सेहत

रोगों को जड़ से मिटाने में कारगर हैं होम्योपैथी दवाएं

रोगों को जड़ से मिटाने में कारगर हैं होम्योपैथी दवाएं

विश्व होम्योपैथी दिवस पर विशेष

  • डॉ. दीपा चौहान राणा

 होम्योपैथी (Homeopathy) एक विज्ञान का कला चिकित्सा पद्धति है. होम्योपैथिक दवाइयां किसी भी स्थिति या बीमारी के इलाज के लिए प्रभावी हैं; बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययनों में होमियोपैथी को प्लेसीबो से अधिक प्रभावी पाया गया है. चिकित्‍सा के जन्‍मदाता सैमुएल हैनीमेन (Dr. Christian Friedrich Samuel Hahnemann)  हैं, इनका जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी में हुआ था, इन्होंने सन 1796 में होम्योपैथी की उत्पत्ति की. यह चिकित्सा के ‘समरूपता के सिंद्धात’ पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियां उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं. औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है. जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए. अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके.

होमियोपैथी पद्धति में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोग लक्षणों को सुनकर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करने वाली औषधि का चुनाव करना है. रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है. चिकित्सक का अनुभव उसका सबसे बड़ा सहायक होता है. पुराने और कठिन रोग की चिकित्सा के लिए रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है. कुछ होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के समर्थकों का मत है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष की वृद्धि है.

होमियोपैथी चिकित्सकों की धारणा है कि प्रत्येक जीवित प्राणी हमें इंद्रियों के क्रियाशील आदर्श  को बनाए रखने की प्रवृत्ति होती है औरे जब यह क्रियाशील आदर्श विकृत होता है, तब प्राणी में इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं. प्राणी को औषधि द्वारा केवल उसके प्रयास में सहायता मिलती है. औषधि अल्प मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि बीमारी में रोगी अतिसंवेगी होता है. औषधि की अल्प मात्रा प्रभावकारी होती है जिससे केवल एक ही प्रभाव प्रकट होता है और कोई दुष्परिणाम नहीं होते. रुग्णावस्था में ऊतकों की रूपांतरित संग्राहकता के कारण यह एकावस्था  प्रभाव स्वास्थ्य के पुन: स्थापन में विनियमित हो जाता है. विद्वान होम्योपैथी को छद्म विज्ञान मानते हैं.

होमियोपैथी दवाएँ अर्क (Tincture), संपेषण (Trituration) तथा तनुताओं (Dilutions) के रूप में होती है और कुछ ईथर या ग्लिसरीन में धुली होती हैं, जैसे सर्पविष. अर्क मुख्यतया पशु तथा वनस्पति जगत् से व्युत्पन्न हैं. इन्हें विशिष्ट रस, मूल अर्क या मैटिक्स टिंचर कहते हैं और इनका प्रतीक ग्रीक अक्षर ‘थीटा’ है. मैट्रिक्स टिंचर तथा संपेषण से विभिन्न सामर्थ्यों (Potencies) को तैयार करने की विधियां समान हैं.

होम्योपैथी का इलाज भले ही थोड़ा लम्बा चलता है, लेकिन यह जड़ से समस्या को दूर  करता है. साथ ही इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता, इसलिए अधिकतर लोग होम्योपैथी इलाज को प्राथमिकता देते हैं.

तनुताओं (Dilutions) में भिन्न-भिन्न सामर्थ्य की औषधियां तैयार की जाती हैं. मूलार्क से प्रारम्भ करने के बाद तनुता के मापक्रम में हम ज्यों-ज्यों ऊपर बढ़ते हैं, त्यों-त्यों अपरिष्कृत पदार्थ से दूर हटते जाते हैं यही कारण है कि होमियोपैथी विधि से निर्मित औषधियां सामान्यतः विषहीन एवं अहानिकारक होती हैं. इन औषधियों में आश्चर्यजनक प्रभावशाली औषधीय गुण होता है. ये रोगनाशन में प्रबल और शरीर गठन के प्रति निष्क्रिय होता हैं.

गंधक, पारा, संखिया, जस्ता, टिन, बेराइटा, सोना, चाँदी, लोहा, चूना, ताँबा, तथा टेल्यूरियम इत्यादि तत्वों तथा अन्य बहुत से पदार्थों से औषधियां बनाई गई हैं. तत्वों के यौगिकों से भी औषधियाँ बनी हैं. होमियोपैथी औषधविवरणी में 260 से 270 तक औषधियों का वर्णन किया गया है. इनमें से अधिकांश का स्वस्थ नर, नारी या बच्चों पर परीक्षण (Drug Proving) कर रोगोत्पादक गुण निश्चित किए गए हैं. शेष दवाओं को विवरणी में अनुभवसिद्ध होने के नाते स्थान दिया गया है.

होम्योपैथी का इलाज भले ही थोड़ा लम्बा चलता है, लेकिन यह जड़ से समस्या को दूर  करता है. साथ ही इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता, इसलिए अधिकतर लोग होम्योपैथी इलाज को प्राथमिकता देते हैं.

एक्जिमा, खाज, खुजली, दाद की होम्योपैथिक दवा

हमारी पांच इंद्रियों में, त्वचा हमारे शरीर की सबसे बड़ी इंद्रियों है. हमारा पूरा शरीर त्वचा से ढका हुआ है. त्वचा हमें विभिन्न हानिकारक रसायनों, हानिकारक तरंगों, कीटाणुओं से बचाती है.त्वचा हमारे शरीर की आंतरिक गर्मी को संतुलित करती है.यह हमारे शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है.हमारे शरीर में अलग-अलग समय पर विभिन्न चर्म रोग जैसे की दाद, एक्जिमा, खाज, खुजली आदि अलग-अलग कारणों से होते हैं.सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 20% से 30% आबादी को किसी न किसी रूप में त्वचा रोग है. एकमात्र होम्योपैथिक दवाएं किसी भी प्रकार के चर्म रोग को ठीक कर सकती हैं. लक्षणों के अनुसार विभिन्न प्रकार के चर्म रोग की होम्योपैथिक दवा होती है लक्षणों के आधार पर होम्योपैथिक दवाई दी जाती है जो बहुत ज्यादा लाभदायक होती हैं सभी पुराने और नए लोगों के लिए होम्योपैथिक दवाई कारागार होती है इसका बहुत अच्छा फायदा होता है.

होम्योपैथिक औषधियों का कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है यह बहुत ही लाभदायक है स्पेशली पुराने रोगों के लिए मेरा यह सब बताने का मुख्य उद्देश्य यह है कि आज के दौर पर होम्योपैथी बहुत ही कारागार हो रही है और बहुत अच्छे फायदे हैं मैं सभी लोगों को होम्योपैथिक के बारे में अवगत कराना चाहती हूं मैं चाहती हूं कि हम लोगों को ऐसी दवाइयां खानी चाहिए अपनी बीमारी के लिए जो हमारे शरीर को कोई हानि ना पहुंच जाए होम्योपैथी की दवाएं का मूल्य भी कम होता है और लाभकारी भी होती हैं.

(लेखिका राणा क्योर होम्योपैथिक क्लिनिक, सुभाष रोड, नियर सचिवालय, देहरादून की ऑर्नर हैं.
आप इनसे 7982576595 चीकित्‍सकीय सलाह ले सकते हैं)

Share this:
About Author

Himantar

हिमालय की धरोहर को समेटने का लघु प्रयास

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *