Ram Mandir Prana Pratishtha : आओ अभिराम राम!

Ram Mandir Prana Pratishtha

श्रीराम भव्य मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर विशेष

प्रो. गिरीश्वर मिश्र 

भगवान के अवतारों की चर्चा की पृष्ठभूमि में अधिकांश स्थानों पर धर्म की हानि का उल्लेख मिलता है और अवतार का दायित्व विशिष्ट देश काल में धर्म की संस्थापना होती है. भारतीय काल गणना के हिसाब से श्रीराम त्रेता युग में हुए थे. अवतारों की कड़ी में मत्स्य, कूर्म और वाराह आदि से आगे चलते हुए हुए पूर्ण मनुष्य के रूप में श्रीराम पहले अवतार के रूप में प्रकट होते हैं. इसीलिए उन्हें ‘नारायण’ भी कहा जाता हैं. सौंदर्य, शक्ति और शील के विग्रह स्वरूप दशरथनंदन श्रीराम लोकाभिराम हैं जिन पर हर कोई मुग्ध होता है. उनकी कथा जीवन में धर्म की केंद्रिकता और ईर्ष्या द्वेष से परे सर्वव्यापकता को सर्वोच्च मूल्य के रूप में स्थापित करती है. पुरुषोत्तम श्रीराम पूरी तरह धर्ममय हैं. राम-कथा हम सब के बीच धर्म का मार्ग प्रशस्त करती है.  

पवित्रता और धर्म-परायणता के उत्कर्ष ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ श्रीराम ने समकालीन परिस्थितियों में धर्म के पालन में आ रही विभिन्न अड़चनों और अव्यवस्थाओं को दूर किया. उनके राज्य-शासन की परिपाटी और आदर्श सार्वकालिक मानक के रूप में स्वीकृत और समादृत हुए. आज भी ऐसे ‘राम-राज्य’ की सघन स्मृति हर कोई  मन में बसाए हुए है जिसमें दैहिक, दैविक और भौतिक क़िस्म के त्ताप या कष्ट न हों. राजा राम लोक की पीड़ा, क्लेश, दुःख, अन्याय तथा अत्याचार के दमन में वे सदैव जुटे रहते हैं. अपने आचरण में श्रीराम स्थितप्रज्ञ की तरह हैं. अयोध्या कांड के शुरू में श्रीराम की वंदना करते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने एक मार्मिक चित्र खींचा है. वे कहते हैं रघुनंदन श्रीराम के मुखारविंद की शोभा राज्याभिषेक की बात सुन कर न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवास की आज्ञा सुन कर दुःख से मलिन हुई. श्रीराम की मानुषी लीला अस्तित्व के शाश्वत प्रश्नों का समाधान करती है. इसीलिए उसकी प्रासंगिकता समय बीतने के साथ भी न चुकने वाली है.

वह दुनियावी संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर एकता, सहिष्णुता, मैत्री, प्रेम और त्याग की उपयोगिता प्रमाणित करती है. सांस्कृतिक विविधता वाली हमारी दुनिया के लिए पथप्रदर्शक बनी राम-कथा उदारता, करुणा, मैत्री और न्याय का मार्ग प्रशस्त करती है. आज भारतीय समाज और संस्कृति में श्रीराम अन्याय, असत्य और हिंसा का प्रतिरोध करने वाले अनूठे व्यक्तित्व को रचते हैं जो धर्म मार्ग पर अडिग रहते हुए हर कसौटी पर खरा उतरता है. उनके लिए समष्टि का हित  ऐसा लक्ष्य साबित होता है कि उसके आगे सब कुछ छोटा पड़ जाता है. आज भी भारत की जनता अपने राज नेताओं से ऐसे ही छवि ढूँढती है जो लोक कल्याण के प्रति समर्पित हो.    

राम-कथा और उसके स्मारक भारत और श्रीलंका,  इंडोनेशिया,  मलयेशिया,  चीन, जापान, लाओस, थाईलैंड, म्यांमार और कम्बोडिया, मारिशस, सूरीनाम, फ़ीजी, त्रिनीदाद, तथा गुयाना आदि देशों आदि तक व्याप्त हैं. राम-कथा शिल्प और संगीत – नृत्य की प्रस्तुतियों में भी व्याप्त है. वाल्मीकि-रामायण की मूल कथा आज तीन सौ से भी अधिक भाषाओं में विद्यमान है. हज़ारों साल से राम-कथा भक्ति, लोक-मंगल, मर्यादा  की प्रतिष्ठा के साथ नैतिकता का पाठ पढ़ाती आ रही है.

राम के स्मरण के साथ सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या का क्षेत्र प्रेरणा का आश्रय बना हुआ है. गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ की रचना अयोध्या में ही की थी. इतिहास में नगरी की जड़ें इक्ष्वाकु वंश से जुड़ती हैं पर अयोध्या और उसके रघुकुल नायक भगवान श्रीराम इतिहास से परे भारत के जीवन में  रचे  बसे हैं. वे लोगों के श्वास प्रश्वास में हैं और समाज की स्मृति के अटूट हिस्से हैं. अयोध्या में राम मंदिर के पुराने मामले में भारत के उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय आने के बाद से जन-जन में और विशेषत: राम भक्तों और संत समाज में प्रसन्नता की लहर फैल गई थी . राम-भाव की अनुभूति का सगुण रूप सुग्राह्य होता है और श्रीराम के प्रति समर्पण को पुष्ट करता है. भारतीय समाज की पीढी-दर-पीढी इस स्मृति में डुबकियां लगाती रही है कि राम का जन्म यहीं अयोध्या में हुआ था और बचपन भी यहीं बीता था . उनके जीवन से जुड़े बहुत से ठांव-ठिकाने भी हमने बना रखे हैं ; ‘सीता की रसोई’, ‘कनक भवन’, ‘हनुमान गढी’, और भी जानें क्या क्या. पवित्र सरयू तट पर स्थित अयोध्या नगरी राम की स्मृति को जीवंततर बनाती है. अंतत: स्मृति ही सत्य को प्रमाणित करती है . स्मृति के अभाव में उस व्यक्ति (या समाज) के लिए सत्य के होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता.

आज भी अयोध्या नगरी के पास श्रीराम के स्मरण के अनेक पर्याप्त प्रयोजन हैं . नाम के साथ रूप का जुड़ जाना प्रतीक को पूरी अर्थवत्ता और आकार प्रदान करता है . उल्लेखनीय है कि अयोध्या के पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त अवशेष और जानकारियां न केवल इस क्षेत्र की प्राचीनता पर ही प्रकाश डालती हैं बल्कि यह भी बताती हैं कि गहरे नीचे स्थित प्राचीन मंदिर की वास्तु-रचना को ध्वस्त कर ही बनाया गया था. इन सबसे अयोध्या की प्राचीन भारतीय परम्परा की पुष्टि होती नजर आती  है. वेद, पुराण और रामायण आदि ग्रंथों में अयोध्या को मोक्षदायिनी पावन नगरी के रूप में स्मरण किया गया है. अयोध्या भारत की सामाजिक स्मृति का एक अखंड हिस्सा है .

धर्मप्राण जनों  की समवेत आकांक्षा ने, प्रेरणा और प्रयास से  देश के इतिहास में एक नया अध्याय अयोध्या की पुनर्प्रतिष्ठा भारतीय जीवन में राम की  तीव्र उपस्थिति को व्यक्त करती है. वह जन-जन के हृदय को आह्लादित करती हैं. राम की कथा सबकी कथा है. राम सबकी पहुंच में हैं. वे एक सतर्क और सचेत जन नायक हैं जो हर सुख दुख में सबके साथ खड़े रहते हैं. उन तक बिना किसी संकोच के बेधड़क पहुंचा जा सकता है. वे सामान्यत: धीर, गम्भीर और शांत रहते हैं पर आंतरिक रूप से वे पौरुषसम्पन्न हैं. वे किसी प्रिय भक्त की पुकार पर सब कुछ छोड़-छाड़ कर पहुंच जाते हैं. किसी ऐश्वर्यशाली का यह सर्व जनसुलभ व्यवहार अद्भुत है और किसी को भी सहज में चकित कर जाता है. लोकाभिराम  श्रीराम को सिर्फ प्रेम से प्यार है रामहिं केवल प्रेम पियारा जानि लेहु जो जाननिहारा.

ऐसे  राम  की स्मृति को सजीव करने का अर्थ है उन्हें जीवन में उतारना. आज राम लला की भव्य मूर्ति के एक भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित होने को ले कर सब में उत्साह है. यह निश्चय ही देश के लिए एक शुभ लक्षण है. आम आदमी को यही लग रहा है कि कलियुग में लम्बे वनवास की अवधि बीतने के बाद अयोध्यापति रामचंद्र जी का अयोध्या में पधार रहे हैं. सचमुच बड़े पुण्य से आज अयोध्या फिर से पुनर्जीवित हो रही है और इसी के साथ यह आशा भी बलवती हो रही है कि भारत में राम-राज्य की स्थापना की दिशा में हम आगे बढ सकेंगे और सुशासन के अच्छे दिन का दौर आ सकेगा. यह घटना सिर्फ शुद्ध भौतिक घटना मात्र नहीं है. इसमें कहीं काल-देवता का संदेश भी निहित है कि राम हमारे पाथेय हैं और उनके आदर्श मार्ग पर चल कर ही हम आगे बढ सकते हैं. राम जो सारे रिश्ते निभाते हैं पर कभी न्याय-पथ से विचलित नहीं होते. आखिर जन मन के मंदिर में भगवान राम की प्रतिष्ठा तो इसी से हो सकेगी.

Ram Mandir Prana Pratishtha

श्रीराम के भव्य मन्दिर के आरंभ को लेकर सभी आनंदित हैं. बड़ी प्रतीक्षा के बाद इस चिर अभिलषित स्वप्न का सत्य में रूपांतरण होना जैसा है. अनेक विघ्न बाधाओं के बीच राम मन्दिर के निर्माण का अवसर उपस्थित हो सका है. राम की स्मृति राम पंचायतन से परिपुष्ट होती है जिसमें लक्ष्मण, सीता और हनुमान आदि सभी संपुंजित  उपस्थित रहते हैं. ये सभी सत्य, धर्म, शौर्य, धैर्य, उत्साह, मैत्री और करुणा के समग्र बल को रूपायित करते है. यह मन्दिर इन्हीं सात्विक प्रवृत्तियों का प्रतीक है. राम-राज्य की मुख्य शर्त है स्वधर्म का पालन. अपने को निमित्त मान कर दी गई भूमिकाओं को स्वीकार कर नि:स्वार्थ भाव से उनका पालन करने से ही राम-राज्य आ सकेगा. हमारी कामना है कि राम-मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा के साथ देश के जीवन में व्याप्त हो रही विषमताओं, मिथ्याचारों, क्रूर हिंसात्मक प्रवृत्तियों, अविश्वास और भेद-भाव की वृत्तियों का भी शमन होगा और समता, समरसता, समानता और न्याय के मार्ग पर चलने की शक्ति मिकेगी. श्रीराम जो तेरे, मेरे सबके हैं सबका कल्याण करेंगे.

(लेखक शिक्षाविद् एवं पूर्व कुलपतिमहात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा हैं.)

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *