शिक्षा

मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-8 प्रो. गिरीश्वर मिश्र देश की नई शिक्षा नीति के संकल्प के अनुकूल भारत सरकार का मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब “शिक्षा मंत्रालय” के नाम से जाना जायगा. इस पर राष्ट्रपति जी की मुहर लग गई  है और गजट भी प्रकाशित हो गया है. इस फौरी कारवाई के लिये सरकार निश्चित ही बधाई की पात्र है. यह कदम भारत सरकार की मंशा को भी व्यक्त करता है. पर सिर्फ मंत्रालय के नाम की तख्ती बदल देना काफी नहीं होगा अगर शेष सब कुछ पूर्ववत ही चलता रहेगा. आखिर पहले भी शिक्षा मंत्रालय का नाम  तो था ही. स्वतंत्र भारत में मौलाना आजाद, के एल श्रीमाली जी,  छागला साहब,  नुरुल हसन साहब और प्रोफेसर वी के आर वी राव  जैसे लोगों के हाथों में इसकी बागडोर थी और संसद में पूरा समर्थन भी हासिल  था. सितम्बर 1985 में जब ‘मानव संसाधन’ का नामकरण हुआ तो श्री पी वी नरसिम्हा राव जी प्रधानमंत्री थे और इस मंत्रालय...
पहाड़ में बालिका शिक्षा की दशा एवं दिशा: नई शिक्षा नीति के संदर्भ

पहाड़ में बालिका शिक्षा की दशा एवं दिशा: नई शिक्षा नीति के संदर्भ

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-7 डॉ. अमिता प्रकाश शिक्षा, वह व्यवस्था जिसे मनुष्य ने अपने कल्याण के लिए, अपनी दिनचर्या में शामिल किया . मनुष्य की निरंतर बढ़ती मानसिक शक्तियों ने स्वयं को अपने परिवेश को, अपने सुख-दुख, आशाओं–आकांक्षाओं को व्यक्त और अनुभूत करने के लिए जो कुछ किया, वह जब दूसरों के द्वारा अनुकृत किया गया या अपने जीवन में उतारा गया तो वह सीख या शिक्षा कहलाया. धीरे-धीरे बदलते मानव समाज के साथ यह स्वाभाविक प्रक्रिया अस्वाभाविक और यांत्रिक होती चली गयी. भारत में शिक्षा को लेकर आजादी के समय से ही दोहरा रवैया रहा है. एक ओर राजा राममोहन राय जैसे विद्वान थे जो पश्चिमी शिक्षा से ही भारतवासियों की उन्नति को संभव देख रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर महात्मा गांधीजी का विचार था कि भारतीय जीवन पद्धति के अनुसार यहां   की परंपरागत शिक्षा को बढ़ावा दिया जाय, और ग्रामीण स्तर से भारत को मजबूत किय...
उच्चतर शिक्षा में देश को नयी उड़ान देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020

उच्चतर शिक्षा में देश को नयी उड़ान देने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-6 आनंद सौरभ “उच्चतम शिक्षा वो है जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को समस्त अस्तित्व के साथ सद्भाव में लाती है.” -गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंजूरी दे दी है. देश में शिक्षा के क्षेत्र में यह इस सदी की सबसे बड़ी नीतिगत पहल है.  पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 34 साल पहले 1986 में आयी थी, जिसमें कुछ संशोधन 1992 में लाये गए. इन तीन दशकों में देश की अर्थव्यवस्था में आमूलचूल बदलाव आया है, और यह निरंतर ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग, बिग डाटा, ऑटोमेशन आदि तकनिकी विकास ने औद्योगिक क्रांति के चौथे चरण की नींव रख दी है.  इसके फलस्वरूप ज्ञान का क्षेत्र भी बहुत तेजी से बदल रहा है. आज उच्चतर शिक्षा...
लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप से दिलाएगी मुक्ति : नई शिक्षा नीति-2020

लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप से दिलाएगी मुक्ति : नई शिक्षा नीति-2020

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-5 डॉ गीता भट्ट  मातृभाषा से शिक्षा देने के महत्व को महात्मा गांधी ने इस प्रकार व्यक्त किया है “मां के दूध के साथ जो संस्कार और मीठे शब्द मिलते हैं, उनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिये, वह विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से टूट जाता है. इस संबंध को तोड़ने वालों का उद्देश्य पवित्र ही क्यों न हो, फिर भी वे जनता के दुश्मन हैं.” आज अगर गांधी होते, तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की समग्रता और राष्टीय चेतना से संचित रूपरेखा देख अत्यंत संतुष्ट होते. 34 वर्षों के उपरांत एक नीति जो रचनांतर होने के साथ-साथ शैक्षणिक मापदंडों में एक नयी सोच को लायी है और आने वाले समय में शिक्षा पर लंबे समय से हावी औपनिवेशिक स्वरूप को मूलतः भारतीय करने में मील का पत्थर साबित होगी. शिक्षा नीति पर विमर्श और प्रतिपुष्टि की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी. शिक्षा मंत्री रमेश...
“लॉर्ड  मैकाले की कैद से मुक्ति दिलाती नई शिक्षा नीति” 

“लॉर्ड  मैकाले की कैद से मुक्ति दिलाती नई शिक्षा नीति” 

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-4 डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा “अरुण” लगभग 34 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और कर्मठ केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल “निशंक” के प्रयासों के परिणाम स्वरूप भारत को नई शिक्षा नीति के रूप में वस्तुतः 'लॉर्ड मैकाले की मानसिक कैद' से मुक्ति मिली है. माननीया श्रीमती इंदिरा गाँधी की निर्मम हत्या के बाद जब उनके सुपुत्र श्री राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने, तो उनके दिमाग में शिक्षा का कोई रूप अगर था, तो वह था “दून स्कूल, देहरादून” की अंग्रेजी से लदी-फदी 'कान्वेंट' की शिक्षा का और उन्होंने इसी लिए भारत को एक बार फिर से विदेशी अवधारणा के अनुसार चलाने का स्वप्न संजोया. उस समय राजीव गाँधी के सलाहकार थे सैम पित्रोदा, जो स्वयं विदेशी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे. इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के “शिक्षा मंत्रालय” का नाम ...
भारतीय शिक्षा में नवोन्मेष का आवाहन

भारतीय शिक्षा में नवोन्मेष का आवाहन

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-3 प्रो. गिरीश्वर मिश्र भारत विकास और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो रहा एक जनसंख्या-बहुल देश है. इसकी जनसंख्या में युवा वर्ग का अनुपात अधिक है और आने वाले समय में यह और भी बढ़ेगा जिसके लाभ मिल सकते हैं, बशर्ते शिक्षा के कार्यक्रम में जरूरी सुधार किया जाए. यह आवश्यक होगा कि कुशलता के साथ सर्जनात्मक योग्यता को भी यथोचित स्थान मिले. शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का माध्यम होती है और उसी से समाज की चेतना और मानसिकता का निर्माण होता है. कहना न होगा कि भारत के पास ज्ञान और शिक्षा की एक समृद्ध और व्यापक परम्परा रही है, किन्तु अंग्रेजी उपनिवेश के दौर में एक भिन्न दृष्टिकोण को लागू करने के लिए और साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के अनुरूप यहां की अपनी ज्ञान-परम्परा और शिक्षा-पद्धति को प्रश्नांकित करते हुए लार्ड मैकाले द्वारा निर्दिष्ट व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा थोपी गई. इसने द...
शिक्षा प्रणाली में नव-युग की आहट

शिक्षा प्रणाली में नव-युग की आहट

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-2 डॉ. अरुण कुकसाल मैकाले ने तत्कालीन गर्वनर जनरल विलियम वैंटिक को संबोधित अपने 2 फरवरी, 1935 के एक विवरण पत्र (Macaulay's Minute Of 1935) में मात्र 3 सुझाव देकर भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को बिट्रिश सरकार की जबरदस्त इच्छा-शक्ति और सार्मथ्य की साहयता से पूर्णतया बदलवा दिया था. स्वाधीनता के बाद विविध समय अन्तरालों में शिक्षा पर बनी सभी नीतियां एवं कार्यक्रम अपने समय-काल के अनुरूप और भविष्य की दूरदर्शिता की दृष्टि से उपयोगी और कारगर थे. बस, उनके क्रियान्वयन में हमारी सरकारें कमजोर से कमजोर साबित हुई हैं. नतीजन, शिक्षा के क्षेत्र में हम हर बार शून्य से आगे बढ़ने की कोशिश में लगे जैसे दिखते हैं. नई शिक्षा नीति में सहमति, असहमति और आशंकाओं के कई बिन्दु हैं. परन्तु ये सब ज्यादा मायने नहीं रखते हैं. मायने तो यह है कि देश के सभी विद्यार्थियों, शिक्षकों ...
पृष्ठभूमि को नया विस्तार और आयाम

पृष्ठभूमि को नया विस्तार और आयाम

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-1 डॉ. अरुण कुकसाल ‘‘लोकतंत्र में नागरिकता की परिभाषा में कई बौद्धिक, सामाजिक एवं नैतिक गुण शामिल होते हैं: एक लोकतांत्रिक नागरिक में सच को झूठ से अलग छांटने, प्रचार से तथ्य अलग करने, धर्मांधता और पूर्वाग्रहों के खतरनाक आकर्षण को अस्वीकार करने की समझ एवं बौद्धिक क्षमता होनी चाहिए....वह न तो पुराने को इसलिए नकारे क्योंकि वह पुराना है, न ही नए को इसलिए स्वीकार करे क्योंकि वह नया है-बल्कि उसे निष्पक्ष रूप से दोनों को परखना चाहिए और साहस से उसको नकार देना चाहिए जो न्याय एवं प्रगति को अवरुद्ध करता हो....’’ (माध्यमिक शिक्षा आयोग-1952) कोठारी कमीशन (1964-66) के आलोक में सन् 1968 में देश की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अमल में लाया गया था. इसके अन्तर्गत शिक्षा के अवसरों की समानता, प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा शिक्षण, हिन्दी का सम्पर्क भाषा के रूप में व...
टैगोर का शिक्षादर्शन- ‘असत्य से संघर्ष और सत्य से सहयोग’

टैगोर का शिक्षादर्शन- ‘असत्य से संघर्ष और सत्य से सहयोग’

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रवीन्द्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि (7 अगस्त,1941) पर विशेष डॉ. अरुण कुकसाल ‘किसी समय कहीं एक चिड़िया रहती थी. वह अज्ञानी थी. वह गाती बहुत अच्छा थी, लेकिन शास्त्रों का पाठ नहीं कर पाती थी. वह फुदकती बहुत सुन्दर थी, लेकिन उसे तमीज नहीं थी. राजा ने सोचा ‘इसके भविष्य के लिए अज्ञानी रहना अच्छा नहीं है’....उसने हुक्म दिया चिड़िया को गंभीर शिक्षा दी जाए. पंडित बुलाए गए और वे इस निर्णय पर पंहुचे कि चिड़िया की शिक्षा के लिए सबसे जरूरी हैः एक पिंजरा. और फिर पिंजरे में रखकर चिड़िया ज्ञान पाने लगी. लोगों ने कहा ‘चिड़िया के तो भाग्य जगे!’.... ‘महाराज, चिड़िया की शिक्षा पूरी हो गई’. राजा ने पूछा, ‘वह फुदकती है? भतीजे-भानजों ने कहा, ‘नहीं !’ ‘उड़ती है?’ ‘एकदम नहीं!’ ‘चिड़िया लाओ,’ राजा ने आदेश दिया. चिड़िया लाई गई. उसकी सुरक्षा में कोतवाल, सिपाही और घुड़सवार साथ चल रहे थे. राजा ने चिड़िया को उंगली से ...
ऑनलाइन शिक्षण-स्वप्न व जागरण के बीच का यथार्थ

ऑनलाइन शिक्षण-स्वप्न व जागरण के बीच का यथार्थ

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(उत्तराखण्ड के विशेष संदर्भ में) डॉ. अमिता प्रकाश काफी समय से यह मुद्दा और इससे संबधित कई विचार मेरे दिमाग में निरतंर उमड़-घुमड़ रहे थे, कई बार लिखने को उद्यत भी हुई, लेकिन फिर अनगिनत कारणों की वजह से इस विषय पर लेखन टलता रहा. लेकिन आज सुबह जब केरल की एक छात्रा द्वारा इंटरनेट की सुविधा के अभाव में ऑनलाइन शिक्षण से वंचित रहने के फ्रस्टेशन में आत्महत्या की खबर पढ़ी तो विचार स्वयं ही साक्षात् रूप में कागज पर उतरते चले गए. इन दो ढाई महीनों ने, अर्थात् जब से कोरोना संक्रमण की दहशत से मनुष्य अपने घरों में रहने को विवश हुआ है, और सरकार को स्वयं को 'कल्याणकारी सरकार' के दिखावे के दबाव में लॉकडाउन घोषित करना पड़ा, जीवन में परिस्थितियों ने कई परिवर्तनों को जन्म दिया. अब लगभग ढाई माह बाद जब अनलॉक 1 की शुरुआत हो चुकी है तब भी एक आम मध्यमवर्गीय इंसान, जिसके सामने रोजी-रोटी का बहुत बड़ा संकट नहीं है,...