नीलम पांडेय ‘नील’, देहरादून
प्यारे युवाओं!
ये जो कुछ लोग तुम्हारे लिए प्रेम कविताएं, गीत, किस्से, कहानियां लिखते हैं, जहां तुम्हें अपने लिए उनकी कोई चाहत दिखती है, ये सब तुमको बरगलाना भी हो सकता है. जरूरी नही ये प्रेम हो, हां ये प्रेम जैसा दिखता जरूर है, प्रेम जैसा महसूस जरूर होता है पर ये महज एक आकर्षण हो सकता है, तुम्हें पता होना चाहिए कि आकर्षण की उम्र बहुत छोटी होती है, वो कब तोड़ दे, टूट जाए और खत्म हो जाए कुछ नही पता.
तुम अगर किसी को प्रेम करो अथवा प्रेम गीत लिखो तो पहले धरती और आकाश की गहनता को देखो, जीवन सृजन के चेतन पक्ष को देखो, उसकी सकारात्मकता को देखो, खुद के होने को समझो, जीवन कितना अनमोल है इसे समझो, इसे बेवजह किसी पर खर्च मत करो. तुम चाहो तो जनचेतना लिखो, तुम अगर गीत सुनो तो जनचेतना को सुनो. इसलिए ध्यान रखना, जब तक तुम खुद से बेइंतहां प्रेम न करने लग जाओ, प्रकृति के कण-कण से प्रेम ना करने लग जाओ, तब तक किसी से प्रेम ना करना. खुद से बेहद प्रेम करने वाला ही प्रेम की गहराई को समझ सकता है.
गुलमोहर का झर जाना, शाम का ठहर जाना, बसंती सा मन हो जाना, चांद से चांदी का झरना, ये प्रेम नहीं लेकिन वासनाओं के आडम्बर में एक बड़ा-सा छद्म जरूर हो सकता है. कहीं तुम ठगे ना जाओ, कहीं तुम खुद को खोकर खाली हाथ ना लौट आओ फिर से जीने की जद्दोजहद में.
इस तरह की तमाम बातें, कोरी भी हो सकती हैं. ये तुमको भावनात्मक गुलाम बनाने की साज़िश भी हो सकती है. जीवन में माता-पिता के अतरिक्त कोई भी रिश्ता ऐसा नहीं है जो तुमको नि:स्वार्थ चाहे. अतः खुद के स्वावलंबन की राह में जो भी साथी तुम्हारे आदर, स्वाभिमान को बनाए रखकर आगे बढ़ना चाहे उसे बिना शेरो शायरी के ठोक बजा कर चुनना और हो सके तो ये काम अपने माता पिता को दे देना.
जीवन के अठारह बसंत तक तुम केवल बच्चे बने रहो बिल्कुल मासूम से, जिस दिन तुम अपनी मासूमियत को अलविदा कह दोगे, जीवन की मौलिकता भी तुमसे विदा होने लगेगी. लोग तुमको तुम्हारी उम्र से चार गुना उम्र का बना कर तुमसे ही खुद की अपेक्षाओं को पूरा करने की उम्मीद करेंगे.
हम सब अपनी अपनी जिंदगी के बादशाह होते हैं. अचानक एक दिन कोई हमारी जिंदगी में आकर हमें मुस्काराना सीखा देता हैं या कोई हमको धीरे-धीरे खुद से दूर ले जाता है.
हमारी जिंदगी में दो तरह के लोग आते हैं, मजे की बात है दोनो प्रेम लेकर आते हैं, एक खत्म करता है दूसरा खत्म होते इंसान में जीने की ललक पैदा कर देता है. कई बार कोई एक जंगली बेल अचानक किसी हरे लहलहाते पेड़ से लिपट जाती है और कुछ समय के बाद पेड़ सूखने लगता है, निराशा में खत्म होने लगता है. दूसरी ओर कई बार अचानक एक सूखते पेड़ के तने पर एक नन्ही सी पौंध पेड़ के तने से बातें करते हुए उसमें भी नई कोपलों को आने में मदद करती है. कुछ रिश्ते लाजवाब होते हैं.
कभी सोच के देखा है कि जिन्हें तुम सूरज, चाँद, सितारे और न जाने क्या-क्या कहते हो, वो ‘सब-के-सब’ बस टँगे हुए हैं, यूँ हीं ‘शून्य’ में…कुछ नहीं करते वे किसी के दुख पर, सुख पर. वे निरंतर अपनी ड्यूटी का निर्वाह भर कर रहे हैं और हम नाहक उन पर कशीदे (Tapestries) गढ़ते रहते हैं. जीवन भी ऐसा ही है…. सवाल-ज़बाब सा, सतही (basic) ‘संतृप्तता (saturation) तो कभी छलकती’ असंतृप्तता (insatiability) सा ही तो है. बहुत से लोग प्रेम को विपरीत रूप में सुनना नहीं चाहते हैं. भले ही उनके जीवन में प्रेम शून्य हो चुका हो, रिक्त हो चुका हो, गुजर गया वक़्त हो चुका हो, विस्मृत हो चुका हो. वे उसकी काल्पनिक उपस्थिति पर ही उसको सत्य मान कर कई दशक गुजार चुके होते हैं.
क्योंकि प्रेम शब्द ही असीम अनुभूति, आनंद का भाव बना हुआ है. लेकिन प्रेम का वास्तव में खुद का कोई वजूद नहीं है. प्रेम भावों के सहारे जिंदा रहता है. जितने समय भाव रहेंगे, प्रेम बना रहेगा. अकसर भाव, समय, स्थितियों, परिस्थितियों, जीवन के उतार चढ़ाव, विडंबनाओं और जीवन परक लंबी अनुभव यात्राओं का दास होता है1 अतः भावों की सहजता में मानवता से प्रेम करते रहिए, जब भी प्रेम करो तो ध्यान रखना न कोई अपेक्षा रखना, न कोई लगाव रखना और न कोई अधिकार की भावना रखना. हो सके तो देने और किसी के लिए नि:स्वार्थ कुछ करने का भाव रखना. प्रेम को आजाद भाव से स्वीकारना. देखना दुनिया में प्रेम कभी खत्म नहीं होगा, प्रेम कभी खत्म होना भी नही चाहिए.