकनृत्यों, धार्मिक यात्राओं, चोटियों, पहाड़ी फलों, खाद्यान्नों, रीति-रिवाजों के बारे में पढ़ता हूं तो खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मैंने देवभूमि उत्तराखंड के […]
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