
मां की वसीयत और मंदिर के पैय्यां का पेड़
जे पी मैठाणी
ये कहानी पीपलकोटी की कहानियों का एक सिलसिला है जिसका श्रीगणेश मेरी माता जी के 8 मार्च की मध्य रात्री के निधन के बाद से शुरू हुआ है ...
क्या आपको भी याद है. आपके बचपन में पीले रंग का डालडा एक पांच लीटर का डिब्बा होता था जिस पर दो ताड़ के पेड़ होते थे जो एकदूसरे से शीर्ष पर मिले होते थे – ऐसे ही एक पुराने खाली पीले रंग के टिन के डिब्बे में मैंने एक पैय्यां ( पदम् काष्ठ ) का पेड़ जो उसमे खुद जम गया था को कई साल तक अपने घर के पास डाक बंगले में वैसे ही पाला, जैसे – आजकल हमारे घर के आगे देवदार का वो पौधा बढ़ रहा है जिसे मैंने बंगले के ही लोहे के गोल गमले में लगाया था. ये 2 देवदार के पेड़ मैंने पीपलकोटी वल्ला मंगरीगाड में वन विभाग के श्री कंडारी जी द्वारा बनायी गयी नरसरी से शायद वर्ष 1988 में चुराये थे लेकिन उसमे से एक ही देवदार बच पाया है.
अरे तो मैं, कह रहा था मैने, गोल ...