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किसी को तो पड़ी हुई लकड़ी लेनी पड़ेगी साहब! पुलिस सेवा के लिए है या अपशब्दों के लिए?

किसी को तो पड़ी हुई लकड़ी लेनी पड़ेगी साहब! पुलिस सेवा के लिए है या अपशब्दों के लिए?

देश—विदेश
हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली मैं बचपन से ही पुलिस वालों से चार क़दम दूर भागता हूं. कारण उनका रवैया रहा है. बहुत कम पुलिसकर्मी होंगे जो आपसे सलीक़े से बात करेंगे. नहीं तो रौब दिखाना उनकी प्रवृत्ति में शामिल because होता है. शायद ये एक तरीक़ा हो अपराधी को तोड़ने और अपराध का पता लगाने के लिए. लेकिन, जब ये ही रवैया पुलिस आम नागरिकों पर अपनाने लगती है, तो उसकी छवि धूमिल हो उठती है. उसके प्रति आम नागरिक के मन में डर पैदा हो जाता है. बढ़ेगी आम नागरिक पुलिस से कतराने because लगते हैं जिसका ख़ामियाजा समाज को उठाना पड़ता है, क्योंकि बहुत-सी घटनाओं में नागरिक 'पुलिस के चक्कर में कौन पड़े कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं.' मैंने ऊपर जो लिखा है इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सारे पुलिसकर्मी एक से होते हैं...लेकिन कुछ पुलिसकर्मियों की बदौलत उनको यह तमगा पहनना पड़ता है. बढ़ेगी जब पुलिसकर्मी ने कहा- तुम क्यों ...
EXCLUSIVE: कांग्रेस का जवाब, निराधार हैं रंजीत रावत के आरोप, तंत्र-मंत्र पर भरोसा नहीं करते हरीश रावत

EXCLUSIVE: कांग्रेस का जवाब, निराधार हैं रंजीत रावत के आरोप, तंत्र-मंत्र पर भरोसा नहीं करते हरीश रावत

देहरादून
हिमांतर ब्यूरो, नर्ई दिल्ली वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पर रंजीत रावत के बयान ने पार्टी के भीतर भूचाल खड़ा कर दिया है. कांग्रेस का कहना है कि रंजीत because रावत के हरीश रावत पर चुनाव के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा लेने वाले आरोप निराधार हैं. ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव हरपाल रावत का कहना है कि रंजीत रावत के आरोपों का पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से because कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने 'हिमांतर' से बातचीत में कहा, 'ये सारे आरोप अनर्गल और निराधार हैं. मैं चौबीस घंटे हरीश so रावत के साथ रहता हूं, मैंने कभी उनके गले में 13 मालाएं नहीं देखी. रंजीत रावत ने कहां से देख ली पता नहीं?' उन्होंने कहा कि रंजीत रावत के ऐसे बयानों से पार्टी को नुकसान हो रहा है. हरीश रावत डरा हरपाल रावत ने कहा कि ठीक सल्ट उपचुनाव से पहले इस तरह की बयानबाजी के पीछे ...
स्वयं सहायता समूह के जरिए पूर्ण हुआ स्वरोगार का स्वप्न

स्वयं सहायता समूह के जरिए पूर्ण हुआ स्वरोगार का स्वप्न

साहित्‍य-संस्कृति
प्रकाश उप्रेती   पहाड़ हमेशा आत्मनिर्भर रहे हैं. पहाड़ों के जीवन में निर्भरता का अर्थ सह-अस्तित्व है. यह सह-अस्तित्व का संबंध उन संसाधनों के साथ है जो पहाड़ी जीवनचर्या के because अपरिहार्य अंग हैं. इनमें जंगल, जमीन, जल, जानवर और जीवन का कठोर परिश्रम शामिल है. इधर अब गांव में कई तरह की योजनाओं के जरिए पहाड़ अपनी मेहनत से नई करवट ले रहा है. इस करवट की एक आहट आपको खोपड़ा गांव में दिखाई देगी. महिला स्वयं सहायता समूह पिछले साल गांव में ‘महिला स्वयं सहायता समूह’ की स्थापना हुई. यह विचार ग्राम पंचायत की तरफ से एक मीटिंग में रखा गया था. ईजा उस मीटिंग में गई हुई थीं. ईजा बताती हैं कि- ‘उस because मीटिंग में हमारी ‘पधानी’ के अलावा दो महिलाएं अल्मोड़ा से आई हुई थीं’. हमारी ग्राम पंचायत में 4 गांव आते हैं. हर गांव से महिलाएं आई हुई थीं. कहीं से चार, कहीं से दस और कहीं से तीन ही. हमारे गांव से दो लोग ...
पहाड़ों में जल परम्परा : आस्था और विज्ञान के आयाम

पहाड़ों में जल परम्परा : आस्था और विज्ञान के आयाम

जल-विज्ञान
डॉ. मोहन चंद तिवारी दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं। वैदिक ज्ञान-विज्ञान के गहन अध्येता, प्रो.तिवारी कई वर्षों से जल संकट को लेकर लिखते रहे हैं। जल-विज्ञान को वह वैदिक ज्ञान-विज्ञान के जरिए समझने और समझाने की कोशिश करते हैं। उनकी चिंता का केंद्र पहाड़ों में सूखते खाव, धार, नोह और गध्यर रहे हैं। हमारे पाठकों के लिए यह हर्ष का विषय है कि प्रो. तिवारी जल-विज्ञान के संदर्भ में ‘हिमांतर’ पर कॉलम लिखने जा रहे हैं। प्रस्तुत है उनके कॉलम 'भारत की जल संस्कृति' की पहली कड़ी... भारत की जल संस्कृति-1 डॉ. मोहन चन्द तिवारी ‘हिमाँतर’ में जल परंपरा पर चर्चा प्रारम्भ करने से पहले मैं जल की अविरल और निर्मल धारा के सर्जनहार और दिव्य जलों के भंडार देवतात्मा हिमालय को महाकवि कालिदास के निम्न श्लोक से नमन करना चाहता हूं- “अस्त्युत्तरस्यां दिशि दे...
लॉक डाउन से पहले मिले बड़े लेखक का बड़ा इंटरव्यू

लॉक डाउन से पहले मिले बड़े लेखक का बड़ा इंटरव्यू

साहित्यिक-हलचल
ललित फुलारा धैर्य से पढ़ना पिछली बार हिमांतर पर आपने 'ईमानदार समीक्षा' पढ़ी होगी. अब वक्त है 'बड़े लेखक' का साक्षात्कार पढ़ने का. लेखक बहुत बड़े हैं. धैर्य से पढ़ना. लेखक बिरादरी की बात है. तीन-चार पुरस्कार झटक चुके हैं. राजनीतिज्ञों के बीच ठीक-ठाक धाक है. सोशल मीडिया पर चेलो-चपाटों की भरमार. संपादकों से ठसक वाली सेटिंग. महिला लेखिकाओं के बीच लोकप्रियता चरम पर. विश्वविद्यालयों में क्षेत्र और जात वाला तार जुड़ा हुआ है. कई संगठनों का समर्थन अलग से. अकादमी से लेकर समीक्षकों तक फुल पैठ. पूरी फौज है. बौद्धिक टिप्पणी के लिए अलग. गाली-गलौच के लिए छठे हुए. सेल्फी और शेयरिंग के लिए खोजे हुए. फिजिकल अटैक के लिए कभी-कभार वाले. साक्षात्कारकर्ता से टकरा गए थे किसी रोज लॉकडाउन से पहले. मार्च का महीना था. गले में गमछा और हाथ में किताबें लिए सरपंच बने फिर रहे थे. थोड़ी-सी नोंकझोक के बाद ऐसी दोस्ती हुई ...