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आन-बान और शान की प्रतीक हैं टोपियां…

आन-बान और शान की प्रतीक हैं टोपियां…

साहित्‍य-संस्कृति
सुनीता भट्ट पैन्यूलीसर्द मौसम है, कभी बादल सूर्य को आगोश में ले लेते हैं कभी सूरज देवता बादलों को पछाड़कर धूप फेंकते यहां-वहां नज़र आ जाते हैं, कभी पेड़ो के झुरमुट में, कभी आसमान so में प्रचंड चमकते, कभी खेतों के पीछे, कभी पहाड़ियों में धीरे-धीरे सरकते कभी नदी का माथा  चूमते किंतु इस धूप में ताबिश नहीं है बनिस्बत इसके सर्दी की धूप में कहीं न कहीं नमी भी है. जरा-सी धूप मलने का मन हो देह में तो एक चुभन भरी हवा चेहरे को छूकर, सर्र से कानों से होकर गुज़र जाती है.माथा फिर क्या किया जाये? नमी और कोहरे भरे दिन से धूप का आंख-मिचौली करना कहां सुकून दे पाता है ठिठुरते शरीर को. झट से ओढ़ लिये जाते हैं शाल, स्कार्फ, so कैप या टोपी तब कहीं जाकर निजात मिल पाती है ठंड से. कड़कड़ाती ठंड  हो और दांत किटकिटा रहे हों ऐसे में टोपी, स्कार्फ़ मफलर पहनने का ख़्याल न आये तो सर्दी का मजा लेना बेईमानी...