एक ऐसी चोटी जहां भगवान शिव ने धारण किया था महेश रूप!

तुंगनाथ यात्रा, पहले पड़ाव की यात्रा कथा

  • जे. पी. मैठाणी/ फोटो : पूनम पल्लवी

ये हल्की – हल्की ठण्ड भरी 17 अक्टूबर की सुबह थी , हालांकि इस यात्रा के लिए – हरी , नरेन्द्र और पूनम के साथ दो महीने से तैय्यारी चल्र रही थी लेकिन बाद में सिर्फ फाइनली पूनम ही इस यात्रा के लिए पीपलकोटी आयी , और इसके साथ मैंने भी बहुत दिनों से जो सोचा था कि, तीन बार पहले भी चंद्रशिला जाने के मौके मिले थे लेकिन जा नहीं पाया. इस बार यह संभव हो पाया.

पहले 2018 में पंचकेदार – मैराथन ट्रेक के दौरान भी मुझे चंद्रशिला से थोड़े से ही नीचे रुकना पड़ा था – और ऐसे ही हुआ था पिछले दो मौकों पर ( 1993 और 1997 ( ज्यादा उंचाई होने और ऑक्सीजन की कमी से एक ट्रेकर के नाक से खून निकलने लगा था ) जब बिलकुल चंद्रशिला के निकट था लेकिन पास से ही वापस आना पड़ा. लेकिन इस बार आखिरकार ऐसा समय आया जब पंचकेदार के एक शानदार- केदार बेहद आध्यात्मिक तीर्थ स्थल – और दुनिया में सबसे उंचाई पर स्थित – भगवान् शिव के धाम तुंगनाथ ( 2911 मीटर मेरी घड़ी के केशियो – प्रोट्रेक के अनुसार- लेकिन सारे लेख बता रहे हैं तुंगनाथ की उंचाई 3680मीटर है इस हिसाब से चंद्रशिला की उंचाई तो 3800 मीटर लगभग होगी ) तक पहुंचा और उसी दिन -3200 मीटर ( लगभग 4000 मीटर ) पर स्थित चंद्रशिला तक पहुंचा! यहाँ आते आते कई यात्रियों और साथियों को सांस की समस्या पांवों का दर्द आदि परेशान करने लगते हैं!

याद रखिये– बहुत समय बाद अगर आप हिमालय में  ट्रेक पर जा रहे हैं तो कृपया कुछ दिन पहले से ही थोडा थोडा पहाड़ी मार्ग पर चलना शुरू कर दीजिये या मोर्निंग वाक्– थोड़ा-थोड़ा रनिंग भी शुरू कर दीजिये ताकि ऊँचे शिखरों पर स्थित तीर्थ और पर्यटक स्थलों पर जाने में सरलता रहे. आपके सांस व्यस्थित रहे और ब्लड प्रेशर भी ठीक रहे. एकदम नया जूता न पहने, उसको पहले से ही प्रयोग कीजिये ताकि लास्ट क्षणों में पांवों में कोई परेशानी न हो!

तुंगनाथ मंदिर के बारे में– तुंग का अर्थ है पहाड़ की चोटी और उनके भगवान् शिव या बहुत ही ऊँची चोटी पर भगवान् शिव का एक मंदिर– जहां पांडवों के कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद उनसे नाराज होकर भगवान् शिव ने महेश का रूप धारण कर लिया था. पांडव अपने प्रियजनों के साथ युद्ध करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति के लिए शिव को प्रसन्न करना चाहते थे, लेकिन शिव पांडवों से नाराज थे. अर्जुन ने तुंगनाथ मंदिर की नीव रखी थी!

महर्षी व्यास के कहने पर पांडव हिमालय में यात्रा पर आये लेकिन शिव  जी ने पांडवों से बचने के लिए भैंसे का यानी महेश के रूप में अपने आपको परिवर्तित कर लिया – लेकिन तुंगनाथ में भीम ने शिव को पहचान लिया और उनकी बांह पकड़ ली लेकिन शिव अंतर्धान हो गए, इसलिए तुंगनाथ में  शिव की बांह की पूजा की जाती है. ये मंदिर ठीक कितने साल पुराना हैं ठीक से पता नहीं है लेकिन इस मंदिर को 1000 साल पुराना बताया जाता है, मंदिर के गर्भगृह में शंकराचार्य जी की भी पूजा की जाती है– बाहर मंदिर के प्रांगण में भैरव नाथ और माता पार्वती यानी गौरा की भी पूजा उनके मंदिरों में की जाती है. अब मंदिर के प्रांगण में स्टील का बड़ा त्रिशूल भी लगा दिया गया है! जाड़ों में रुद्रनाथ जी की मूर्ती को डोली में नीचे लाकर मक्कूमठ में पूजा की जाती है!

ध्यान रखिये – सुबह का वक्त है ठीक ठाक गर्म कपडे पहन लीजिये – पानी चैक कर लें टॉफ़ी और बिस्किट साथ जरूर रखिये !

तुंगनाथ मंदिर के बारे में –अर्जुन ने तुंगनाथ मंदिर की नीव रखी थी, तुंग का अर्थ है पहाड़ की चोटी और उनके भगवान् शिव या बहुत ही ऊँची चोटी पर भगवान् शिव का एक मंदिर – जब पांडवों के कुरुक्षेत्र युध्द्द के बाद उनसे नाराज होकर भगवान् शिव ने यज तय किया की वे पांडवों को माफ़ नहीं करेंगे इसलिए उन्होंने महेश का रूप धारण कर लिया था. पांडव अपने प्रियजनों के साथ युध्द करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति के लिए शिव को प्रसन्न करना चाहते थे – लेकिन शिव पांडवों से नाराज थे.

तुंगनाथ मंदिर के ठीक पहले – सर्वाधिक उंचाई पर मानवनिर्मित पानी का कुंड है जिसको आकाश कुण्ड कहते हैं 2018 में यह कुण्ड बन रहा था इस बार यह बनकर तैयार हो गया है और सुन्दर दिख रहा है ! प्राकृतिक जल संग्रहण का मानव निर्मित ऐसा कुंड पूरे हिमालय में इतनी उंचाई पर कही और नहीं है !

तुंगनाथ मंदिर के दाहिने तरफ 5 छोटे छोटे मंदिर हैं – गणेश, भैरव और अन्य मंदिर के परिसर को सजा दिया गया है लेकिन फर्श बेहद ठंडा है और पांव ठण्ड से सुन्न होने लगते हैं यहाँ मंदिर समिति अगर चाहती तो स्टील की रेलिंग की बजाय नीचे फर्श पर ट्रीटेड लकड़ी की टाइल्स लगा देते तो सभी को सुविधा होती और ठण्ड में पाँव भी सुन्न नहीं होते .

मंदिर समिति की कोई व्यवस्था यहाँ दिखाई नहीं दी फर्श पर चटाई या दरी भी यात्रियों के लिए मौजूद नहीं है पर क्लर्क रजिस्टर भरते हुए दान का हिसाब रख रहा है , एक पंडित जी भक्त को कह रहे थे – तुम जैसे लोग बहुत मंत्र पढ़वा लेते हो दक्षिणा नहीं देते- थोडा हल्ला चल रहा था ! यहां एक आलू का परांठा 60 रुपये का है.

इस बार तुंगनाथ में साफ़ सुथरे टॉयलेट दिखे हालंकि चोपता से तुंगनाथ के रास्ते में कचरा काफी कम था लेकिन ट्रेक के किनारे लगी रेलिंग कई जगह टूटी और गिरी पड़ी थी !

बहरहाल वापस चोपता चलते हैं-

पीपलकोटी से अलस्सुबह हम लगभग चार बजे चले अभी अँधेरा ही था और अँधेरे की सुबह का उजाला हमें कांचुला खरक के ठीक नीचे मिली (यहीं पर कस्तूरा मृग विहार भी है जहां हमारे राज्य उत्तराखंड के राज्य पशु कस्तूरा मृग की ब्रीडिंगका केंद्र है ). उसके साथ ही कार की फ्रंट खिड़की से बाहर देखते ही मुझे लगा दूर पूरब में नंदादेवी पर्वत श्रृंखलाओं के पीछे से सूरज की किरणे झांकने लगी हैं. हमारे साथ – साथ चलते हुए दक्षिण पश्चिम में छोटी – छोटी पहाड़ियां हलके बादलों के बीच से उन किरणों को पकड़ने और लपकने के लिए आसमान में छाये चाँद, तारों और आकाश गंगा को छूने का प्रयास करने लगी हैं ! सूरज आया नहीं है और चाँद छुपा नहीं है. पृथ्वी के पर्वत- पहाड़ और उनके बीच से पूरब से दक्षिण की ओर बहती बालखिला नदी और तुंगनाथ मंदिर की पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली अक्षकामिनी जलधारा जो चंद्रशिला की चोटी से जलसमेट कर लाती है ये दोनों अलकनंदा और मन्दाकिनी की सहायक जलधाराएँ है ! बादलों के नीचे घने हरे जंगल अभी भी काले दिख रहे हैं , धीरे धीरे उजाला पसर रहा है और अचानक अभी हम कांचुला खरक के ऊपर टावर तक पहुंचे हैं और धोतीधार की धार के आगे पांगरबासा पांगर के पेड़ों के साथ हमारे पास आया, सड़क किनारे के ढाबों के चूल्हे का धुंवा भी एक सार होकर आसमान की तरफ बढ़ रहा है और हमारी कार चोपता की ओर बढ़ रही है – अचानक देखते हैं – जिला रुद्रप्रयाग शुरू हो गया है , और सामने से हिमालय जाग रहा है – कई अनाम चोटियाँ – चौखम्बा , दूर नन्दाघुंघुटी, हाथी पर्वत, घोडा पर्वत का कुछ हिस्सा श्वेत धवल बर्फ से लकदक – थुनेर, खर्शु , मोरू, बुरांश, पांगर के पेड़ों के बीच से आँख मिचौली कर रहे हैं .

आप यकायक खो जाते हैं– ऊपर नीलगगन , उनके ठीक नीचे सूरज की किरणों से आँखे खोलती पर्वत श्रृंखलाए और नीचे घास के बुग्याल – आप चुपचाप खो जाते हैं हिमालय के सौन्दर्य में– इसलिए इस चोपता के क्षेत्र को उत्तराखंड का स्विट्ज़रलैंड कहते हैं अब हम रुद्रप्रयाग जिले में आ गए हैं , चोपता से ही अब तुंगनाथ की 4 किलोमीटर की यात्रा शुरू होगी और यात्रा के द्वार पर बड़ी घंटी लगी है– ठीक पीछे – कैल, मोरू, खर्शु , बांज बुरांस के पेड़– घोड़े खच्चरों की घंटियों के साथ बांह फैलाये आपको तुंगनाथ और चंद्रशिला की तरफ निमंत्रित कर रहे हैं !

चोपता से तुंगनाथ का रास्ता बेहद सुन्दर है– आस पास – केदारनाथ और उखीमठ की घाटियों के दृश्य आपको थकने नहीं देते , रास्ते में चाय पानी की दुकाने हैं लेकिन मैंने और पूनम ने बिना रुके एक ही सांस में फोटो खींचते खींचते– पूरा ट्रेक कर लिया ! रास्ते भर बंगाल के सबसे ज्यादा पर्यटक और तीर्थयात्री मिले ! बिना कुछ खाए शिव के द्वार पर पहुँचना था और प्रकृति के सानिध्य से हम ढाई घंटे से कम समय में तुंगनाथ मंदिर पहुँच गए – यही मेरी घड़ी ने इस जगह की ऊंचाई 2911 मीटर बताई है !

मंदिर में लाइन लगानी शुरू हो गयी है भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है – जूते उतार लेने के बाद पाँव एकदम बेहद ठन्डे हो गए हैं इसलिए जुराबें पहन कर ही रखी हैं – शिव मंदिर के मुख्य द्वार की तरफ मुंह किये पुरातन नंदी शांत है , पीछे लाइन में शिव का जयकारा लगा रहा है – पंडित जी मन्त्रों का जाप कर रहे हैं– पंडित जी ने गर्भ गृह में शानदार दर्शन करवा दिए- वहाँ स्थापित मूर्तियों के बारे में बताया– पूजा की प्रसाद दिया– माथे पर चन्दन का त्रिपुण्ड लेप हम पंडित जी के पाँव छोकर बाहर निकले हैं नीद और थकान दोनों गायब हैं पंडित जी के निर्देशों का पालन करते हुए परिकृमा कर ली है! यहाँ भी गौर यानी पार्वती माता को बाद में मिलना है– मुख्य द्वार के दाहिने और बने मंदिर में– साथ में भैरवनाथ विराजमान हैं!!

जीवन में भावनाओं के ज्वार भाटा जारी हैं- हिमालय आँखे बंद करने की अनुमति नहीं दे रहा है– जीवन की आपा धापी के बीच– मंदिर के परिसर में स्टील का त्रिशूल नीले आसमान की तरफ खड़ा है अडिग. पहाड़ से अक्षकामिनी और उधर अत्रिमुनी आश्रम और चंद्रशिला के बीच से बहती बालखिला नदी अपने प्रवाह के साथ जारी हैं. अपने अपने बड़ी नदियों – अलकनंदा और मन्दाकिनीं से मिलाने के लिए- पीछे पहाड़ उनका इंतज़ार करते रहते हैं , नदिया बहकर आगे निकलती है वापस नहीं आती!

पहाड़ अडिग हैं– तुंग यानी पर्वत या चोटी के शीर्ष के साथ. यात्रा आगे जारी है – चन्द्रशिला की ओर, जो 2 किलोमीटर ऊपर है– तुंगनाथ मंदिर से!

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