शिक्षा

पढ़ने-पढ़ाने की संस्कृति: सामुदायिक पुस्तकालय

पढ़ने-पढ़ाने की संस्कृति: सामुदायिक पुस्तकालय

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कमलेश चंद्र जोशी कोरोना महामारी के इस कठिन दौर में कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जो प्रभावित न हुआ हो लेकिन उन तमाम क्षेत्रों में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला एक क्षेत्र है शिक्षा. पिछले 8-9 महीनों से because शिक्षण संस्थान बंद हैं और ऑनलाइन माध्यम से बच्चों को पढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं जो नाकाफी प्रतीत हो रही हैं. बच्चे, अध्यापक और अभिभावक इस सच्चाई को महसूस कर चुके हैं कि ऑनलाइन शिक्षा कभी भी क्लास रूम का विकल्प so नहीं हो सकती. उत्तराखंड राज्य के दूर दराज के गांवों की स्थिति बेहद चिंताजनक है जहां  बच्चों के पास न तो स्मार्ट फोन हैं, न इंटरनेट की उपलब्धता और न ही इंटरनेट की स्पीड. अभिभावक इतने पढ़े-लिखे भी नहीं हैं कि वो स्वयं स्कूल का विकल्प बन सकें. आदत कोरोना से उत्पन्न इन विपरीत परिस्थितियों के बीच उम्मीद की एक किरण जगाई है उत्तराखंड के पिथौरागढ़, रामनगर व नानकमत्ता के उन तम...
आजाद का शैक्षिक स्वप्न और आज का सत्य

आजाद का शैक्षिक स्वप्न और आज का सत्य

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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (11 नवम्बर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र मौलाना अबुल कलाम आजाद ने देश के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में संस्कृति और सभ्यता के व्यापक सन्दर्भ में  समग्र भारत के लिए शिक्षा का स्वप्न  देखा था. उनकी जन्म तिथि को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के because रूप में स्मरण करते हुए हमारी दृष्टि आधुनिक भारत में शिक्षा के आरंभिक ढाँचे पर जाती है. मूलत: इस्लामी पृष्ठभूमि में शिक्षा-दीक्षा होने के बावजूद मौलाना भारत और आधुनिक पश्चिमी ज्ञान परम्परा से भलीभांति परिचित थे. स्वातंत्र्य आन्दोलन में उन्होंने अविभाजित भारत because की तरफदारी की थी और यहाँ की सांस्कृतिक विरासत और भारतीयता के गौरव बोध को भी उन्होंने अनेक अवसरों पर व्यक्त किया था. विभाजन की पीड़ा उन्हें सालती थी. इसे वह राजनैतिक हार मानते थे पर वे सांस्कृतिक हार के लिए तैयार न थे. प्रवासी एक कवि, विद्वान, पत्रकार so और...
बच्चे की आंखों में जीवनभर की चमक शिक्षक ही ला सकता है

बच्चे की आंखों में जीवनभर की चमक शिक्षक ही ला सकता है

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डॉ. अरुण कुकसाल ‘दिवास्वप्नों के मूल में वास्तविक अनुभव हों, तो वे कभी मिथ्या नहीं होते. यह दिवास्वप्न जीवन्त अनुभवों में से उपजा है और मुझको विश्वास है कि प्राणवान, क्रियावान और निष्ठावान शिक्षक इसको वास्तविक स्वरूप में ग्रहण कर सकेंगे.’ -गिजुभाई        पहाड़ (गांधी जी का जो योगदान भारतीय because राजनीति में है, वही योगदान गिजुभाई का भारतीय शिक्षा जगत में है. गिजुभाई ने अपने अध्यापकीय अनुभवों की डायरी ‘दिवास्वप्न’ की प्रस्तावना में उक्त पक्तियां लिखी थी. बाल मनोविज्ञान एवं शिक्षण के क्षेत्र में ‘दिवास्वप्न’ पुस्तक को एक अनमोल कृति माना जाता है.) पहाड़ शिक्षिका एवं कवियत्री रेखा चमोली की because ‘मेरी स्कूल डायरी’ को गहनता से पढ़ने के बाद इस पुस्तक पर मेरे मन-मस्तिष्क की पहली अभिव्यक्ति गिजुभाई की उक्त पक्तियां ही हैं. इस शैक्षिक डायरी को पढ़ते हुए एक साथ कई किताबों और विषयों को पढन...
हिंदी की स्थिति, गति और उपस्थिति

हिंदी की स्थिति, गति और उपस्थिति

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भारत भाषाओं की दृष्टि से एक अद्भुत देश है जिसमें सोलह सौ से अधिक भाषाएं हैं… प्रो. गिरीश्वर मिश्र किसी भी देश के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में भाषा बड़ी अहमियत रखती है. भाषा हमारे जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में दखल देती है. because वह स्मृति को सुरक्षित रखते हुए एक ओर अतीत से जोड़े रखती है तो दूसरी ओर कल्पना और सर्जनात्मकता के सहारे अनागत भविष्य के बारे में सोचने और उसे रचने का मार्ग भी प्रशस्त करती है. भारत भाषाओं की दृष्टि से एक अद्भुत देश है जिसमें सोलह सौ से अधिक भाषाएं हैं जिनमें भारतीय आर्य उपभाषा और द्रविड़ भाषा परिवारों की प्रमुखता है. ऐसे में द्विभाषिकता यहाँ की एक स्वाभाविक भाषाई व्यवहार रूप है और बहुभाषिकता भी काफी हद तक पाई जाती है. आर्य भाषा समूह में आने वाली हिंदी मध्य देश में प्रयुक्त भाषा समूह का नाम है. इसके बोलने वाले एक विशाल भू भाग ...
स्कूली शिक्षा की वैकल्पिक राहें

स्कूली शिक्षा की वैकल्पिक राहें

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गांधी जी ने शिक्षा के सुन्दर वृक्ष के समूल विनाश के लिए अंग्रेजों को उत्तरदायी ठहराया था... प्रो. गिरीश्वर मिश्र स्कूली शिक्षा सभ्य बनाने के लिए एक अनिवार्य व्यवस्था बन चुकी है. शिक्षा का अधिकार संविधान का अंश बन चुका है. भारत में स्कूलों पर प्रवेश के लिए बड़ा दबाव है और अभी करोड़ों बच्चे because स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और जो स्कूल जा रहे हैं उनमें से काफी बड़ी संख्या में बीच में ही स्कूल की पढाई छोड़ दे रहे हैं. यानी शिक्षा के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है. दूसरी तरफ स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को ले कर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. सभी बच्चों को उनकी रुचि, क्षमता और स्थानीय सांस्कृतिक प्रासंगिकता आदि को दर किनार रख सभी को एक ही ढाँचे में एक ही तरह के सांचे में ढाल कर शिक्षा की व्यवस्था की जाती है. स्कूली शिक्षा गांधी जी ने शिक्षा के सुन्दर वृक्ष के समूल विनाश के लिए ...
हिंदी का श्राद्ध अर्थात ‘हिंदी दिवस’  

हिंदी का श्राद्ध अर्थात ‘हिंदी दिवस’  

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हिन्‍दी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष प्रकाश उप्रेती हर वर्ष की तरह आज फिर से हिंदी पर गर्व और विलाप का दिन आ ही गया है. हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों को इस दिन कई जगह ‘जीमना’ होता है. मेरे एक शिक्षक कहा करते थे कि “14 सितंबर को हिंदी का श्राद्ध होता है और हम जैसे  हिंदी के पंडितों का यही दिन होता जब हम सुबह से लेकर शाम तक बुक रहते हैं”. कहते तो सही थे. because इन 67 वर्षों में हिंदी प्रेत ही बन चुकी है. तभी तो स्कूल इसकी पढाई कराने से डरते हैं और अभिभावक इस भाषा को पढ़ाने में संकोच करते हैं. सरकार ने इसके लिए खंडहर बना ही रखा है. अब और कैसे कोई भाषा प्रेत होगी. because हिंदी का बूढ़ा और नौजवान विद्वान (वैसे तो हिंदी पट्टी का हर व्यक्ति अपने को हिंदी का विद्वान माने बैठा होता है) जिसको की विद्वान होने की मान्यता विश्वविद्यालयों में चलने वाले हिंदी के विभाग, राजेन्द्र यादव इन्हें ‘ज्ञा...
दक्षिणी राज्यों का दबाव नहीं बल्कि राजनीतिक साजिश का शिकार हुई हिन्दी

दक्षिणी राज्यों का दबाव नहीं बल्कि राजनीतिक साजिश का शिकार हुई हिन्दी

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हिन्‍दी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष भुवन चन्द्र पन्त  सामान्य हिन्दी प्रेमी के मानस पर यह प्रश्न अवश्य उभरता होगा कि जब भारत सम्प्रभु राष्ट्र है, इसका अपना संविधान है, जो हमारी संविधान सभा द्वारा स्वयं तैयार किया गया, 100 करोड़ से भी अधिक लोग हिन्दी जानते हैं और हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने के पक्षधर हैं, फिर वे कौन से कारण हैं, जो आजादी के 73 साल बाद भी हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं दे पाये. सोचना स्वाभाविक है, जब देश धारा 370 जैसे विवादित अनुच्छेद को समाप्त कर सकता है तो हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने के because लिए संवैधानिक संशोधन में अड़चन क्या है? आम आम हिन्दी प्रेमी हो अथवा सत्ता पर बैठे राजनेता हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान न मिलने पर अपनी व्यथा व्यक्त करते नहीं चूकते, विशेष रूप से हिन्दी दिवस soके मौके पर. जब सत्ता में बैठे लोग ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा क...
प्रशासनिक हिन्दी शब्दावली के शब्द शिल्पी डॉ. नारायण दत्त पालीवाल

प्रशासनिक हिन्दी शब्दावली के शब्द शिल्पी डॉ. नारायण दत्त पालीवाल

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हिन्‍दी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी 14 सितम्बर का दिन समूचे देश में 'हिन्‍दी दिवस' के रूप में मनाया जाता है. आजादी मिलने के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्‍दी को राजभाषा बनाने का फैसला लिया गया था. तब से हर साल 14 सितंबर को हिन्‍दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन सरकारी विभागों में राजभाषा हिन्‍दी के प्रचार-प्रसार के प्रति संकल्प को दुहराते हुए सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा बहुत धूमधाम से 'हिन्‍दी दिवस' समारोह का आयोजन किया जाता है. इस समारोह का भविष्य के लिए संकल्प का जितना महत्त्व है and उतना ही इसका यह भी महत्त्व है कि हिन्‍दी के प्रचार-प्रसार और सरकारी काम-काज में हिन्‍दी के अधिकाधिक प्रोत्साहन देने और इसे व्यवहार में उपयोगी बनाने के लिए विद्वानों द्वारा अब तक किए गए प्रयासों का सिंहावलोकन भी किया जाए. सरकारी इसी परिप्रेक्ष्य में हम आज हिन्‍...
किसके हाथों शिक्षा की पतवार

किसके हाथों शिक्षा की पतवार

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कमलेश उप्रेती इक्कीसवीं सदी के बहुत प्रतिभाशाली बुद्धिजीवी और हिब्रू यूनिवर्सिटी युरोशलम में प्रोफेसर युवाल नोवा हरारी अपने एक लेख में बताते हैं “मनुष्य हमेशा से उपकरणों के आविष्कार करने में माहिर रहा है उन्हें उपयोग करने में नहीं. 1950 के दशक में जब आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की खोज हुई तो वैज्ञानिकों का सपना इसके द्वारा मानव मस्तिष्क को पूरी तरह रिप्लेस कर देने का था. मगर आज आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस पूरी तरह से एलीट क्लास अमीरों के हाथों में है जो इसका उपयोग दुनिया को इसकी लत लगाने और उससे लाभ कमाने में करता है”. इससे मुझे आज का अपने आस पास का परिदृश्य नजर आता है. ऑनलाइन शिक्षण के नाम पर एक व्हाइट बोर्ड में कैमरा फोकस करके दो चार सवाल लगा देना और बोरियत भरी आवाज़ में उसे सुना देना यही सब टीवी चैनलों पर दिख रहा है. हमारी कक्षाओं का वास्तविक स्वरूप भी अगर केवल बोर्ड और अध्यापक के व्याख्...
मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

मानव संसाधन विकास का शिक्षा में रूपान्तरण

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-8 प्रो. गिरीश्वर मिश्र देश की नई शिक्षा नीति के संकल्प के अनुकूल भारत सरकार का मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब “शिक्षा मंत्रालय” के नाम से जाना जायगा. इस पर राष्ट्रपति जी की मुहर लग गई  है और गजट भी प्रकाशित हो गया है. इस फौरी कारवाई के लिये सरकार निश्चित ही बधाई की पात्र है. यह कदम भारत सरकार की मंशा को भी व्यक्त करता है. पर सिर्फ मंत्रालय के नाम की तख्ती बदल देना काफी नहीं होगा अगर शेष सब कुछ पूर्ववत ही चलता रहेगा. आखिर पहले भी शिक्षा मंत्रालय का नाम  तो था ही. स्वतंत्र भारत में मौलाना आजाद, के एल श्रीमाली जी,  छागला साहब,  नुरुल हसन साहब और प्रोफेसर वी के आर वी राव  जैसे लोगों के हाथों में इसकी बागडोर थी और संसद में पूरा समर्थन भी हासिल  था. सितम्बर 1985 में जब ‘मानव संसाधन’ का नामकरण हुआ तो श्री पी वी नरसिम्हा राव जी प्रधानमंत्री थे और इस मंत्रालय...