Month: May 2020

ईजा के जीवन में ओखली

ईजा के जीवन में ओखली

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—14 प्रकाश उप्रेती ये है-उखो और मुसो. स्कूल की किताब में इसे ओखली और मूसल पढ़ा. मासाब ने जिस दिन यह पाठ पढ़ाया उसी दिन घर जाकर ईजा को बताने लगा कि ईजा उखो को ओखली और मुसो को मूसल कहते हैं. ईजा ने बिना किसी भाव के बोला जो तुम्हें बोलना है बोलो- हमुळे रोजे उखो और मुसो सुणी रहो... फिर हम कहते थे ईजा- ओखली में कूटो धान, औरत भारत की है शान... ईजा, जै हनल यो... अक्सर जब धान कूटना होता था तो ईजा गांव की कुछ और महिलाओं को आने के लिए बोल देती थीं. उखो में मुसो चलाना भी एक कला थी. लड़कियों को बाकायदा मुसो चलाना सिखाया जाता था. उखो एक बड़े पत्थर को छैनी से आकार देकर बनाया जाता था वहीं मुसो मोटी लकड़ी का होता था लेकिन उसके आगे 'लुअक' (लोहे का) 'साम' (लोहे के छोटा सा गोलाकार) लगा होता था. उखो वाले पत्थर को 'खो' (आंगन का एक अलग हिस्सा) में लगाया जाता था. मुस...
बुदापैश्त डायरी-2 : भाषा का पुल

बुदापैश्त डायरी-2 : भाषा का पुल

संस्मरण
डॉ विजया सती दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से हाल में ही सेवानिवृत्त हुई हैं। इससे पहले आप विज़िटिंग प्रोफ़ेसर हिन्दी – ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त, हंगरी में तथा प्रोफ़ेसर हिन्दी – हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़, सिओल, दक्षिण कोरिया में कार्यरत रहीं। साथ ही महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा, संस्मरण, आलेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं। विजया सती जी अब ‘हिमाँतर’ के लिए ‘देश-परदेश’ नाम से कॉलम लिखने जा रही हैं। इस कॉलम के जरिए आप घर बैठे परदेश की यात्रा का अनुभव करेंगे। देश—परदेश भाग—2 डॉ. विजया सती यूरोप के केन्द्र में जागते हुए से इस देश हंगरी की राजधानी बुदापैश्त में पहुंचे दो महीने से अधिक हो गए. इतना समय बीत जाने तक भी, अभी बहुत कुछ नया, अनपहचाना, अनजाना, अपरिचित सा ही लगता. अप्रैल के अंत और वसंत के आरम्भ में मौसम कई करवटें लेने लगा. कभी तेज...
उत्तराखंड में उद्यानीकरण की हकीकत

उत्तराखंड में उद्यानीकरण की हकीकत

उत्तराखंड हलचल
पलायन ‘व्यक्तिजनित’ नहीं ‘नीतिजनित’ है भाग-3 चारु तिवारी  सरकार बार-बार कह रही है कि उद्यानीकरण को रोजगार का आधार बनायेगी. मुख्यमंत्री अपने हर संबोधन में बता रहे हैं कि वे फलोत्पादन और नकदी फसलों से लोगों की आमदनी बढ़ायेंगे, ताकि वे महानगरों की ओर न भागें. सरकार अगर इस तरह सोच रही है तो निश्चित रूप से उसने उद्यानीकरण पर अपना रोडमैप जरूर तैयार किया होगा. मुख्यमंत्री और सरकार की ओर से वही पुरानी बातें कही गई हैं, जो योजनाओं और कागजों तक सीमित रहती हैं. इनके धरातल में न उतरने की वजह से ही लोगों का फलोत्पादन से मोहभंग हुआ. परंपरागत रूप से फलोत्पादन हमारी अर्थव्यवस्था का आधार रही है. फल, सब्जियों, कृषि उपजों आदि से ही ग्रामीण अपना भरण-पोषण करते रहे हैं. पहाड़ में मनीआर्डर की अर्थव्यवस्था एक साजिश है. बहुत तरीके से लाई गई है. यह साबित कराने के लिये कि पहाड़ों में कुछ नहीं हो सकता. बाहर ...
आपका बंटी: एक समझ

आपका बंटी: एक समझ

साहित्यिक-हलचल
पुस्तक समीक्षा  डॉ पूरन जोशी  आपका बंटी उपन्यास प्रसिद्ध उपन्यासकार कहानीकार मनु भंडारी द्वारा रचित है. मनु भंडारी, उनीस सौ पचास के बाद जो नई कहानी का आंदोलन हमारे देश में शुरू हुआ उसकी एक सशक्त अग्रगामियों में से हैं. कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी के साथ उनका नाम एक प्रमुख स्तंभ के रूप में लिया जा सकता है. जिस दौर में मनु भंडारी ने लिखना शुरू किया वह भारत के लिए एक नितांत नया समय था, देश औद्योगिकरण नगरीकरण और आधुनिकता की नई इबारतें लिख रहा था. ऐसे समय में देश में सभी वर्गों को लेकर के एक नई बहस की आवश्यकता थी. पुरुष-स्त्री अन्य सभी वंचित वर्ग मिलकर के एक नए भारत की नई तस्वीर बनाने में लगे हुए थे. ऐसे समय में साहित्य में महिला विमर्श के स्वर बुलंद करने वाली मनु भंडारी प्रथम पंक्ति की साहित्यकारों में आती हैं. जब महिलाएं बड़ी संख्या में अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने निकल रही...
‘नाई’ और ‘तामी’ का पहाड़

‘नाई’ और ‘तामी’ का पहाड़

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—13 प्रकाश उप्रेती ये हैं- 'नाई' और 'तामी'. परिष्कृत बोलने वाले बड़े को 'नाली' कहते हैं. ईजा और गांव के निजी तथा सामाजिक जीवन में इनकी बड़ी भूमिका है. नाई और तामी दोनों पीतल और तांबे के बने होते हैं. गांव भर में ये अनाज मापक यंत्र का काम करते हैं. घर या गांव में कोई अनाज मापना हो तो नाई और तामी से ही मापा जाता था. हमारे यहां तो जमीन भी नाई के हिसाब से होती है. लोग यही पूछते हैं- अरे कतू नाई जमीन छु तूमेर...बुबू आठ नाई छु. मेरे गांव में तो 8 से 12- 13 नाई जमीन ही लोगों के पास है. नाई घरेलू अर्थव्यवस्था का केंद्रीय मापक था. आज की विधि के अनुसार एक नाई को दो किलो और एक तामी को आधा किलो माना जाता है. नाई का नियम भी होता था कि उसे 'छलछलान' (एकदम ऊपर तक) भरना है. कम नाई भरना अपशकुन माना जाता था. गांव में शादी से लेकर जागरी तक में आटा, चावल , दाल सब ना...
तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का मतलब

तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का मतलब

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
30 मई शहादत दिवस पर विशेष आज 30 मई है. तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का दिन. टिहरी राजशाही के दमनकारी चरित्र के चलते इतिहास के उस काले अध्याय का प्रतिकार करने का दिन. उन सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि, जिन्होंने हमें अपने हक-हकूकों के लिये लड़ना सिखाया. चारु तिवारी  अरे ओ जलियां बाग रियासत टिहरी के अभिमान! रवांई के सीने के दाग, तिलाड़ी के खूनी मैदान! जगाई जब तूने विकराल, बगावत के गणों की ज्वाल. उठा तब विप्लव का भूचाल, झुका आकाश, हिला पाताल. मचा तब शोर भयानक शोर, हिला सब ओर, हिले सब छोर. तिड़ातड़ गोली की आवाज, वनों में गूंजी भीषण गाज. रुधिर गंगा में स्नान, लगे करने भूधर हिमवान. निशा की ओट हुई जिस ओर, प्रलय की चोट हुई उस ओर. निशाचर बढ़ आते जिस ओर, उधर तम छा जाता घन-घोर. कहीं से आती थी चीत्कार, सुकोमल बच्चों की सुकुमार. विलखती अबलायें भी हाय! भटकती फिरती थी ...
सूखे नहॉ बिन जीवन सूखा

सूखे नहॉ बिन जीवन सूखा

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—12 प्रकाश उप्रेती हम इसे 'नहॉ' बोलते हैं. गाँव में आई नई- नवेली दुल्हन को भी सबसे पहले नहॉ ही दिखाया जाता था. शादी में भी लड़की को नहॉ से पानी लाने के लिए एक गगरी जरूर मिलती थी. अपना नहॉ पत्थर और मिट्टी से बना होता था. एक तरह से जमीन के अंदर से निकलने वाले पानी के स्टोरेज का अड्डा था. इसमें अंदर-अंदर पानी आता रहता था. हम इसको 'शिर फूटना' भी कहते थे. मतलब जमीन के अंदर से पानी का बाहर निकलना. नहॉ को थोड़ा गहरा और नीचे से साफ कर दिया जाता था ताकि पानी इकट्ठा हो सके और मिट्टी भी हट जाए. कुछ गाँव में नहॉ के अंदर चारों ओर सीढ़ीनुमा आकार दे दिया जाता था. यह सब गाँव की आबादी और खपत पर निर्भर करता था. हमारा नहॉ घर से तकरीबन एक किलोमीटर नीचे 'गधेरे' में है. सुबह- शाम नहॉ से पानी लाना बच्चों का नित कर्म था. बारिश हो या तूफान नहॉ से पानी लाना ही होता था. इस...
रत्याली के स्वाँग

रत्याली के स्वाँग

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—7 रेखा उप्रेती ‘रत्याली’ मतलब रात भर चलने वाला गीत, नृत्य और स्वाँग. लड़के की बरात में नहीं जाती थीं तब महिलाएँ. साँझ होते ही गाँव भर की इकट्ठी हो जातीं दूल्हे के घर और फिर घर का चाख बन जाता रंगमंच… ढोलकी बजाने वाली बोजी बैठती बीच में और बाकी सब उसे घेर कर… दूल्हे की ईजा अपना ‘रंग्याली पिछौड़ा’ कमर में खौंस, झुक-झुक कर सबको पिठ्या-अक्षत लगाती … नाक पर झूलती बड़ी-सी नथ के नगीने लैम्प की रौशनी में झिलमिलाते रहते. बड़ी-बूढ़ियाँ उसे असीसती, संगिनियाँ ठिठोली करतीं तो चेहरा और दमक उठता बर की ईजा का… सबको नेग भी मिलता, जिसे हम ‘दुण-आँचोव’ कहते… शगुन आँखर देकर ‘गिदारियाँ’ मंच खाली कर देतीं और विविध चरणों में नाट्य-कर्म आगे बढ़ने लगता. कुछ देर गीतों की महफ़िल जमती, फिर नृत्य का दौर शुरू होता… नाचना अपनी मर्ज़ी पर नहीं बल्कि दूसरों के आदेश पर निर्भर करता. ‘आब तू उठ’ कहकर...
पिंगट (टिड्डी) किशन जी की दाई…

पिंगट (टिड्डी) किशन जी की दाई…

संस्मरण
नीलम पांडेय “नील” सुबह एक हरे रंग की पिंगट (टिड्डी) को देखते ही मेरा बेटा बोला, अरे इसको मारो इसने देश में कोहराम मचा रखा है. तभी मेरा पुस्तैनी पिंगट प्रेम कूद कर बाहर आ गया... ना ना बिल्कुल मत मारना इसको, ये भगवान किशन जी की ग्वाई (दाई) है, मेरी आमा इसकी पीठ पर तेल लगाती थी, क्योंकि इसने किशन भगवान को बचपन में तेल लगाया था. बेटा, "अरे क्या कह रही हो यह काटती भी है?” मेरी बरसों से बनी धारणा धराशाई हो रही है, जो आमा ने मुझमें कूट कूट कर भरी थी. इधर, मीडिया भी कह रहा है कि मेरी किशन जी की ग्वाई दलों ने अब तक देश की 90 हजार हेक्टेयर से ज्यादा फसल नुकसान कर दी है, जल्दी ही वैज्ञानिक दल सभी पिंगट दाइयों का संहार कर देगा.  मैं चुप होकर बैठ गई हूं और सेब खाते हुए सोच रही हूं कि सेब के अंदर का बीज खाते हुए, जब कभी गलती से बीज मुंह में चब जाए तो मुंह के अंदर ही अंदर सनेस खाया होगा ऐसी महक  मह...
एक ऐतिहासिक-पुरातात्विक नगरी ‘लाखामण्डल’

एक ऐतिहासिक-पुरातात्विक नगरी ‘लाखामण्डल’

धर्मस्थल
इन्द्र सिंह नेगी यमुना को यह वर प्राप्त है कि जिधर से भी इसका प्रवाह आगे बढ़ेगा, वहाँ समृद्ध सभ्यता/संस्कृति का विकास स्वतः ही होता चला जायेगा. उसके उद्भव से लेकर संगम तक के स्थान अपने आप में ऐतिहासिक-सामाजिक- सांस्कृतिक रूप से समृद्धशाली हैं. हिन्दुओं में यह भी मान्यता है कि ‘यम द्वितीया’ के दिन यमुना-स्नान से समस्त पापों से मुक्ति मिल, मोक्ष की प्राप्ति होती है. यमुना के तट पर 1095 मी. की ऊँचाई पर स्थित ‘लाखामण्डल’ नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक-धार्मिक व पुरातात्विक महत्व को सहेजे हुए हैं. देहरादून के जौनसार-बावर परगने की चकराता तहसील के अन्तर्गत ‘लाखामण्डल’ दिल्ली-यमुनोत्तरी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित जनपद उत्तरकाशी के बर्नीगाड से लगभग 5 किमी. की दूरी पर स्थित है. बर्नीगाड़ देहरादून से मसूरी होकर लगभग 107 किमी. व विकासनगर की ओर से आने पर 122 किमी. की दूरी पर...