- नीलम पांडेय “नील”
सुबह एक हरे रंग की पिंगट (टिड्डी) को देखते ही मेरा बेटा बोला, अरे इसको मारो इसने देश में कोहराम मचा रखा है. तभी मेरा पुस्तैनी पिंगट प्रेम कूद कर बाहर आ गया… ना ना बिल्कुल मत मारना इसको, ये भगवान किशन जी की ग्वाई (दाई) है, मेरी आमा इसकी पीठ पर तेल लगाती थी, क्योंकि इसने किशन भगवान को बचपन में तेल लगाया था. बेटा, “अरे क्या कह रही हो यह काटती भी है?” मेरी बरसों से बनी धारणा धराशाई हो रही है, जो आमा ने मुझमें कूट कूट कर भरी थी.
इधर, मीडिया भी कह रहा है कि मेरी किशन जी की ग्वाई दलों ने अब तक देश की 90 हजार हेक्टेयर से ज्यादा फसल नुकसान कर दी है, जल्दी ही वैज्ञानिक दल सभी पिंगट दाइयों का संहार कर देगा. मैं चुप होकर बैठ गई हूं और सेब खाते हुए सोच रही हूं कि सेब के अंदर का बीज खाते हुए, जब कभी गलती से बीज मुंह में चब जाए तो मुंह के अंदर ही अंदर सनेस खाया होगा ऐसी महक महसूस होती है. मैं अचानक कहती हूं, ओह मुंह में सनेस आ गया, तो मेरा बेटा पूछता है, ये क्या होता है? मैं कहती हूं, सनेस यानी खटमल, वह फिर पूछता है, खटमल क्या है? अब उसको कौन बताए कि एक बार के अधिकतर बच्चे खटमल के साथ सोए हैं. जब कोई कहता हमारे घर नहीं है. तभी खटमल राजा मेज, कुर्सी की दरार में दिख जाते. अब भगवान जाने मैंने बचपन में सनेस (खटमल) कब खाया होगा या संभवतया उसकी पिचकने के बाद की गंध दिमाग में कहीं होगी, जो सेब के बीज के स्वाद के साथ निकल आती है.
इस विलुप्त प्रजाति के संरक्षण का कोई उपाय नहीं हुआ क्योंकि उससे देश को और समाज को कोई फायदा नहीं था, पर सनेस गरीब के साथ सोता था यह आज के बच्चों को कैसे समझ आयेगा ? तब धूप में चारपाई और गद्दे झाड़ते, तो सनेसों का पुड़ झप झपाझप गिरता और उसे देखकर जो सुख मिलता वह आज के सुख की बराबरी नहीं कर सकता. आज के बच्चे सांगों (कॉक्रोच) पहचानते हैं. लड़कियां डरकर उछलती है, एक तब की लड़कियां जो सनेस के पुड़ों के साथ सो लेती थी. अब जब टिड्डी और कॉक्राच भी विलुप्त हो जाएंगे तो आने वाले बच्चे इनसे अनभिज्ञ अरंडी के बीजों को देखकर यह जरूर कहेंगे देखो कोरोना…
(लेखिका कवि, साहित्यकार एवं पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहती हैं)