लोक पर्व-त्योहार

नेपाल और कुमाऊँ की साझी विरासत – लोक पर्व ‘सातूं-आठूं’

नेपाल और कुमाऊँ की साझी विरासत – लोक पर्व ‘सातूं-आठूं’

लोक पर्व-त्योहार
चंद्रशेखर तिवारी रिसर्च एसोसिएट, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र, देहरादून ‘शिखर धुरा ठंडो पाणी मैंसर उपज्यो / गंगा टालू बड़ बोट लौलि उपजी’ यानी उच्च शिखर में ठंडी जगह पर मैसर (महेश्वर) का जन्म हुआ और गंगा तट पर वट वृक्ष की छाया में लौलि (गौरा पार्वती) पैदा हुईं. पूर्वी कुमाऊँ व पश्मिी नेपाल के इलाकों में जब लोक उत्सव सातूं-आठूं की धूम मची रहती है तब स्थानीय लोग इस गीत को बड़े ही उल्लास के साथ गाते हैं. सातूं-आठूं जो गमरा-मैसर अथवा गमरा उत्सव के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल नेपाल और भारत की साझी संस्कृति का प्रतीक पर्व है. हिमालयी परम्परा में रचा-बसा यह पर्व सीमावर्ती काली नदी के आर-पार बसे गाँवों में समान रुप से मनाया जाता है. संस्कृति के जानकार लोगों के अनुसार सातूं-आठूं का मूल उद्गम क्षेत्र पश्चिमी नेपाल है, जहाँ दार्चुला, बैतड़ी, डडेल धुरा व डोटी अंचल में यह पर्व सदियों से मनाया जाता रहा...
देवताओं का वृक्ष ‘पय्या’!

देवताओं का वृक्ष ‘पय्या’!

लोक पर्व-त्योहार
मेघा प्रकाश उत्तराखण्ड में परिभाषा के अनुसार एक बड़ा क्षेत्र 'वन' घोषित है. अतीत में, समुदाय काफी हद तक अपनी आजीविका और दैनिक जरूरतों के लिए इन जंगलों पर निर्भर था. चूंकि, जंगल अस्तित्व के केंद्र में थे, समुदाय के बीच कई सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाएं अभी भी राज्य में प्रचलित हैं. इस प्रकार पवित्र वनों, स्थलों और वृक्षों की अवधारणा इस बात का सूचक है कि कैसे अतीत में समुदाय इन वनों का प्रबंधन करता था और अपनी आजीविका के स्रोत की पूजा करता था. स्थानीय बोलचाल में पवित्र वन चिन्हित स्थल, परिदृश्य, जंगल के टुकड़े या पेड़ हैं, जिन्हें पूर्वजों और श्रद्धेय देवताओं की पवित्र आत्माएं निवास करने के स्थान के रूप में माना जाता था. विश्वास के अनुसार, लोककथाएं, लोक गीत, मेले और पवित्र वनों पर त्योहार उत्तराखंड में समुदाय का हिस्सा हैं. उदाहरण के लिए, 'पय्या' (पयां, पद्म) को पवित्र वृक्ष के रूप ...
अधिमास और सावन में पार्थिव पूजन

अधिमास और सावन में पार्थिव पूजन

लोक पर्व-त्योहार
भुवन चंद्र पंत इस वर्ष अधिकमास अथवा पुरूषोत्तम मास सावन के महीने में पड़ रहा है. सावन का महीना हर सनातनी के लिए शिवार्चन अथवा पार्थिव पूजन का पवित्र महीना माना जाता है. लेकिन इस माह में अधिकमास होने से कई लोगों में यह शंका होना स्वाभाविक है कि क्या इस साल श्रावण माह में शिवार्चन अथवा पार्थिव पूजा की जा सकेगी अथवा नहीं? पुरोहितवर्ग में मतैक्य न होने से लोग भ्रमित हैं. पुरोहितों का एक वर्ग कहता है कि इस बार श्रावण माह में शिवार्चन नहीं किया जा सकेगा, जब कि दूसरा वर्ग कहता है कि जो नियमित रूप से करते आये हैं, वे तो शिवार्चन कर सकते हैं जब कि जो पहली बार शिवार्चन की शुरुआत कर रहे हों, वे अधिकमास से शिवार्चन की शुरुआत न करें. दूसरी ओर पुरोहितों का एक बड़ा वर्ग का कहना है कि अधिकमास यदि श्रावण माह में पड़ रहा है, तो यह शिवार्चन के लिए सबसे उपयुक्त काल व अधिक पुण्य व फलदायी है. क्योंकि मांगलिक कार्...
बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

लोक पर्व-त्योहार
दिनेश रावत बात संग्रांद (संक्रांति) से पहले एक रोज की है. शाम के समय माँ जी से फोन पर बात हो रही थी. उसी दौरान माँ जी ने बताया कि- ‘अम अरसू क त्यारी करनऽ लगिई.’ ( हम अरसे बनाने की तैयारी में लगे हैं.) अरसे बनाने की तैयारी? मैं कुछ समझ नहीं पाया और मां जी से पूछ बैठा- ‘अरस! अरस काले मां?(अरसे! अरसे क्यों माँ?) तो माँ ने कहा- ‘भोव संग्रांद कणी. ततराया कोख भिजऊँ अर कुठियूँ.’ (कल संक्रांति कैसी है. उसी वक्त कहाँ भीगते और कूटे जाते हैं.) ‘काम भी मुक्तू बाजअ. अरस भी लाण, साकुईया भी उलाउणी, स्वाअ भी लाण अर त फुण्ड भी पहुंचाण.’ (काम भी बहुत हो जाता है. अरसे भी बनाने हैं. साकुईया भी तलनी है. स्वाले यानी पूरी भी बनानी है और फिर वह पहुंचाने भी हैं.) माँ जी से बात करते-करते मैं सोचने को विवश हो गया कि आख़िर गांव-घर से दूर होते ही हम कितनी चीजों से दूर हो जाते हैं. हमारी जीवन शैली कितनी बदल जाती है. ...
सूर्य संस्कृति की पहचान से जुड़ा स्याल्दे-बिखौती मेला

सूर्य संस्कृति की पहचान से जुड़ा स्याल्दे-बिखौती मेला

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी  सांस्कृतिक नगरी द्वाराहाट की परंपरागत लोक संस्कृति से जुड़ा उत्तराखंड का स्याल्दे बिखौती का मेला पाली पछाऊँ क्षेत्र का सर्वाधिक लोकप्रिय और रंग रंगीला मेला माना जाता है.दो अलग-अलग चरणों में आयोजित, इस स्यालदे बिखोती का मेला सबसे पहले चैत्र मास की अन्तिम रात्रि ‘विषुवत्’ संक्रान्ति 13 या 14 अप्रैल को प्रतिवर्ष द्वाराहाट से 8 कि.मी.की दूरी पर स्थित विभांडेश्वर महादेव में लगता है.यहां रात्रि काल में आस-पास के गांवों के लोग और लोक नर्तक नाचते और गाते हुए नगाड़ा निशाण लेकर  विभांडेश्वर मंदिर में इकट्ठा होते हैं.दूसरे चरण में वैशाख मास की पहली और दूसरी तिथि को द्वाराहाट बाजार में स्थित शीतला देवी के मंदिर प्रांगण में स्याल्दे का मेला लगता है,जहां विभिन्न आलों के लोग 'ओड़ा भेटने' की परंपरा का निर्वाह करते हैं. विषुवत संक्रांति को विष का निदान करने वाली संक्रांति भी कहा ...
सीय-राममय सब जग जानी

सीय-राममय सब जग जानी

लोक पर्व-त्योहार
राम नवमी पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  श्रीराम विष्णु के अवतार हैं. सृष्टि के कथानक में भगवान विष्णु के अवतार लेने के कारणों में भक्तों के मन में आए विकारों को दूर करना, लोक में भक्ति का संचार करना, जन – जन के कष्टों का निवारण और भक्तों के लिए भगवान की प्रीति पा सकने की इच्छा पूरा करना प्रमुख हैं. सांसारिक जीवन में मद, काम, क्रोध और मोह आदि से अनेक तरह के कष्ट होते हैं और उदात्त वृत्तियों के विकास में व्यवधान पड़ता है. रामचरितमानस में इन स्थितियों का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जब-जब धर्म का ह्रास होता है, नीच और अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं और अन्याय करने लगते हैं पृथ्वी और वहाँ के निवासी कष्ट पाते हैं तब-तब कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के दिव्य शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं. एक भक्त के रूप में तुलसीदास जी का विश्वास है कि सारा जगत राममय है और उनके मन में बसा ...
‘भारतराष्ट्र’ की पहचान है विक्रम संवत् 2080

‘भारतराष्ट्र’ की पहचान है विक्रम संवत् 2080

लोक पर्व-त्योहार
नव संवत्सर पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 22 मार्च 2023, बुधवार से विक्रम नव संवत्सर 2080 और शालिवाहन शक 1945 का प्रारंभ हो रहा है. इस संवत्सर का नाम 'पिंगल' है. इसके राजा बुध और मंत्री शुक्र होंगे.ज्योतिषगणना के अनुसार वर्ष के राजा बुध, मंत्री शुक्र,सस्येश चंद्र, मेघेश गुरु,दुर्गेश गुरु, धनेश सूर्य,रसेश बुध, धान्येश शनि,निरसेश चंद्र और फलेश गुरु रहेंगे. अधिकमास का संवत्सर नव संवत्सर 2080 की एक विशेषता यह रहेगी कि इसमें अधिकमास आ रहा है. यह अधिकमास श्रावण रहेगा. श्रावण अधिकमास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा. प्रथम शुद्ध श्रावण का कृष्ण पक्ष 4 जुलाई से 17 जुलाई तक रहेगा. शुद्ध श्रावण का शुक्ल पक्ष 17 अगस्त से 31 अगस्त तक रहेगा. वासन्तिक नवरात्र का भी प्रारम्भ भारतीय काल गणना पद्धति के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र मास के शुक्लपक्ष की जिस प्रतिपदा तिथि से नव संव...
फूलों का उत्सव: सांझा चूल्हा और ग्वाल पुजै 

फूलों का उत्सव: सांझा चूल्हा और ग्वाल पुजै 

लोक पर्व-त्योहार
मंजू दिल से… भाग-28 मंजू काला फूल से मासूम बच्चे, ताजे फूलों सी उनकी मुस्कराहट, पहाड़ी  झरने सी उनकी चाल,  दूर  पहाड़ी में बजती मंदिर की घंटियां मासूम नन्हें—नन्हें हाथों में सजी खूबसूरत रिंगाल की छोटी-छोटी टोकरियां और प्यारे से उत्तराखंड का प्यारा सा उत्सव “फूलदेई” जी हां, दुनिया में शायद उत्तराखंड के पहाड़ों में ही ऐसा उत्सव मनाया जाता है, जो रंग—बिरंगे फूलों और प्यारे से मासूम बच्चों के साथ मनाया जाता है. रिंगाल की खुबसूरत टोकररियों में पुलम, खुबानी बुरंस, फ्योंली,आडू़,और न जाने कितने रंग—बिरंगे फूल लेकर आते हैं ये मासूम बच्चे. और हर घर की देहरी पर ये खूबसूरत फूल बिखेरते हैं. मुँह अंधेरे में जागकर जंगलों से लाल सुर्ख बुराँश के फूल चून—चून कर लाते हैं औऱ फिर खेतों की मुंडेर से सूरज की किरणों की तरह मुस्कराती सरसों—सी पीली फ्योंली को अपनी टोकिरयों में सजा कर निकल जाती है स्कूलि...
प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास का पर्व है फूल संगरांद

प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास का पर्व है फूल संगरांद

लोक पर्व-त्योहार
बीना बेंजवाल, साहित्यकार चैत्र संक्रांति का पर्व प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास से मन को अनुप्राणित कर देता है. बचपन की दहलीज से उठते हुए मांगलिक स्वर बुरांशों से लकदक जंगलों से होते हुए जब उत्तुंग हिमशिखरों को छूने लगते हैं तो मन को आवेष्टित किए हुए क्षुद्रताओं एवं संकीर्णताओं के कलुष वलय छंटने लगते हैं. ये लोकपर्व एक वृक्ष दृष्टि के साथ न केवल अपनी जड़ों से जोड़ता है वरन् लोकमंगल की ऊर्ध्वमुखी सोच से भी समृद्ध करता है. अपनी फुलकण्डियाँ लिए घर के बाहर खड़े नन्हें फुलारियों का संबोधन भीतर की तमाम जड़ता को तोड़ हर देहली-द्वार पर फूलों के साथ आत्मीय रिश्तों की भी एक रंगोली सजाने लगता है. सांस्कृतिक संपदा एवं प्राकृतिक सौंदर्य की धनी उत्तराखण्ड की यह धरती चैत्र संक्रांति पर फूल संगरांद या फूलदेई का अपना लोकपर्व कुछ इसी अंदाज में मनाती है. वैसे तो इस राज्य के हर पर्व, त्योहार एवं उत्सव की अप...
स्त्री जीवन के रंग, बस की खिड़की से

स्त्री जीवन के रंग, बस की खिड़की से

लोक पर्व-त्योहार
सुनीता भट्ट पैन्यूली उत्तराखंड की कुनकुनी ठंड पार हो गयी है एक नर्म गर्मी  और फगुनाहट का अहसास राजस्थान के सीमांत प्रदेश में पहुंचकर देह को प्रफुल्लित कर रहा है.हमने अपने शाल और स्वेटर बस में उतारकर रख लिये हैं. हरे-भरे कीकर के पेड़, सूखे जर्र-जर्र ताल-तलैयों और कुंओं का सिलसिला अनवरत चल रहा है हमारी आंखों की मिल्कियत तक. मैं बस की ऊंची वाली बर्थ पर बैठी हूं. बहुत सुखद होता है बस या ट्रेन में बैठकर मन की खिड़की से बाहर जीवन और उससे जुड़े रंगों  को महसूस करना. सड़क के किनारे दौड़ लगाते खेतों में गेहूं की  विस्तीर्ण अधपकी फसल जिसकी आधी हरी और आधी पीली हो गयी गेहूं की बालियों में अभी कच्चा दूध उतरा ही है. मेरे लिए बहुत आश्चर्यजनक है गेहूं को राजस्थान की जमीन पर हरहराते हुए देखना, ज्वार,बाजरा की पैदावार ही वहां होती है ऐसा मैंने सुना है. इक्का- दुक्का पीली सरसों के खेत भी कहीं-कहीं बिखरे चि...