
सांच ही कहत और सांच ही गहत है!
कबीर जयन्ती 24 जून पर विशेषप्रो. गिरीश्वर मिश्रआज जब सत्य और अस्तित्व के प्रश्न नित्य नए-नए विमर्शों में उलझते जा रहे हैं और जीवन की परिस्थितियाँ विषम होती जा रही हैं सत्य की पैमाइश और भी because जरूरी हो गई है. ऐसा इसलिए भी है कि अब ‘सबके सच’ की जगह किसका सच और किसलिए सच के प्रश्न ज्यादा निर्णायक होते जा रहे हैं. इनके विचार सत्ता, शक्ति और वर्चस्व के सापेक्ष्य हो गए हैं. इनके बीच सत्य अब कई-कई पर्तों के बीच ज़िंदा (या दफ़न!) because रहने लगा है और उस तक पहुँचना एक असंभव संभावना because सी होती जा रही है. शायद अब के यथार्थप्रिय युग में सत्य होता नहीं है, सिर्फ उसका विचार ही हमारी पहुँच के भीतर रहता है. सत्य की यह मुश्किल किसी न किसी रूप में पहले भी थी जब तुलनात्मक दृष्टि से सत्य-रचना पर उतने दबाव न थे जितने आज हैं.संस्कृति
सत्य के लिए साहस की जरूरत के दौर में कबीर का स्मरण ...









