
ईजा के जीवन में ओखली
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—14
प्रकाश उप्रेती
ये है-उखो और मुसो. स्कूल की किताब में इसे ओखली और मूसल पढ़ा. मासाब ने जिस दिन यह पाठ पढ़ाया उसी दिन घर जाकर ईजा को बताने लगा कि ईजा उखो को ओखली और मुसो को मूसल कहते हैं. ईजा ने बिना किसी भाव के बोला जो तुम्हें बोलना है बोलो- हमुळे रोजे उखो और मुसो सुणी रहो... फिर हम कहते थे ईजा- ओखली में कूटो धान, औरत भारत की है शान... ईजा, जै हनल यो...
अक्सर जब धान कूटना होता था तो ईजा गांव की कुछ और महिलाओं को आने के लिए बोल देती थीं. उखो में मुसो चलाना भी एक कला थी. लड़कियों को बाकायदा मुसो चलाना सिखाया जाता था.
उखो एक बड़े पत्थर को छैनी से आकार देकर बनाया जाता था वहीं मुसो मोटी लकड़ी का होता था लेकिन उसके आगे 'लुअक' (लोहे का) 'साम' (लोहे के छोटा सा गोलाकार) लगा होता था. उखो वाले पत्थर को 'खो' (आंगन का एक अलग हिस्सा) में लगाया जाता था. मुस...