Tag: लोकसंगीत

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर रचित पुस्तक तथा ‘देव-भूत’ नाटक का सफल मंचन

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर रचित पुस्तक तथा ‘देव-भूत’ नाटक का सफल मंचन

दिल्ली-एनसीआर
हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक 'देव-भूत' तथा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर रचित पुस्तक 'कृतित्व और व्यक्तित्व: पुष्कर सिंह धामी' लेखक चंद्र मोहन पपनै के नाटक और पुस्तक का लोकार्पण 24 मार्च को एल टी जी सभागार, मंडी हाउस में उत्तराखंड के प्रबुद्धजनों में प्रमुख दिवान सिंह बजेली, सतीश टम्टा, डॉ. के सी पांडे, डॉ. हरि सुमन बिष्ट, मदन मोहन सती, चंदन डांगी इत्यादि इत्यादि के कर कमलों द्वारा किया गया.वक्ताओं द्वारा पुष्कर सिंह धामी के दूसरे कार्यकाल के तीन वर्ष पूर्ण होने पर किए गए कार्यों व मिली उपलब्धियों पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया. आयोजन के इस अवसर पर चंद्र मोहन पपनै द्वारा उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर रचित तथा विपिन कुमार द्वारा निर्देशित नाटक 'देव-भूत' का प्रभावशाली मंचन भी किया गया. मंचित नाटक 'देव-भूत' का कथासार उत्तराखंड कुमाऊं अंचल के सो...
आज बहुत याद आते हैं ‘हिरदा कुमाउंनी’

आज बहुत याद आते हैं ‘हिरदा कुमाउंनी’

स्मृति-शेष
हीरा सिंह राणा के जन्मदिन (16 सितंबर) पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी 16 सितंबर को उत्तराखंड लोक गायिकी के पितामह, लोकसंगीत के पुरोधा तथा गढ़वाली-कुमाउंनी  और जौनसारी अकादमी, दिल्ली सरकार के उपाध्यक्ष रहे श्री हीरा सिंह राणा जी का जन्मदिन है. बहुत  दुःख की बात है कि कुमाउंनी लोक संस्कृति को अपनी पहचान से जोड़ने वाले 'हिरदा कुमाउंनी ' आज हमारे बीच नहीं हैं. becauseअभी कुछ महीने पहले उनका निधन हो गया है. विश्वास नहीं होता है कि “लस्का कमर बांध, हिम्मत का साथ फिर भोल उज्याई होलि,  कां ले रोलि रात”- जैसे ऊर्जा भरे बोलों से जन जन को कमर कस के हिम्मत जुटाने का साहस बटोरने और रात के अंधेरे को भगाकर उजाले की ओर जाने की प्रेरणा देने वाले 'हिरदा' इतनी जल्दी अपने चाहने वालों से विदा ले लेंगे. लोक संस्कृति के संवाहक राणा जी का अचानक चला जाना समूचे उत्तराखण्डी समाज के लिए बहुत दुःखद है और पर्वतीय ...
दो देशों की साझा प्रतिनिधि थीं कबूतरी देवी

दो देशों की साझा प्रतिनिधि थीं कबूतरी देवी

संस्मरण
पुण्यतिथि पर (7 जुलाई) विशेष हेम पन्त नेपाल-भारत की सीमा के पास लगभग 1945 में पैदा हुई कबूतरी दी को संगीत की शिक्षा पुश्तैनी रूप में हस्तांतरित हुई. परम्परागत लोकसंगीत को उनके पुरखे अगली पीढ़ियों को सौंपते हुए आगे बढ़ाते गए. शादी के बाद कबूतरी देवी अपने ससुराल पिथौरागढ़ जिले के दूरस्थ गांव क्वीतड़ (ब्लॉक मूनाकोट) आईं. उनके पति दीवानी राम सामाजिक रूप से सक्रिय थे और अपने इलाके में 'नेताजी' के नाम से जाने जाते थे. नेताजी ने अपनी निरक्षर पत्नी की प्रतिभा को निखारने और उन्हें मंच पर ले जाने का अनूठा काम किया. आज भी चूल्हे-चौके और खेती-बाड़ी के काम में उलझकर पहाड़ की न जाने कितनी महिलाओं की प्रतिभाएं दम तोड़ रही होंगी. लेकिन दीवानी राम जी निश्चय ही प्रगतिशील विचारधारा के मनुष्य रहे होंगे, जिन्होंने अपनी 70 के दशक में अपनी पत्नी में संगीत की रुचि को न केवल बढ़ावा दिया बल्कि उनको खुद लेकर आकाशवाण...