Author: Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास
विद्यादत्त शर्मा: कलम और खुरपी के महामना!

विद्यादत्त शर्मा: कलम और खुरपी के महामना!

साहित्‍य-संस्कृति
नरेन्द्र कठैतपहाड़ में चीड़ की भीड़ ही भीड़ है. इसलिए चीड़ आत्ममुग्ध है कि वही पहाड़ की रीढ़ है. लेकिन थोड़ी सी भी, तेज हवा के झौंक में चीड़ की समूल उखड़ जाने because की प्रवृत्ति भी हमनें करीब से देखी है. हालांकि अंत, देर-सबेर सबका निश्चित है. वो इमारती हो अथवा करामाती, जलना सबको लकड़ी होकर ही है. किंतु चीड़ इतना बुद्धिहीन, बेखबर भी नहीं है - या - यूं कहें कि उसको यह भान नहीं है कि because उसके रग-रग में प्रज्वलन क्षमता भले ही है किंतु उसमें बांज के समान घनी छाया, मजबूत पकड़, प्रचण्ड ताप और शीतलता का वास नहीं है. इसीलिए चीड़ की आत्मा कदम-कदम पर बांज से खौफ खाती है. और-बांज से जितनी दूर हो सके पांव पसारती है.चीड़ पहाड़ की पगडंडियों, because धार-खाल-वनपथों पर ही नहीं अपितु साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्र में भी ऐसी ही अति उत्साही चीड़ की सी भीड़ है. लेकिन.....इंही चीड़ और चीड़ के कुनबों की भीड़ से अल...
वरिष्ठ पत्रकार मनजीत नेगी ने पीएम मोदी को भेंट की अपनी पुस्तक ‘साधु से सेवक’ की पहली प्रति

वरिष्ठ पत्रकार मनजीत नेगी ने पीएम मोदी को भेंट की अपनी पुस्तक ‘साधु से सेवक’ की पहली प्रति

समसामयिक
पीएम मोदी की आध्यात्मिक यात्रा पर आधारित है पुस्तक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लिखी है पुस्तक की प्रस्तावना. पीएम मोदी ने अपने उत्तराखंड से जुड़ाव और शुरुआती सफर को याद करते हुए कई आध्यात्मिक स्थलों का जिक्र कियाहिमांतर ब्‍यूरो, नई दिल्‍लीवरिष्ठ पत्रकार मनजीत नेगी ने अपनी नई पुस्तक 'साधु से सेवक' की पहली प्रति सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भेंट की. यह पुस्तक नरेंद्र मोदी के शुरुआती जीवन की आध्यात्मिक यात्रा पर आधारित है. इसमें विशेष रूप से उत्तराखंड में विभिन्न स्थलों में बिताए गए दिनों और घटनाओं को प्रस्तुत किया गया है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुलाकात के दौरान अपने उत्तराखंड से जुड़ाव और शुरुआती सफर को याद करते हुए कई आध्यात्मिक स्थलों का जिक्र किया. साथ ही पिथौरागढ़ जिले के नारायण आश्रम, रामकृष्ण कुटीर अल्मोड़ा, केदारनाथ स्थित गरूड़चट्टी और दयानंद आश...
आनंद का समय 

आनंद का समय 

साहित्‍य-संस्कृति
नीलम पांडेय‘नील’ब्रह्म ने पृथ्वी के कान में एक बीज मंत्र दे दिया है उसी क्रिया की प्रतिक्रिया में  जब बादल बरसते हैं,  तो स्नेह की वर्षा होने लगती है  और पृथ्वी निश्चल भीग उठती है. आज भी बादलों के गरजने और  धरती पर फ्यूंली के फूलने से, यूं लग रहा है  कि पृथ्वी मंत्र बुदबुदा रही है.  उत्तराखंड चीड़ के वृक्षों की झूमती कतारों से निकलने वाली सांय-सांय की आवाज दूर तक जैसे किसी की याद दिलाने लगती है. वृक्षों से निकल कर  पीला फाग उड़-उड़ कर because फैलने लगता है और पूरे वातावरण को अपनी आगोश में ले लेता है. एक लम्बी सुसुप्ति और नीरवता के बाद पेड़ पौधों पर नवांकुरो और नवपल्लवों को आते हुए देखना बहुत सुंदर लगता है ...आज सृजन के ऋतु यानी ऋतुराज वसंत के आगमन की शुरुआत है. नव पल्लव की सुगंध में रचे बसे से लोग, लोक जीवन के भाव लिए हुए नए कोंपलों के स्वागत की तैयारी में गीत गाने लगते हैं, so ...
प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

लोक पर्व-त्योहार
चन्द्रशेखर तिवारीमनुष्य का जीवन प्रकृति के साथ अत्यंत निकटता से जुड़ा है। पहाड़ के उच्च शिखर, पेड़-पौंधे, फूल-पत्तियां, नदी-नाले और जंगल में रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं के साथ because मनुष्य के सम्बन्धों की रीति उसके पैदा होने से ही चलती आयी है। समय-समय पर मानव ने प्रकृति के साथ अपने इस अप्रतिम साहचर्य को अपने गीत-संगीत और रागों में भी उजागर करने का प्रयास किया है।उत्तराखंड पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनेक लोक so गीतों के रुप में ये गीत समाज के सामने पहुंचते रहे। उत्तराखण्ड के पर्वतीय लोकगीतों में वर्णित आख्यानों को देखने से स्पष्ट होता है कि स्थानीय लोक ने प्रकृति में विद्यमान तमाम उपादानों यथा ऋतु चक्र,पेड़-पौधों, पशु-पक्षी,लता,पुष्प तथा नदी व पर्वत शिखरों को मानवीय संवेदना से जोड़कर उसे महत्वपूर्ण स्थान दिया है।उत्तराखंडलोकगीतों वर्णित बिम्ब एक अलौकिक but और विशिष्ट सुख का आभास कराते हैं। मा...
वक्त के साथ ‘फूलदेई’ भी बदल गई

वक्त के साथ ‘फूलदेई’ भी बदल गई

लोक पर्व-त्योहार
ललित फुलाराटोकरी और भकार- दोनों ही छूट गया. बुरांश और फ्योली भी आंखों से ओझल हो गई. बस स्मृतियां हैं जिन्हें ईजा, आंखों के आगे उकेर देती है. देहरी पर सुबह ही फूल रख दिए गए हैं. ईजा के साथ-साथ हम because भी बचपन में लौट चले हैं. तीनों भाई-बहन के हाथों में टोकरी है.टोकरी में बुरांश, फ्योली, आड़ू so और सरसों के फूल.गुड़ की ढेली और मुट्ठी भर चावल. गोद में परिवार में जन्मा नया बच्चा जिसकी पहली फूलदेई है. तलबाखई से लेकर मलबाखई तक हर घर में हम बच्चों की कितनी आवोभगत हो रही है. तन-मन में स्फूर्ती but भरती वसंत की ठंडी हवा में उल्लासित हमारा मन, अठन्नी और चवन्नी की गिनती के साथ ही गुड़ के ढेले में रमा हुआ है. पैसों की खनखनाहट के साथ ही हमारे सपने भी खनक रहे हैं. बहन के बालों में फ्योली का फूल लहलहा रहा है. भाई का मन गुड़ और मिठाई में रमा हुआ है.हर धैली पर फ्योली का फूल चढ़ाकर त...
न्यायदेवता ग्वेलज्यू के अष्ट-मांगलिक नारी सशक्तीकरण के सिद्धांत

न्यायदेवता ग्वेलज्यू के अष्ट-मांगलिक नारी सशक्तीकरण के सिद्धांत

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी"नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में. पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में..”                       –जयशंकर प्रसाद 8 मार्च का दिन समूचे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं को स्नेह, सम्मान और उनके सशक्तीकरण का भी दिन है. because हिंदी के जाने माने महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की उपर्युक्त पंक्तियों से भला कौन अपरिचित है जिन्होंने श्रद्धा और विश्वास रूपिणी नारी को अमृतस्रोत के रूप में जीवन के धरातल में उतारा है. प्राचीन काल से ही हमारे समाज में नारी का विशेष आदर और सम्मान होता रहा है. हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है. हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियां वहीं पर निवास करती हैं जहां पर समस्त so नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. कोई भी परिवार,...
सर्वहारा संस्कृति के ‘राष्ट्रदेवता’ शिव

सर्वहारा संस्कृति के ‘राष्ट्रदेवता’ शिव

लोक पर्व-त्योहार
महाशिवरात्रि पर विशेषडॉ. मोहन चंद तिवारीआज 11 मार्च के दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की तिथि को महा शिवरात्रि का पर्व है. वर्ष में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की because महाशिवरात्रि का विशेष माहात्म्य है. माना जाता है कि इस दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग के उदय से सृष्टि का आरम्भ हुआ. ऐसी भी लोक मान्यता रही है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था. महाशिवरात्रि से संबधित कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.इनमें से एक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन समुद्र मंथन के समय निकले कालकूट नामक विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था.क्यों की जाती है शिव की पूजा अर्द्धरात्रि में फाल्गुन मास की कृष्ण because चतुर्दशी की महाशिवरात्रि को 'ईशानसंहिता' में 'महानिशा’ कहा गया है. इसी घोर अन्धकार की अर्धरात्रि में शिव करोड़ों सूर्यों क...
कुमाऊंनी लोकसाहित्य में प्रतिबिंबित ग्वेलदेवता का राजधर्म

कुमाऊंनी लोकसाहित्य में प्रतिबिंबित ग्वेलदेवता का राजधर्म

धर्मस्थल
राज्य में किया दबंगई का उन्मूलन, प्रजा को दिलाया इंसाफ का राजडॉ. मोहन चंद तिवारीआज इस लेख के माध्यम से कुमाऊंनी भाषा के लोककवियों के आधार पर उत्तराखंड के न्याय देवता ग्वेलज्यू के राजधर्म की अवधारणा पर चर्चा की जा रही है. कुमाऊं भाषा के जाने माने रंगकर्मी तथा साहित्यकार स्व. श्री ब्रजेन्द्र लाल शाह  जी द्वारा रचित ‘श्रीगोलू-त्रिचालीसा में न्याय देवता ग्वेलज्यू के राजधर्म का भव्य निरूपण हुआ है. महाभारत के शांतिपर्व  में उल्लेख आया है कि राजधर्म में विकृति आने पर  सर्वत्र  समाज में 'मात्स्यन्याय' की प्रवृत्ति फैल जाती है. यानि जैसे बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है.उसी प्रकार अराजकता पूर्ण समाज में भी बाहुबली और धनबली जैसे ताकतवर लोग निर्बल और असहाय लोगों का शोषण करने लगते हैं और उन्हें सताने लगते हैं. कुमाऊं भाषा के जाने माने रंगकर्मी तथा साहित्यकार राज्य संस्था का मकसद ही है इस...
ईज़ा शब्द अभिव्यक्ति की सीमा  से परे अनुभूति का रिश्ता  है  

ईज़ा शब्द अभिव्यक्ति की सीमा  से परे अनुभूति का रिश्ता  है  

आधी आबादी
भुवन चंद्र पंतईजा के संबोधन में जो लोकजीवन की सौंधी महक है, उसके समकक्ष माँ, मम्मी या मॉम में रिश्तों के तासीर की वह गर्माहट कहां? ईजा शब्द के संबोधन में एक ऐसी ग्रामीण because महिला की छवि स्वतः आँखों  के सम्मुख उभरकर आती है, जो त्याग की साक्षात् प्रतिमूर्ति है, जिसमें आत्मसुख का परित्याग कर खुद को परिवार के लिए समर्पित होने का त्याग एवं बलिदान है, बच्चों की परवरिश के लिए समयाभाव के बावजूद उनकी खुशियों के लिए कोई कसर न छोड़ने वाली ईजा का कोई सानी नहीं.हमारी थोड़ा बच्चों की शरारत पर because मीठी झि़ड़की देने और उसी क्षण शिबौऽऽ कहकर उसके सर पर हाथ फिराने और मुंह मलासने वाली ईजा, जंगल से लौटकर झटपट बिना पानी की घूँट पीये बच्चे को अपने दूध पर लगाने वाली ईजा, पीठ पर बच्चे को बांधकर खेतों में निराई-गुड़ाई करने वाली ईजा, धोती से सिर बांधकर आंगन में ओखल कूटती ईजा, सुबह सबेरे गागर सिर पर but ...
प्यारी दीदी, अपने गांव फिर आना

प्यारी दीदी, अपने गांव फिर आना

आधी आबादी
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेषडॉ. अरुण कुकसालआज के विशेष दिवस पर दीदी की याद आना स्वाभाविक है- ‘‘प्रसिद्ध इतिहासविद् डाॅ. शिव प्रसाद डबराल ने ‘उत्तराखंड के भोटांतिक’ पुस्तक में लिखा है कि यदि प्रत्येक शौका अपने संघर्षशील, व्यापारिक और घुमक्कड़ी जीवन की मात्र एक महत्वपूर्ण घटना भी अपने गमग्या (पशु) की पीठ पर लिख कर छोड़ देता तो इससे जो साहित्य विकसित होता वह साहस, संयम, संघर्ष और सफलता की दृष्टि से पूरे विश्व में अद्धितीय होता’’ (‘यादें’ किताब की भूमिका में-डाॅ. आर.एस.टोलिया)‘गाना’ (गंगोत्री गर्ब्याल) ने अपने गांव गर्ब्याग की स्कूल से कक्षा 4 पास किया है। गांव क्या पूरे इलाके भर में दर्जा 4 से ऊपर कोई स्कूल नहीं है। उसकी जिद् है कि वह आगे की पढ़ाई के लिए अपनी अध्यापिका दीदियों रन्दा और येगा के पास अल्मोड़ा जायेगी। गर्ब्याग से अल्मोड़ा खतरनाक उतराई-चढ़ाई, जंगल-जानवर, नदी-नालों क...