Tag: कहानी

मिलाई

मिलाई

किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी वह 18 जून 2013 का दिन था वैसे तो जून अपनी प्रचण्ड गर्मी के लिए हमेशा से ही बदनाम रहा है परन्तु उस वर्ष की गर्मी तो और भी भयावह थी पारा 46 के पार जा पहुँचा था ऐसी सिर फटा देने वाली गर्मी की दोपहर में माया बरेली से लखनऊ के लिए जनरल क्लास के डिब्बे में बैठ गई थी जनरल क्लास का वह उसका पहला सफर था वह कहाँ बैठी है किन लोगो के बीच में बैठी है आज उसका उसके लिए कोई महत्व नहीं रह गया था अपनी दाहिनी हथेली को उसने साड़ी के पल्लू से पूरी तरह से ढक लिया था बरेली जेल में मिलाई की मुहर ने जैसे उसे स्वयं गुनहगार बना दिया था. वह कनखियों से आस पास जानवरों की तरह ठुंसे हुए सहयात्रियों को कनखियों से देखती है उसे वे सारे लोग मिलाई के वक्त घंटो से इंतजार में बैठे कांतिहीन. गौरवहीन लोगों से लग रहे थे परन्तु उनमें से किसी की हथेली में मिलाई की मुहर नहीं दिख रही थी. किसी ने न अपनी हथेल...
‘गंगा’

‘गंगा’

किस्से-कहानियां
कहानी सीता राम शर्मा ‘चेतन’ रात्रि के आठ बज रहे थे. हमारी कार हिमालय की चोटियों पर रेंगती हुई आगे बढ़ रही थी. नौजवान ड्राइवर मुझ पर झुंझलाया हुआ था - “मैनें आपसे कहा था भाई साहब, यहीं रूक जाओं, आपने मेरी एक ना सुनी, अब इस घाटी में दूर-दूर तक कोई होटल-धर्मशाला है भी या नहीं क्या मालूम, शरीर थक चुका है.” ड्राइवर की बात सुन मित्र झुंझला उठा था “ये किसी की बात मानता ही नहीं. इसका क्या है अकेला है. यहां मेरा पूरा परिवार है. बीवी है, बच्चे है, कहीं कोई हादसा हुआ तो पूरा वंश खत्म हो जाएगा, कोई नाम लेने वाला भी नहीं होगा. देखों तो, बाप रे बाप, यहां से थोड़ी सी गलती से भी अगर गाड़ी का पहिया एक इंच इधर-उधर हो जाए तो हजारों फीट नीचे खाई में जा गिरेगे.” “आप लोगों को ऐसा लगता था तो रूक जाना था वहीं, मैनें तो बस इतना सोचा था कि चालीस किलोमीटर का रास्ता शेष है, पांच बज रहे हैं आठ बजे तक हम आराम...
तर्पण

तर्पण

किस्से-कहानियां
कहानी एम. जोशी हिमानी तप्त कुण्ड के गर्म जल में स्नान करके मोहन की सारी थकान चली गयी थी और वह अब अपने को काफी स्वस्थ महसूस करने लगा था. तप्त कुण्ड के नीचे अलकनन्दा अत्यंत शांत एवं मंथर गति से अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी. पहाड़ों में बहने वाली नदियां वैसे तो किसी अल्हण किशोरी सी चहकती, फुदकती, बलखाती अपनी मंजिल की तरफ दौड़ लगाती हैं परन्तु बद्रीनाथ धाम में बहने वाली अलकनन्दा का यह रूप मनुष्य को अपने प्राणवान होने का अहसास कराना चाहती थी शायद. अलकनन्दा को मालूम था उसके शोर-शराबे तथा उच्छृंखलता से भगवान नारायण की तपस्या में खलल पड़ सकता है. बद्रीनाथ में आकर मनुष्य भले ही अपना संयम भूल जाये परन्तु अलकनन्दा अनादिकाल से अपनी मर्यादा तथा संयम को नहीं भूली थी. जोशीमठ से बद्रीनाथ की 40 किलोमीटर की यात्रा ने मोहन को बीमार कर दिया था. वह सोचता है उसे रात्रि विश्राम जोशीमठ में करना चाहि...
गुफा की ओर

गुफा की ओर

किस्से-कहानियां
कहानी   एम. जोशी हिमानी चनी इतनी जल्दी सारी खीर खा ली तूने? ‘‘नही मां मैने खीर जंगल के लिए रख ली है. दिन में बहुत भूख लगती है वहीं कुछ देर छांव में बैठकर खा लूंगी. अभी मैंने सब्जी रोटी पेट भर खा ली है. मां आप प्याज की सूखी सब्जी कितनी टेस्टी बनाती हो. मैं तीन की जगह पांच रोटी खा जाती हूँ फिर भी लगता है कि पेट नही भरा...’’ भगवती समझी की पीपल पानी होने के कुछ दिन बाद यह शहर में पली लड़की कहां इस पिछड़े गांव में रह पायेगी. चली जायेगी अपने मायके. कहा भी जाता है- ‘‘तिरिया रोये तेरह दिन माता रोये जनम भर.’’ भगवती का विश्वास झूठा साबित हो रहा था. चनी को शायद जनम भर-यहीं पर रोना मंजूर था. चनी अपनी सास भगवती को अपनी मीठी बातों से खुश कर देती है. अपनी सास के साथ चनी का बहुत प्यारा रिश्ता बन गया है. सास को जब वह मां कहती है तो भगवती को बेटे का गम काफी हद तक कम हो जाता है. ऐसे वक्त में भग...
मुआवजा

मुआवजा

किस्से-कहानियां
एम. जोशी हिमानी भादों के पन्द्रह दिन बीत गये हैं बारिश है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रही है, जयंती अपने छज्जे से चारों तरफ देखने की असफल कोशिश करती है। उसके घर की तीनों तरफ की पहाड़ियां घने सफेद कोहरे से पूरी तरह से ढकी हैं, समझ में नहीं आ रहा कहां तक कोहरा जा रहा है कहां से बादलों की सीमा रेखा शुरू हो रही है, धरती आसमान सब एक से लग रहे हैं। जयंती एक अनजाने भय से रात भर सो नहीं पाती उसे लगता है इतनी ही बारिश यदि होती रही तो यह भी हो सकता है कि उसके घर के पीछे की पहाड़ी किसी दिन नीचे खिसक आये और वह यह धुंधली कोहरे भरी सुबह भी न देख पाये। पहाड़ों से भगवान भी इधर कई वर्षों से बुरी तरह नाराज चल रहे हैं इसीलिए तो वे हर बरसात में जिस तरह से बरसते हैं लगता है कि वे पूरे पहाड़ों को ढहाकर नीचे मैदानों के साथ मिला देंगे। पिछली बरसात की अमावस की रात जयंती को अभी भी बुरी तरह से खौफजदा कर देती है पल्ली...
आपका बंटी: एक समझ

आपका बंटी: एक समझ

साहित्यिक-हलचल
पुस्तक समीक्षा  डॉ पूरन जोशी  आपका बंटी उपन्यास प्रसिद्ध उपन्यासकार कहानीकार मनु भंडारी द्वारा रचित है. मनु भंडारी, उनीस सौ पचास के बाद जो नई कहानी का आंदोलन हमारे देश में शुरू हुआ उसकी एक सशक्त अग्रगामियों में से हैं. कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी के साथ उनका नाम एक प्रमुख स्तंभ के रूप में लिया जा सकता है. जिस दौर में मनु भंडारी ने लिखना शुरू किया वह भारत के लिए एक नितांत नया समय था, देश औद्योगिकरण नगरीकरण और आधुनिकता की नई इबारतें लिख रहा था. ऐसे समय में देश में सभी वर्गों को लेकर के एक नई बहस की आवश्यकता थी. पुरुष-स्त्री अन्य सभी वंचित वर्ग मिलकर के एक नए भारत की नई तस्वीर बनाने में लगे हुए थे. ऐसे समय में साहित्य में महिला विमर्श के स्वर बुलंद करने वाली मनु भंडारी प्रथम पंक्ति की साहित्यकारों में आती हैं. जब महिलाएं बड़ी संख्या में अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने निकल रही...